अरे—- माला कब तक उदास होकर बैठी रहोगी! उठो शाम हो गई चाये तो पिला दो माला के पति नीरज जोर से आवाज देते हुए बोलते हैं—– माला एकदम उठकर खड़ी हो जाती है अपने थके–
थके कदमों से किचन में जाकर चाय बनाने लगती है! माला चाय लेकर आती है साथ में प्लेट में बिस्कुट भी टेबल पर रख देती है नीरज—- जैसे ही माला से कहते हैं—— चलो अपन दोनों चाय पीते हैं! माला फूट फूट कर रोने लगती है——- रोते-रोते बोलती है कितना सूना सूना घर लग रहा है……?
नीरज समझदारी से काम लेते हैं अरे—– मन दुखी मत करो! जिंदगी की यही रीत है? अपने बच्चे को पढ़ा लिखा कर बड़ा कर दिया शादी करदी और एक पोता भी हो गया भरा पूरा परिवार था—– लेकिन अब बेटे को तो नौकरी में प्रमोशन मिला है! तो बाहर तो जाना ही है! अपन भी कब तक उनके साथ में रहेंगे हां अपना 5 साल का पोता हर्ष की शैतानियों से घर चहकता रहता था उसकी प्यारी प्यारी बातें याद आती रहेंगी——- चलो कोई बात नहीं—-
कभी-कभी तो अपन मिल आया करेंगे माला अपने मन को शांत करो? सुबह जब बेटा विवेक और बहू मिताली अपने पोते हर्ष को लेकर जा रहे थे तब से ही मेरा मन भी बहुत भारी है! लेकिन मैं— ना– रो सकता हूं! ना कह सकता हूं! आखिर आदमी हूं ना मुझे भी बुरा लगता है।
अच्छा माला सुनो—— कल पास में जो मंदिर है वहां पर प्रवचन और सत्संग होते हैं और सुंदरकांड भी होते रहते हैं कल से अपन उसमें चला करेंगे वहां 1 घंटे सबसे मिलेंगे और पूजा पाठ में मन लगाएंगे! ठीक है ना—- बस फिर क्या था दूसरे दिन से माला और नीरज दोनों ही शाम के टाइम मंदिर जाते और सत्संग सुनते, कभी-कभी—–
सुंदरकांड पढ़ते ऐसे ही दिन निकलते गए पर घर में आते ही उन्हें अपने पोते हर्ष की याद आने लगती थी बहू- बेटे को गए हुए भी 15 दिन से ऊपर हो गया था बेटे का फोन भी आ गया था कि अब तो हमारा घर भी जम गया है, सामान भी सेट हो गया है, हम भी नौकरी पर जाने लगे हैं एक महीने बाद नीरज माला से बोलते हैं!
माला तैयारी कर लो—– चलो अपन कल अपने पोते से मिलकर आते हैं अरे—— बेटे बहु को फोन तो कर लो नीरज बोलते हैं फोन की क्या जरूरत है? अपना ही तो घर है! उनको सरप्राइस देंगे वह खुश हो जाएंगे—– चलो ठीक है, चलते हैं——-
माला खुश होकर रात को ही अपने और अपने पति के कपड़ों को जमा कर अटैची में रख लेती है दूसरे दिन सुबह 9:00 बजे ट्रेन थी ट्रेन में बैठे-बैठे माला अपने ख्यालों में खो जाती है——- कि हम दोनों पति-पत्नी ने अपने बेटे को कितने लाड़-प्यार से पाला था जब विवेक हुआ था खूब खुशियां मनाई थीं उसकी परवरिश में कोई कमी नहीं रखी और उसकी पढ़ाई-लिखाई अच्छे से अच्छे स्कूल में कराई देखते देखते बेटा विवेक बड़ा हो गया और इंजीनियर बन गया।
एक अच्छा रिश्ता देखकर अच्छे परिवार की लड़की मिताली से बेटे की शादी भी करदी—– बेटे की शादी के 1 साल बाद ही घर में पोता हर्ष भी आ गया— अब तो खुशियां और दोगुनी हो गईं उस समय मिताली नौकरी कर रही थी उसे सबसे ज्यादा अपने सास- ससुर की जरूरत थी ताकि हर्ष को घर का माहौल मिले और अच्छे संस्कार भी माला और नीरज दोनों को ही——-
अपना पोता बहुत प्यारा था! मिताली के ऑफिस जाने के बाद पूरे दिन हर्ष को वही संभालते रहते थे वैसे भी नीरज—– ऑफीसर पोस्ट से रिटायर्ड हुए थे अच्छी खासी तनख्वाह थी, घर का मकान था, कोई कमी नहीं थी, इसलिए अपने पोते हर्ष के लिए खूब बढ़िया-बढ़िया महंगे से महंगे खिलौने और कपड़े लाते रहते थे।
देखते देखते हर्ष 5 साल का हो गया अब बहू मिताली की कंपनी में भी कुछ घाटा हो गया था! इस कारण उसकी नौकरी छूट जाती है! और वह घर पर ही रहने लगती है! लेकिन इस बीच ही विवेक बेटे का भी प्रमोशन हो जाता है और वह भी मिताली से कह देता है
अब बड़े शहर में सेटल होना पड़ेगा—— अब तुम नौकरी मत करना हर्ष को कौन देखेगा? यहां तो मम्मी पापा हैं! मिताली को भी समझ में आ जाता है—- बस ऐसे ही समय निकल गया और आज हमारा बेटा दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया इतने में ट्रेन रुक जाती है—— माला अपने विचारों से बाहर आती है—- नीरज बोलते हैं कोई कुली करते हैं इतने में कुली भी आ जाता है।
