Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

अधिकार – डॉ रेखा निगम 

क्या प्रगति की शादी..? कब और कहां..अनायास ही मेरे मुंह से निकल गया मेरी भांजी की शादी हो रही है और मुझे पता ही नहीं यह सोचकर ही मेरा गला भर गया …जिस भांजी की शादी के इतने सपने सजाए थे उसी की शादी का एक दिन पहले किसी दूसरे से पता लगेगा कभी सोचा ही नहीं था।

            पति के ऑफिस से आते ही मैं बरस पड़ी आप भाई बहन की लड़ाई के चक्कर में यह सब हुआ है ,उन्हें भी सुनकर बहुत दुख हुआ ..वह चुपचाप कमरे में चले गए मैं चाय लेकर जब गई तो वह अपनी अटैची पैक कर रहे थे और मुस्कुरा के बोले अरे अपनी भांजी के पैर पूजने नहीं चलोगी ??यह तो हमारा  अधिकार है… मैं आवाक होकर उन्हें देखती रह गई..और अगले ही दिन हम लोग अपने पूरे अधिकार के साथ अपनी ननद के घर पहुंच गए, और उन्होंने भी बड़े  अधिकार से हम लोगों को गले लगा करके स्वागत किया….

डॉ रेखा निगम 

 

अधिकार – के कामेश्वरी

रागिनी  ने अपनी जेठानी जमुना के बेटे को इस शर्त पर गोद लिया  कि मेरी सारी जायदाद उसे ही दूँगी परंतु अंत तक मेरे और मेरे पति की देखभाल करेगा ।

रागिनी खुश थी कि विकास और उसकी पत्नी उसके साथ रहेंगे क्योंकि अब उन पर उसका अधिकार है । यह बात जमुना को नहीं जँची उसकी सोच में उसके बेटे बहू पर उसका अधिकार है और किसी का नहीं है । वे दोनों तो सिर्फ़ उसकी देखभाल करेंगे ।

जब दोनों सास एक साथ मिलतीं हैं और अपने अधिकार जताती हैं और बहू को नर्क के दरवाज़े तक पहुँचा ही देतीं थीं ।

के कामेश्वरी

अधिकार – डॉ हरदीप कौर

दीप की दादीजी नहीं थी इसलिए दीप की ताईजी को दादीजी के सारे अधिकार प्राप्त थे  पर जब ताईजी ने  दसवीं कक्षा में दीप की पढ़ाई बंद करने की आज्ञा दी तो पहली बार पिताजी ने मानने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा पढ़ना मेरे बच्चों का अधिकार है और मैं उनसे यह अधिकार नहीं छीन सकता। आज के बाद मेरे बच्चों की पढ़ाई और मेरे बीच में आने की कभी भी कोशिश मत कीजिएगा। मैंने आपको सारे अधिकार दे रखे हैं लेकिन यह अधिकार सिर्फ और सिर्फ मेरे बच्चों का है कि वह आगे पढ़ना चाहते हैं या नहीं।

डॉ हरदीप कौर (दीप)

हक ऐसा भी*- बालेश्वर गुप्ता

      भाई आप बड़े हो,मैं अपने गावँ से दूर नौकरी करता हूँ,फिरभी बाबूजी के गुजरने के बाद आपने मुझे घर जमीन में हिस्सा देकर मेरे नाम किया,पर मेरा एक हक आपने नही दिया।

     तू क्या कह रहा है छोटे,पिताजी का जो कुछ भी था,तुझे पता तो है,सब मे तेरा बराबर का हिस्सा है,तेरे नाम है।फिरभी बता ना तुझे क्या चाहिये,मैं जो तू कहेगा वही दूंगा।

     भैय्या क्या माँ में मेरा हिस्सा नही है,सारी सेवा आप ही करेंगे,मुझ अभागे को भी कुछ दिन मां की सेवा करने का अधिकार दे दो भैय्या।

      अरे छोटू मेरे भाई माँ कोई मेरे अकेले की थोड़े ही है,तेरी भी तो है,वो मां का मन शहर में नही लगता है ना।

      मैं जानता हूँ भैय्या।बस वर्ष में कभी कभी माँ मुझे भी आशीर्वाद देती रहे,यही कामना है मेरी

      इस अद्भुत मांग ने दोनो भाइयो के स्नेह की डोर को और मजबूत कर दिया,उधर दूर खड़ी माँ अपने दोनो बेटों के प्यार और अपने प्रति समर्पण से प्रसन्नता से सरोबार थी।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

मनमुटाव -शिव कुमारी शुक्ला 

मालती जी एवं सरिता जी पडोसी थीं , साथ ही दोनों अच्छी सहेलियां भी थीं। उनके बच्चे भी हम उम्र थे सो साथ-साथ खेलते एक ही स्कूल  में जाते थे। सब कुछ  अच्छा चल रहा था  कि एक दिन बच्चों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया बात इतनी  अधिक बढ़ गई कि दोनों सहेलियों के बीच भी बहुत कहासुनी हुई और अबोलेपन की लकीर उनके बीच खींच गई।

किन्तु  बच्चे तो एक दिन भी नहीं रूके फिर हंस कर साथ खेलने लगे। 

तभी तो कहते है कि  बच्चों की लड़ाई में बड़ों को भागीदार नहीं बनना चाहिये क्योंकि उनकी लड़ाई तो  पानी पर खींची गई लकीर की तरह होती है जो एक ही क्षण में मिट जाती है किन्तु बड़ों के बीच खींची वही लकीर चौडी दरार बन कर मनमुटाव का कारण बन जाती है जो देर से भरती  है या शायद कभी न भरे। 

शिव कुमारी शुक्ला 

919124

स्व रचित

शब्द दरार*****गागर में सागर

दरार – सुभद्रा प्रसाद

      ‌मनोहरलाल को अचानक हार्टअटैक आ गया | उनकी पत्नी सुमन ने पडोसियो की सहायता से उन्हें अस्पताल में भर्ती करवा दिया | इकलौता बेटा विदेश में था | खबर पाकर उसने कहा कि वह आ नहीं  सकता , पर पैसे जितने कहो, भेज दूंगा |सुमन के पास पैसों की कमी न थी | कमी आदमी की थी, जो ऐसे समय में उसके साथ हो | वह बैठी सोच रही थी, किसे बुलाऊँ ? 

