उजाला – रंजीता पाण्डेय
मैं दिवाली का सामान लेने बाजार गई थी | सोचा मां से भी मिल लेती हूं | मां बहुत गुस्से में थी |क्या हुआ आपको? दो दिन बाद दिवाली है, सारा काम पड़ा है ,तेरी भाभी इतना धीरे धीरे काम करती है , देख के बहुत गुस्सा आता है |ना चाहते हुए भी दो चार बुरे शब्द निकल ही जाते है | भाभी के सामने मां ने ऐसे बोल ,दिया | हमको बहुत बुरा लगा | मां ने जोर से आवाज लगाया ,अभी झालर लाइटे लगाया की नही बहू तूने ?
मां ,मेरी बात सुनो | तुम कितना भी झालर ,लाइटे लगा लो, लक्ष्मी पूजा करो , कोई फायदा नही होगा | पहले अपने घर की लक्ष्मी को तो खुश करो | घर की लक्ष्मी को खुश नही करोगी ? तो घर में उजाला कहा से होगा ?
भाभी जो अभी तक मां के बातो से उदास थी, मेरी बाते सुन मुस्कुराने लगी, भाभी को मां ने गले लगा लिया | देखा मां, अब सही मायने में तुम्हारा घर जगमगा रहा है |
रंजीता पाण्डेय
*रोशनी* – बालेश्वर गुप्ता
श्यामलाल जी आज अत्याधिक उद्विग्न थे,उनके एकलौते बेटे सचिन ने उन्हें लगभग फटकारते हुए ड्राइंगरूम में न आने की हिदायत देते हुए अपने कमरे में ही रहने को कहा।उसका कहना था घर मे उसके जानने वाले सहकर्मी आते हैं तो उनका वहाँ रहना उसे अच्छा प्रतीत नही होता।धोती कमीज पहनने वाले अपने बाप से उसे शर्म लगती होगी,अन्यथा तो कोई बात थी नही।श्यामलाल जी का अपने कमरे में पड़े पड़े जब मन नही लगता तो वह ड्रॉइंगरूम में आ जाते थे।
इस घटना के बाद वे उदास हो एक वृद्धाश्रम में गये।वहां अपनी उम्र के लोगो को देख वे उनमें वही रम गये।अब वे घर से सुबह नाश्ता कर वही आ जाते और शाम तक वही रहते।अब उन्हें लगा कि अब सही राह मिली है।परिवार से अलग भी नही रहना हुआ और अपने जैसे अन्यो का सानिध्य भी मिल गया।
जीवन अब प्रकाशमान हो गया था,न किसी से शिकवा न शिकायत।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित।
आखिर कब तक – रश्मि प्रकाश
“ आखिर कब तक ऐसे ही चलेगा… कुछ तो सोचो हम दोनों के लिए… पढ़े लिखे हो कोई अच्छा काम करो… कस्बे में वो सब हासिल नहीं कर सकते जो बाहर निकल कर कर सकते हो….समझौते पर ज़िंदगी नहीं जी जाती रितेश ।” महिमा अपने प्रेमी को समझाते हुए बोली
“मैं चाह कर भी ..कुछ नहीं कर सकता…ये समझौता मेरी माँ ने मेरी ज़िंदगी के साथ गाँठ बाँध दिया है जो ज़िन्दगी के साथ ही जाएगा भैया के जाने के बाद सब मेरी ही ज़िम्मेदारी है जो मुझे आख़िरी साँस तक निभानी है।”एक आह भरते हुए रितेश ने कहा
“ पता नहीं किस मिट्टी के बने हो… इतनी पढ़ाई का क्या ही फ़ायदा जब माँ-बाप,भाभी और उनके बच्चों की सेवा के लिए वहाँ से कहीं जा कर अच्छी नौकरी ना कर सको..आखिर कब तक मैं तुम्हारे समझौते के साथ निभा सकती हूँ मुझे तो बहुत आगे जाना है…शायद तुम्हारे समझौते में हमारा प्यार बहुत हल्का पड़ गया ।”कहकर रोती हुई महिमा ने फोन रख दिया
रितेश ने एक लंबी साँस ली और पिता के साथ दुकान पर अपनी ज़िम्मेदारी निभाने चल दिया ।
