तिरस्कार – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

      अरे ओ सुदर्शन……मेरी गाड़ी तो जरा धो धा के एकदम से चमक दो…. क्या महाराज ….कहां जाना है…? समधी के समधी के घर …..!

मतलब मुस्कान बिटिया के ससुर के साथ उनकी बहू के मायके जाना है….।

     अरे तू तो बहुत समझदार हो गया है सुदर्शन…..खुश होते हुए देवदत्त जी ने कहा…!

   रिटायर्ड देवदत्त जी बड़े शौक से पहली बार चार चक्के की गाड़ी खरीदे थे… और सबसे पहले पास में ही ब्याही बिटिया के घर नई-नई गाड़ी लेकर गए…. बातों ही बातों में देवदत्त जी के समधी ने बताया….हमारी बहू मायके में है हम लोग पोते के जन्मदिन के अवसर पर बहू के मायके जा रहे हैं… आप भी चलिए ना, समधी साहब हमारे साथ……!  देवदत्त जी ने इसे सम्मान समझ सहज स्वीकार कर लिया…।

    बस फिर क्या था…शुरू कर दी तैयारी…. सबसे पहले तो पूरे मोहल्ले में सभी परिचितों को गर्व से बताया कि …..हमें तो समधी साहब के समधी साहब के घर जाना है ….घर में भी जाने की तैयारी होने लगी…. कपड़े से लेकर बच्चे के लिए देने को उपहार तक के विषय में तैयारी हो रही थी….!

   वो समय भी आ गया जब देवदत्त जी को घर से निकलने में मात्र 2 घंटे ही शेष बचे थे…..

     तभी अचानक फोन आया …अरे मुस्कान का फोन …..हेलो …बस निकल ही रहा हूं बिटिया रानी…. तू सोच रही होगी कहीं पापा देर ना कर दे और सास ससुर को इंतजार ना करना पड़े ……ससुराल का मामला है भाई… पर ऐसा बिल्कुल नहीं होगा ….बस मैं थोड़ी देर में निकल ही रहा हूं ….अति उत्साहित होते हुए… बिटिया की बात सुने बिना देवदत्त जी ने एक सांस में सारी बातें कह डाली …..

    नहीं पापा …..आप मत आइए….

क्या …..????

  हां पापा …..अब आप यहां मत आइए …..क्या मतलब…??

 कुछ बोल तो सही…..

    पापा…. यहां मेरे सास ससुर कुछ देर पहले ही अपनी गाड़ी से निकल गए….. हां पापा… आपको लिए बिना… बताए बिना …और मुझे कुछ बोले बिना ….फिर मुस्कान हिचक हिचक कर रोने लगी …।

    अरे बेटा पर तू क्यों रो रही है…

 पापा आपका तिरस्कार होते मैं कैसे बर्दाश्त करूं ….समझ में नहीं आ रहा है ….अरे ससुर जी ने खुद ही तो आपको जाने को बोला था ….फिर….??

       मैंने सासू मां को सिर्फ इतना कहते सुना था क्या पचडा पाल लिया आपने …..फिर ससुर जी बोले तुम चिंता ना करो हम पहले ही निकल जाएंगे …..पापा उन लोगों को जाते देख मैंने पूछा भी …..मेरे पापा भी तो आने वाले हैं ना …..तब सासू मां ने सिर्फ इतना ही कहा ….उनसे कह देना हम लोग चले गए …. ।

      पापा आप यहां अब कभी मत आइएगा ….कभी मत आइएगा पापा… हां पापा … मेरे घर , मेरे ससुराल… कभी मत  आइएगा और फिर मुस्कान फ़फक फफक  कर रोने लगी…!

    अरे चुप हो जा बिटिया रानी….वही तो ,मैं भी सोच ही रहा था …मेरे जाने से समधिन जी को असुविधा होगी … वो असहज महसूस करेंगी…. मैं ही पागल हूं ….मुझे उसी समय मना कर देना चाहिए ….!

