Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

अपना पराया – कमलेश राणा

सुरेश के पिता मजदूरी करते थे चार बच्चों का पेट पालना ऐसी मंहगाई में बड़ा ही दुश्वार हो रहा था तो उन्होंने यह सोचकर अपने बड़े बेटे को अपने मालिक को सौंप दिया कि वह उनके घर के काम कर दिया करेगा, उसे कम से कम भरपेट खाना तो नसीब होगा। 

             लेकिन सेठ बहुत अच्छे इंसान थे उन्होंने सुरेश को न केवल पढ़ाया बल्कि अपनी कंपनी में जॉब भी दे दी । आज वह अपनी मेहनत के दम पर कंपनी में उच्च पद पर आसीन है। 

              उस पर उसके अपने पिता और पिता समान सेठ जी जिन्होंने पराई संतान को अपने जैसा प्यार दिया, दोनों को ही गर्व है। 

#गागर में सागर

कमलेश राणा

ग्वालियर

अपना पराया – मंजू ओमर

ये क्या शिखा बेटा तुम अपनी सास के लिए और ससुराल के लिए उल्टा सीधा बोलती रहती हो ,तो क्या मां वो कौन से अपने है पराए ही तो है। अपने तो आप लोग हो ,आप , पापा ,भाई।गलत कह रही हो बेटा माना कि हम लोग तुम्हारे अपने है लेकिन बेटा जब एक बेटी की शादी हो जाती है तो ससुराल ही उसका अपना होता है पराया नहीं।इस तरह पराएपन की भावना मन में रखोगी तो कैसे ससुराल वालों के साथ रह पाओगी।इस लिए अपना पराया न किया करों और ससुराल को और ससुराल वालों को ही अब अपना मानों समझी , हां मां ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

27 दिसंबर 

अपना – पराया।। – अंजना ठाकुर।। 

मनु की शादी पक्की हो गई थी रीना ने उसके लिए गहने बनवाने के लिए अपनी दीदी को फोन किया क्योंकि मनु को वो सेट बहुत पसंद आ रहा था जो दीदी ने अपनी बेटी को दिया था। दीदी बोली तू पागल है वो बहुत महंगा सेट है और मनु कौन अपनी है वो तो पराई है ।रीना बोली दीदी आज आपने कहा आइंदा मत कहना मैने मनु के साथ कभी अपना -पराया नहीं किया वो सौतेली नहीं मेरी बेटी है।दीदी चुप हो गई  मनु ने ये बात सुन ली रीना के पास आ कर बोली मां कोई कुछ भी समझे पर आप मेरी अपनी ही रहोगी।।

अंजना ठाकुर।। 

दिखावे का अपनापन – चाँदनी झा

माँ जी अपना-पराया मैं नहीं करती हूँ। अपने और बेगाने का ज्यादा ख्याल आपको ही है। रश्मि की मौसेरी-बहन उसके ससुराल आई थी, उसे अपने परिवार का परिचय कराते हुए   “एक अपनी ननद है, और दो चचेरी, संयुक्त-परिवार है हमारा।” बस क्या था,…सास बोलने लगी, अपनी ननद और चचेरी ननद करती हो। जबकि चालीससाल से मैंने इस परिवार को एक करके रखा है। बहु के आते ही अपना और चचेरा होने लगा। रश्मि ने….आत्मविश्वास के साथ अपनी बातें रखी। माँजी मैने अपना समझकर ही तीनों-ननद के लिए एक जैसा कान का बनवाकर लाया था। पर आपने क्या किया? अपनी बेटी को कान का दे दिया, और चाची की दोनों-बेटी को नाक का। इस दिखावे के अपनेपन से बेहतर है, सच का परायापन। सुनकर सास को अपनी दिखावे की चलाकी का एहसास हो गया।

चाँदनी झा 

अपना पराया

आरती.. श्रद्धा की जान तुम्हारे ब्लड ग्रुप से बच सकती है! नहीं जी… फिर मेरा और बच्चों का क्या होगा? अगर खून देने के बाद मुझे कुछ हो गया तो? मेरा ब्लड ग्रुप  खुद विषम परिस्थितियों में मिलता है, मुझसे नहीं होगा! तभी आदित्य को रोता देख ना जाने कहां से एक देवदूत प्रकट हुआ और बोला… भाई मेरा ब्लड ग्रुप शायद आपकी बहन से मिल रहा है, सिर्फ खून की वजह से किसी बहन की जान नहीं जानी चाहिए! आदित्य कभी अपनी पत्नी और कभी उस अनजान इंसान को देखकर सोच रहा था इनमें से कौन अपना है कौन पराया?

