टांग अड़ाना – कमलेश राणा : Moral Stories in Hindi

श sssss कोई है

रचना अभी किचन का काम समेट कर खाना खाने बैठती ही जा रही थी कि अनजान नम्बर से आये कॉल ने उसका ध्यान आकर्षित किया। वैभव आराम से न्यूज़ देख रहे थे। 

अब इस समय कौन टपक पड़ा… चैन से खाना भी नहीं खा सकते।

 हैलो आप संजना की माँ बोल रही हैं क्या?? 

मैं संजीवनी हॉस्पिटल से बोल रहा हूँ आपकी बेटी की हालत बहुत खराब है आप तुरंत आ जाइये। 

रचना के हाथ से मोबाइल छूट गया वह कांपती हुई आवाज़ में जोर से बोली.. वैभव जल्दी हॉस्पिटल चलो हमारी संजू को कुछ हो गया है। 

अब कुछ बताओगी भी या पहेलियाँ ही बुझाती रहोगी.. क्या हुआ हमारी लाड़ो को। 

पता नहीं हॉस्पिटल से फोन आया था कि आप जल्दी आ जाइये उसकी हालत ठीक नहीं है। 

जैसे- तैसे दोनों हॉस्पिटल पहुंचे तो वहाँ बेटी की हालत देखकर उनके पैरों से जमीन निकल गई। उसके सारे शरीर पर चोट के निशान थे बड़ी बेरहमी से उसे पीटा गया था। 

मैं पहले ही कहती थी आपसे कि वह इंसान नहीं जानवर है बिटिया को अपने घर बुला लो पर आपने मेरी एक न सुनी यही कहते रहे कि अब वही उसका घर है धीरे- धीरे सब ठीक हो जायेगा। अगर वह ससुराल छोड़ कर आ गई तो कोई क्या कहेगा। 

संजना को दर्द के इंजेक्शन देने के बावजूद भी वह कराह रही थी। आहट सुनकर आँखें खोली उसने और सामने माता- पिता को देखकर बिलख उठी। उस मंजर को याद करके तड़प उठी वह जब उसका जीवन भर साथ निभाने का वादा करने वाला उसका पति हैवान बना हुआ था ऐसा लग रहा था मानो उस पर पागलपन का दौरा पड़ा हो और उसके लिए वह एक फुटबॉल हो। 

बहुत गलत किया है उसने तेरे साथ मैं अभी पुलिस में रिपोर्ट करता हूँ जब जेल में डंडे खायेगा तभी उसे दूसरे के दर्द का अहसास होगा। 

और आपको अहसास कब होगा माँ- पापा.. संजू कराहते हुए बोली.. जीवन भर आप यही दुहाई देते रहे कि कोई क्या कहेगा। जब मैं आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना चाहती थी कि आगे चलकर जरूरत पड़ने पर अपने पैरों पर खड़ी हो सकूँ तो भी “कोई क्या कहेगा” कहकर आपने मुझे रोक लिया। 

फिर जब मुझ पर जी- जान लुटाने वाले इंजीनियर गौतम ने मेरा हाथ माँगा तब भी आपने अंतर्जातीय विवाह पर.. कोई क्या कहेगा.. कहकर मेरा विवाह बड़े घर की बिगडैल औलाद से कर दिया जिसके मन में मेरे लिए न प्यार था और न ही इज्जत। 

जब मैंने अपना दर्द आपसे बांटना चाहा तो एक बार फिर यह कोई रास्ते में आ गया। यह “कोई ” मेरे जीवन की हर खुशी में टांग अड़ाता रहा

आज वह कोई कहाँ है पापा.. उसे बुलाकर मेरी हालत दिखाओ न पापा.. जब वह मेरी खुशियों के रास्ते में अड़ा था और मेरी इतनी परवाह थी उसे तो एक बार मेरे दुःख की घड़ी में आकर भी तो मेरा साथ दे.. कहते- कहते बेहोश हो गई वह। 

रचना हमारी बेटी सच कह रही है हम कोई क्या कहेगा के डर से कई बार अपने हित को अनदेखा कर देते हैं जबकि सच तो यह है कि यह” कोई” हमें सुखी देखकर तो बातें बनाते हैं पर हमारी परेशानियों में कभी साथ नहीं खड़े होते। 

सच कह रहे हो वैभव.. काश हमने पहले ही कोई के बारे में न सोचकर अपने और अपनी बेटी के भले के लिए सोचा होता तो आज वह इस हाल में न होती। अभी भी अगर हम उसे आगे पढ़ा -लिखा कर उज्जवल भविष्य दे पाएं तो ही हमारा प्रायश्चित पूरा हो सकता है अब हम किसी को भी अपनी खुशियों में टांग अड़ाने की इजाजत नहीं देंगे। 

स्वरचित एवं अप्रकाशित

कमलेश राणा

ग्वालियर

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