तुम दिन भर करती क्या हो – मनीषा भरतीया : Moral Stories in Hindi

सुजाता मेरी नीले रंग की शर्ट कहां है, अलमारी में दिखाई नहीं दे रही???

मैंने तुम्हें परसों ही बताया था, ना कि मेरी हिंदुस्तान क्लव में विदेशी क्लाइंट के साथ मीटिंग है|……  फिर तुमने मेरी शर्ट इस्त्री क्यों नहीं की??? अब बताओ क्या पहनू मैं,मुझे कोट के साथ वही मैचिंग शर्ट पहननी थी |

तुम दिन भर करती क्या हो???एक शर्ट ही तो इस्त्री करनी थी….वो भी तुमसे नहीं हुआ |

सुमित के मुंह से यह चुभने वाली बातें सुनकर सुजाता के दिल को बहुत ठेस पहुंची ……आंखों के कौर भीग गये…झल झल आंसू गिर रहे थे,…पर उसने आंसुओं को छुपाते हुये अपने आप को संभालते हुए…, कहा कि  ,मैं करने ही वाली थी, …..पर मेरी तबीयत बहुत खराब हो गयी…  इसलिए मैं इस्त्री नहीं कर पाई |

आप  मुझे सिर्फ 5 मिनट का समय दीजिए……मैं फट से इस्री कर देती हूँ,…. यह सुनकर सुरेश उस पर और भड़क गया……  5 मिनट में कर देती हूं,….मैं नौकरी करता हूं , . ..मेरी ठाकरी नहीं है|

मेरा एक-2 मिनट कीमती है, .   .तुम्हारी तरह बेकार नहीं हूँ |

अब जाओ यहां से ,”जल्दी से  मेरा नाश्ता निकालो…..और लंच पैक करो |….  मुझे देर हो रही है |

जी अभी लाई कहकर सुजाता किचन में नाश्ता लेने चली जाती है….. ” नाश्ता  डालते हुये और लंच पैक करते-2 मन ही मन सोचती लगती है ….कि क्या घर में काम करने वाले का काम, काम नहीं होता?? क्या वो बेकार होता है????

8 साल हो गए शादी को जब से इस घर में आई हूं,….. अपना एक-एक पल परिवार के नाम कर दिया,…. कभी ऊफ: तक नहीं की… अपने सुख चैन  के बारे में भी नहीं सोचा,…… जिम्मेदारी को फर्ज समझकर नहीं प्यार से उठाया,…..

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फिर भी क्या सिला मिला,….. हर दिन तिरस्कार, बुराई|…. सच में मन बहुत दुखता है…… सुजाता अपनी सोच के समुद्र में डूबी हुई थी,…तभी सुमित चिल्लाते हुए आया और कहा नाश्ता और लंच आज मिलेगा कि कल दोगी|

सुजाता डरते हुये नहीं तैयार है,…. ये लीजिए|

अभी सुमित निकला ही नही था,….. की दोनों बच्चे बबलू और पिकीं तैयार होकर आ गए और पूछा मम्मी नाश्ते में क्या बनाया है???,  तो सुजाता कहती है….बच्चों मैंने नाश्ता में पोहा बनाया है,…. पोहा का नाम सुनते ही बच्चे मुंह बनाकर वोलते हैं,…. ओफ! हो!,मम्मी क्या आप हर दिन अलग नाश्ता नहीं  बना सकती |

हर दिन आप आलू पराठा , चिज टोस्ट, पोहा, चील्ला, पुलाव, रोटी सब्जी बस यही बनाती हो. हम एक ही तरह का खाना रोज- रोज खाकर बोर हो गये है,.  … आप दिन भर घर में रहती हो,कुछ अच्छा सोच कर अलग- २ नाश्ता तो बना ही सकती हो!

