रिश्तो की अहमियत – मनीषा सिंह
भाई -बहन के झगड़ों में मुझे नहीं फंसना, कल रखी है और पिछले दस दिनों से दोनों एक दूसरे से मुंह फुला कर बैठे हैं–। आंगन में कपड़े डालते हुए, रानी सोच- सोच के परेशान हुई जा रही थी कि तभी ,कमरे से अमर और आभा हंसते हुए बाहर आए
अरे भाभी—! जल्दी से चाय बना दो मैं भैया के साथ कल के लिए अपनी शॉपिंग करने जा रही हूं —! दोनों को देख कर रानी हैरान थी क्योंकि यहां उसकी सोच उल्टी पड़ गई–।
“तो भैया नाराजगी बता देती है “रिश्तो की अहमियत” जिनको रिश्ते अजीज होते हैं वह मनाने जरूर आते हैं !”
धन्यवाद!
मनीषा सिंह
रिश्तों की अहमियत – संध्या त्रिपाठी
इस बार बड़ा बैग लेकर आई है ननद रानी , लगता है रुकेंगी…बुआ इतने बड़े बैग में क्या लाई हो दिखाओ ना हमारे लिए भी कुछ है..? दूर खड़ी माँ बड़ा बैग देखकर खुश होती हुई सोच रही थीं , काफी समय बाद शायद कुछ दिनों हमारे पास रहेगी बिटिया.. आरुषि ने कहा.. इस बैग में आप लोगों के लिए गिफ्ट है..सुनकर एक माँ ही तो थी जिनके चेहरे पर जल्दी जाने की निराशा !
बुआ प्लीज अगली बार से उपहार के बदले में आप खूब सारा समय लेकर आइएगा ताकि मेरे साथ मेरे कमरे में बहुत दिनों तक आप रहे।
आज आरुषि के साथ माँ भी गर्व महसूस कर रही थी कि रिश्ते की अहमियत आने वाली पीढ़ी में है ।
( स्वरचित) संध्या त्रिपाठी, छत्तीसगढ़
संपत्ति का नहीं प्यार का रिश्ता । – अंजना ठाकुर
विधि तेरा दिमाग खराब हो गया है तू नितिन को छोड़कर सुयश से शादी कर रही है नितिन करोड़पति है और आगे बढ़कर तेरा हाथ मांग रहा है और सुयश के पास मामूली नौकरी के अलावा क्या है विधि की दीदी समझा रही थी
दीदी सुयश से मेरा प्यार का रिश्ता है और हम दोनों के विचार आपस मै मिलते है रिश्ते की अहमियत प्यार से होती है संपत्ति से नहीं ।
दीदी के पास शब्द नहीं थे सच्चाई के सामने ।।
अंजना ठाकुर
रिश्तों की अहमियत – मंजू ओमर
ये तुम्हारी दादी है बेटा बात करो, नहीं मुझे नहीं करनी है बात इनसे ।आठ साल की शैली बोली, क्यों नहीं करनी बात ये मझे अच्छी नहीं लगती दिनभर सोती रहती है। बेटा उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती है फिर बूढ़ी है उनसे कोई काम नहीं होता है इसलिए लेटी रहती है। शैली को सीमा आंटी बता रही थी ।
सीमा जो शैली के मम्मी पापा की आंटी लगती थी।आज घर पर भाभी जी से मिलने आ थी । फिर सीमा ने शैली के मम्मी पापा रोहन और स्मिता को बताया कि बेटे बच्चों को रिश्ते की अहमियत बताओ ,बताओ कि ये तुम्हारे पापा की मम्मी है ।ये क्या बच्चे ने जिद पकड़ ली कि बात नहीं करनी है।तो तुम लोग भी कुछ ध्यान नहीं दे रहे हो गलत है ये । समझाओं उसे सीमा बोली ।जी आंटी ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
30अगस्त
रिश्तों की अहमियत – सोनिया अग्रवाल