नीरज अपने मोबाइल में अपने बेटे का पता देखते हैं कि दिल्ली में मेरा बेटा कहां रहता है उसी पते पर टैक्सी कर दोनों पति-पत्नी नीरज और माला अपने बेटे के पास खुशी-खुशी चल देते हैं जब नीरज और माला अपने बेटे के घर आते हैं—- और दरवाजे पर बेल बजाते हैं! इतने में मिताली दरवाजा खोलती है साथ में उनका पोता हर्ष खड़ा था——–
हर्ष देखकर दादा- दादी से चिपक जाता है! पर मिताली एकदम अन- मनी सी उन्हें देखकर बोलती है अरे पापा मम्मी आपने बताया नहीं आप आ रहे थे! अरे—– मेरे बेटे का घर है! इसमें बताने की क्या बात है? सरप्राइस देना चाहते थे अपने पोते से अचानक—-से मिलना चाहते थे! मिताली उन्हें बैठक में बिठाकर अंदर चली जाती है और पानी लेकर आती है फोन पर अपने पति विवेक को बताती है।
शाम को जब विवेक आता है तब वह भी एकदम से पापा मम्मी को देखकर खुश नहीं होता और बोलता है अरे आप लोग अचानक आ गए——- नीरज एकदम से बोलते हैं बेटा मैं तो तुमसे मिलने आया हूं—— इसमें अचानक की क्या बात है? सरप्राइस देना चाहता था! यही हमसे बहू ने बोला! क्या हमारे आने से खुशी नहीं हुई? नहीं नहीं पापा ऐसी बात नहीं है मिताली भी
आजकल थक जाती है यहां पर तो मेड भी काम करने के बहुत पैसे मांगती हैं! मिलती पर काम भी बहुत पड़ जाता है! अरे तो हमारे आने से क्या काम बढ़ गया? जब मिताली नौकरी कर रही थी—- और तुम भी नौकरी कर रहे थे——- तब दिन भर तुम्हारी मां हर्ष को संभालती थी यही कि हमारा पोता है! और मिताली ने आराम से नौकरी की! जब तक हमारी जरूरत थी तब तक तुम्हें हमारी कमी महसूस हुई यही तो “स्वार्थी संसार” है कि आज बाहर वाले तो छोड़ो घर के बेटे बहु को भी मां-बाप बोझ लगने लगते हैं! जब तक मतलब था तब तक तुम्हें हम दोनों अच्छे लगते रहे?
माला और नीरज को आए हुए दो-तीन दिन ही हुए थे कि मिताली उनसे ठीक से बोलती भी नहीं थी और हर्ष को भी उनके पास नहीं जाने देती थी यह देखकर माला को बहुत बुरा लगा माला ने कहा हर्ष को तुम हमारे पास क्यों नहीं खेलने देतीं—– मिताली और विवेक दोनों ही बोलते हैं अरे—- उसकी अभी पढ़ाई शुरू करवाने वाले हैं अगर वह आपके पास खेलता रहा तो उसका मन पढ़ने में नहीं लगेगा और आपके लाड़-प्यार में बिगड़ जाएगा यह सुनकर माला और
नीरज को बहुत गुस्सा आता है और वह बोलते हैं बेटा एक बात ध्यान रखना अगर—- हम लाड़-प्यार में अपने पोते को बिगाड़ सकते हैं तो तुम्हें भी कब का बिगाड़ दिया होता और तुम्हें पढ़ाते- लिखाते नहीं खेलते रहते तुम्हारे साथ—- और ना तुम इंजीनियर बन पाते चलो ठीक है—-? हम तो यहां से जा रहे हैं! लेकिन जब यह तुम्हारा बेटा बड़ा हो जाएगा तो यह भी ऐसा ही “स्वार्थिपन” देगा और इसी को “स्वार्थी संसार” बोलते हैं! यह बात ध्यान रखना जैसा जैसा व्यवहार तुम अपने माता-पिता के साथ कर रहे हो वैसा ही व्यवहार तुम्हारे साथ तुम्हारा बेटा भी करेगा नीरज अपना ट्रेन का टिकट बुक कर लेते हैं और माला को लेकर वापस अपने शहर इंदौर आ जाते हैं।
हर्ष अपने दादा- दादी से बहुत प्यार करता था वह उन्हें जाता हुआ देखकर—– रोता रह जाता है! कुछ दिनों बाद विवेक और मिताली को भी लगता है कि पापा मम्मी सही कह रहे थे—–! जब तक हमारा काम था मिताली नौकरी करती रही तब तक पापा मम्मी का साथ अच्छा लगा हमको ऐसा स्वार्थी नहीं बनना चाहिए यह सोचकर वह तुरंत पापा मम्मी को लेने चले जाते हैं!
माला और नीरज जब अपने बहू बेटे को देखते हैं तो खुश तो हो जाते हैं लेकिन——– उनके कहने पर उनके घर जाने को तैयार नहीं होते—— बहू बेटे माफी भी मांगते हैं! पर वह बोलते हैं बेटा “हमारा भी आत्म सम्मान है”! हम भी समझदार हैं, नीरज बोलते हैं जब तुम्हारा मन हो तुम ही हमारे पास आजाना जो तुमने अपने माता-पिता के साथ स्वार्थ दिखाया इसी को “स्वार्थी संसार” कहते है
सुनीता माथुर
अप्रकाशित मौलिक रचना
पुणे महाराष्ट्र