अहंकार – अविनाश स आठल्ये
खुल्ल.. खुल्ल… खुल्ल
अपने मित्र राहुल की बारात में आया वह हैंडसम युवक अपनी खाँसी से इतना परेशान था कि ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहा था।
उसे परेशान देखकर, राहुल के मामाजी वैध आलोक प्रसाद ने कहा, बेटा मैं तुम्हें कल से देख रहा हूँ, तुम खाँसी से ठीक नहीं हो पा रहे हो।
यह तुलसी, मुलेठी, कालीमिर्च और दालचीनी का काढ़ा बनाकर लाया हूँ इसे पी लो आराम मिलेगा। मैं एक आयुर्वेदिक डॉक्टर हूँ इसलिए कह रहा हूँ।
हुँह, ये जड़ीबूटियां सिर्फ “प्लेसिबो” इफेक्ट कर सकतीं है, रियल में नहीं, मैं खुद एक क्वालिफाइड MBBS डॉक्टर हूँ, एक हॉस्पिटल में 2 वर्षों से प्रैक्टिस भी करता हूँ, कल से एंटीबायोटिक्स ले लिये हैं, कम से कम 3 दिन दवा लेने पर ही मैं मुझे आराम लगेगा, आपके इस काढ़े पर मुझे विश्वास नहीं है, उस युवक ने अहंकार के साथ कहा।
अरे, मामाजी कह रहे हैं तो ले लो, आयुर्वेदिक दवा से असर न हुआ तो कम से कम कोई नुकसान तो न होगा न राहुल अपने मामाजी के इस प्रकार उपहास उड़ते देख बीच में बोल पड़ा।
ठीक है, तू कहता है तो पी लेता हूँ, वरना मुझे इन झोलाछाप डॉक्टरों पर भरोसा नहीं है। वैसे तुझे बता दूँ, कल रात से पहले मेरी खाँसी ठीक होने वाली नहीं है।
राहुल के मित्र की बात सुनकर राहुल के मामाजी उसे बिना कुछ कहे ही चले गये।
अगली ही सुबह राहुल का मित्र जब उठा, तो आश्चर्यजनक रूप से उसकी खाँसी बहुत हद तक ठीक हो चुकी थी, वह खुश होकर राहुल को उठाकर बोला, भाई मुझे मामाजी के पास ले चल मैं उनसे माफ़ी मांग लूँगा, उनके उस काढ़े के एक डोज ने ही मेरे लंग्स को बहुत हद तक खोल दिया है, वरना एंटीबायोटिक्स 3 दिन से पहले इतना फायदा नहीं करते, मेक्रोलाइड मुझे सूट नही करते, उस पर मैं “सल्फर एलर्जिक” भी हूँ और नींद आने की तकलीफ न हो इसलिए मैं एन्टी एलर्जिक दवा ले नहीं रहा था।
आज “अनुभव” के सम्मुख “ज्ञान” का “अहंकार” टूट चुका था।
अविनाश स आठल्ये
स्वलिखित, सर्वाधिकार सुरक्षित
अहंकार – डाॅक्टर संजु झा
आज अपनी छोटी बहन सोमा को आत्मनिर्भर देखकर रोमा का अहंकार चूर-चूर हो गया।
रोमा को अपने रुप का बहुत घमंड था।अपनी साँवली छोटी बहन सोमा का हमेशा मजाक उड़ाया करती थी।सोमा अपमान का घूँट पीकर अपना ध्यान पढ़ाई में लगाती।रोमा का मन बस सजने -सँवरने में लगता था।इस कारण ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाई और जल्द ही उसकी शादी हो गई। अब आर्थिक रूप से पराधीन होने के कारण उसे घुटन होने लगी थी,परन्तु अब पछताए होत क्या ,जब चिड़ियाँ चुग गई खेत!
