तेरहवीं – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

विभा आज दीपिका की तेरहवीं पर आई थी। मन बहुत भारी हो रखा था। तभी उसने कुछ महिलाओं को बातचीत करते सुना। 

कोई दीपिका की मौत को लेकर कयास लगा रही थी। तो कोई उसके चरित्र को लेकर सवाल उठा रही थी। 

तो कोई उसकी शिक्षा पर प्रश्न चिन्ह लगा रही थी????

यह सब सुनकर विभा दंग रह गई। जी तो किया कि वह चीख-चीख कर सबको बताए कि शर्मा जी के सुशिक्षित, सभ्य  और रसूखदार परिवार ने दीपिका के साथ क्या-क्या अत्याचार किया।

तभी मेरा मन 2 साल पीछे चला गया। वह दीपिका को पिछले दो सालों से जानती थी। इन दो सालों में उसके जीवन में आए हुए हर उतार-चढ़ाव को उसने अपनी आंखों से देखा था। 

जितने दुख और कष्ट दीपिका ने सहे वह शब्दों में बयान नहीं कर सकती।

आज उसकी आंखों के सामने दीपिका का 2 वर्ष पूर्व शादी के जोड़े में सजा धजा रूप झिलमिला रहा था, जब उसकी और दीपिका की पहली मुलाकात हुई थी। 

पड़ोस में रहने वाले शर्मा जी के बेटे किशोर की पत्नी के रूप में उसकी और दीपिका की पहली पहचान हुई थी। दीपिका एक पढ़ी-लिखी, सुशिक्षित नौकरी पेशा लड़की थी। पहले ही मुलाकात में उसके चेहरे की मुस्कान और अभिवादन के तरीके में मेरा मन मोह लिया था।

शुरू शुरू में तो सब कुछ ठीक था। धीरे-धीरे शर्मा जी के घर से आए दिन लड़ाई झगड़ों की आवाज़ें आने लगी। दीपिका की आवाज तो कम ही आती थी। मगर किशोर की आवाज़ें बहुत तेज होती थी। 

यूं  तो दीपिका ऑफिस आते-जाते विभा से रोज ही मुस्कुराकर अभिवादन करती थी। कभी-कभार हाल-चाल भी ले लिये जाते थे।

मगर लगभग पिछले साल भर से दीपिका से मेरी बातचीत सामने तो ना के बराबर हो गई थी। 

मेरे पास उसका मोबाइल नंबर होने से एक दिन मैंने उसे ऑफिस अवर्स में कॉल किया। पिछले कई बार शर्मा जी के घर से आने वाले झगड़ों की आवाजों से मैं ये जान चुकी थी कि किशोर का व्यवहार दीपिका के प्रति बिल्कुल अच्छा नहीं था और जहां तक मैं समझ रही थी वह उस पर हाथ भी उठाने लगा था।

दीपिका से सामान्य बातचीत होने के बाद मैंने उससे पूछा कि दीपिका तुम बुरा ना मानो तो मैं कुछ पूछना चाहती हूं। दीपिका मुझे दीदी ही कहती थी, उसने कहा हां दीदी क्यों नहीं? 

पहले तो मुझे थोड़ा संकोच हुआ फिर भी मैंने उससे पूछा दीपिका क्या बात है, मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारे साथ कुछ ठीक नहीं हो रहा है। क्या तुम मुझे कुछ बताना चाहोगी ?  क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकती हूं ? 

पहले तो दीपिका थोड़ा सा हिचकिचाई, फिर बोली दीदी कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। यह शादी करके मैंने अपनी जिंदगी का सबसे गलत निर्णय लिया है। आप तो जानती हैं कि मेरे पिता को मैंने बचपन में ही खो दिया था। ना ही मेरे कोई सगे भाई बहन हैं।

मैंने शादी से पहले ही किशोर को यह बता दिया था कि मेरी मां की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर ही है और मैं अपनी तनख्वाह का कुछ हिस्सा अपनी मां को भी दूंगी। और जब भी मेरी मां को मेरी जरूरत होगी मैं उनकी देखभाल के लिए जाऊंगी।

तब तो किशोर ने यह कहा था कि यह सिर्फ तुम्हारी ही मां नहीं हैं  मेरी भी मां हैं। तुम्हें अब इनकी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।

मेरी मां ने बहुत मुश्किल से मेरी पढ़ाई का खर्च उठाया और मुझे इस काबिल बनाया कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं। 

मेरी मां ने किशोर और उसके घर वालों को पहले ही बता दिया था कि वह दहेज में कुछ भी नहीं दे पाएंगी।

फिर भी मेरी मां ने अपने जीवन में मेहनत से कमाई हुई जो भी पूंजी जोड़ी थी, वह सारी मेरे विवाह पर खर्च कर दी।