कल कुछ अच्छा नाश्ता बनाना, “अब जल्दी नाश्ता और लंच बाक्स  दो,……मम्मी हमारी बस आती ही होगी |

हमें स्कूल के लिए लेट हो रहा है,  …. बच्चों को नाश्ता और लंच बॉक्स देने के बाद  सुजाता एक बार फिर से दुखी हो गई बच्चों के मुंह से यह तानों भरे अल्फाज सुनकर , ” वह यह सोचने लगी की 6 साल की पिंकी और चार साल का बबलू जिन्हें अभी ठीक से कपड़े पहनने तक का लहुर नहीं है,….. उनकी भी जवान कितनी लम्बी हो गयी है…. लेकिन तभी दुसरे पल उसे समझ में आया बच्चे तो कच्ची मिट्टी के होते है, जो देखते है,…. वही सीखते है,…. उन्हें दुनियादारी की समझ कंहा होती है,….

सोच के समुद्र में सुजाता जब  गोते लगा रही थी ,….तभी अचानक से सासू मां (दमयंती जी) की आवाज आई,..”. अरे बहु मेरी माला कहां रखी हैं,.   और मेरी भजन की किताब भी नहीं मिल रही,…… कितनी बार कहा है,…..कि मेरे समान को इधर से उधर मत किया करो |

जहां जिसकी जगह है ,…..वही रख दिया करो ताकि मुझे ढूंढना ना पड़े,….. ” ऐसे भी तू सारा दिन करती ही क्या हैं,…. कम से कम इतना तो कर ही सकती है |

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सासू मां के मुंह से यह  जली कटी बातें सुनकर सुजाता को रोज बहुत आघात पहुंचता,…. ” ये सोचकर  कि कम से कम उन्हें तो मेरी मजबूरी समझनी  चाहिए,….. ” एक औरत हो कर भी क्या वह यह नहीं समझती कि घर में एक नहीं 100 काम होते है,…यही सब प्रश्न मन में उठ रहे थे, ???…..तभी सासू मां   की आवाज आई,…… माला और किताब आज मिलेगी या कल तक इंतजार करना पड़ेगा |

” मांजी आई कहकर  सुजाता गई और उसने मंदिर के ड्रावर से  किताब और माला निकाल कर दी,….”और कहा ,मांजी यही तो रखी थी,….. और रोज यही रहती है,   ….देखने में कोई चूक हो गई होगी |

“तो सांसूमाँ (दमयंती जी),  रहने दें,… काम तो कुछ होता नहीं है,….बस जवान चलानी आती है |जा मेरे लिए परांठे सेंक कर रख, मैं 10 मिनट में पूजा करके आती हूं,….. |

ठीक है  ,….मांजी कहकर सुजाता किचन में पराठे सेंकने चली जाती है |,  और मन ही मन सोचने लगती है,….. एक पापा जी( दीनानाथ जी)  है, जो मुझे समझते है,….. कभी मुझपर चिल्लाते नहीं, उल्टा सब्ज़ी , दुध और किराने का सामान लाकर मेरी मदद भी कर देते है |

8 सालों से दीनानाथ जी यह सब कुछ देख रहे हैं….उन्हें  यह सब बिल्कुल अच्छा नहीं लगता  |

….. कि   बहू बिचारी सारा दिन काम में लगी रहती है,….  बावजूद उसकी सराहना के घर के सारे लोग उस पर छींटाकशी और ताना देते है,….  कि दिन भर वह  करती क्या है???

उन्हें बहू( सुजाता) की आंखें  रोज भींगी हुए दिखाई देती हैं,…. लेकिन जब भी बह उसे उसके हक की लड़ाई लड़ने के लिए कहते हैं ,…तो वह टाल जाती है, .  और कहती है,…  कि अपनों से कैसी जंग पापाजी!

यह तो मेरा परिवार है|

” तो ससुर जी(दीनानाथ जी) कहते हैं,…… मानता हूं ,…बेटा लेकिन 8 सालों से जबसे तुम् इस घर में आई हो,  सबके उठने से पहले 5:00 बजे जगती हो और सबके सोने के बाद रात 12:00 बजे सोती हो घर का सारा काम खुद करती हो लेकिन

कभी उफ तक नहीं करती |

फिर भी घर के सदस्य तुम्हारी प्रशंसा करना तो दुर  तुम्हेँ कभी सम्मान तक नहीं देते |

आज मैंने ठान लिया है ,…बस  बहुत हो चुका अब मैं तुम्हें तुम्हारा  सम्मान दिलवा कर रहूंगा |

तुम्हें कुछ नहीं करना है,…बस तुम मुझसे वादा करो जैसा मैं, तुम्हें कहूंगा तुम वैसा ही करोगी |

“ठीक है, पापाजी…. पर मुझे क्या करना है???

