तीन बेटों की अम्मा…रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi

कितनी ठसक में रहती थी अम्मा…. आखिर तीन बेटों की मां जो थी… अपनी जवानी के दिनों में जब पान चबाती… सर ढके… शान से मटकती निकलती.. तो रमा काकी अक्सर टोक ही देती थी.…” क्या दीदी सुबह-सुबह कहां होली… हम तो अभी तक चौके बर्तन से ही ना उबरे… नहाना धोना ना हुआ… और एक तुम हो 10:00 बजे नहीं की पान चबाती निकल गई टोला घूमने…!”

 अम्मा हंसते हुए कहती…” अरे बहन… तुम्हारे घर में बेटी है… तो उसे देखते बैठी रहो… मेरे घर में तो बेटे ही बेटे हैं उन्हें क्या देखना… जो मर्जी करें… जहां मर्जी जाएं.… और वैसे भी घर में रहकर काम भी तो हो कोई… तुम्हारी तरह बस घर को ही थोड़े रगड़ना है… कि बस चमकाए पड़े हैं… मेरा मन तो एक ही काम में नहीं रमता… तुम करो एक ही काम… मैं तो थोड़ा घूमूं फिरूं टोल पड़ोस की खैर खबर लूं… तब जाकर मेरे कलेजे को ठंडक मिलती है…!”

 रमा काकी हंस कर रह जाती…” जाओ दीदी.. जिसका जहां मन रमाये राम….!”

 अलबेली थी अम्मा… सुबह 4:00 बजे से उठकर घर का काम निबटा… नहा धोकर… पूरा खाना बनाकर ढक देती… अब जिसको जब खाना हो खाए… बच्चों को स्कूल भेजने की कभी टेंशन ही नहीं थी… मन करेगा तो जाएंगे… भला मन क्यों करने लगा… और कभी भूले बिसरे कर गया तो… बस्ता उठाया चल दिए… और बच्चों के बाबूजी भी तो हद के निराले इंसान… कभी किसी बात से मतलब नहीं… कहां गए बच्चे… कहां गई अम्मा… क्या खाया… क्या बनाया… कोई मतलब नहीं… चौके जाकर जो भी मिल गया चुपचाप भोग लगाकर निकल गए… दो ही बार तो चौके में कदम रखते… एक बार दिन में… एक बार रात को… दोनों ही समय जो मिल जाए खाकर रेडियो घुमाते निकल जाते…!

 अब बच्चे भी निकल जाते… पिता भी नहीं रहते तो वह क्या करती… वह भी अपनी तरह निठल्लों को ढूंढते घूमती… और जहां मिल जाते… बातों के लच्छे घुमाते घंटे 2 घंटे यूं ही निकाल देती…!

 पूजा पाठ में भी कोई खास रुचि नहीं थी… बस पता था कि नहाने के साथ एक काम होता है पूजा का… जो बिना नहाए नहीं करते… बस ऐसे ही काम की तरह जैसे घर के सब काम होते… वैसे ही पूजा भी हो जाती… न मंत्र… न जप… न कोई खास पूजा विधि… बस अपने पिताजी के मुख से सुने कुछ भजन जानती थी… वही रटे शब्द पूजा करते मुख से कहती चली जाती….!

 बाबूजी की भी कोई खास कमाई तो थी नहीं… कुछ खेती बारी थी उसी से काम चल जाता था… यूं ही मस्ती में अम्मा ने अपनी जवानी के दिन काट लिए…!

 जब बड़े बेटे का ब्याह हुआ और पहली बहू घर पर आई तब तो ठाट दोगुनी हो गए… कुछ दिन तो बहुत ही ऐश रही… जो थोड़ा बहुत खाना पानी बनाना होता था बहु ही बनाती… अम्मा को रसोई से छुटकारा मिल गया…!

 बड़ी बहू को एक के बाद एक सास की तरह तीन बेटे हुए… सास की तरह अकड़ से चौरी हो गई बहुरानी… होती भी क्यों न… सास की बराबरी जो कर ली… अम्मा भी फूले न समाती….!

 बड़ा बेटा गांव में ही पिता की खेती-बाड़ी संभाल रहा था… तीसरे पोते के जन्म के साथ ही बाबूजी गुजर गए… अम्मा की ठसक बाबूजी के जाते ही अपने आप कम पड़ गई… अब अचानक से लोक परलोक का ध्यान आया… टहलने तो अभी भी निकलती लेकिन हाथ में लोटा और पूजा की डाली लेकर… ढूंढ कर पूरे गांव में… हर मंदिर पर माथा टेकती… हर मूरत पर जल चढ़ाती… ऐसा लगा जैसे बहुत कुछ बदल गया हो… दो मंत्र में पूजा खत्म करने वाली अम्मा… दो घंटे मंदिर मंदिर मूरत मूरत घूम कर तब कहीं जाकर वापस आती…!

