पैदा होते ही अपने मां बाप को खा गई फिर मनहूस हमारे बेटे को खा गई..अभागन कहीं की…रोज सुमन को अपने सास ससुर के तानों से दो चार होना पड़ता था।अंदर से बेचारी टूट गई थी..पर कर भी क्या सकती थी? मां बाप होते तो उनकी पास चली जाती….मामा मामी ने तो वैसे ही उसे बोझ समझकर एक ऐसे इंसान के पल्ले बांध दिया था
जो दिन रात शराब के नशे में चूर रहता था।सुमन की शादी को एक साल भी नहीं हुआ था,कि पति की कैंसर की बीमारी से मौत हो गई..अब इसमें उस बेचारी का क्या कुसूर? पर सासु मां ने अपने बेटे की मौत का सारा ठीकरा सुमन के सर फोड़ दिया था..इस करम जली की वजह से ही मेरा बेटा हमें छोड़कर चला गया..अब उनको कौन समझाता,कि उनका बेटा अपनी मौत का स्वयं जिम्मेदार था..नशे की लत ने उसे कैंसर जैसी बीमारी का शिकार बना दिया था।
पति के जाने के बाद बेचारी सुमन कहां जाती?मामा मामी ने तो शादी के बाद से ही उससे दूरी बना ली थी कभी ये जानने की कोशिश तक नहीं की, कि वो ससुराल में कैसे रह रही है?ज्यादा पढ़ी लिखी भी नहीं थी जो नौकरी करके अपना अकेले जीवन यापन कर लेती इसलिए उसने सारा जीवन ससुराल में ही गुजारने का मन बना लिया।नौकरों की तरह दिन रात घर का काम करती रहती फिर भी उसके सास ससुर उसे कोसते रहते।
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सुमन के जेठ ने तो इस डर से कि छोटे भाई के जाने के बाद अब माता पिता की सारी जिम्मेदारी कहीं उसे ही ना संभालनी पड़े विदेश में नौकरी ढूंढ ली और अपनी पत्नी और बेटे को लेकर चला गया।
सुमन के ससुर की अपनी कपड़े की दुकान थी..दो बेटे थे।बड़ा बेटा पढ़ाई में होशियार था पढ़ लिखकर इंजिनियर बन गया और नौकरी करने लगा।छोटा बेटा यानी सुमन का पति रमेश गलत सौबत में रहकर पीना सीख गया था।उसने पढ़ाई भी पूरी नहीं की थी..इसलिए सुमन के ससुर ने उसे दुकान पर अपने साथ बिठाना शुरू कर दिया।फिर भी रमेश की दारू पीने की आदत में कोई सुधार नहीं हुआ।सबने सुमन के ससुर को सलाह दी,कि बेटे की शादी करवा दो जब सर पे जिम्मेदारी पड़ेगी तो अपने आप सुधर जाएगा।और सुमन के ससुर ने सुमन को अपने बेटे के लिए पसंद कर लिया..ये सोचकर, कि बिन मां बाप की लड़की है इसलिए ज्यादा कुछ बोलेगी नहीं।
सुमन के सास सास ससुर के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी।इसलिए सुमन के घर में रहने से उनपर आर्थिक रूप से कोई अतरिक्त भार नहीं पड़ रहा था बल्कि एक तरह से उन्हें तो दिन रात काम करने वाली नौकरानी मिल गई थी..शायद इसलिए उन्होंने उसपर दूसरी शादी का भी दबाव नहीं बनाया।
समय के साथ साथ सुमन के सास ससुर की उम्र ढलने लगी थी.. हारी बीमारी भी लगी रहती थी..सुमन घर के सारे काम भी करती और सास ससुर को डॉक्टर के पास भी ले जाती।सुमन इतनी व्यस्त रहने लगी,कि उसे अपने लिए समय ही नहीं मिलता।हड्डियों का ढांचा हो गई थी वो फिर भी घर वालों को कभी उस पर दया नहीं आई।
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हद तो तब हो गई जब एक दिन सुमन बुखार में तप रही थी और घर में मेहमान आ हुए थे..वो बेचारी अपने कमरे में लेटी हुई थी..उसमें उठने की हिम्मत तक नहीं थी।उसकी सास अभी इतनी भी लाचार नहीं थी,कि मेहमानों को चाय बनाकर ना पिला सके मगर उसे तो काम करने की आदत ही नहीं थी..भुनभुनाती हुई सुमन के कमरे में जाकर बोली – “हरामखोर कहीं की..घर में मेहमान आए हुए हैं और तू यहां आराम फरमा रही है..चल उठकर सबके लिए चाय नाश्ता बना।” सुमन लड़खड़ाते हुए रसोई में गई और जैसे तैसे चाय नाश्ता बनाकर मेहमानों को दिया।सुमन की ऐसी हालत देखकर मेहमानों तक को दया आ गई वो बोले -“अरे बहु,जब तबियत ठीक नहीं थी तो चाय बनाने की क्या जरूरत थी?”
“नहीं,मैं बिल्कुल ठीक हूं।”सास के डर से बस सुमन इतना ही बोली और फिर अपने कमरे में जाकर लेट गई।मेहमान कब चले गए उसे पता ही नहीं चला।दूसरे दिन जब सुमन का बुखार तेज हो गया तब जाकर ससुर जी उसे डॉक्टर के पास ले गए।डॉक्टर ने दवाइयां लिख दी और सुमन को आराम करने के लिए बोला।पर सुमन की तकदीर में आराम कहां लिखा था?एक दो दिन के बाद जैसे ही बुखार उतरा घर के कामों में लग गई।
सुमन की हालत दिन भर दिन खराब होती गई और एक दिन वो संसार छोड़कर चली गई।
सुमन के जाने के बाद उसके सास ससुर मानो बेसहारा हो गए क्योंकि बड़ा बेटा तो साल दो साल में ही आता था।हर छोटे बड़े काम के लिए वो सुमन पर ही आश्रित थे।बीमार होते तो कोई पानी पूछने वाला नहीं होता।रह रहकर अब उन्हें सुमन की याद सताती थी।
एक रात सुमन की सास के घुटने में बहुत दर्द हो रहा था… बरबस ही उसे सुमन की याद आ गई..कैसे वो दिन भर घर का सारा काम करने के बाद रात को उसके टांगों की मालिश किया करती थी..जिससे वो आराम से सो जाती थी।आह भरते हुए बोली….सच सुमन अभागन तू नहीं थी अभागन तो मैं हूं जिसने तेरे जैसी बहू की कद्र नहीं की..!!
सच इंसान के जाने के बाद ही उसकी अहमियत समझ में आती है।
कमलेश आहूजा
#अभागन