“देखो बेटा! शादी के बाद हर किसी को थोड़ा बहुत एडजस्ट करना ही पड़ता है क्योंकि शादी कोई मजाक नहीं है या कोई गुड्डे गुड़ियों का खेल नहीं है जो तुम इसे तोड़ने की बात कर रहे हो…” संध्या जी अपने बेटे सुमित को समझा रही थी
“मां ! मैं कुछ नहीं जानता ….मैं अब और रागिनी के साथ नहीं रह सकता ….वह मेरे स्टैंडर्ड के हिसाब से कहीं भी मुझसे मैच नहीं होती और हमारी पसंद नापसंद दोनों बहुत अलग है…. मैं कैसे इस रिश्ते को निभाऊंगा..””
“मैं जानती हूं सुमित बेटा! लेकिन तुम्हें क्या लगता है…. क्या सिर्फ तुम ही एडजेस्ट कर रहे हो….. कहीं ना कहीं रागिनी भी तुम्हारी आदतों से अनजान है और वह भी तो तुम्हारे साथ निभा कर ही रही है ना…””
“मां! मैं कुछ नहीं जानता… बस मैं अपने दोस्तों के साथ घूमने जा रहा हूं” ऐसा कहकर सुमित गुस्से में बाहर चला गया।
आइए मिलते हैं कहानी के पात्रों से…..
संध्या जी एक बहुत ही आधुनिक विचारों वाली, समझदार और सब से मिलकर चलने वाली महिला है। घर के अलावा वो समाज सेवा के कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थी। खास तौर पर महिलाओं के लिए वो बहुत से काम करती थी। उनके पति योगेश जी इसी साल रिटायर हुए थे और वो भी रिटायरमेंट के बाद खुद को किसी न किसी काम में बिजी रखते थे ।
संध्या जी के इकलौते बेटे सुमित के लिए उन्होंने रागिनी को पसंद किया था। रागिनी की मां भी संध्या जी के साथ -साथ समाज सेवा के कार्य करती थी। और दोनों ही एक एनजीओ से जुड़ी हुई थी । वहीं पर एक दिन रागिनी अपनी मां के साथ आई थी ।
संध्या जी को रागिनी एक ही नजर में भा गई थी । रागिनी का बड़ो का इज्जत से बात करना और हंसमुख स्वभाव उनके दिल को छू गया था। इसीलिए संध्या जी ने देर ना करते हुए रागिनी की मां से उसका हाथ अपने बेटे सुमित के लिए मांग लिया था। और इस तरह से रागिनी और सुमित का रिश्ता तय हो गया।
सुमित एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैकेनिकल इंजीनियर था ….वही रागिनी भी स्कूल में लेक्चरर के पद पर कार्यरत थी। दोनों को एक दूसरे को जानने समझने का मौका बहुत कम मिला क्योंकि सगाई के दो महीने बाद ही शादी का मुहूर्त निकल आया । शादी के बाद दोनों एक- दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे थे।
एक साल होने को आया। शुरु शुरु में तो प्यार में ही समय निकल गया लेकिन साल बीतने तक दोनों में बात -बात पर तकरार होने लगी । जहां सुमित चाहता कि रागिनी उसके साथ पार्टियों में उसके साथ वैसे ही रहे, जैसे उसके दोस्तों की पत्नियां रहती थी…. थोड़ा वेस्टर्न कपड़े पहने और उसकी हर बात का मान रखे।
वहीं दूसरी ओर, रागिनी एक सीधी-सादी घरेलू लड़की थी। उसे गाहे-बगाहे यूं पार्टियां करना बिल्कुल भी नहीं अच्छा लगता था।
एक दिन रागिनी ने कहा,” देखो सुमित! कभी-कभी तो ठीक है … लेकिन हर वीकेंड पर तुम्हारा दोस्तों के साथ बाहर घूमने जाना और मुझसे भी यही उम्मीद रखना कि मैं भी तुम्हारे साथ चलूं …..यह मुझे ज्यादा पसंद नहीं है। मैं तुम्हारे मुताबिक खुद को ढालने की पूरी कोशिश कर रही हूं। लेकिन फिर भी तुम संतुष्ट नहीं हो …तो मैं क्या कर सकती हूं ..?”
“देखो रागिनी ! अपने पति को खुश रखना हर पत्नी का धर्म होता है। तुम्हें उसी में खुश रहना चाहिए जिसमें मैं खुश हूं। इसलिए तुम्हें मेरे अनुसार ही रहना होगा”
” यह तुम्हारी गलतफहमी है सुमित.. अगर पति की खुशी पत्नी का धर्म है….. तो क्या पत्नी की खुशी एक पति के लिए कोई मायने नहीं रखती है। मेरा भी मन होता है कि छुट्टी वाले दिन तुम मेरे साथ कुछ वक्त बिताओ…. लेकिन तुम्हें तो अपने दोस्तों से ही फुर्सत नहीं है। कभी-कभी तो चलता है लेकिन हर बार तुम्हारी ही बात मानी जाए…. ऐसा जरूरी तो नहीं “”
“तुम बेकार की बहस कर रही हो रागिनी ..! मैं अपनी जिंदगी जैसे चाहूं वैसे जी सकता हूं और मुझे सप्ताह में एक ही दिन मिलता है जब मैं कुछ पल अपने दोस्तों के साथ मिलकर मजे कर सकता हूं। इसमें तुम्हें क्या प्रॉब्लम है…?”