 खाना भी बिल्कुल सादा खाती… प्याज लहसन सबका त्याग कर दिया… अब बाबूजी की तरह दिन में दो बार बस… जो मिल जाता खा लेती… हां जो मिल जाता बहुत नियम से बनता था… मजाल है कि कुछ इधर-उधर की चीज अम्मा के खाने में पड़ जाए… या बन जाए…! 

 धीरे-धीरे दूसरे बेटों की शादी करने का समय भी आया… मंझले बेटे से अम्मा को विशेष ही लाड़ था… वह थोड़ा पढ़ने में भी होशियार था… दसवीं की परीक्षा पास कर आगे की पढ़ाई के लिए घर से निकल गया था… पर पढ़ाई क्या होती… पहले से पढ़ाई का कुछ होश रहा ना था… तो क्या मन लगता पढ़ाई में.… मंझला बेटा होशियार तो था ही… वहीं छोटे-मोटे काम करने लगा.… किस्मत ने साथ दिया काम चल निकला… मंझला अच्छा कमाने लगा…!

 मां का लाडला तो पहले से था… अब तो बाहर कमाने लगा तो मां और इतराने लगी… उसके नाम पर…” अरी रमा… सुनती हो मंझला बाहर कमाने लगा…. अब मुझे भी पैसे भेजेगा… ऐसा है मेरा बेटा…!

 रमा भी दो बेटियों और एक बेटे की अम्मा थी… अम्मा की सबसे अजीज थी… उसने भी अपनी दोनों बेटियों का ब्याह कर दिया था… और बेटा घर खेती संभाल रहा था… रमा काकी हंसकर बोली…” चलो दीदी… तीन में से एक तो बन गया… वरना गांव घर खेती-बाड़ी में अब रखा ही क्या है… वैसे भी तेरा लाडला तो वही है… मेरे बेटे का तो घर से बाहर निकलने का मन ही नहीं करता…!”

 अम्मा हंस पड़ी…” हां रमा… मेरी तरह सबके बेटे थोड़े ही हैं…!”

अम्मा ने मंझले की शादी खूब धूमधाम से पैसे लेकर पढ़ी-लिखी लड़की से किया… लड़की कुछ दिन तो नई नवेली बहू बनकर घर में रही… फिर अपने पति के साथ निकल गई शहर को… अम्मा रोकती थोड़े ही आखिर बेटे के साथ बहु नहीं रहेगी तो क्या सास के साथ रहेगी…!

 इधर छोटा बेटा भी पढ़ाई के नाम पर शहर चला गया था…वहां गलियों मुंडेरों की ख़ाक छानता फिर रहा था… यहां वहां मटरगश्ती करते… एक नई आफत मोल ले ली… अम्मा को फोन किया…” मां माफ कर दो… ब्याह करना पड़ेगा…!”

” क्यों रे… क्या कांड किया…!”

” नहीं अम्मा.. मैंने कुछ नहीं किया… दोस्तों ने फंसा दिया…!”

” क्या बोलता है लड़का… दोस्तों ने कैसे फंसा दिया… जो तुझे ब्याह करना पड़ेगा… मेरी जान मत सुखा… सीधे-सीधे बता हुआ क्या…!”

 “अरे मां वह यहां जहां रहता हूं ना उनकी एक लड़की है… सब लड़के उसको परेशान करते रहते थे… मैंने कुछ नहीं किया… अंकल ने एक दिन पुलिस बुला लिया…सबके सामने सब लड़कों ने मुझे फंसा दिया… पुलिस बोली शादी करनी पड़ेगी… अब मैं क्या करता… लड़की बढ़िया है अम्मा तुझे भी पसंद आएगी…!”

 अम्मा गुस्से में लाल हो गई… “बित्ते भर का छोकरा मुझे समझा रहा है… ऐसे ही तेरा नाम हो गया… ऐसे ही पुलिस आ गई… और ऐसे ही तू ब्याह कर रहा है… हेलो… हेलो… मैं देखती हूं कैसे ब्याह करता है……!” अम्मा ने फिर फोन घुमाया.… दो बार… चार बार… फिर फोन पटक कर बड़बड़ाती निकली…” जरूर कुछ कांड कर दिया लड़के ने… किस से कहूं… क्या करूं….…!” 

