स्वावलंबी – अनामिका मिश्रा

रौशनी अपने पति और एक बेटी के साथ शहर में रहती थी। पति की शहर में नौकरी थी। रौशनी और उसके पति विवेक का घर,गांव में भी था, गांव में उसके माता पिता और एक छोटी बहन रहती थी, जिसकी अभी शादी नहीं हुई थी। विवेक ऑफिस जाते वक्त,रौशनी से कह रहा था, “रौशनी, कल सुबह मुझे गांव निकलना है,पिताजी ने बुलाया है, शायद कुछ खास बात है!”

रौशनी ने कहा,”ठीक है!”

रौशनी भी स्कूल में पढ़ाती थी। 

अगले दिन विवेक गांव चला गया। रौशनी अपनी बेटी के साथ शहर में थी। दो दिनों के बाद अचानक उसकी ननंद का फोन आया, और वह रोते हुए कह रही थी,”भाभी आप जल्दी गांव आ जाओ! “

रौशनी सोचने लगी,”आखिर बात क्या है! “और क्या सोचती, पर अपनी बेटी को साथ ले वो बस पकड़कर गांव पहुंची। घर जाकर विवेक का शव देखकर उसके तो होश उड़ गए।जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। 

वह रो-रोकर पूछने लगी,”क्या हुआ ?कैसे हुआ?”

तभी गांव के एक व्यक्ति ने कहा, “सुबह नहा नहाने गया था बिटिया नदी, और पानी में कब डूब गया कोई जान नहीं सका!”

उसके पिता ने तब रोते हुए कहा, “ये डूब नहीं सकता इसे तैरना आता है, इसने जानबूझकर”….इतना कहकर उसके पिता फूट-फूटकर रो पड़े! 

 रौशनी समझ गई थी।

बाद में उसे पता चला,  उसकी बहन का रिश्ता आया था, और लड़के वालों की मांग बहुत थी, ऐसे कितने रिश्ते आए और दहेज के वजह से टूट चुके थे,…पर यहाँ, लड़का लड़की एक दूसरे को पसंद कर चुके थे, बहन वहीं रिश्ता करना चाहती थी,….पर लड़के के पिता की मांग बहुत ज्यादा थी…..जो विवेक पूरा करने में असमर्थ था। 

रौशनी वापस लौटी अपनी ननद को साथ लेकर शहर चली आई। 

विवेक के ऑफिस वाले उससे मिलने आ रहे थे। 


रौशनी को यह बात पता थी कि, विवेक के ऑफिस में एक कर्मचारी भी है, जो कि किन्नर है,जिसका नाम था महक। वो भी उससे मिलने आई थी।

विवेक से उसकी अच्छी दोस्ती थी। 

वह रौशनी से मिलने आई और कहने लगी, “विवेक बहुत अच्छा इंसान था ,और हमेशा ऑफिस में उसकी मदद किया करता था, वह दुख जताने लगी,उसने बताया कि, वो ऑफिस के सामने चाय बेचती थी, विवेक उसके पास चाय पीने आता था, फिर जब उसे बात बात में पता चला की महक पढ़ी लिखी है, तो उसने उसकी नौकरी ऑफिस में खूब संघर्ष करके लगवा ही दिया, महक की नौकरी लगवाते वक्त उसे ऑफिस में कितनी बातें भी सुननी पड़ी।”

आज समाज में वो काबिल है,उसका कोई स्थान है तो विवेक की वजह से,ये सब बातें रौशनी को पता नहीं थी, आज उसे पता चला,बस उसे इतना ही पता था कि,दोनों की अच्छी दोस्ती है। 

फिर रौशनी ने कहा अब मैं चाहती हूं कि, अपनी ननद की शादी कर दूं,ताकि विवेक की आत्मा को शांति मिले!” कह कर रोने लगी। 

तब महक ने कहा बहन, “मेरी बात मानो,शादी मत करो, इसकी नौकरी मैं लगवा दूंगी,प्रयास करूँगी और तुम भी प्रयास करो,इसे कहीं काम मिल जाए,शादी तो फिर हो ही जाएगी,…..तुम अपनी ननद को स्वावलंबी बनाओ…..मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं…..विवेक भाई का एहसान है मुझ पर, मैं जिंदगी भर नहीं भूल पाऊंगी….तुम खुद को कभी अकेला मत समझना!”

आज रौशनी को लगा कि इस अनजान शहर में उसे बहुत बड़ा कोई सहारा मिल गया हो,..जो उसके लिए एक पैर से खड़ा है। 

 

स्वरचित अनामिका मिश्रा 

झारखंड जमशेदपुर

 

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