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)
“अहंकार”- पूजा शर्मा
कितने एहसान फरामोश हो आप भैया, अपनी पद प्रतिष्ठा के अहंकार में इतना भी भूल गए कि बड़े भैया ने आपको यहां तक पहुंचाने के लिए अपनी दुकान तक गिरवी रख दी थी। उनके बार-बार फोन करने पर भी जब आपने फोन नहीं उठाया तो उनका फोन मेरे पास आया वे अपनी बेटी की शादी के लिए आपसे पैसा नहीं मांग रहे थे बल्कि बता रहे थे कि अपनी गौरी ने यूपीएससी की परीक्षा क्लियर कर ली है। वैसे तो यह हम सबके लिए गर्व की बात है लेकिन आपके अहंकार को शायद रास ना आए पद में उसके नीचे काम करना। अपनी छोटी बहन स्वाति की बात सुनकर रामेश्वर की आंखे झुक गई।
पूजा शर्मा स्वरचित
मैंने नहीं किया- लतिका श्रीवास्तव
हुर्रे हुर्रे समवेत बुलंद आवाज को मैंने चुप कराते हुए कहना शुरू किया ..चुप रहो तुम लोग..मैं ना होता तो मेरी टीम कभी नहीं जीत सकती थी ये तो मेरी दिन रात की अथक मेहनत है जिसने आज विजेता का पुरस्कार दिलाया है जब से मैं इस टीम में आया तभी से पुरस्कारों की झड़ी लगनी प्रारंभ हो गई….उत्साहहीन खामोशी व्याप्त हो गई थी।
भैया पापा भीतर बुला रहे हैं अचानक मेरी धाराप्रवाह वाणी को विराम लगाते हुए छोटी बहन शीना ने आकर कहा तो मैने अपने घर के लॉन में एकत्रित सभी उपस्थित समुदाय को रुकने का इशारा किया और अंदर गया।
पापा आपने इस तरह इंटरव्यू के बीच में से क्यों बुला लिया आक्रोशित था मैं।
बेटा ये “मैंने’ शब्द तुम्हारे अहंकार को बता रहा है .. तुम्हारे कारण नहीं तुम्हारी टीम के सभी सदस्यों और लोगों की शुभकामनाओं से मिला है इसलिए “मैंने नहीं हमने किया है” ये बोलो “मेरे कारण नहीं हम सबके” कारण हो पाया ये बोलो पापा ने सीधे मेरी तरफ देखते हुए गंभीर स्वर में कहा तो मेरी नजरें नीची हो गईं।
इसका सारा श्रेय मेरी पूरी टीम को जाता है आप सबकी दुआओं को जाता है मैंने कुछ नहीं किया हम सबने मिलकर यह पुरस्कार जीता है….आगे का मेरा इंटरव्यू जिंदाबाद के नारों और तालियों की गूंज में डूब गया था।
लतिका श्रीवास्तव
अहंकार – डॉ बीना कुण्डलिया
नम्रता,निलेश का आखिर तलाक हो ही गया,भला प्रेम,अहंकार साथ चल सकते थे कभी ।
दोनों में तेरा मेरा की दीवार, स्वयं की आकृति को स्पष्ट,ऊँचा दिखाती तन कर खड़ी रही….. निलेश का मैं जो करता हूंँ उत्कृष्ट..…जो करूंगा सर्वश्रेष्ठ भाव रिश्ते में घातक बना ।
नम्रता में प्रशंसा की लालसा, आलोचना का डर निर्णय सत्यापन पर पनपता असन्तोष को जन्म देता गया।
दोनों में अहंकार अभिनेता की तरह समय की मांग पर विभिन्न भूमिकाएं निभाता गया। दोनों परिश्रमी होने पर भी सफल न हो सके ।
कारण वही ‘अहंकार ‘जो लेन देन शर्तों, अपेक्षाओं में उलझाये रहता है।
डॉ बीना कुण्डलिया
अहंकार
गागर में सागर
अहंकार- चाँदनी झा
न जाने इतने दिनों बाद भाभी मुझे क्यों बुला रही है? गीता को बीससाल बाद भाभी का फोन आया, गीता सोचने लगी, भाभी न दुत्कारती, तो आज इतना कामयाब कहाँ हो पाती? ज्यादातर मायके ही रहती, मायका सम्पन्न और ससुराल में बस दिक्कतें ही दिक्कतें। पर भाभी ने जबसे कहा मेरे घर से दाना-पानी उठ गया है, अपना इंतजाम कीजिए। तभी सपरिवार बड़े शहर आगयी, और आज…अपना मकान साथ में क्या कुछ नहीं है उसके पास। भाभी का अहंकार था या गीता का आत्मसम्मान समझ न पा रही थी। गीता मायके पहुंच सब भूलकर भाभी के गले लग गयी।
चाँदनी झा
अहंकार – संध्या त्रिपाठी,
वाह क्या पालक वाली दाल बनी है.. मन कर रहा है बनाने वाले का हाथ चूम लूं ,चटकारे लेकर खाते हुए अविरल ने कहा… हां बेटा तो चूम ले ना … अनुष्का (बहू) का हाथ बढ़ाते हुए शीतल (मां) ने कहा , आज अनुष्का ने मुझसे सीख कर दाल बनाई है… दरअसल अनुष्का और अविरल दोनों पति-पत्नी के रिश्तो में खटास चल रही थी… एक दिन.. ये क्या सब्जी बनाया है अनुष्का ? मैंने कहा था ना अविरल.. मुझे खाना बनाना नहीं आता,मेरे घर में कुक खाना बनाता है अहंकार भरे लहजे में अनुष्का ने कहा… पर इतना बेसिक तो सभी को आता है अनुष्का… धीरे-धीरे अनुष्का के अहंकार से अविरल और अनुष्का के विचारों में मतभेद होते चले गए थे!