पर अम्मा को कुछ करना ना पड़ा… दो दिन बाद ही छोटा दुल्हन साथ लेकर घर आ गया… “हाय रे राम….!” अम्मा सर पकड़ कर बैठ गई… यह किसे उठा लाया रे छोटे… तुझे और कोई नहीं मिली ब्याहने को… इससे लाख गुना अच्छी लड़कियां तो यहां गांव में पड़ी हैं… और तू शहर से ऐसी लड़की उठा लाया…. ना रंग… ना मुंह… ना लंबाई… कुछ भी तो नहीं है छोकरी में… क्या देख कर ब्याह कर आया…!”

 अम्मा बहुत रोई… बहुत चिल्लाई… पर अब क्या कर सकती थी सर पीट कर… ब्याह तो हो गया था…!

 लड़का अपनी घरवाली के साथ बहुत खुश था… दिखने में साधारण… रंग सांवला… नाक चिपटी बहू को देखकर… अम्मा का खून खौल रहा था… अब तो रोज-रोज सोते उठते एक नया काम मिल गया अम्मा को… छोटे बेटे और बहू को खरी खोटी सुनाने का……!

 आखिर कब तक सुनता… एक दिन आकर बोल दिया सीधा छोटे ने…” देख अम्मा मुझे जाना तो अभी कहीं नहीं है… रहूंगा मैं यहीं पर… लेकिन तेरी गालियां ना मैं सुन पाऊंगा और ना मेरी बीवी को पसंद है.… इसलिए मेरा हिस्सा दे दो… मैं अलग हो जाता हूं.… अपना कमाऊंगा खाऊंगा.… तेरी गालियां नहीं सुनूंगा…!”

अम्मा देखती रह गई… यह तो जानती ही थी कि एक न एक दिन यह होना ही है… लेकिन इतनी जल्दी होगा यह नहीं जानती थी… अम्मा ने भी जोश भरा… कह दिया…” ठीक है ले ले हिस्सा… पर बंटेगा तो सिर्फ तेरा हिस्सा थोड़े ना होगा… बुला मंझले को फोन कर… वह भी आ जाए तो बंटवारा होगा… मुझे भी तुम दोनों की शक्ल नहीं देखनी… हफ्ते भर में मंझला आ गया… बंटवारे के नाम पर भला आता कैसे नहीं… बाहर भले कितना कमा ले गांव का हिस्सा… बाप दादा का छोड़ता कैसे… तीन अलग-अलग हिस्से बंट गए… जमीन… जायदाद… घर… डेहरी… पेड़… सामान… चूल्हा… बर्तन…. सब में हिस्सा लग गया… सब बांट बखरा हो जाने के बाद मंझला अपना हिस्सा समेट… अलमारी में ताला डाल… वापस शहर निकल गया… छोटा अपनी घरवाली के साथ अलग खाने पकाने लगा… अम्मा रह गई बड़े के हिस्से……!

 बड़ा बेटा खेती-बाड़ी से जो कमाता धमाता था… अब कुछ दिनों से तारी चिलम की आदत लग गई थी… उसी में डूबा रहता था… बड़े की घरवाली दो वक्त का खाना नियम से बनाकर अम्मा के आगे रख देती थी… अम्मा खा लेती… पर अब एक नया काम शुरू हो गया था मां का… गिन गिन कर चुन चुन कर गालियां देने का… इतना बड़बड़ाते बुड्ढी अम्मा को एक दिन दौरा पड़ गया… अस्पताल लेकर गए तो शहर में दिखाने को बोला डॉक्टर ने… अब मंझले बेटे को फोन किया गया.… मंझला अम्मा को लेकर अपने घर आ गया… !

यहां नई जगह नए माहौल में अम्मा का जी थोड़ा हल्का हुआ… बड़बड़ाना तो यहां छोड़ ही दिया…. अब अम्मा पागल थोड़े ना थी…की शहर में बेटे बहू का मजाक बनाती… चुपचाप टुकुर-टुकुर बैठकर बालकनी से दुनिया निहारती रहती…. !

यहां मंझली बहू की रसोई उतनी शुद्ध नहीं रहती थी… जितनी गांव में बड़की की… कुछ दिन तक तो उसने सास के लिए थोड़ी शुद्धता रखी… लेकिन जब सारे जांच इलाज कर लेने के बाद भी बुढ़िया वापस ना गई… तो मंझली अपने हिसाब से सारे तड़के लगाने शुरू कर दी… अम्मा इतने दिनों से यह सब छोड़ चुकी थी… इसकी बदबू से उसका जी मिचलाने लगता… छोटे से घर में भले वह खाती ना थी… लेकिन बदबू से यहां वहां कहीं बैठ भी न पाती थी…!