मुझे दहेज देने के लिए उन्होंने हमारा घर तक बेच दिया और यह कहा कि जो कुछ है तुम्हारा ही तो है मुझे कितने दिन जीना है – मैं तो किराए के एक कमरे में भी रह लूंगी।

दीदी तब तो किशोर को कोई समस्या नहीं थी। शादी के कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक था। फिर किशोर और  घर वालों का व्यवहार मेरे प्रति बदलने लगा। 

हर दिन किशोर अब कुछ ना कुछ नई मांग रख देते हैं।

मेरी मां उनकी मांगे कहां से पूरी करें। 

वह तो बेचारी खुद का खर्चा भी बहुत मुश्किल से उठा पाती है। 

अब किशोर और बाकी सब नहीं चाहते कि मैं अपनी मां से कोई भी रिश्ता रखूं या उनकी कोई भी आर्थिक मदद करूं। यह कैसे संभव है दीदी? 

अब तो किशोर मुझ पर हाथ भी उठाने लगे हैं। मुझे मेरी मां से मिले भी 6 महीने हो गए हैं। 

6 माह पूर्व मैंने अपनी मां को यह सब कुछ बताया था। मैंने उनसे कहा कि मैं उनके साथ आकर रहूं उन्होंने समाज, रिश्तेदार और लोक-लाज के कारण मुझे ऐसा करने से मना कर दिया। 

अब मैं क्या करूं दीदी??

इतना कहते ही दीपिका बहुत रोने लगी। मैंने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा- दीपिका तुम परेशान मत हो, कोई ना कोई रास्ता जरूर निकलेगा। 

इस तरह मेरी दीपिका से कई बार फोन पर बातचीत हुई।

दीपिका ने मुझे और भी बहुत कुछ बताया जैसे-

 घर वाले मुझे बाहर किसी से भी बात करने नहीं देते। यहां तक कि ऑफिस से मुझे कहीं भी आने जाने की अनुमति भी नहीं है। सारे रिश्तेदारों ने भी पल्ला झाड़ लिया है।

मिसेज शर्मा जो पहले कभी कभार मुझ से बात कर लिया करती थी, वे भी अब कुछ महीनो से मुझे बिल्कुल बात नहीं कर रही थी। किशोर‌ को मैं एक बहुत ही सुशिक्षित और सभ्य लड़का समझती थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि बाहर से इतना अच्छा व्यवहार करने वाला परिवार, एक गरीब और मजबूर लड़की का ऐसे फायदा उठाएगा।

आए दिन घर में उसे शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती थी। उसकी सेहत भी दिनों दिन गिरती जा रहीथी। 

दिपिका की मम्मी का नंबर लेकर मैंने उनसे भी एक दो बार बात की। मैंने उन्हें समझाने का प्रयास किया कि वह दीपिका का साथ दें।

 विधवा एवं वृद्धावस्था होने की मजबूरी का हवाला देकर उन्होंने इस बात से इनकार कर दिया। उन्हें लगता था धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। आखिरकार बेटी को तो उसके ससुराल में ही रहना है। 

आए दिन अब आस पड़ोस में भी शर्मा जी के घर में होने वाली कलह की चर्चा होने लगी थी। सभी लोग शर्मा परिवार के इस दुर्व्यवहार को देखकर आश्चर्यचकित थे।

मगर कोई भी दीपिका के बारे में उनसे कोई बात नहीं कर पा रहा था।

दो महीने से तो दीपिका का फोन भी बंद आ रहा था। मेरी उससे कोई बातचीत नहीं हो पा रही थी। 

यहां तक की  लगभग 25 दिन पहले से तो मैंने दीपिका को देखा ही नहीं था। शायद वह ऑफिस भी नहीं जा रही थी। 

मेरे मन में कुछ शंका हुई और मैंने दीपिका की माता जी को फोन पर इस बारे में अवगत भी कराया। 

उन्होंने कोई कदम उठाया या नहीं यह तो मैं नहीं जानती। मगर आज से ठीक तेरह दिन पहले सुबह-सुबह शर्मा जी के घर के बाहर लोगों का मजमा लगा देख मुझे कुछ घबराहट हुई। 

बाहर आकर देखा तो लोग आपस में कुछ-कुछ काना फूसियां कर रहे थे। सभी के चेहरों पर हैरानी के भाव नजर आ रहे थे। 

तभी पास में रहने वाली गीता भाभी मुझे देखकर मेरे पास आई, और कहने लगी आप जानती हैं- “दीपिका नहीं रही उसने आत्महत्या कर ली।”

यह सुनते ही “मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई।” “मुझे काटो तो खून नहीं।” यह क्या हो गया, मैं चाह कर भी दीपिका के लिए कुछ नहीं कर पाई।

