ससुर के वर्षगांठ की तैयारियों के बीच अचानक सुधा चिल्ला पड़ी। कर ही तो रही हूँ अब क्या चूल्हे में झोंक दूँ ख़ुद को और अपने बच्चे को !
दुध पिते बच्चे को छोड़कर सुधा रसोई का काम संभालने में लगी है तीन दिनों से। घर का अच्छा बेटा बनने के चक्कर में कैलाश सुधा को अकेले में ले जाकर ये फुसक आता की” मेरे मम्मी पापा ने बहुत कष्ट से हमें पाला है अब उनको बहू का सुख तुम दो, तो मेरे जन्म का क़र्ज़ उतर जाएगा, इसके लिए
अगर अपने बच्चों को कुछ दिन ध्यान नहीं देना पड़े तो कोई बात नहीं, मर नहीं जाएंगे बच्चे। सुधा इस बात पर तेरह साल से बहस करके थक चुकी थी. कमरे में अपने पति, बच्चो संग हंसी-ठिठोली करती जेठानी, रिश्तेदारों के साथ मस्ती-मज़ाक करती ननद और रसोई से घर के हर कोने में चक्कर लगाती सास मेहमानो को सुनाये जा रही
“अब जिसका घर है उसको ही तो करना ही पड़ता है, बेटी बहु चार दिन के लिए आती है क्या काम करेगी?” मन में आग लग रही थी सुधा के, ऊपर से लल्ला को किसी बच्चे ने चिढ़ा कर रुला दिया. सुबह से भूखे बच्चे की आवाज़ सुनकर सुधा रसोई से जरा क्या निकली सासु माँ ने हस्ते हुए कहा “आजकल की लड़कियां बच्चो का बहाना करके काम से बच जाती है,
क्या करे मुझे सब खुद करना पड़ता है”. सुनते ही कैलाश, सुधा का हाथ बच्चे से छुड़ा कर रसोई में ले गया, मेरी मम्मी इतना काम कर रही है तुम क्यों बच्चे के पीछे लगी हो.
गुस्सा फुट पड़ा सुधा का. उसने पर्स और बच्चा उठाया और दरवाज़े से निकल गयी. कैलाश और उसके घरवाले टका-सा मुँह लेकर देखते रह गए. आई आई टी और आई आई एम का टॉपर इतना अंधा होता होगा उसने सोचा नहीं था.
-RITIKA SONALI
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