” अभी दमयन्ती सत्संग से आती ही होगी,…. जैसे ही वो घर में घुसे चाय देने के बाद तुम कह देना की तुम्हें तुम्हारे मायके जाना है,…. चार दिन के लिए |

अब बहाना क्या बनाना हैं,…. वो मैं, बताऊँ या तुम बना लोगी |, तो सुजाता ने हंसकर कहा, मैं कर लूंगी पापाजी!

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फिर देखना, ये सुनकर वो कैसे परेशान हो जायेगी |,…. क्योंकि हर बार तो तुम सारा काम करके सुबह जाती हो!, और शाम को लौट आती हो,…. इसलिए घर के सदस्यों को तुम्हारी अहमियत कभी पता ही नहीं चली,….. अब जब सबको खुद से काम करना पड़ेगा,….. तो सबकी अक्कल ठिकाने आ जायेगी,….. और जब  फिर तुम मायके से आओगी तो तुम्हें इस घर में पूरा सम्मान मिलेगा,… जो पहले ही मिलना चाहिए था |

फिर जैसे ही सुजाता की सांसू माँ ( दमयन्ती जी) सत्संग से आई, सुजाता ने कहा, मांजी मैं कल  अपने मायके जाना चाहती हूँ,….. तो दमयन्ती जी( सांसू मा) बोली!

हाँ तो ठीक हैं,… चली जाना हमेशा की तरह सुबह जाओगी, शाम को आ जाओगी,…. तो सुजाता बोली नहीं, मांजी इस बार मैं चार दिन के लिए जा रही हूँ,….. क्योंकि ऋचा और सुरेश ( भाई- भाभी)चार दिन के लिए बाहर जा रहे हैं, आज मां का फोन आया था,…. आप तो जानती हैं,…. पापा को गुजरे अभी साल भर ही हुआ हैं,….. घाव अभी कच्चा हैं,….. माँ अकेले इतने बड़े घर में नहीं रह पायेगी,… वैसे मै अकेले ही जाऊंगी,…..बच्चों के स्कूल चल रहे है,… मिस हो जाएगें |

चार दिन की बात सुनकर दमयन्ती जी को तो मानों सांप सूंघ गया, पर फिर भी ढीले मन से ही सही उन्होंने सुजाता को हां कर  दी |

फिर सुजाता दुसरे दिन बच्चों और सुमित को बताकर सुबह-2 सात बजे ही मायके चली गयी,….पर  किसी ने कुछ रिएक्ट नहीं किया,….. क्योंकि सब को लग रहा था,….. कि वो शाम को लौट आयेगी |

लेकिन जब शाम को जब बच्चे और सुमित घर आए और सुजाता को नही देखा तो पुछने लगे कि दादी मम्मी कहाँ है??

माँ सुजाता कंहा है??

” तो दमयन्ती जी ने कहा,उसने तुमलोगों को बताया तो था,…..  कि वो मायके जा रही है |

हाँ, बताया तो था,….. पर इस समय तक तो आ जाना चाहिए था |

” तो दमयन्ती जी ने कहा इस बार बहू चार दिन के लिए गयी हैं,…..क्योकि उसके भाई- भाभी आउटिंग के लिए गये हैं,….|

बबलू और पिंकी, दादी बहूत भुख लगी हैं,.. जल्दी से गर्म पकौड़े बना दो,…..  “बच्चों की हां में हां मिलाते हुये दीनानाथ जी भी शुरू हो गये,…. अगर  तुम्हारे हाथों के थोड़े पकौड़े हमें भी मिल जाते तो शाम बन जाती,….. जब से बहू आई है,…  तब से तो तुमने किचन में जाना ही छोड़ दिया |

