Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

अपनेपन की महक – परमा दत्त झा

आज बहू ने चाय के साथ बिस्कुट और नमकीन भी दिया था।वे खुशी से झूम उठे कारण इतने प्यार से बहू ने आज तक नहीं दिया था।वे एक बार देखे और चाय पीने लगे।

बहू सही रहे, परिवार देखें, और हमें क्या चाहिए।

मगर यह असर रात की बात का था।रात वह अपनी भाभी से बात कर रही थी।

चाचा बस चार दिन के मेहमान हैं –

क्यों क्या हुआ ॽ,- उसने प्रत्युत्तर में पूछा।

कुछ नहीं,बस देखरेख के अभाव में आज बिस्तर पर इस दशा में हैं -यह भाभी का जबाब था।

उसका श्वसुर उसी उम्र का है,तीस हजार की पेंशन और बीस हजार पूजा पाठ कराकर कमा लेता है,कहीं कुछ हो गया तो,इनका तो ढंग का काम नहीं हैॽ

यह सोच वह सिहर गई और आज से अच्छा भोजन और चाय नाश्ता देना शुरू किया।

इधर रामबाबू को अपनापन दीख रहा था।

#बेटियां इन कथा प्रतियोगिता

#नाम-गागर में सागर

#साप्ताहिक प्रतियोगिता

#देय तिथि-8-1-2025से 13-1-2025

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।

 

अपने तो अपने होते हैं – शिव कुमारी शुक्ला 

नकुल पांच बर्ष से अमेरिका में रह रहा था। कम्पनी ने उसे छः माह के लिए भेजा था किन्तु उसे वहां का वातावरण इतना रास आया कि उसने स्थायी तौर से वहीं का प्रोजेक्ट ले लिया। उसके माता-पिता उसे आने को कहते किन्तु वह किसी न  किसी बहाने से टाल देता। आखिर हताश-निराश हो उन्होंने कहना छोड़ दिया किन्तु अकेले दुखी रहते।

नकुल के साथ कुछ ऐसी घटना घटी कि उसने भारत लौटने का तुरंत निर्णय लिया और चल दिया अपने वतन की ओर। 

फ्लाइट से पैर नीचे रखते ही उसे हवा में, माटी की खूशबू में जो अपनेपन की महक आई उससे वह सराबोर हो गया। 

अचानक घर पहुंच उसने माता-पिता को गले लगा अपनेपन की महक को महसूस कर कुछ देर उनसे लिपटा रहा।

मां मैं आ गया अपनों के बीच, अपनों के पास।

माता-पिता खुशी से आंसू बहा रहे थे और नकुल सोच रहा था यहां आकर कितना सुकून मिला।

शिव कुमारी शुक्ला 

10-12-25

स्व रचित 

अपनेपन की महक****गागर में सागर

 

होते है कुछ ऐसे लोग – रश्मि प्रकाश 

अस्पताल के बिस्तर पर दर्द से कराहती रूचि बच्चों का सोच कर परेशान हो रही थी नए शहर में जहाँ कोई अपना नहीं है।

तभी एक दम्पती रूचि से मिलने आए।

“ बेटा आप दो महीने पहले ही यहाँ आई हो हमें जानती नहीं हो… हम तुम्हारे फ्लैट के उपर ही रहते हैं.. हमारे बच्चे तो विदेश में हैं पर तुम्हारे बच्चों की आवाज़ सुन हमें अच्छा लगता था आज घर में शांति क्यों है ये सोच ही रहे थे कि दरवाज़े पर तुम्हारे पति को परेशान देखकर पता चला तुम अस्पताल में हो और बच्चे अकेले घर में…तुम बुरा ना मानो तो जब तक तुम यहाँ हो हम बच्चों को अपने पास रख सकते हैं ।”उनकी बात सुनकर रूचि को ऐसा लगा मानो अंजान शहर में कोई अपना मिल गया उसने सहमति दे दी

बच्चों को उन लोगों ने दादा दादी जैसा भरपूर प्यार दिया और बच्चे अपनेपन की महक में परिवार की कमी महसूस ही नहीं किए ।

रश्मि प्रकाश 

#अपनेपन की महक

 

अपनेपन की महक ( गागर में सागर ) –  के कामेश्वरी 

विराज ने रसोई में खट रही सिया से कहा कि मेरी बात मानकर अपनी माँ को यहाँ बुला लो वे वहाँ गाँव में अकेली रहती हैं । उसकी बातों से सहमत होकर वह माँ को घर ले आई । दो साल बाद वे बीमार रहने लगी तो सिया उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ने चली गई । विराज को यह अच्छा नहीं लगा उसने सासुमाँ से माफी माँगी तो वह कहने लगी बेटा तुम्हारे पास मुझे अपनेपन की महक आती है यह तो मेरी अपनी बेटी ही मुझे परायी सी प्रतीत होती है । लेकिन तुम मेरी फ़िक्र मत करो मैं ठीक हूँ ।

 के कामेश्वरी 

 

अपनेपन की महक – उमा महाजन 

     रंजिता देख रही थी, जिस आम के वृक्ष के कारण दो पड़ोसी परिवारों में हुई तकरार ने बच्चों को आपस में मिलने-जुलने से रोक दिया था, उसी छतनारी आम की शाखाएं अब दूसरे के घर की छत को छूने लगी हैं। उस घर के दोनों बच्चे ललचाई नजरों से उस पर लगे आमों तक पहुंचने की ताक में थे,लेकिन रंजिता को देखते ही डरकर पीछे हो गए। सहसा रंजिता ने मुस्कुराकर अपनी सहमति प्रकट की। वे दोनों भी मुस्कराए, शाखा को अपनी तरफ खींचा और एक-एक आम तोड़कर छत की दूसरी तरफ भाग गए। 