माता पिता के लाख समझाने पर भी जब स्वाति जायदाद में से बंटवारे के बात से टस से मस न हुई तो मां के मुंह से बस यही निकला की आज तुम भी मेरे नक्शे कदम पर चलकर कल को बहुत पछताओगी , मैने भी रिश्तों की अहमियत नही समझी और आज जब तुम्हारी भाभी और उसके भाई के बीच के प्यार को देखती हूं तो मन मसोस कर रह जाती हूं। पैसा तो तुम्हारे पापा और भाई ने बहुत कमा लिया मगर मैं रिश्तों को न कमा सकी। अब यही डर सताता है की मरने के बाद मायके की साड़ी भी चढ़ेगी या नहीं। बिटिया भाई अपनी खुशी से जो दे ,उसे सर माथे लगा के ले लेना । मगर मेरी गलती तू न दोहराना। तेरा भाई हर कदम रिश्तों की अहमियत निभाता रहेगा। काश स्वाति मां की अनमोल सीख को समझ चुकी होती तो आज यूं अंतिम क्षणों में मायके की साड़ी की आस लगाए बिना यूं संसार से विदा न होती।
सोनिया अग्रवाल
रिश्तों की अहमियत। – कामनी गुप्ता
पापा। आप यहाँ आए ही क्यों?? मेहुल पापा पे खींझ कर कहता है। अब मिल लिया न?? न वो पापा के गले मिलता है न ही कोई खुशी होती है इतने दिन बाद उन्हें देखकर। अब होस्टल में मत आ जाना, रात को होटल में रह लेना और सुबह चले जाना। मैने सुबह कालेज जाना है, कहकर मेहुल होस्टल चला जाता है। मेहुल का दोस्त देख लेता है। वो भाग कर आता है. बड़े ही प्यार से कहता है..अंकल आप कैसे हैं?? आप अचानक.. दो दिन का सफर तय कर …. मेरे पापा भी मेरे बिना उदास हो जाते थे। मेहुल के दोस्त के पापा का निधन एक साल पहले हो गया था। वो जाते वक़्त अंकल के पांव को हाथ लगाकर उनसे आशीर्वाद लेकर होस्टल चला जाता है।
रूआंसे मन से बाहर पेड़ के नीचे पापा कुछ पल बैठ जाते हैं और अगले दिन की टिकट चैक करने लगते हैं।
कामनी गुप्ता***
जम्मू!
हर रिश्ता ज़रूरी है – विभा गुप्ता
” तू पागल हो गई है गीतिका…जिस सास ने तुझे इतना कोसा..तेरी बेटी को भला-बुरा कहती रही, तू उन्हीं के इलाज़ के लिये भाग-दौड़ कर रही है..मर जाने…।”
” ईश्वर उन्हें दीर्घायु करे।वो मेरी सास बाद में है सीमा, पहले सुशील की माताजी हैं।उनकी दी हुई शिक्षा-संस्कार के कारण ही तो सुशील हमारा इतना ख्याल रखते हैं।हमें रिश्तों की अहमियत समझनी चाहिये क्योंकि जीवन में हर रिश्ता ज़रूरी होता है।और हाँ…सास-बहू के बीच नोंक-झोंक तो…।चल, फिर बात करती हूँ।” कहते हुए गीतिका ने फ़ोन डिस्कनेक्ट किया और दवा लेने चली गई।
जानकी जी ने बेड पर लेटे,आँखें मूँदे बहू की बातें सुन ली थी।बहू को कितना सताया था..फिर भी कल उन्हें सीढ़ियों से गिरे देखा तो कैसे दौड़ कर डाॅक्टर को बुला लाई..हल्दी का दूध दिया.., सोचकर उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।उन्हें रिश्तों की अहमियत समझ में आ गई थी।तभी उनकी पोती बोली,” आप रो रहीं हैं दादी..।” ” ये तो खुशी के आँसू हैं मेरी बच्ची।” कहते हुए उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# रिश्तों की अहमियत
रिश्तों की अहमियत – अर्चना खंडेलवाल
मां, अब हम कभी दादी के घर कभी नहीं आयेंगे, ये तो आपको दिनभर डांटती रहती है, तेरह वर्षीय सोनिया ने रूंआसी होते हुए साधना से कहा।