” अच्छी बात है… तुम अपने दोस्तों के साथ मजे करो… कुछ समय उनके साथ बिताओ….लेकिन मेरा समय कहां है…? क्या तुम्हारी जिंदगी पर मेरा कोई हक नहीं है…? क्या मेरा कोई हक नहीं कि कुछ पल मैं तुम्हारे साथ अकेले में भी बिताऊं.. अपने मन की बातें तुमसे करूं… हर पत्नी की इच्छा रहती है कि उसका पति उसे समय दें। तुम्हारे पास तो मेरे लिए समय ही नहीं है..”
ऐसे ही और ना जाने कितनी ही छोटी-छोटी बातों पर रागिनी और सुमित में बहस हो जाती और बहस इतनी बढ़ जाती कि दोनों चार-पांच दिन तक एक दूसरे से बात भी नहीं करते। घर का पूरा माहौल बदल चुका था। जहां पहले सुमित पूरे घर में हंसता रहता था। अपने मम्मी -पापा से हंसकर बातें और मजाक मस्ती करता रहता था… वही वह अब थोड़ा गुमसुम सा रहने लगा।
रागिनी भी हमेशा चहकने वाली लड़की थी। शादी के बाद से ही वह अपनी सासू मां से बहुत प्रभावित थी। उनसे हर बात शेयर करती थी और कोई भी परेशानी हो संध्या जी उसकी हर परेशानी को मिनटों में दूर कर देती थी।
लेकिन कुछ समय से संध्या जी ने नोटिस किया कि रागिनी भी गुमसुम सी रहने लगी है।
सुमित से बात करने के बाद संध्या जी ने रागिनी से बात करनी चाही।रागिनी ने उन्हें सब कुछ बता दिया ।
और कहा,” मम्मीजी! आप ही बताइए मैं कहां गलत हूं …?अगर मैं अपने पति के साथ थोड़ा समय बिताना चाहती हूं तो क्या मैं गलत सोचती हूं …जब भी सुमित के साथ उसके दोस्तों के पार्टी में जाती हूं तो सुमित अपने दोस्तों के साथ बातों में पूरी तरह मस्त हो जाता है और मैं वहां खड़े खड़े बोर हो जाती हूं। मैं क्या करूं…? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा…. सुमित के अनुसार मैं बहुत ही पारंपरिक दिखती हूं और मुझे ओढ़ने पहनने का बिल्कुल भी ढंग नहीं है। लेकिन कभी-कभी पार्टी में उनके साथ मैं जींस टॉप पहन कर भी जाती हूं…””
संध्या जी ने रागिनी के सर पर प्यार से हाथ करते हुए कहा, “रागिनी बेटा! तुम सुमित के साथ समय बिताना चाहती हो, यह अच्छी बात है। लेकिन जब तुम दोनों किसी भी दोस्त की पार्टी में जाते हो तो…. आते और जाते समय तुम दोनों अकेले ही होते हो। तब भी तुम एक दूसरे से खुलकर बातें कर सकते हो। और अगर तुम पार्टी में बोर हो जाती हो तो…. मेरी बात ध्यान से सुनो….. सुमित के सब दोस्त शादीशुदा हैं। तुम उनकी पत्नियों से क्यों नहीं अच्छी दोस्ती कर लेती । इससे क्या होगा कि तुम्हारी भी कुछ सहेलियां बन जाएंगी और तुम्हें भी पार्टी में जाने से कोई परेशानी नहीं होगी..”
