तेरा -मेरा छोड़ो, खुशियों से नाता जोड़ो.. – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

घर में आते ही आदेश ने रेवा को सूचना दी “परसों सुबह की ट्रेन से मम्मी -पापा आ रहे है..”
“ओह, इसीलिये आवाज से खुशी छलकी जा रही है, परसों से तो हम आपके लिये गैर हो जायेंगे..”रेवा तल्ख़ होकर बोली

“कैसी बात करती हो रेवा, गैर क्यों होगी, और मुझे खुशी क्यों नहीं होगी, मेरे मम्मी -पापा आ रहे है, जब तुम अपने मम्मी -पापा के आने पर खुशी का इजहार करती हो, तब कुछ नहीं….”आदेश ने रेवा को सुनाते हुये कहा ..।

“मेरे मम्मी -पापा, आपके मम्मी -पापा जैसे नहीं है..”रेवा ने शान से कहा .।
“सही कहा रेवा, तुम्हारी भाभी ने भी यही कहा था, तब तुम कितना लड़ी थी उनसे, उन्होंने माफ़ी मांगी तब जाकर तुम्हारा गुस्सा शांत हुआ, तुम तो किसी से माफ़ी भी नहीं मांगती हो…,वैसे मै आज तक समझ नहीं पाया, मै, बच्चे और ससुराल की प्रॉपर्टी सब तुमको प्यारे है, बस नहीं सुहाते तो मेरे मम्मी -पापा और रिश्तेदार…, ऐसा क्यों…??

 “हाँ -हाँ नहीं सुहाते आपके मम्मी -पापा और रिश्तेदार..”चिढ़ते हुये रेवा ने जवाब दिया।

शादी से पहले रेवा के लिये आदेश के मम्मी -पापा और बहन हमेशा प्राथमिकता में रहते थे, लेकिन शादी के बाद, रेवा सास -ससुर और ननद से दूर होने लगी ..,आप सोच रहे होंगे, पक्का उसकी सास और ससुर नकचढ़े और बदमिजाज होंगे .. ना… ना…, वे बहुत व्यवहार कुशल और स्नेही है,

उधर आदेश भी शादी से पहले रेवा के मम्मी -पापा के बर्थडे से लेकर एनिवर्सरी तक कभी नहीं भूलता, ना ही रेवा के बड़े भाई के बच्चों के लिये गिफ्ट ले जाना भूलता ..।

लेकिन शादी के बाद दोनों ओर से मेरा -तेरा बीच में आने से रिश्तों में खटास आने लगी ..। शादी से पहले जो रिश्ते हसीन लगते थे यथार्थ के धरातल पर आ मुरझा गये…।

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आदेश को समझ में ना आता, अपनी माँ कितना भी टोके या डांटे, रेवा को बुरा नहीं लगता लेकिन अगर आदेश की मम्मी ऊषा जी कुछ कह दे तो रेवा कोप भवन में बैठ जाती, बिचारी ऊषा जी चार महीने के प्रोग्राम को दो हफ्ते में निपटा कर लौट जाती…., अपनी गलती उन्हें समझ में ना आती,गलती होने पर माँ -बाप ही तो समझाते है, अगर वो रेवा को समझाती है तो बुरा क्या है…??

रेवा की परेशानी अलग है, जब भी सासू माँ आती, आदेश अपनी मम्मी -पापा को ज्यादा समय देता, रेवा से तो बस जरूरत भर की बात होती, पहले रेवा गुस्सा होती थी, तब आदेश ने समझाया, वे लोग कुछ दिनों के लिये आते है, उनको समय देना जरुरी है,।

आदेश की बात सही है ये रेवा समझती थी, पर अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाती थी, शादी से पहले उसे सासू माँ से शिकायत नहीं थी पर शादी होते ही सहेलियों से सुनते उसे अचानक अपनी माँ ज्यादा अच्छी लगने लगी.., और सासू माँ में ढेरों ऐब दिखने लगा…।

अगले दिन रेवा अभी सो ही रही थी कालबेल की तीखी आवाज ने उसे डिस्टर्ब कर दिया, बगल में आदेश नहीं थे, “इनलोगो को भी इतनी सुबह आना था,छुट्टी का मजा किरकिरा कर दिया…. बड़बड़ा रही थी,
” ट्रेन का जो समय होगा उसी के अनुसार आएंगे,”चाय के लिये बोलने आये आदेश ने रेवा की बात सुन नाराजगी से कहा..।

