“स्वार्थी संसार ” – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

कल रात मैंने नींद की बहुत सारी गोलियां खा ली।थोड़ी देर बाद जोरों की प्यास लगी, एक हिचकी आई और पिंजरे का पंछी उड़ गया ।मै अब उन्मुक्त आकाश की ओर जा रही हूँ ।मेरा शरीर निर्जीव हो कर पड़ा है ।सुबह घर के लोग आकर देखेंगे तो हाय तोबा मचेगी, फिर रोने धोने का नाटक शुरू होगा ।

इस जीवन से तंग आ गई थी मै।अच्छा भरा पूरा घर में जब ब्याह कर आई थी तो सबने हाथों हाथ लिया था ।अपने नसीब पर बहुत इतराती रही मै ।पिता जी तो एक साधारण स्कूल मास्टर थे ।बहुत नेक और मिलनसार ।उनके स्वभाव के कारण उनके एक प्रिय मित्र ने अपने बेटे के लिए मेरा हाथ मांग लिया था ।

ससुराल अच्छा और संपन्न था।अतः जेवर और भारी, कीमती साड़ी में लदी रहती मै।माँ पिता जी कभी आते तो देख कर फूले न समाते ।कितने अच्छे घर में गयी है मेरी बिटिया ।हँसते खेलते दो वर्ष बीत गया ।मै दो दो साल के अन्तराल में चार बेटे की माँ भी बन गई थी ।फिर थोड़ा बड़े हुए ,और जब स्कूल यूनिफॉर्म में एक साथ चारो भाई निकलते तो पति तो खुश होते ही,

दादी भी बलैयां लेती ” अहा!कैसे राजकुमार से दिखते हैं चारों भाई ।सुन कर मुझे भी बहुत अच्छा लगता ।चारो भाई मेरे लिए भी लड़ते ” अम्मा के पास  मुझे सोना है “पतिदेव कहते “मालती,तुम्हारे ये चारों बेटे तुमहारा बहुत खयाल रखेंगे जब मै नहीं रहूँगा तब भी “।”ऐसा क्यों कहते हैं जी,भगवान न करे मुझे ऐसा दिन देखना पड़े

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“मै अपने पति का मुंह बंद कर देती ।फिर ऐसा ही एक दिन आ गया ।बड़े बेटे का जन्म दिन था।कुछ खास दोस्तों को दावत दिया था ।खूब तैयारी के साथ जन्म दिन मनाया गया ।बारह बजे तक सबलोग चले गये ।फिर अपने बेटे से उनके पिता ने खूब गपशप किया, बहुत सारे गिफ्ट लाये थे।सबको दिया ।बच्चे खुश होकर सोने चले गये ।रात के एक बजे इनहोने कहा- सीने में दर्द और

भारी पन लग रहा है, बेचैनी भी हो रही है “मैंने कहा “गैस हो गया होगा, सो जाईए “फिर ये एकदम चैन की नींद हमेशा के लिये सो गये ।मुझे कुछ पता नहीं चला ।सुबह उठाने गई तो एकदम शांत पड़े थे।फिर घर में रोना धोना मच गया ।मेरी दुनिया उजाड़ हो गई थी ।सासूमा बेटे के चले जाने के गम में एकदम चुप हो गयी ।हमसब हँसना भूल गए ।

एक माँ के लिए सबसे बड़ा दुख होता है अपने सामने संतान का चले जाना ।छः महीने के बाद सासूमा भी चली गई ।मै अपने बच्चों के साथ अकेली हो गई ।जीवन यापन के लिए बैंक में नौकरी ज्वाइन कर ली थी ।घर और बच्चों के देखभाल के लिए एक सहायिका सावित्री को रख लिया था ।

वह और उसकी माँ बहुत दिनों से हमारे यहाँ काम कर रही थी।बहुत भरोसे मंद थी वह।अब दिन तो किसी तरह कट ही रहा था।बच्चे भी बड़े हो गये पढ़ाई में अच्छे थे तो चारो की नौकरी भी जल्दी ही लग गई ।फिर एक से एक कन्या के पिता हमारे पास दौड़ लगाने लगे।।बड़ा बेटा अपनी सहकर्मी को एक दिन घर ले आया

” अम्मा, यह निधि है, हमदोनों शादी करना चाहते हैं, तुमहारी रज़ामंदी चाहिए ” मै क्या कहती।बेटे की पसंद का  सवाल था।स्वीकृति दे दी।बहू कुल मिलाकर ठीक ही थी।फिर अगले साल मंझला बेटा विजातीय लड़की से खुद ही मंदिर में जाकर शादी रचा लिया।मेरी सहमति की कोई जरूरत नहीं समझी ।