‘नहीं बेटा, ऐसा नहीं कहते, अभी तुम्हारी बढ़ती उम्र है, और तुम्हें सही -गलत का पूरा ज्ञान नहीं है, तुम्हारी दादी मुझे अपनी बेटी समझकर ही डांट देती है, चिल्ला देती है, इन सबसे रिश्तों की अहमियत ख़त्म नहीं हो जायेगी, ये तो आजीवन रहेंगे, ये रिश्ते ऐसे ही समझदारी और संयम से निभाएं जाते हैं, साधना ने प्यार से बेटी को समझाया।
अर्चना खंडेलवाल
नोएडा
रिश्तों की अहमियत – के कामेश्वरी
राशि और संपत की शादी भवानी ने मीडिएटर बन कर करा दी थी ।
दोनों खुश थे पर राशि को काम करने की आदत नहीं थी ऑफिस से घर पहुँच कर घर में फैली गंदगी को देख दोनों के बीच लड़ाई होती थी । उनकी लड़ाई इतनी बढ़ गई थी कि राशि रिश्ता तोड़ मायके जाने के लिए तैयार हो गई थी ।
भवानी को जब उनके झगड़े का कारण पता चला तो वे अपने साथ लक्ष्मी को लाई और कहा इसका इस दुनिया में कोई नहीं है तुम लोगों का सारा काम यह कर देगी अपने पिछवाड़े का कमरा इसे दे दो । भवानी ने समझाया कि झगड़ा करके रिश्ते में दरार लाने के बदले में सूझबूझ से समस्या का हल निकाल कर रिश्तों की अहमियत को समझना चाहिए ।
के कामेश्वरी
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बंधन – शनाया अहम
स्मृति की आँखों से अश्रुधारा लगातार बह रही थी, आज उसने उसे खोया था जो बचपन से लेकर आज तक उसके सुख दुःख का साथी बना रहा, शादी के बाद भी वो स्मृति से अलग नहीं हो पाया था, लेकिन आज वो हमेशा हमेशा के लिए स्मृति से अलग हो गया।
बहुत छोटी सी थी स्मृति जब पापा ने एक छोटा सा पप्पी लाकर स्मृति को दिया था , स्मृति ने बहुत प्यार से उसका नाम मोती रखा था , उसकी रंगत थी ही सच्चे मोतियों जैसी।
स्मृति और मोती बचपन से साथ पल कर बड़े हुए , मोती स्मृति के स्कूल से आने के बाद ही खाता पीता था, स्मृति भी मोती को अपने हाथों से खाना खिलाती। मोती रात को सोती हुई स्मृति के पास बैठा रहता, मानो उसकी रक्षा कर रहा हो।
स्मृति और मोती में एक गहरा लगाव का बंधन था।
स्मृति बड़ी हो गई उसकी शादी कर दी गई लेकिन विदाई के बाद से मोती ने खाना पीना छोड़ दिया , पग फेरे की रस्म करने आई स्मृति मोती का ये हाल देखकर रो पड़ी और भाग कर मोती को अपने गले से लगा लिया था। मोती ने एक आशा भरी नज़रों से स्मृति को देखा और उसकी मनोदशा समझते हुए स्मृति ने अपने पति विशाल की और देखा , विशाल की आँखों से स्वीकृति मिलते ही स्मृति मोती को गोद में भरकर अपने साथ ससुराल ले आई।
मोती और स्मृति फिर से एक साथ थे, दोनों फिर से खुश थे लेकिन आज मोती हमेशा के लिए चला गया , उसके जाने की उम्र हो गई थी लेकिन उसके साथ बंधा बंधन स्मृति के लिए एक यादगार और खूबसूरत वक़्त बन कर रह गया , जिसे स्मृति कभी नहीं भूला सकती।
कौन कहता है कि बंधन सिर्फ इंसानों से बंधता है , प्यार और अपनापन देने से जानवर भी कभी न टूटने वाले बंधन में बंध जाते हैं , जिसकी मिसाल मोती और स्मृति हैं।
शनाया अहम