    ‘अपनेपन की महक’ ने दो घरों के रिश्तों को पुनः जोड़ दिया था।

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब 

 

अपनेपन की महक – हेमलता गुप्ता

मम्मी ने कसकर दो थप्पड़ गाल पर लगाते हुए 15 साल के शुभम से कहा.. खबरदार आज के बाद अगर बिना  बताए घर से बाहर निकला तो टांग तोड़ दूंगी!  शुभम के साथ आए दोस्त ने कहा.. यार तेरी मम्मी तो बहुत खड़ूस है कोई बच्चों के बाहर रहने पर इतना मारता है? नमन.. यही तो मेरी मम्मी का अपनापन है वरना मेरे बिना बताए घर से इतनी देर लापता रहने पर और किसी को कुछ फर्क पड़ता है? मम्मी पापा के इसी मार में तो उनकी चिंता प्यार तड़प और अपनेपन की महक है जो तू नहीं समझेगा!

      हेमलता गुप्ता स्वरचित 

    गागर में सागर शब्द प्रतियोगिता “अपनेपन की महक”

 

 सतर्कता हटी दुर्घटना घटी। – चांदनी झा

अपनेपन की महक इतनी आ रही थी, कि मना नहीं कर पाई। उसने जो भी प्यार से दिया मैंने कबूल किया। पर आज सबकुछ लूटने के बाद पता चला रहा है, इंसान की असलियत पहचानने का हुनर कितना जरूरी है। रीता जी अब पछताने से क्या होगा,….आगे से ध्यान रखियेगा। आरपीएफ के सांत्वना से कुछ सहज हुई रीताजी। राधिका नाम बताया था उसने, बेटी की उम्र की होगी,…..बात करते-करते कब अपना सा रिश्ता बन गया, और खाना-पीना एकसाथ। जब होश में आईं तो सारा समान, मोबाइल आदि नदारथ। रीताजी ने कहा, जो हो गया, पर सीख मिली, सतर्कता हटी, दुर्घटना घटी।

चांदनी झा

 

अपनेपन की महक –  अमित रत्ता

दोनों की शादी के बाद घर मे रोज लड़ाई झगड़े होने लगे। दोनो अलग हुए तो फिर कभी बात नही की। कुछ दिन पहले मेरे बेटे का एक्सीडेंट हो गया मैं असहाय अंदर से टूट चुका था। दस साल बाद कंधे पे एक जाने पहचाने हाथ का एहसास हुआ पीछे मुड़कर देखा तो बड़े भईया खड़े थे “बोले फिक्र मत करो मैं हूँ न अभी जिंदा ” मुझे लगा मानो मुझे वो मजबूत सहारा मिल गया हो जिसपर सर रखकर मैं जीभर रो सकूँ। मेरी आँखों से आंसू पानी की तरह बहने लगे मैं अपनेपन का वो एह्साह शव्दों में व्यान नही कर सकता।

                         अमित रत्ता

                अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

 

अपनापन 

एक तो ये नयी जगह और मुझे इस समय जोरों की भूख 

लगी है। इतनी रात को मुझे खाना कहां मिलेगा ! तभी उसके फ्लैट की बेल बजी ! 

सामने एक महिला थी ।

स्नेहा : जी आंटी ! 

महिला : बेटा शाम से रात हो गई पर तुम जब से यहां आई हो खाने के लिए भी बाहर नहीं निकली ! तुम्हें भूख लगी होगी ना ! इसलिए मैं खाना लेकर आई हूं । 

महिला ने मुस्कुरा कर कहा और खाने की थाली स्नेहा को देकर जाने लगी जहां अपनेपन की महक से स्नेहा सराबोर हो रही थी ।

#अपनेपन की महक 

 

विदाई – शिव कुमारी शुक्ला 

दीक्षा बड़ी खुशी -खुशी अपनी भतीजी सुमि  का जन्म दिन मनाने आई थी।सुमि की दो मौसी भी  आईं थीं। वे तीनों एक ही शहर में रहतीं थीं किन्तु आईं अलग अलग थीं। दीक्षा अच्छी मंहगी फ्रॉक, भाभी के लिए साड़ी, भाई के लिए शर्ट लेकर आई थी साथ ही खिलौने एवं मिठाई।

धूम -धाम से जन्म दिन की पार्टी हुई। दो दिन रुक जाने का समय आ गया। तीनों को एक ही जगह जाना था सो भाई ने टैक्सी कर दी कि एक साथ ही चली जाएंगी।

अब नमिता बड़ी दुविधा में थी तीनों को एक साथ विदाई कैसे दे।वह अपनी दोनों बहनों के लिए मंहगी साड़ियां लाई थी जबकि दीक्षा के लिए सस्ती उसने सोचा था कि अलग-अलग जाएंगी तो देने में कोई दिक्कत नहीं होगी। किन्तु उसके प्लान से अंजान भाई ने एक साथ ही व्यवस्था कर दी।

नमिता ने तिलक लगा तीनों को साड़ियां दे दीं।

साड़ियों में अंतर देख दीक्षा बोली आखिर भाभी आपने अपने और पराए में भेद कर ही दिया। सिद्ध कर दिया ननद से बहनें ज्यादा प्रिय एवं सगी होती हैं। नमिता का चेहरा शर्म से झुक गया।

शिव कुमारी शुक्ला 

30-12-24

स्व रचित 

अपना पराया****गागर में सागर

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