स्वार्थी संसार – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

एक साल बाद अंशुल ने अपने माता-पिता को फोन करके बताया था कि उसका और अंजली का तबादला हैदराबाद हो गया है ।

इस बात को जबसे सुनीता ने सुना है उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे । वह पागल यह भूल गई है कि उसके बेटे ने एक साल तक उसकी खोज खबर नहीं ली थी । वह जब भी खुद होकर फोन करती थी तब भी काम का बहाना बनाकर फोन रख देता था । आज खुद होकर फोन करके खुशी खुशी बता रहा था कि माँ मैं हैदराबाद आ रहा हूँ ।

पुनीता पूरे घर में घूम घूमकर देख रही थी कि अंशुल को कौन सा कमरा देगी । सुनिए आप इस तरह से चुप्पी साधे बैठे हुए हैं मुझे सलाह दीजिए कि उस कमरे से सामान निकालकर कहाँ रखूँ ।

मैंने कहा कि अभी से क्यों बेकरार हो रही हो अभी समय है तब तक सोच लेंगे कि उन्हें कौनसा कमरा देना है ।

पुनीता- वह क्या कहते हैं कि असल से सूद प्यारा होता है वैसे ही मुझे नील का इंतज़ार है जिसे हम अपने पास रखेंगे उसकी देखभाल करेंगे जब हमारे बच्चे ऑफिस चले जाएँगे ।

मुझे जो डर था वही हो रहा था । अंशुल बहुत बातूनी और औरों को इंप्रेस करने में माहिर है ।

जब अंशुल छोटा था तब माँ के आगे पीछे खूब घूमता रहता था । वह माँ को सपने दिखाता था कि माँ जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तब बहुत बड़ी नौकरी करूँगा और आपकी हर इच्छा पूरी करूँगा आप अपना लिस्ट लिख कर अभी से रख लीजिएगा ।

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 माँ बिचारी उसकी बातों से बहुत खुश हो जाती थी और अपने बेटे की बातों पर विश्वास कर बैठी थी । अंशुल की पढ़ाई ख़त्म होते ही उसकी बैंगलोर में नौकरी लग गई थी ।

पुनीता भी खुश और मैं भी खुश हो गया था क्योंकि मेरी रिटायरमेंट को अभी चार साल और थे ।

मैंने सोचा था कि मेरे रिटायरमेंट के पहले ही बेटा भी सेटिल हो गया है तो मुझे किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होगी । पुनीता को घूमने का बहुत शौक है ।

जब से हमारी शादी हुई है घर की ज़िम्मेदारियों के कारण हमें कहीं घूमने जाने का समय नहीं मिल पाता था । वह हमेशा मुझे ताने देती रहती थी कि शायद मेरे घूमने की इच्छा एक सपना बनकर रह जाएगी ।

मैं उसके ताने सुन कर हँस देता था परंतु मन ही मन मैंने प्लान बना कर रख लिया था। अंशुल बैंगलोर में नौकरी करता तो था पर सारे पैसे वैसे ही खर्च भी कर देता था । जब पुनीता उसे पैसे बचाकर रखने के लिए समझाती थी तो कहता था कि अभी मुझे ऐश करने दो माँ अभी से बचत की क्या ज़रूरत है।

उस दिन को मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ जब मेरे बचपन का दोस्त जयपाल मेरे घर आया था । उसकी बातों से पता चला कि उसकी भी एक बेटी है जिसके लिए वह रिश्ते ढूँढ रहा है । जब मैंने उससे अपने बेटे के बारे में बताया तो वह खुश हो गया और कहने लगा कि अपने बेटे से पूछ लेना उसे हमारी बेटी पसंद आ गई तो हम उन दोनों की शादी की बात आगे बढ़ाएँगे।

पुनीता कहने लगी कि हमारा बेटा हमारी बात को नहीं टालेगा हम उनके घर चलकर उनकी बेटी को देख कर आते हैं ।

हम उनके घर गए । उनके घरबार और बेटी को देखकर आ गए और अंशुल को उसका फोटो बयोडेटा सब भेज दिया ।

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उसके पास से दस दिन के बाद भी कोई जवाब नहीं आया और एक दिन उसके पास से एक निमंत्रण पत्र मिला जिसमें लिखा था कि अंशुल वेड्स अंजली ।

हम दोनों को शॉक लग गया था । मुझे तो लगा कि मैं अपने दोस्त को मुँह कैसे दिखाऊँगा । जयपाल अंदर आकर कहने लगा कि यह सब आम बात है तुम फिक्र मत करो मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं सोचूँगा । वह तेरा बेटा है हमें तो उन्हें माफ करना ही पड़ेगा इसलिए तुम भाभी को लेकर शादी में जाकर आओ ।

