“ठेस” – मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

यह कहानी शारदा नाम की औरत की है जो बिहार के छोटे शहर से मुंबई जैसे बड़े शहर में अपने पति के साथ बेटे के इलाज के लिए आई और फिर क्या हुआ आगे पढ़िए :-

शारदा तीन बच्चों की मां थी दो जुड़वा बेटा गोलू, मोलू और एक प्यारी सी बेटी अक्षरा। पति शरद, एक छोटे से शहर में शिक्षक के पद पर कार्यरत थे। भगवान की दया से शारदा का एक हस्ता खेलता परिवार था जीवन बड़े ही मजे से चल रहे थे कि एक दिन –

“मां–! देखो ना– मेरी सांसें फूल रही हैं—! थोड़ा सा—-दौड़ता हूं तो धड़कनें तेज हो जाती हैं—। मैं आजकल दोस्तों के साथ ठीक से खेल भी नहीं पाता।

 10 साल का भोलू अपनी मां शारदा के गोद में सर रखते  हुए बोला। बेटा–! मैंने कितनी बार तुझे समझाया है कि— अभी ज्यादा दौड़ा मत कर ।अभी–कुछ दिन पहले ही तो तुझे बुखार हुआ जिसकी वजह से तू  कमजोर हो गया है इसलिए  सांसे फूल रही होगी–।

 कल से तू खेलने नहीं जाएगा बस मैं कुछ नहीं जानती—!

” अजी सुनते हो– आज गोलू को जाकर डॉक्टर से दिखा आते हैं पता नहीं वह आजकल ज्यादा सुस्त रहने लगा है और ठीक से खाता-पीता भी– नहीं ।  

आज सुबह-सुबह शारदा दाढ़ी बना रहे पति शरद से बोली। हां हां—चलो चल के दिखा आते हैं । शायद पेट में कीड़े हो गये होंगे।

स्कूल से लौटते ही शरद गोलू को डॉक्टर के पास ले गया–

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 कुछ  विटामिन्स, मिनरल्स और भूख लगने की दवा लिख रहा हूं— बच्चा कमजोर है इसके खाने पीने पर आप लोगों को विशेष ध्यान रखनी होगी–! डॉक्टर पूर्जा देते हुए शरद से बोले। 

” अब दोनों जुड़वा हैं तो हम सबको इनके उपर विशेष ध्यान रखनी होगी शरद, शारदा को समझाते हुए बोले। 

 शारदा अब बच्चों पर ज्यादा ध्यान देने लगी। खासकर गोलू पर।

 महीना गुजर गये पर गोलू की हालत सुधरने की बजाय  दिन पर दिन और भी, खराब होती जा रही थी।

 “अब भी इसकी वही स्थिति बनी हुई है–।दौड़ने पर– सांसे फूलने लगती है बुखार भी कभी-कभी आ जाता है।शारदा गहरी चिंता व्यक्त करते हुए शरद से बोली ।

हां– मुझे भी इस बात का टेंशन हो रहा है चलो एक बार पटना के सबसे बड़े चाइल्ड स्पेशलिस्ट से  गोलू को ,दिखा आते हैं। इधर-उधर दिखाने से तो अच्छा है कि बच्चे की किसी अच्छे जगह, और अच्छे डॉक्टर से, चिकित्सा कराई जाए—!

 चाय की प्याली रखते हुए शरद बोलें ।

दो एक दिन में वे पटना निकल पड़े ।

वहां : –

कुछ टेस्ट करवानी होगी तभी हम कुछ निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं—! गोलू की जांच करते हुए डॉक्टर शरद को बोले ।

“सर घबराने की कोई बात तो नहीं ना –? थोड़े चिंतित होते हुए शरद बोलें ।

“रिपोर्ट आ जाने दो उसके बाद  बात करते हैं। 

 टेस्ट के बाद जो रिपोर्ट आई वो हैरान कर देने वाली थी गोलू को “ग्लैंडस कैंसर” डिटेक्ट हुआ डॉक्टर ने, गोलू के अच्छे उपचार के लिए मुंबई जाने की सलाह दी। 

