” माँ…आप मेरी बात भी तो सुनिये…वो लोग बहुत पैसे वाले हैं..हमारा- उनका कोई मेल नहीं है।”
” हाँ भाभी…सोमेश ठीक ही तो कह रहा है।रिश्ते हमेशा बराबर वाले से बनाना चाहिये तभी परिवार में तालमेल बना रहता है।”
” ऐसा कुछ भी नहीं है प्रभा….शादी हो जाने के बाद सब ठीक हो जाता है।बड़े घर की लड़की आयेगी तो हमारा भी रुतबा ऊँचा होगा।चार लोगों के बीच मेरा भी उठना-बैठना होगा।सुरभि की शादी में तो तेरे पापा ने अपनी मर्ज़ी चलाई लेकिन अब नहीं…।” लीलावती अपने बेटे और ननद की बात को अनसुना करके विवाह के लिये मेहमानों की लिस्ट बनाने लगी।
लीलावती के पति गिरधारी लाल डाकखाने में पोस्ट मास्टर थें।उनके दो बच्चे थें- सोमेश और सुरभि।दोनों ही स्वभाव के सरल और पढ़ाई में होशियार।सोमेश आईआईटी कानपुर से इंजीनियरिंग पास करके नौकरी करने लगा और सुरभि अपना बीएड पूरा करके स्कूल में बच्चों को पढ़ाना चाहती थी।
गिरधारी लाल और उनके दोनों बच्चे अपनी लाइफ़ से बहुत खुश थे…जितना है उतने में संतुष्ट भी थे लेकिन लीलावती के ख्वाब ज़रा ऊँचे थें।वे जब अपनी बहनों के रहन-सहन को देखती तो सोचती काश मेरे भी…।उनके पति और बच्चे उन्हें समझाते कि बहुत ऊपर देखने से केवल असंतोष और दुख होता।जो है उसी को बहुत समझकर खुश रहो।उस समय तो वो हाँ-हाँ कर देतीं लेकिन फिर कल्पनाओं में डूब जातीं।
सुरभि स्कूल में पढ़ाने लगी तब गिरधारी लाल ने अपने ही बराबरी वाले एक शिक्षित परिवार के लड़के प्रकाश के साथ सुरभि का विवाह करा दिया।लीलावती तो धनाड्य परिवार से रिश्ता जोड़ना चाहती थीं लेकिन गिरधारी लाल ने साफ़ कह दिया कि रिश्ता वहीं होगा। प्रकाश बैंक में काम करता है और संस्कारी भी है…सुरभि वहाँ बहुत खुश रहेगी।तब लीलावती अपना मन मसोसकर रह गईं थीं।
अब जब सोमेश के विवाह की बात चली तब लीलावती को एक परिचित ने बताया कि शहर के उद्योगपति श्रीकांत सहाय अपनी माॅर्डन बेटी रोमा के लिये पढ़ा-लिखा दामाद खोज रहें हैं।उन्होंने तनिक भी देरी न की और उनके घर पहुँच गई।मिस्टर सहाय के पास धन की तो कोई कमी थी नहीं, इसलिए वे अपनी आधुनिक-बदमिज़ाज इकलौती बेटी के लिये सीधा-सरल घर-परिवार ढूँढ रहे थे।लीलावती से मिलकर उनकी तलाश पूरी हो गई थी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
लीलावती के फ़ैसले का उनके पति ने विरोध किया।सुरभि ने अपनी माँ से कहा कि भैया की शादी उनकी पसंद की लड़की से ही कीजिये..अपनी इच्छा उनपर मत लादिये…कहीं ऐसा न हो कि…।उनकी ननद ने भी उन्हें समझाया…सोमेश ने भी कहा कि मैं तो सादगी पसंद लड़का हूँ..रोमा के साथ मेरा निबाह नहीं हो पायेगा लेकिन उन्होंने किसी की एक नहीं सुनी।
विवाह बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हुआ…पूरा खर्चा मिस्टर सहाय ने किया।लीलावती के रिश्तेदारों ने तो खूब प्रशंसा की।मिस्टर सहाय ने अपनी बेटी को दहेज़ में एक फ़्लैट भी दिया जिसमें वे परिवार सहित शिफ़्ट हो गईं।
लीलावती अपने पड़ोसियों- रिश्तेदारों के आगे बहू और उसके परिवार का खूब बख़ान करतीं।उन्हें रोमा का घूमना-फिरना, पार्टी करना बहुत अच्छा लगता था।सोमेश जाना नहीं चाहता तो वो उसे उकसाती।धीरे-धीरे सोमेश भी रोमा के रंग में रंग गया।
एक साल बीत गया तब लीलावती बहू को बच्चे के बारे में बोली। सुनकर रोमा बिफ़र पड़ी,” मैं आज़ाद ख्यालों वाली लड़की हूँ…बंधन मुझे पसंद नहीं..आपको चाहिए तो कर लो।” लीलावती को तो जैसे काठ मार गया।बेटे ने भी माँ को ही समझाया।वो चुप रह गई कि साल भर में बहू को समझ आ जायेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
लीलावती अपनी दादी बनने की इच्छा कभी बेटे तो कभी बहू को कहती…और तब घर में कलह होने लगता।एकाध बार तो रोमा ने यह भी कह दिया कि मेरे डैड ने आपको रहने के लिये फ़्लैट दिया है तो खुश रहिये ना।
एक दिन उन्होंने अपने मन की व्यथा अपने पति से कही तो उन्होंने कहा,” देखो लीला…मैंने अपने स्तर के लोगों के साथ जो रिश्ता बनाया, उसमें मेरी बेटी कितनी खुश है।तुम न जाने किस दुनिया में जी रही थी कि..अब जैसा भी है..अपना है।उसे खुशी-से स्वीकार करो।” लीलावती की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे।
एक दिन अचानक सोमेश अपना सामान पैक करने लगा।लीलावती ने पूछा तो रोमा बोली,” सोमेश का प्रमोशन हो गया है तो मेरे डैड ने हमें एक बंगला गिफ़्ट किया है।अब सोमेश का हाई सोसाइटी में उठना-बैठना होगा.. यहाँ तो आप रोज कोई न कोई ड्रामा क्रियेट करती रहती हैं।इसलिये हम वहाँ शिफ़्ट हो रहें हैं।अब तो पापा भी रिटायर हो गए हैं..आप लोग आराम से रहिये..।”
लीलावती सन्न रह गईं, बोलीं,” बेटे के बिना हम कैसे जियेंगे…सोमेश, तू कुछ बोल ना।” बेटे का हाथ पकड़कर वो रो पड़ीं।
सोमेश बोला,” अब मैं क्या बोलूँ माँ..अब तक तो आपके कहे अनुसार ही चल रहा था..अब रोमा के पीछे चल रहा हूँ।आखिर ये भी तो आपकी ही पसंद थी।” कहकर उसने माँ से अपना हाथ छुड़ाया और बाहर निकल गया।लीलावती का पुत्र-बिछोह का दुख आँसू बनकर बहने लगा था ..गिरधारी लाल पत्नी को सांत्वना देने लगे।आस-पड़ोस वाले कब चुप बैठते, वो कहने लगे,” बड़े-बुजुर्ग ठीक ही कह गयें हैं कि टाट में टाट का ही पैबंद लगाना चाहिए, मखमल का नहीं।रिश्ते हमेशा बराबर वाले से बनाने में ही समझदारी है।”
विभा गुप्ता
स्वरचित ©
# रिश्ते हमेशा बराबर वाले से बनाना चाहिये “
nice story
Bakwaas