कितना समझाया था मैंने दीपिका को कि ऐसा कोई कदम मत उठाना। बहुत ज्यादा समस्या हो तो वह यह शहर छोड़ कर जा सकती है। मैं उसकी पूरी मदद करूंगी।

फिर उसने मुझसे क्यों कुछ नहीं शेयर किया??? क्यों उसने यह कदम उठा लिया??? क्या उसे घर में कैद कर दिया गया था ?  ऐसे सैकड़ो सवाल मेरे मन में आ जा रहे थे। 

मेरी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी। मैं तुरंत घर में दौड़ी और उसकी माताजी को फोन किया। उन्हें दीपिका के बारे में बताया। उन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता था। मैंने उनसे तुरंत ही यहां आने को कहा। 

वह पहले सीधा मेरे ही घर आई। हम दोनों दीपिका के घर गए। शर्मा जी और उनके परिवार ने उनके आते ही बहुत कुछ सुनाना शुरू कर दिया।

 यहां तक की यह भी कह दिया – ले जाइए अपनी चरित्रहीन बेटी की लाश को। हमारे घर की बहू कहलाने लायक नहीं थी। हमारा आपका अब कोई संबंध नहीं। 

दीपिका की माताजी बहुत रो रही थी और बस “रोते-रोते अपनी किस्मत को कोसती जा रही थी।”

हाय यह क्या हो गया??

“यह आत्महत्या नहीं हत्या है।”

मेरी बेटी इन लालचियों की लालच का शिकार हो गई। क्यों मैं कुछ ना कर पाई???

तभी वहां पुलिस भी आ गई। दीपिका की माता जी ने दीपिका पर होने वाले सारे अत्याचारों के बारे में पुलिस को बताया और फिर शर्मा जी के परिवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई।

तत्पश्चात दीपिका की लाश का पोस्टमार्टम होने पर उसका अंतिम संस्कार किया। 

आज दीपिका की 13वीं के लिए कल उन्होंने मुझे फोन कर बुलाया था। साथ ही यह भी कहा था कि तुम जरूर आना मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है। 

कहीं ना कहीं दीपिका की मौत के लिए मैं खुद को भी जिम्मेदार मान रही थी इसलिए अंतिम संस्कार के बाद उसके घर जाकर उसकी मां से मिलने की मेरी हिम्मत नहीं हुई।

तभी अचानक एक बच्चा मेरे पास आया और मुझे बोला आंटी आंटी आपको ताई जी बुला रही हैं। यह सुनते ही मेरे विचारों की तंद्रा टूटी।

मैं दीपिका की माताजी से मिलने गई।

मुझे देखते ही वह बहुत रोने लगी। ‌ मैंने गले लगा कर उन्हें ढांढस बंधाने की कोशिश की। 

मैंने कहा आप चिंता मत कीजिए हम दीपिका को न्याय जरूर दिलवाएंगे। 

तभी हिचकियां लेते हुए वे बोली अब हम कुछ नहीं कर सकते विभा।

सब कुछ खत्म हो गया है। ना ही मैं जीते जी मेरी बेटी का साथ दे पाई और ना ही उसके मरने के बाद न्याय।

वे लोग जीत गए विभा। पैसों के बल पर उन्होंने मेरी बेटी को चरित्रहीन साबित कर दिया। पुलिस ने उन पर से सारे आरोप हटा लिए हैं और उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया है।

और तो और सारे रिश्तेदार भी मेरी बेटी के चरित्र पर ही उंगली उठा रहे हैं।

हाय रे मेरी किस्मत और एक बार फिर वे “रोते-रोते अपनी किस्मत को ही कोसती जा रही थी!!!!”

और मैं एक बार फिर सोचने को विवश हो गई, समाज में इतनी प्रगति होने के बाद भी आज भी लड़कियां एवं उनके परिवार इतने मजबूर क्यों है कि जरूरत पड़ने पर वह अपनी बेटी का साथ ना दे सके। यहां तक कि उनकी बेटी को मृत्यु का वरण करना पड़े और फिर भी वह कुछ ना कर पाए सिवाय अपनी किस्मत को कोसने के!!!!

एक और तो समाज आजकल की पीढ़ी की लड़कियों को अत्याधुनिक  होने का दोष दे रहा है। और एक ओर दीपिका जैसी जाने कितनी लड़कियां दहेज जैसी कुरितियों की अग्नि में आज भी  स्वयं को स्वाहा रही हैं। लड़की होने की सजा भुगत रही हैं। और उनका परिवार रोते-रोते अपनी किस्मत को कोस रहा है……..

स्व रचित 

दिक्षा बागदरे 

18/06/2024

#रोते-रोते बस अपनी किस्मत को कोसती जा रही थी

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