अहंकार छोड़ आज अनुष्का ने मतभेद की खाई पाटने की कोशिश की थी.. फिर क्या था शीतल बहू का हाथ बढ़ाई ही थी… देखते ही देखते अविरल ने प्यार से चूम ही लिया ।
(स्वरचित)
संध्या त्रिपाठी,
अंबिकापुर, छत्तीसगढ़
अहंकार – डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
कुमार एक प्रसिद्ध लेखक था, जो अपनी किताबों की सफलता पर बहुत गर्व करता था। वह सोचता था कि उसकी लेखनी से समाज की सोच बदल रही है। हर नए लेखक को वह तुच्छ मानता और उनकी कृतियों को बकवास कहता।
एक दिन उसे एक युवा लेखक की किताब मिली। बिना पढ़े ही, उसने उस किताब को खराब करार दे दिया। कुछ महीने बाद, उसी युवा लेखक की किताब ने बड़ी सफलता हासिल की, जबकि कुमार की किताबों को पाठकों ने नकार दिया।
कुमार ने तब महसूस किया, “मैंने कभी किसी की मेहनत को सराहा नहीं। अब मुझे अहंकार ने अकेला छोड़ दिया।”
प्रस्तुतकर्ता
डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
अहंकार- रूचिका राय
इतना भी अहंकार सही नही,वक़्त सबका बदलता है।
आज जो यह तुम झूठे दम्भ में ऋचा को नीचा दिखा रही,कल की तुम्हें क्या खबर है।
सुलभा शाम्भवी को समझा रही थी जो अपनी खूबसूरती और पैसे के कारण ऋचा को निम्न समझ रही थी।
मगर शाम्भवी तो अहंकार के मद में चूर थी।
अचानक जब ऋचा का चयन बिहार लोक सेवा आयोग से हो गया और वह शाम्भवी की अधिकारी बनकर कार्यालय पहुँची तो एक ही पल में शाम्भवी का अहंकार चूर-चूर हो गया।
क्योंकि जिसको वह नीचा दिखाती थी उसके नीचे रहकर उसे काम करना था।
रूचिका राय
सीवान बिहार
# अहंकार – दीपा माथुर
ये लो अहंकार की बात करते है वो जिन्होंने अहंकार और नासमझी से खुद के अस्तित्व को दाव पर लगा दिया।
बरगद का पेड़ झूम कर बोला ।
टुकुर टुकुर अन्न का दाना खाती गिलहरी हस पड़ी और बोली
ओर क्या ?
सूरज दादा को,चंदा मामा को ,सोना उगलती इस मिट्टी को
चांद तारो को ओर प्रकृति में चिहुल बाजी करती इस हवा को
भी सरहदों से क्या मतलब है?
सब जगह एक सा काम।
पर मानव ने अलग अलग धर्मों में खुद को ही डिवाइड कर दिया।
अलग अलग मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा …..
इत्यादि बना लड़ रहा है अपने आपसे।
तभी चहकती चिड़िया बोली ;” ओर क्या?
पर नतीजा तो हमे भुगतना होता है ना?
तभी कांव कांव करता कौआ बोला “चिता ना करो
ये अहंकार ही अर्श से फर्श तक ले जाएंगा तभी इंसा कुछ समझ पाएगा।
दीपा माथुर