रश्मि प्रकाश
समझौता – सुभद्रा प्रसाद
” माँ, मैं निशा से तलाक लेना चाहता हूँ |” रंजन गुस्से से बोला |
” क्यों भला? ” माँ पूछी |
” क्योंकि कहीं भी लेकर जाता हूँ तो वह अपना गंवारपना दिखा ही देती है | मेरे दोस्तों की पत्नियों की तरह पार्टी में व्यवहार नहीं करती | मुझे लज्जित होना पडता है |”
” बेटा, जिसे तुम उसका गंवारपना कहते हो, वह उसके संस्कार है | उसके इसी गुण के कारण तो मैंने उसे तुम्हारे लिए पसंद किया है | उसमें अनेक ऐसे गुण है, जो तुम्हे दिखाई नहीं देते और जो तुम्हारे दोस्त की पत्नियों में नहीं है | किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए कुछ समझौते करने पडते है , तभी जीवन खुशहाल होता है | कोई भी शत प्रतिशत तुम्हारे अनुकूल नहीं होगा | समझौते करना, सामंजस्य बैठाना सीखो , साथी बदलना नहीं | ” माँ ने समझाया |
” तुम ठीक कह रही हो |” रंजन गंभीरता से बोला |
# समझौता
स्वरचित और मौलिक
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड |
अन्याय – शिव कुमारी शुक्ला
दीपा जी पंद्रह अगस्त पर सम्मान प्राप्त करने वालों की सूची तैयार हो गई ।
जी मैडम ये लीजिए।
इसमें एक नाम और जोड़ना है।
किन्तु मैडम दस नाम तो पूरे हो गए।दस नाम ही भेजना है।
जानती हूं। बीच में से किसी का नाम निकाल कर इनका नाम जोड़ दो।
मैडम इनका तो न कोई रिकॉर्ड है न ही जानकारी है । न ही कोई विशेष उपलब्धि इनके नाम है।किस योग्य व्यक्ति नाम हटाऊं। क्या उसके प्रति यह अन्याय नहीं होगा ।
क्या आप जानती हैं कि लोकल विधायक की बहन हैं यही इनकी योग्यता है आप नाम जोड़ दें। कभी-कभी समझौता करना
पड़ता है।
नहीं मैडम यह समझौता मुझसे नहीं होगा। तीन दिन से मेहनत कर योग्यतम व्यक्तियों की सूची तैयार की है मैं किसी को नहीं हटा सकती, आप जो करना चाहें कर सकतीं हैं कहते हुए सूची भेज पर रख दीपा बाहर चली गई।
शिव कुमारी शुक्ला
स्व रचित
थक गई हूं – मंजू ओमर
मैं बहू रिया से समझौता कर करके थक गई हूं आकाश लेकिन अब मुझे कोई समझौता नहीं करना है रोज रोज के कहा सुनी से मैं तंग आ गई हूं। झुकते इस लिए रहे कि चलो रिश्ते बरकरार रहें लेकिन हर वक्त तुम्हारी बीबी हमारे ऊपर हावी हो जाती है । लेकिन अब नहीं संयोगिता ने बेटे आकाश से कहा । यदि रिया हम लोगों के साथ नहीं रहना चाहती तो तुम दोनों अपने लिए अलग घर देख लो ।मैं अपना और तुम्हारे पापा का ख्याल रख सकती हूं , अकेले रह सकती हूं । लेकिन इस तरह से रोज़ रोज़ घर में लडाई झगडे करके मैं इतने मानसिक तनाव में नहीं रह सकती ।तुम लोग जा सकते हो अलग घर में ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
20 अक्टूबर
सच्चा सुख – विभा गुप्ता
कीर्तन मंडली में बैठी सभी महिलाएँ कृष्णा जी का इंतज़ार कर रहीं थीं कि वो आयें तो भजन गाना शुरु करें।दस मिनट बाद वो मुस्कुराती हुई आईं तो सभी बारी-बारी से उन्हें तीखे स्वर में कहने लगीं, आप बहू को मना क्यों नहीं कर देती..आखिर कब तक आप उनके साथ समझौता करती रहेंगी….।”