     पर तेरे ससुर जी ने बोला था जाने को ….तो मैं कैसे मना कर सकता था.. मैंने तो इसे आज्ञा समझा था ….वैसे भी मेरी बेटी  के ससुराल की बात थी …..!

    खैर छोड़ ना ….तू क्यों चिंता करती है …..रहा सवाल तेरे घर आने की ….तू मना कर रही है ना ….पर बेटा मैं तुझे नहीं छोड़ सकता और तेरा ससुराल तेरे लिए कितना मायने रखता है ये मुझे मालूम है …..फिर क्या गिला शिकवा…

     देवदत्त जी ने दिल पर पत्थर रखकर बेटी को समझाने की कोशिश की…. इस बार देवदत्त जी उंगलियों के पोर से चश्मा सरका कर अपने आंसू पोछ  रहे थे…।

    उनकी भी तो इज्जत है…दूसरे शहर में रहने वाले बहू बेटा ….मोहल्ले वाले… सबसे अब वो क्या बोलेंगे…. पूरी तैयारी के बाद क्यों नहीं गए ….कैसे बताएंगे…?

  सुदर्शन गाड़ी से सामान उतार लो….जी महाराज ..शायद सुदर्शन ने फोन पर हुई बातें सुन ली थी ….किसी तरह बातें बनाकर उस तिरस्कृत पल को तो बिता दिया देवदत्त जी ने ….पर यथासंभव कोशिश की ….. समधी साहब के घर न जाने की….!

   चूंकि बिटिया का ससुराल पास में था… महीने में एक बार… एक किलो मिठाई लेकर और लौटते समय लिफाफे में कुछ पैसे पकड़ा कर जरूर आ जाते थे…. पर इस बार तीन महीने में एक बार भी नहीं गए देवदत्त जी…..

    दरवाजे पर जब भी गाड़ी रूकती मुस्कान आशा भरी नजरों से दरवाजे की ओर ताकती ….. पर….. हर बार मायूसी ही मिलती…..

     हालांकि बीच-बीच में मुस्कान स्वयं भी मायके चली जाती थी…पर पापा यहां आकर सबसे मिलकर बहुत खुश रहते थे…. मां के जाने के बाद पापा मां और पिता दोनों की जिम्मेदारी जो निभा रहे थे…।

   पापा का फोन…. हेलो कैसे हैं पापा…?   मैं आ रहा हूं बेटी ….जल्दी बता इस बार कौन सी वाली मिठाई लाऊं….?  पापा , आप आ रहे हैं …??खुशी मिश्रित आश्चर्य से चहकते हुए मुस्कान ने पूछा….!

पापा… काजू कतली…..

काजू कतली ….?   वो तो तेरी सासू मां को पसंद है ना …..हां पापा  , आज मैने उन्हीं के पसंद की मिठाई आपसे मांगी है …..।

      आपका 3 महीने से मुझसे मिलने ना आना ….सासू मां को कहीं ना कहीं खल रहा था ….ससुर जी ने बिना सासू मां से विचार विमर्श किए …आपको जाने तो बोल दिया था ….पर सासू मां का आपके साथ जाना उनके स्वतंत्रता में दखल लग रहा था…. फिर मेहमान के घर और मेहमान को लेकर जाना…. तब ससुर जी ने यह कदम उठाया था…ससुर जी और सासू मां अपने इस कृत्य से काफी शर्मिंदा है ….!

    पापा …मैं उनकी तरफदारी नहीं कर रही ….मुझे तो आपसे मिलना है और आपको मुझसे ……बस आ जाइए ना पापा ….आ जाइए पापा…..

एक बार फिर मुस्कान की आंखें दरवाजे की तरफ आशा भरी नजरों से निहार रही थी….!

(स्वरचित , सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )

    संध्या त्रिपाठी

# गागर में सागर #तिरस्कार

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