    शब्द प्रतियोगिता “अपना पराया” 

     गागर में सागर (अपना पराया)

*फरिश्ता* – बालेश्वर गुप्ता 

        घोर निराशा और तनावग्रस्त दीनू बोझिल कदमो से घर की ओर जा रहा था।बहुत ही विश्वास के साथ दीनू अपने से 15 वर्ष छोटे भाई गंगाराम जिसकी परवरिश एक प्रकार से दीनू ने ही की थी,के घर अपने बच्चे की बीमारी में कुछ मदद मांगने गया था।गंगाराम की आमदनी दीनू की आय से अधिक थी,दोनो काम भी एक ही स्थान पर करते थे। उसे पूरा भरोसा था,कि गंगा राम उसकी मदद जरूर करेगा।

         पर गंगा राम ने तो टका सा जवाब दे दिया,भाई इतनी महंगाई में पैसा बचता ही कहाँ है।भैय्या आप चिंता मत करो अपने मुन्ना को भगवान जरूर ठीक करेंगे।उसकी बात सुन दीनू सन्न रह गया।

      पीछे से किसी ने कंधे पर हाथ रखा तो उसका पड़ौसी बीरू था।बीरू बोला दीनू काहे फिकर करे है, अरे सब मिल बाट कर मुन्ना का इलाज करा लेंगे।ले मेरे पास ये दो हजार रुपये रखे है,जा मुन्ना का इलाज करा।आगे भी कुछ ना कुछ व्यवस्था हो ही जायेगी।

     अवाक दीनू कभी हाथ मे रखे रुपये देख रहा था तो कभी बीरू के चेहरे को।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

अपना पराया – नीलम शर्मा 

पापा यह क्या सुन रहा हूं मैं। आप अपनी वसीयत उस पराये आनंद के नाम पर कर रहे हैं। निखिल गुस्से में जोर-जोर से अपने पापा पर चिल्ला रहा था। शर्म है तो, आईने में अपना चेहरा देखो। खुद समझ जाओगे कौन अपना है, कौन पराया। जब मैं अकेला तुम्हारी मां को लेकर अस्पतालों के चक्कर लगा रहा था। तब यही पराया दिन-रात मेरे साथ था। तुमने साफ मना कर दिया था, तुम्हारे पास समय नहीं है। मुसीबत में साथ निभाने वाला ही अपना होता है। तुम तो अपने होकर भी उस समय पराये से लगे।

नीलम शर्मा 

अपना पराया – सीमा गुप्ता

जैसे जैसे सुनीता की बेटी मैत्रेयी के ऑपरेशन का दिन नजदीक आ रहा था, उसकी चिंता बढ़ती जा रही थी। उसके पति जीवित होते तो सब संभाल लेते।

उसने आस भरी दृष्टि से अपने कहे जाने वाले ससुराल और मायके के निकटतम संबंधियों की ओर देखा। लेकिन सबने अपनी परेशानियां बताकर परायों जैसा व्यवहार किया।

ऐसे समय में उसके स्वर्गीय पति के सहकर्मी रहे शर्मा जी, उसके पड़ोसी शुक्ला दंपत्ति और उसकी सखी बबीता ने आगे बढ़कर अस्पताल और घर का सब काम संभाल लिया। पराये कहलाए जाने वालों ने अपनों से बढ़कर सहयोग दिया। मैत्रेयी का सफल ऑपरेशन हुआ और कुछ दिन में वह पूर्णतया स्वस्थ हो गई।

किसी ने सच ही कहा है कि ईश्वर की कृपा से काम सबके हो जाते हैं। लेकिन अपने पराये की पहचान जरूरत के समय ही होती है।

– सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)

#गागर में सागर

शब्द: #अपना पराया

अपना पराया – संध्या त्रिपाठी

        तेरी सासू मां भी गजब है बेटा , बात-बात पर अपनी बहू से तू ,तू .. मैं, मैं करती हैं  अच्छा लगता है क्या ? बड़ी तेज है !

    मम्मी प्लीज, मेरी सासू मां के बारे में ऐसी बातें ना करें… माना कुछ मामलों में हम दोनों के विचारों में मतभेद जरूर है , पर हमारे बीच मनभेद नहीं है ..और रहा सवाल तू ,तू- मैं ,मैं की ..तो ये तो हम दोनों के द्वारा  होता है ना.. उन्होंने खुलकर अपने विचार रखने का अधिकार भी तो दिए हैं …आज बेटी के मुख से सासू मां के लिए विचार जान एक मां बेहद खुश थी कि बिटिया रानी, मां तो अपनी है पर सासू मां भी पराई नहीं …साबित कर दिया ।

संध्या त्रिपाठी,अंबिकापुर, छत्तीसगढ़

अपना पराया – खुशी

नमिता और एकता बहने थी ।पर दोनो के विचारों में एकमात्ता नहीं थी ।नमिता कभी एकता को समझना ही नहीं चाहती थीं लेकिन शुभा के आने से एकता को लगता उसे आधार मिला वो एकता को बिना बोले ही समझ जाती थी।शुभा और एकता दो नाम पर एक सोच थे। जरूरी नहीं कि दिलो के रिश्ते एक दूसरे के पूरक हो।कभी कभी पराए रिश्ते अपनों से बेहतर होते हैं।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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