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शारदा के आंसू थम नहीं रहे थे ।  शरद और उसके परिवार वालों के आपसी सहमति से,  भोलू को,  तुरंत मुंबई ले जाने का फैसला किया गया । 

अब चुकी इसका इलाज काफी महंगा होता है तो शरद ने अपनी खरीदी ‘जमीन तथा सैलरी’ बेच, दोनों गोलू को लेकर मुंबई निकल पड़े ।

बेटी अक्षरा और मोलू दादा जी के साथ अपने गांव चले आए ।

मुंबई में गोलू का इलाज शुरू हो गया शुरुआती कुछ महीनों तक तो ठीक था पर चार-पांच महीने के बाद शरद को और भी पैसे की जरूरत हुई ।

“शारदा–अभी हमें और भी पैसे लगेंगे–इलाज के लिए। हम जो भी लाए थे वह खत्म होते जा रहा है  गोलू की ट्रीटमेंट अभी और चलेगी—” मैं बाबूजी को फोन कर उनसे पैसे का प्रबंध करने को कहता हूं—

लेकिन वह भी बड़ी मुश्किल से दे पाएंगे– ।  हमें और भी कुछ सोचना पड़ेगा–। शरद के चेहरे पर मायूसी  साफ झलक रही थी।

” अरे आप ज्यादा मत सोचो–! मैं हूं ना’ –!कुछ ना कुछ साइड से करती हूं ! साइड से—?मतलब क्या है तुम्हारा—?

शरद चौक गया ।

अरे कल– जब गोलू की “कीमो”  के लिए ,डॉक्टर आए तो वह बोले कि  बच्चे की रिकवरी तो काफी अच्छी हो रही है बस हमें इसे इंफेक्शन से बचाना होगा और–। 

और क्या–? शरद जल्दी से बोल पड़े।  और ट्रीटमेंट का कोर्स लगातार होनी चाहिए ।

तब मैंने डॉक्टर से पूछा कि “सर अब ट्रीटमेंट में लगभग कितने पैसे और लगेंगे तब उन्होंने मुझे तकरीबन 5 लाख का खर्च बताया। सुनकर मैं थोड़ी मायूस सी हो गई फिर उन्होंने मुझे बोला कि क्या हुआ—? तुम  मायूस क्यों हो–? 

“सर थोड़े पैसे का प्रॉब्लम है–मैंने संकोच बस बोला  क्या आप मुझे हॉस्पिटल में कोई जॉब दे सकते हैं –?उन्होंने मुझे बड़े गौर से देखा फिर कहा ठीक है– कल आ जाना! 

इसलिए आज मैं उनसे मिलकर आऊंगी शायद हमारी प्रॉब्लम दूर हो जाये ।

 “शारदा—तुम गोलू के पास रहना, मैं डॉक्टर से अपने लिए बात कर लूंगा कोई जरूरत नहीं है तुम्हें वहां जाने की–। वैसे तुम गोलू का ध्यान अच्छे से रखोगी । 

लेकिन आप—? शारदा आश्चर्य से बोली।

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 हां– “मैं  डॉक्टर से बात करूंगा क्या पता– शायद–“अस्पताल में काम करने से ,हमें उपचार में थोड़ी छूट मिल जाऐ– जिससे हमें थोड़ी राहत तो मिलेगी– ! 

थोड़ी देर में वहां डॉक्टर का भिजिट हुआ ।

“अच्छा अब काफी ठीक है–! डॉक्टर खुश होते हुए बोलें 

बाहर निकलते ही शरद , डॉक्टर को बोले “सर कल आपने शारदा को जॉब के लिए कहा था क्या ये जॉब आप मुझे दे सकते हैं–?मैं कर लूंगा !

