माधवी, कुछ तो लिहाज किया करो।वो माँ है, मां, मेरी माँ,उनसे ऐसा उपेक्षित व्यवहार?माधवी उनके दिल पर क्या बीतती होगी?पाप कर रही हो,पाप।
ठीक है मैं पाप कर रही हूं तो आप पुण्य कमाओ,मैं कौनसा रोक रही हूं,तुम्हारी माँ है तो जाओ उनके आँचल में बैठो।
धीरे से तो बोल ही सकती हो,मां ने सुन लिया तो क्या सोचेगी?
वो जाने।
रमेश ने अपनी पत्नी माधवी को माँ के प्रति सही व्यवहार को सुधारने का फिर प्रयास किया,पर हर बार की तरह फिर वो असफल ही रहा।बात आगे बढ़ाने का मतलब रमेश खूब समझ रहा था।माँ का रहा सहा सम्मान भी जाना और रोज की किच किच से अपने चार वर्षीय मुन्ना पर गलत प्रभाव पड़ना।मार्ग कोई सूझ नही रहा था।
परिणाम हुआ कि रमेश रहता था तो घर में था पर उसकी माधवी से उसकी मानसिक दूरी बढ़ती गयी।रमेश अपने ही घर मे मानो अजनबी बन गया,माधवी से उसकी बात बस नाम मात्र को ही जरूरत पर ही होती।माधवी पर रमेश के बदले व्यवहार का भी कोई असर नही था।शायद उसे लगता कि रमेश इस तरकीब से उसे बेबस करना चाहता है।
रमेश धीरे धीरे आत्मकेन्द्रित होता गया।उससे जितना समय मिल पाता या फिर जितना वो कर सकता माँ का ध्यान भी रखता और सेवा भी करता।इस सब से माधवी की चिढ़ माँ के प्रति और बढ़ती जा रही थी।अब तो माधवी को जो कुछ भी ताना देना होता उसे माँ की भी उपस्थिति की भी चिंता नही होती।बेबस रमेश स्थिति को जितना संभालने का प्रयत्न करता, स्थिति उतनी ही बुरी होती जा रही थी।
और एक दिन माँ ने रमेश से कहा बेटा, गावँ से आये काफी दिन हो गये हैं, मेरी इच्छा है कुछ दिन वहां रह आऊं,सबसे मिलना हो जायेगा।बेटा बस मुझे बस में बिठा देना मैं खुद ही चली जाऊंगी।रमेश जानता था माँ गावँ क्यों जा रही है?बेटा था उसका,क्या उसकी आंखो की भाषा नही समझता?पर कोई भी निर्णय लेने ने असक्षम रमेश ने एक बार माधवी की ओर देखा,शायद सोचा हो कि माधवी मां को गावं जाने से रुकने का आग्रह करेगी,पर वो तो इस सबसे निर्लिप्त थी।रमेश को लगा कि माधवी माँ को क्यों रोकेगी,उसकी तो मन मुराद पूरी होने जा रही थी।
मायूस सा रमेश मां को बस में बिठा कर वापस घर की तरफ चल दिया उसे आज अपने द्वारा कुछ न कर सकने की नपुंसकता पर ग्लानि आ रही थी।माँ चली गयी।माधवी के पास अब चिक चिक करने की कोई वजह थी नही सो वो अपने मे रम गयी।रमेश अपनी ग्लानि में और अधिक डूब और अधिक आत्म केन्द्रित हो गया।घर मे मशीन की तरह रहना बहुत कम बोलना किसी भी अच्छे बुरे कार्य मे कोई प्रतिक्रिया प्रकट ना करना अब उसका स्वभाव बन गया था। अकेले में रोते रहना,इससे उसे राहत मिलती।
रमेश के इस परिवर्तन से अब माधवी को झटका लगा।वो रमेश से उसकी परेशानी पूछती, पर रमेश चुप ही रहता।आखिर वो ही हुआ जिसका डर था रमेश अवसाद में चला गया।बदहवास सी माधवी रमेश को ले डाक्टर के पास गयी, डॉक्टर ने बता दिया कि कोई गहरा सदमा रमेश को लगा है।अच्छा होगा उस सदमे को पहचान उसे दूर करने का प्रयास करो,अन्यथा दवाइयां भी कारगर नही होगी।
माँ को तो माधवी भूल ही चुकी थी,पर आज उसे माँ का ध्यान आया।सबकुछ चलचित्र सा आंखों के सामने तैर गया,कैसे माँ का उसने अपने घर मे उनके बेटे के सामने भी पल पल अपमान किया था।आज शायद उसके पति की हालत उसके ही कारण है।हँसते खेलते परिवार की ये गत उसी ने बनाई है।
सोचते सोचते माधवी रमेश से चिपट पर जोर से दहाड़ मार रोने लगी।मैं जान गई हूं मुझ पापन के कारण आपकी यह दशा हुई है।पर मैं नासमझ यह समझ ही नहीं पाई कि माँ के प्यार के कारण ही तो आप पर अधिकार पाया था,तो माँ के कारण आप पर मेरा अधिकार कैसे बट जाता?मैं अभागन समझती रही कि माँ ने तुम्हे मुझसे छीन लिया है,पर उनके जाने पर तो मैं तिरष्कृत ही हो गयी।मुझे माफ कर दो,रमेश,मुझे माफ़ कर दो।
उठो,हमे अभी गावँ जाना है,माँ को वापस लाने।कहती कहती माधवी रमेश के कदमो में लेट गई, अनायास ही रमेश का हाथ माधवी के सिर पर आ गया।
#तिरस्कार
बालेश्वर गुप्ता
पुणे(महाराष्ट्र)
मौलिक एवम अप्रकाशित