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अब बाकी दोनों की शादी मैंने खूब देख सुन कर, सुन्दर लड़की से कर दिया ।चार बहुएं घर में आ गयी।मेरी उम्र भी बढ़ती गई ।मै बीमार रहने लगी थी ।मुझे सेवा की जरूरत होने लगी ।तभी एक दिन घर में विस्फोट हो गया ।शाम को मै अपने कमरे में लेटी हुई थी ।चारो अपनी पत्नी को लेकर आये ।

और फैसला सुना दिया कि हम घर का बंटवारा चाहते हैं ।घर अच्छा और बड़ा था।मैंने कहा ” जैसा ठीक समझो” पर मेरा क्या होगा? चारो एक दूसरे का मुंह देखने लगे।फिर अपनी पत्नी के साथ अन्दर गये ।मंत्रणा हुई ।फैसला किया कि चारो भाई माँ को एक एक महीने रखेंगे ।घर के साथ मेरा भी बंटवारा हो गया था।

मै उसदिन अपने पति को याद करके बहुत रोयी।आँसू पोछने के लिए कोई नहीं था।मै सबके पास बारी बारी से लुढ़कती रही ।दुख और क्षोभ से मैंने बिस्तर पकड़ लिया ।मुझ पर किसी का ध्यान नहीं  था।सब अपनी दुनिया में मस्त थे।समय का ध्यान नहीं था।किसी समय सूखी रोटी, और बचा हुआ सब्जी आगे पटक दिया जाता ।

बहुएं तो खैर पराई थी,बेटे तो अपना खून थे।उनको भी माँ की चिन्ता नहीं थी ।पहनें हुए कपड़े मैले हो जाते, खुद की ताकत नहीं थी धोने की।बहू साफ करती तो चार बात सुनाती ।एक दिन उठने की कोशिश में ठोकर खाकर गिर गई तो पैर में फ्रैक्चर हो गया ।अब मैं खाट पर पड़ी हुई राह देखती कि कब खाना मिलता है ।

एक दिन भूख के मारे तबियत खराब होने लगी ।पुकारा “बहू, कुछ खाने को दे दो बेटा, बहुत भूख लगी है ” मंझली के पास थी उस समय ।वह चिल्लाते हुए आई”जब देखो तब भूख लगी रहती है आपको, कमाना पड़ा तो पता लगेगा “अभी कुछ नहीं है घर में ।वह चली गई ।उस दिन संझले की पारी थी शाम को जाना था

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इसलिए सोचा कि अब वहां खाना तो मिलेगा ही ।मंझली क्यो अपनी रोटी बरबाद करे।मेरी आखों से भी कम दिखने लगा था ।और नींद भी नहीं आती थी तो छोटे बेटे को कहा ” बेटा, किसी डाक्टर से बोलकर नींद की दवा ला दो ।रात भर सो नहीं पाती” अच्छा अच्छा ठीक है, कहकर वह चला गया ।चारो बहू आपस में मंत्रणा करने लगी ” कब जान छूटेगी इस बुढ़िया से,

जीना मुश्किल कर दिया है ।रोज इनकी गन्दगी साफ करो तब जाकर हमे खाना नसीब होता है ” बेटा नींद की दवा ला दिया ।”अम्मा एक ही गोली खाना, जब नींद नहीं आये तब” ” हाँ बेटा ठीक है ” मैंने कुछ फैसला कर लिया मन में ।आज सबके सारे दुःख दूर करने के लिए यही ठीक रहेगा ।

रात हुई ।सब सोने चले गये ।मैंने एकसाथ दस गोली खा लिया ।सबको चैन आ जाएगा, सोचकर पति के तस्वीर को प्रणाम किया ।” मुझे माफ कर देना, मेरे लिए बस यही एक रास्ता बचा है

” लगा पति ने आशीर्वाद दिया है ।फिर मै सोने की कोशिश करती रही और हमेशा के लिये सो गये ।इस दुनिया में मेरे लिए यह संसार स्वार्थी हो गया था।जीने का कोई मतलब नहीं रह गया है ।चलो अच्छा हुआ ।सबको छुट्टी मिल गई ।सुबह हो गयी ।मेरा निर्जीव शरीर देख कर हाय तोबा मचा है ।लेकिन अन्दर ही सब खुश होंगे ।मै भी खुश हूँ ।आजाद हूँ ।

—उमा वर्मा, नोएडा से, स्वरचित, मौलिक ।

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