“अरे-अरे..शांत हो जाईये..।” कृष्णा जी हँसने लगीं और बोलीं,” भई..बहू काम से थक कर आती है, उसके हाथ में चाय का एक कप दे देती हूँ तो उसे खुशी मिलती है।इसमें समझौता करने वाली बात तो है नहीं।आखिर बीमारी में वो भी तो छुट्टी लेकर मेरी सेवा करती है..मेरे खाने- पीने का ख्याल रखती है।मिलकर काम करने और एक-दूसरे की मदद करने में ही तो परिवार का सच्चा सुख है।”
अब तो सारी महिलाएँ चुप..।कृष्णा जी बोलीं,” ज़रा सोचिये.. कीर्तन का आइडिया बहू ना देती तो हम लोग कैसे मिलते..तो चलिये राधे-श्याम बोलते हैं..।”सुनकर सभी महिलाओं के चेहरे खिल उठे और वे सभी भजन गाने में मगन हो गईं।
विभा गुप्ता
# समझौता स्वरचित, बैंगलुरु
समझौता – नीलम शर्मा
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रमाकांत जी की बेटी नव्या की बारात आ चुकी थी। सभी खुश थे ।लेकिन जब से बारात आई थी उसके पापा बहुत परेशान थे। जब नव्या जयमाला के लिए जा रही थी उसने देखा, एक कोने में उसके पापा उसके ससुर के सामने हाथ जोड़ खड़े थे। वह अब सब समझ चुकी थी।
नव्या अपने पापा के पास गई और बोली, पापा मैं ये शादी नहीं करूंगी। नहीं, नहीं बेटा समाज क्या कहेगा? अगर बारात वापस चली गई तो? पापा समाज के बारे में सोचकर मैं अपने पापा की इज्जत के साथ कोई समझौता बिल्कुल नहीं करूंगी।
नीलम शर्मा
मोटा लिफाफा – लतिका श्रीवास्तव
जैसे ही ऑफिस पहुंचा बॉस ने तुरंत बुलवा लिया।अनिकेत जी कल वाली फाइल्स पूरी हो गईं?? जी सर मै लेकर ही आया हूं आपके हस्ताक्षर के लिए तुरंत फाइल रखते हुए मैने कहा। नहीं अभी हस्ताक्षर नहीं… ये लीजिए ये चार प्रत्याशी भी इस चयन सूचि में जोड़ दीजिए बॉस ने एक नई फाइल बढ़ाते हुए कहा।
लेकिन सर ये सब लास्ट डेट के बाद आए है और इनका इंटरव्यू भी नहीं हुआ अब तो चयन सूची बन चुकी है मैने कड़ी आपत्ति जताई।
अनिकेत जी नौकरी में कई समझौते करने पड़ते हैं इन चारों का नाम जोड़ना ही पड़ेगा …एक मोटा लिफाफा मेरी तरफ बढ़ाते हुए बॉस मुस्कुराए।
सर नौकरी कर रहा हूं खुद को बेच नहीं रहा हूं ऐसे समझौते आप ही करिए … ये रही फाइल … अपनी ओर बढ़ते लिफाफे पर झटके से फाइल पटक मै वापिस मुड़ गया था।
लतिका श्रीवास्तव
समझौता – संध्या त्रिपाठी
सब टीवी देख रहे हैं ,और तू कल के खाने की तैयारी में लगी है माँ …चल तू भी हम लोगों के साथ टीवी देख , कब तक अपनी खुशियों से समझौता करती रहेगी ! अरे बेटा सुबह देर हो जाती है । मुझे ना , नाश्ते में अंकुरित चना और मूंग दे देना और टिफिन में भी कभी-कभी अचार पराठा..!
बड़ा आया है अंकुरित चना खाने.. खुद ही बोलता है खाली पेट चना खाने से मुझे गैस हो जाता है.. माँ को काम का भार ना पड़े इसलिए स्वास्थ्य से समझौता करने चला है..।
अगले दिन से समय का तरीके से प्रबंधन कर और बेटे पति का सहयोग पाकर रितु को भी अपने शौक पूरा करने का समय मिलने लगा !
(स्वरचित)
संध्या त्रिपाठी
अंबिकापुर, छत्तीसगढ़