 धीरे-धीरे अम्मा का मन यहां से भी उचटने लगा… महीना होते-होते अम्मा दोबारा गांव वापस आ गई… बड़ी बहू के पास…फिर वही दिन वही रात… !

अब अम्मा की ही तरह तीन बेटों की मां उसकी बड़ी बहू… सुबह से तफरीह पर निकल जाती थी.… अम्मा के पैरों में अब उतनी ताकत नहीं रह गई थी… कमजोरी ने पूरे शरीर को जकड़ लिया था… वह बेचारी अब गठरी बनी घर के मुख्य द्वार की चौखट से लगी आने-जाने वालों को ताड़ती रहती… कभी किसी को टोक देती… कभी किसी से उलझ पड़ती… वहीं बैठे-बैठे पूरा दिन निकाल देती थी… अब तो किसी ने जवाब देना भी बंद कर दिया था… चार बार पोतों को आवाज लगाती थी… तब कहीं जाकर कोई आकर एक बात कान लगाता…!

 इसी तरह अम्मा ने कई दिन गुजारे… अपने बड़े बेटे को कभी ताड़ी पीकर झूमते आते देखती… तो दरवाजे से उसे गालियां देना शुरू कर देती…कभी छोटे बेटे को साइकिल के पीछे में अपनी घरवाली को बिठा जाते देखती… तो उसे गालियां देती… इसी तरह एक दिन यूं ही बड़ी बहू से भी उलझ पड़ी… गुस्से में जो दो वक्त का खाना खाती थी… वह भी खाना छोड़ दिया…” तुझे क्या लगता है… तेरे भरोसे जिंदा हूं… नहीं खाऊंगी तेरा बनाया… तेरा छुआ नहीं खाऊंगी…!”

 बुढ़िया ऐंठन में तीन दिनों तक भूखी रह गई… कुछ दुकान से जाकर बिस्किट नमकीन खरीद लाती… चबाते दिन गुजार देती थी… पर ऐसा कब तक चलता… फिर बड़ी बहू ने ही मान मनोव्वल किया… की कहीं बुढ़िया बिना दाना पानी के ही ना चल बसे.… तब कहीं जाकर खाना खाया अम्मा ने… ऐसे ही बड़बड़ाते…. झगड़ते… एक दिन अम्मा चौखट पर ही सर टिकाए पड़ी रह गई… दिन से रात हो गई… तो बड़ी बहू आई…” अम्मा अब घर चलो… रात हो गई… खाना खा लो…!” दो-तीन बार आवाज लगाया अम्मा नहीं हिली… तो हाथ लगाया… अम्मा लुढ़क गई…!

 हाय राम…! तीन बेटों की अम्मा चौखट पर मरी पड़ी थी… चारों तरफ चीख पुकार मची… बड़ा बेटा.. छोटा बेटा.. उसकी बीवी सभी इकट्ठे हुए.. मंझले को फोन किया… रात का वक्त हो रहा था मंझले को कहा गया सुबह तक आने को… सुबह अंतिम संस्कार होगी…!

 लाश को आंगन में रखा गया… सबसे जोर लगाकर छोटी बहू रोती रही… “हाय अम्मा.… कभी मुझे अपना नहीं माना… मुझे अपना मानी होती… तो इतनी जल्दी ये गत ना होती… अभी तो सभी पोते पोतियों का मुंह भी नहीं देखा.… इतनी जल्दी क्या थी जाने की…!”

 इधर मंझले की अपनी समस्या थी… झट से गांव में बड़े चाचा को फोन लगाया… बोला…”काका क्या सुबह ही आना जरूरी है… मेरा कुछ काम पड़ेगा क्या…?”

” नहीं बेटा… ऐसे तो बड़े छोटे का ही काम होता है… मंझले का तो कुछ होता नहीं… वैसे आ जाते तो मां का मुंह देख लेते…!”

” वह तो ठीक है काका… लेकिन बहुत जरूरी काम फंसा है… दस दिन बाद ही आ पाऊंगा… सबको कह दीजिएगा… मेरा इंतजार ना करें…!”

 मरी अम्मा की आत्मा अपने लाडले मंझले बेटे के ये शब्द सुन… अपने मर जाने पर और खुश हो गई…..!

स्वलिखित मौलिक अप्रकाशित

रश्मि झा मिश्रा

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