हम दोनों वहाँ मेहमानों के समान एक कोने में बैठे हुए थे । शादी के होते ही हम वापस आ गए थे ।

उनकी शादी के हुए अभी दस महीने हुए थे कि उसने फोन पर बताया था कि उसे बेटा हुआ है एक बार भी नहीं कहा कि आप दोनों आकर अपने पोते को देख लीजिए ।

आज फोन पर माँ से कह रहा था कि माँ आपके पोते नील को डे केयर में छोड़कर जाना पडता है । हम बहुत दुखी हुआ करते हैं । जब हम दोनों का तबादला हैदराबाद हुआ तो हम दोनों बहुत खुश हो गए थे कि अब हमें नील को डे केयर में भेजने की जरूरत नहीं है । यह सुनते ही पुनीता सपने देखने लगी थी जैसे वह अपने पोते के साथ समय बिता रही हो ।

अंशुल पहले आ गया था अंजलि पंद्रह दिन बाद आने वाली थी । अंशुल के आने के बाद पुनीता उससे कह रही थी कि इस घर में जिस भी कमरे में तुम रहना चाहते हो बोल दो मैं उसे तुम्हारे रहने लायक़ बना दूँगी ।

मैंने कहा कि जल्दी क्या है हम दोनों थोड़ा घूम फिरकर आते हैं फिर कमरा सजा लेंगे । चल अंशुल चलते हैं कहते हुए उसके साथ निकल पड़ा ।

हम दोनों एक कॉफी शॉप में बैठ गए उससे पूछा कि तुम्हारा ऑफिस कहाँ है। उसने कहा कि हायटेक सिटी में है। वो वह तो हमारे घर से बहुत दूर है वहाँ तक पहुँचने में कम से कम डेढ़ दो घंटे तो तो लग जाएँगे ।

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अंशुल- जी पापा हम दोनों सुबह सात बजे निकलकर जाएँगे और रात को वापस आते तक हमें दस बज जाएँगे ।

मैंने सर हिलाते हुए कहा कि ओके फिर तुम्हारे बेटे को कौन देखेगा ।

अंशुल – वही तो पापा बैंगलोर में उसे डे केयर में रखना हमारी मजबूरी थी लेकिन अब तो माँ है ना वे उसे देख लेंगी।

मैंने कहा कि अंशुल इस स्वार्थी संसार में रहते हुए तुम भी स्वार्थी हो गए हो ।  याद है तुम नौकरी करते हुए पूरे पैसे अपने लिए खर्च करते थे शादी अपनी पसंद से की । पोता हुआ तो सिर्फ़ खबर दी थी पर आने के लिए नहीं कहा साथ ही एक साल से एक बार भी नहीं पूछा कि आप दोनों कैसे हो आज जब जरूरत पड़ी तो माँ की याद आ गई है ।

तुम्हें मालूम है तुम्हारी माँ की उम्र क्या है उसकी तबीयत कैसी है नहीं ना उसे शुगर की बीमारी है बी पी है ऐसे में वह इतने काम कैसे करेगी ।   वैसे भी मैं रिटायर होने के बाद तुम्हारी माँ को यात्रा पर ले जाना चाहता हूँ हम अपनी ज़िंदगी जीना चाहते हैं ।

तुम सोच रहे होगे ना कि अभी हम तुम्हारी मदद नहीं करेंगे और बाद में बुढ़ापे में तुम्हारे पास आकर रहने लगेंगे । ना बेटा तुम उसकी फिक्र मत करो मेरे रिटायरमेंट के पैसे और पेंशन से हम कहीं भी आश्रम में जी लेंगे ।

हम दोनों के आते ही पुनीता ने कहा कि चल बेटा तुम्हारा कमरा ठीक कर देंगे ।

उसने कहा कि माँ हम दोनों का ऑफिस यहाँ से बहुत दूर है इसलिए मैं वहीं ऑफिस के पास ही घर किराए पर ले लूँगा आप फिक्र मत कीजिए ।

पुनीता उदास हो गई थी परंतु मैं बहुत खुश था क्योंकि मैं पुनीता को इस उम्र में किसी की चाकरी करते हुए नहीं देखना चाहता था । वह भी उन लोगों के लिए जो स्वार्थी हैं । अपने इस निर्णय पर मुझे गर्व महसूस हुआ ।

के कामेश्वरी

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