अन्वी और सिद्धार्थ ने नई सोसाइटी में घर लिया तो सुधा जी अपने बेटे बहू के पास आ गई थी। बेटे बहू के ऑफिस जाने के बाद सुधा जी अकेली रहती तो जल्दी ही पड़ोस वाली संध्या जी से उनकी दोस्ती हो गई। संध्या जी की एक बुरी आदत थी कि वह कभी भी कुछ भी मांगने चली आती। वह बातों की इतनी मीठी चाशनी में घोलती कि सामने वाला चीज देने से इंकार कर ही नहीं पता।
उसने सुधा जी भी बातों में घुमा कभी कुछ मांगती तो कभी कुछ। सुधा भी नई दोस्ती टूटने के डर से कभी उन्हें कटोरी भर शक्कर तो कभी महंगे भाव के प्याज टमाटर देती रहती।
उन्हीं दिनों टमाटर 200 रुपए किलो तो नपे तुले से हर घर में आते। अन्वी ने देखा कि उसकी सासू मां खुले हाथ संध्या को दे रही। अन्वी ने इस बात की नाराजगी जाहिर की तो सुधा जी बोली ,” मैं क्या बताऊं। ये इतनी बड़ी है इनसे कहूं भी तो कैसे?
एक दिन अन्वी घर थी और संध्या जी अपनी आदत अनुसार मीठे लफ्जों में प्याज और टमाटर मांगने आ गई। सुधा जी ने टमाटर प्याज दिए तो अन्वी ,”जो सबक सिखाने के मूड में थी”, बोली,”अरे आंटी जी मसाले और घी ,तेल भी तो ले जाइए आखिर सब्जी बनाएगी कैसे।
उसकी बात सुन संध्या अपना टका सा मुंह लेकर रह गई और चुपचाप चली गई।
पूनम भारद्वाज
मुहावरा प्रतियोगिता