अपनी सासू मां से यह सब सुनकर रागिनी को थोड़ा सुकून सा मिला ।
उसने कहा ,”मम्मी जी !आप मुझे कितने अच्छे से समझती हैं ,जिस बात के लिए हम इतने दिनों से लड़ झगड़ रहे थे या एक ही चीज को लेकर हमारे बीच में बात बात पर बहस हो जाती थी…. उसी बात को आप ने कितनी आसानी से चुटकियों में सुलझा दिया…”
संध्या जी यह बात सुनकर हंसने लगी
” रागिनी बेटा ! मैं एक समाज सेविका हूं। शायद तुम भूल गई हो
…. और यह परेशानी तो बहुत छोटी सी थी…”
रागिनी हंसकर अपनी सासू मां के गले लग गई।
संध्या जी को याद आता है कि कैसे, जब उसके और उसके पति के बीच में झगड़ा होता था तो उनकी सासू मां उनके झगड़े का नाजायज फायदा उठाती थी और अपने बेटे को और भी फिजूल की उल्टी सीधी बातें करके उसके खिलाफ कान भरती रहती थी। जिससे कि संध्या जी और उनके पति योगेश जी में बात ना के बराबर होने लगी। दोनों में प्यार कम और झगड़े ज्यादा होने लगे थे । संध्या जी अपनी सासू मां की हर चाल से वाकिफ थी । इसलिए उसने धीरे-धीरे अपने झगड़े को योगेश जी के साथ मिलकर खुद ही सुलझाने शुरू कर दिए। वह पूरी कोशिश करती थी कि अगर उनके और उनके पति के बीच में थोड़ी सी भी बहस हो तो वह सासू मां तक ना पहुंचे। क्योंकि वह बहस सासू मां के पास अगर पहुंच गई तो भयंकर झगड़े का रूप ले लेती थी।
अब संध्या जी की सासू मां तो नहीं रही। लेकिन जिंदगी में उन्हें एक सीख जरूर मिली । उन्होंने मन ही मन यह फैसला कर लिया था कि जब उनके बेटे सुमित की शादी होगी और उनकी बहू आएगी ….तो वो अपनी सास की तरह ऐसा कोई काम नहीं करेगी जिससे उसके बेटे का परिवार टूटने की कगार पर आ जाए।वह पूरी हो कोशिश करेगी कि उनके बेटे और बहू के बीच की बहस को सुलझा कर वो हमेशा उनके बीच का प्रेम को कायम रख सकें।
और आज अपनी बहू को समझा कर उन्होंने आधा काम कर लिया था।
शाम को सुमित घर आया और संध्या जी से माफी मांगने लगा। उसे बहुत अफसोस हो रहा था कि उसने अपनी मां से ऊंची आवाज में बात की।
संध्या जी ने सुमित को अपने
पास बिठाकर प्यार से कहा ,” देखो बेटा! रागिनी अपना सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे भरोसे इस घर में आई है। अगर वह तुम्हारे साथ कुछ समय अकेले में बिताना चाहती है तो मुझे नहीं लगता कि वो कुछ गलत कर रही है। पूरे सप्ताह तुम दोनों अपने अपने काम में व्यस्त रहते हो। एक -दूसरे को समय भी नहीं दे पाते हो। मैं मानती हूं कि रागिनी बहुत ही सिंपल और साधारण लड़की है लेकिन फिर भी तुम्हारे लिए तुम्हारे हिसाब से वह कपड़े भी पहनने लग गई है अब भी तुम्हें शिकायत है …?अगर ऐसा है तो तुम महीने में एक या दो बार अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने जाओ ताकि रागिनी को भी तुम्हारे साथ थोड़ा समय मिल पाए। पति-पत्नी गाड़ी के दो पहिए होते हैं। दोनों एक साथ हंसी खुशी से चलें तो अच्छा है। अगर तुम उसकी खुशी का ख्याल नहीं रखोगे, तो और कौन रखेगा…? थोड़ा तुम एडजस्ट करो… थोड़ा रागिनी एडजेस्ट करेगी।
रागिनी भी उधर से आते हुए अपनी सासू मां और सुमित की बातें सुन रही थी । उसे गर्व हो रहा था अपनी सासू मां पर …..जोकि उसे और उसके मन की भावना को इतने अच्छे से समझती थी।
रागिनी ,सुमित और संध्या जी के पास आकर रोने लगी ।
और कहा,”मम्मी जी और सुमित! आप दोनों मुझे माफ कर दीजिए । मुझे लगता है कि मैं ही कुछ दिनों से ज्यादा रिएक्ट करने लगी थी…”
तभी सुमित बोल पड़ा,” नहीं रागिनी! माफी तो मुझे मांगनी चाहिए…. मैं तुम्हें और तुम्हारी भावनाओं को ठीक से नहीं समझ पा रहा था..”
तभी संध्या जी उठ खड़ी हुई और कहने लगी ,”अगर तुम दोनों इसी तरह बार-बार सॉरी सॉरी बोलने लगे तो मुझे एनजीओ के लिए लेट हो जाएगा …..इसलिए फटाफट अपना काम निपटाओ और मेरे लिए एक गरमा गरम चाय बना कर लाओ ।
रागिनी और सुमित, संध्या जी की बात पर मुस्कुरा दिएl
दोस्तों ! शादी के बाद किसी न किसी रूप में हर लड़के और लड़की को एडजस्ट करना ही पड़ता है। और उनके साथ साथ परिवार में भी थोड़ा बहुत परिवर्तन आता है। अगर घर का बड़ा व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के सब को एक ही नजर से देखें और गलतियों को अनदेखा ना करें तो घर की बहुत सी समस्याएं इसी तरह से सुलझ जाती है।
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प्रियंका मुदगिल
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