“अरे मेरा ये मतलब नहीं था….”रेवा ने बात संभालने की कोशिश की, सुबह -सुबह वो ना तो आदेश का मूड खराब करना चाहती थी ना अपना..।

.”तुम्हारा मतलब मै अच्छी तरह समझता हूँ, चाय बना दो..”आदेश बोला…

रेवा फ्रेश हो चाय बनाने चली गई, चाय बना सासू माँ को भिजवा दी और अपनी चाय ले कमरे में आ गई, रात के सफर से थके आये सास -ससुर से वो एक बार भी मिलने नहीं गई, रेवा चाय पी कर रसोई में नाश्ते -खाने की तैयारी कर रही थी,।

नाश्ता बना वो टेबल पर लगा रही थी, उसे परिचित आवाज सुनाई दी,”ये तो माँ की आवाज है…”फिर अपने ख्याल को झटक दिया उसकी माँ कहाँ से आएँगी, अभी तो आदेश की मम्मी आई है..।
प्लेट लगा रही थी, कि चिरपरिचित खुश्बू से उसने सर उठा कर देखा तो उसकी माँ सामने खड़ी थी “माँ.. आप कब आई .”खुशी से कहते रेवा माँ के गले लग गई..।

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 “सुबह की ट्रेन से “माँ ने रूखे स्वर में जवाब दिया।
“ओह.. मैंने सोचा आदेश के मम्मी -पापा आये है … आदेश आपने बताया नहीं मेरे मम्मी -पापा आ रहे….रेवा खुशी से बोली,

“रेवा ये “मेरे -तुम्हारे “को मैंने हटा कर तुमसे कहा था, मम्मी -पापा आ रहे, तुम्हे जो समझना था, तुमने समझ लिया..”आदेश ने कहा तो रेवा का सर शर्म से झुक गया….।

“माँ, पापा तैयार है, तो मै उन्हें अस्पताल डॉ. को दिखा आता हूँ..”, आदेश बोला

.”हाँ चलो बेटा..”कहते रेवा के पापा आ गये, आदेश उनको ले कर अस्पताल चला गया तब रेवा की मम्मी ने बताया, कुछ दिन पहले उसके पापा का ब्लड प्रेशर काफी हाई हो गया था तब समधन ऊषा जी घर आकार उनको संभाला, यही नहीं आदेश को फोन कर बताया ..”

“आपने मुझे क्यों नहीं बताया माँ..”रूहासे स्वर में रेवा बोली
“तू जल्दी घबराती है इसलिये…, वैसे मुझे बहुत दुख है, मेरी परवरिश कहाँ गलत थी, जो तू अपने सास -ससुर से गलत व्यवहार करती है,,, जैसे मै तुम्हे प्रिय हूँ वैसे ही आदेश को उनके माँ -बाप प्रिय है…, ये बात तुम क्यों भूलती हो, कल को अवि भी तुम्हारे साथ यही करेगा, जो वो देख रहा .., अपनी सास को माँ क्यों नहीं बना पाई .. क्योंकि तुम्हारे नजरिये में खोट था… देखो रेवा, तुम्हे बहुत अच्छा घर -परिवार मिला है, इन रिश्तों को सहेज लो, क्योंकि अलग होना बहुत आसान है लेकिन साथ ले के चलना भी इतना कठिन नहीं है जितना तू समझती है .., इतनी खुदगर्ज मत बनों,कि लौटने के रास्ते ही बंद हो जायें…., जब तक तेरा -मेरा करती रहोगी, कोई अपना नहीं बनेगा, और जो अपने रिश्ते है उनसे भी तुम हाथ धो बैठोगी…”।

 रेवा फूट -फूट कर रो पड़ी “आप सही कह रही माँ, मै बहुत खुदगर्ज और खराब हूँ, लोगों से सुन कर “सास तो होती ही बेकार .”मैंने मम्मी जी के लिये यही इमेज बना ली थी…, मै किस मुँह से माफ़ी मांगू ..”।

रेवा के पापा का चेकअप हो गया, वे अपने शहर लौट गये, उसी दिन रेवा ने सासू माँ को फोन किया “माँ मुझे माफ कर दीजिये, मै भ्रान्ति का शिकार हो आपकी अच्छाई नहीं देख पाई .., आप अब यहाँ आ जाइये, हम सब साथ रहेंगे, क्योंकि मुझे अपनी इस माँ से बहुत कुछ सीखना है …”।

अंत भला तो सब भला वाली कहावत चरितार्थ हो गई, सासू माँ ऊषा जी में रेवा अब अपनी माँ की छवि देखती है,।

.–संगीता त्रिपाठी

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