एक सुमित की ही कमी थी,….. वह भी शुरू हो गया,…. मां पापा सही कह रहे हैं ,…..आपके हाथों के पकोड़े मिल जाते तो  मजा आ जाता |

पकौड़ो का नाम सुनते ही दमयंती जी भड़क गई,….. मुझसे ना बनेंगे ,….पकोड़े -वकौड़े सुबह से काम करते-करते मेरी तो कमर अकड़ गई है, जिसे चाहिए,…. वो खुद बना ले |

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” तो दीनानाथ जी ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा कि ,….. पर भाग्यवान ऐसा क्या कर लिया तुमने जो थक गई,….तुम तो कहती थी कि बहू कुछ करती ही नहीं दिन भर, जहां तक मुझे याद है बहू तो रोज शाम को कुछ न कुछ स्नैक्स जरूर बनाती थी,…..हाँ दादु आपने ठीक कहा,…. मम्मी रोज शाम को कुछ न कुछ स्नैक्स बनाती थी,… और सुबह नाश्ते में अलग और टिफिन में अलग खाना देती थी,….. जबकि दादी ने तो हमें नाश्ते में जो रोटी – सब्जी दी वही टिफिन में भी डाल दी, …… तो सुमित ने भी बच्चों की बात का समर्थन करते हुये कहा, हाँ, “माँ ने मुझे भी नाश्ते और टिफिन में एक ही खाना दिया |

इतना ही नहीं वह मेरे नहाने से पहले मेरे सारे कपड़े बेड पर निकाल कर रख देती थी,….मेरी हर एक फाइल, और जरूरी पेपर सही जगह पर रख देती थी,….. जब भी मांगो तुरन्त दे देती बिना मेरा वक्त बर्बाद किये,…… चंद घंटों में ही आज मुझे यह एहसास दिला दिया कि वह घर के छोटे बड़े हर काम कितने सलीके से करती थी, और कभी ऊफ तक नहीं की, और पलट कर जबाब भी नहीं देती थी |

तब दमयंती जी ने भी अपनी गलती को जताते हुए  कहा,  हर बार तो बहू सुबह सारा काम करके जाती और बापस जब काम होता शाम में तब तक लौट आती,….. और रोज मैं ही भजन की किताब और माला ठीक से ड्रार में नहीं देखती,…..  और उस बेचारी को  झिड़क देती |

मैंने कभी उसकी अहमियत समझी ही नहीं |

सुमित ने भी अपनी गलती को रियलाईज करते हुए कहा की मैंने भी सुजाता को कभी इज्जत नहीं दी, मैं भी उसका कसूरवार हूँ,…..|

बच्चों ने कहा, हमने मम्मी को भला- बुरा कहा हैं,….. और तंग किया है,….. अब हम मम्मी को बिलकुल तंग नही करेंगे |

सबकी बातें सुनकर दीनानाथ जी ने कहा की मुझे खुशी हैं,..  देर से ही सही पर तुम सबको अपनी गलती का एहसास हो गया | 

फिर सबने फोन पर सुजाता माफी मांगी , ….और जब वह घर आई,….. तो उसे सम्मान तो दिया ही और काम में हाथ बंटाकर  उसकी मदद भी करने लगे |

आज सुजाता की आंखों में खुशी की चमक थी, …क्योंकि उसे अपना खोया हुआ सम्मान मिल गया था |अक्सर ऐसा कई परिवारों में देखा गया है कि घर में काम करने वाली ग्रहणी की कोई इज्जत नहीं होती है,….जैसे उसका काम काम ही नहीं है वह बेकार है | लेकिन ऐसा नहीं है कि पुरुष का काम ही काम है अगर पुरुष काम करके पैसा कमा कर लाता है तो स्त्री घर को सहजता से संभाल कर उसे स्वर्ग बनाती है|

इसलिए दोनों के काम का ही अपना अपना महत्व हैं|

आपकी क्या राय है,… इस बारे में.. अपने विचार मेरे साथ साझा जरूर कीजिए |

धन्यवाद 🙏🙏

@ मनीषा भरतीया

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