“आई एम सॉरी” जॉब सिर्फ तुम्हारी वाइफ के लिए थी अगर वो करना चाहती है तो “सिस्टर सुजाता “से मिलने को बोल देना–! कहते हुए डॉक्टर वहां से चले गए अंदर आते ही शरद ने सारी बात शारदा को बताई।

 तो क्या हुआ–? मैं कर लूंगी वैसे भी इधर सात-आठ महीनो से आप  काफी कमजोर हो चुके हैं!  भोलू के पास आप रुकिए– मैं सुजाता से मिलकर आती हूं–। 

“शारदा ,’डॉक्टर साहब तुम्हें अंदर बुला रहे हैं–! सुजाता डॉक्टर के केबिन से निकलते हुए बोली । 

शारदा तुम्हारे लिए काम अस्पताल में तो नहीं– पर, हां–अगर तुम मेरे घर पर काम करना चाहो तो– तुम्हें ,”मैं अपने यहां काम दे सकता हूं !”मैं अकेला  रहता हूं घर में साफ- सफाई के साथ-साथ तुम्हें खाना, बर्तन और कपड़े भी धोने पड़ेंगे। और हां–तुम मेरे घर पर ही रहोगी क्योंकि घर से अस्पताल की दूरी काफी है– यहां तुम्हारे पति तो हैं ही वह बच्चा संभाल लेंगे और तुम बीच में कभी-कभी चली जाना । बाकी किसी चीज की जरूरत होगी तो “मैं हूं। डॉन’ट वरी” तुम्हारी सैलरी 15000 है बोलो– ठीक है ना–? डॉक्टर बोले। 

इतना सुनते ही शारदा को जैसे “सांप सूंघ” गया हो। वह अंदर से कांप उठी। इतनी बुरी स्थिति उसके सामने आएगी कि कोई पराया मर्द उसे , अपने घर पर रुकने को बोले वो भी नौकरानी का काम–” हे भगवान”कैसा– दिन दिखा रहे हो–? इन बातों को तो वह ,सपने में भी नहीं सोच सकती–। उसने तुरंत अपने आप को संभाला और हिम्मत करके बोली– “सॉरी डॉक्टर” घर की बात तो दूर मैं हॉस्पिटल में भी कोई काम नहीं कर सकती–क्योंकि मैं आपसे  ये कहने आई थी कि– अगर आप मेरे पति के लिए कोई जॉब दे सकते हैं तो ठीक था वरना–” मैं  नहीं कर सकती– नमस्कार–! गुस्से पर कंट्रोल कर शारदा वहां से चली आई ।

 “शरद को सारी बात बताते हुए– शारदा को– अपने इमोशंस पर कंट्रोल नहीं था क्योंकि– एक तरफ उसका गुस्सा डॉक्टर के लिए था– जिससे उसके “आत्मसम्मान” को ठेस पहुंचा  और दूसरी तरफ आंखों में आंसू थे जो भोलू की ट्रीटमेंट की “मजबूरी” थी–। 

कोई बात नहीं–हमें अपने गुस्से पर कंट्रोल करना पड़ेगा क्योंकि हम अपने बच्चे के इलाज के लिए ही यहां आए हैं और तुमने बहुत अच्छा किया मना कर कर के–। बाबूजी का फोन आया था– जब तुम, डॉक्टर से मिलने गई थी–।

उन्होंने दस लाख की जमीन बेच दी है और अब हमें कोई काम करने की जरूरत नहीं पैसों का इंतजाम हो गया है–! अपने गोलू का ट्रीटमेंट अब हम अच्छे से करा सकते हैं और हां–पैसों के साथ-साथ उन्होंने तुम्हारे लिए एक हेल्पर भी ढूंढा है जिससे– तुम्हें खाना-वाना बनाने में मदद मिल जाएगी–! अब तुम आराम से अस्पताल में सिर्फ गोलू का ध्यान रख सकोगी–! ‘शारदा शरद के गले लग गई–लेकिन “आत्मसम्मान को ठेस पहुंचने से दिल में जो ठेस पहुंची– उसको भूल पाना उसके लिए ,मुश्किल सा हो रहा था । 

दोस्तों किसी भी” स्वाभिमानी” व्यक्ति के लिए उसका “आत्मसम्मान” बहुत ही महत्वपूर्ण होता है वह किसी भी हालत या हालात में इसको ठेस पहुंचाने नहीं दे सकता क्योंकि ये उनकी जिंदगी भर की “पूंजी” होती है।

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मनीषा सिंह

#आत्मसम्मान

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