        ” चाची, आप चिंता न करें? मैं आ गया हूँ| सब संभाल लूंगा |” आवाज सुनकर सुमन ने सिर उठाया तो सामने जेठ का बेटा अनमाेल खड़ा था |” माना कि हमारे रिश्तों में दरार आ गई और हम अलग हो गये , पर हम हैं तो परिवार हीं न | पापा ने ही मुझे भेजा   है |” वह बोला |

   यह सुनकर सुमन की आंखों से आंसू बहने लगे जिसने रिश्तों की सारी दरारें भर दी |

# दरार

स्वरचित और अप्रकाशित

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड |

 

दरार – शुभ्रा बैनर्जी 

“अरे पूनम भाभी ,ये तो बहुत अच्छी खबर है। आपकी पूजा भोले बाबा ने स्वीकार कर ली।इतना अच्छा दामाद मिला है आपको।इतनी उदास क्यों हैं?”सीमा ने अपनी पड़ोसन पूजा जी से पूछा।

उन्होंने रोते हुए कहा”भाभी,सच बताइयेगा,क्या परिस्थितियां बदल जाने से रिश्ते भी बदल जातें हैं?”मेरी सबसे अच्छी सहेली,जो मेरे हर दुख में मेरे आंसू पोंछती थी,आज जब मैंने यह खबर सुनाई तो खुश‌ नहीं हुई।सगाई में बुलाने पर कहा”हम परिवार के लोग थोड़े हैं।”

सीमा ने समझाया”सुख ने अगर दोस्ती में दरार डाल दी,तो तोड़ दीजिए ऐसे रिश्ते।”

शुभ्रा बैनर्जी 

 

दरार – कामनी  गुप्ता

छोटी नोंक झोंक आज बहुत बड़ गई थी। सासु माँ की गुस्से होने की आदत से आज सोना की‌  हिम्मत जवाब दे गई थी। उनकी बातों के उनके अंदाज़ में जवाब देकर सोना को लगा आज जो दरार उन दोनों के दरमियाँ आई है वो कभी नहीं भरेगी। फिर थोड़ी देर बाद …दो मिनट चुप रह लेती तो क्या जाता मेरा ?? मन में बुदबुदाते हुए सासु माँ के कमरे में चाय लेकर गई, डर था वो बात नहीं करेंगे। ममी जी साॅ री… चाय लाई थी। बहु को यूँ देखकर, सासु माँ भी शांत हो गई थी चाय लेकर बोली… कभी कभी मुझे पता नहीं क्यों गुस्सा आ जाता है, तू बुरा मत माना कर। माँ का भी नहीं मनाती थी ना। दोनों मुस्कुरा उठते हैं और दरार बढ़ने से पहले ही भर जाती है। 

कामनी  गुप्ता***

जम्मू!

दरार – संध्या त्रिपाठी

मालती दी ,आपने कौन से भगवान को पूजा था ..जो इतने अच्छे पति मिले हैं …एक ये हैं.. रोज-रोज के किच किच , छोटी-छोटी बातों ने अब दरार का रूप ले लिया है..!

     देख बहन , कोई भी इंसान संपूर्ण नहीं होता , कुछ अच्छाई कुछ बुराई सब में होती है अब हमें तय करना है कि हम किसे ज्यादा प्राथमिकता दें, अच्छाई को या बुराई को…। जब अच्छाई को उभारेंगे तो बुराई का पलड़ा स्वत: ही हल्का हो जाएगा ..बस यही मेरी सोच और मेरी नजरिया ही मेरे भगवान है !

( स्वरचित ) संध्या त्रिपाठी अंबिकापुर , छत्तीसगढ़

 

#दरार – संगीता अग्रवाल

शंकर की बहिन राधा बहुत खूबसूरत और पढ़ी लिखी गुणी लड़की थी लेकिन गरीब मास्टर की बेटी होने की

वजह से उसका विवाह नहीं हो पा रहा था,फिर उसके पिता के ही एक अमीर विद्यार्थी का रिश्ता आया उसके

लिए जिसका एक ही गुण था कि वो अमीर था,बहरहाल रिश्ता हो गया।

शंकर को बहन की अमीर ससुराल में होता अपना अपमान सहन न होता लेकिन उसकी मां की दलील थी

कि बड़े घर में ब्याही बेटी के घर दो चार बात सुन ली तो क्या बात है।

बहिन के पहले बच्चे के लिए छुछक ले जाते हुए कतरा रहा था शंकर,वजह वही थी,कहां वो इतने अमीर और

कहां उनका साधारण सामान।

मां के जोर देने पर वो चला तो गया लेकिन वहां सबकी आंखों और व्यंग बाणों के कटाक्ष

सहन करते हुए वो सोच रहा था कि क्या कभी कोई ऐसा समय आएगा जब अमीरी गरीबी की वजह से उपजी

रिश्तों की ये दरार भरेगी?

संगीता अग्रवाल

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