आज मधुलिका बहुत खुश थी, बेटी अक्षरा को लड़की वाले देखने आए थे और पसंद करके शगुन के रुपये देकर गये थे। घर मे खुशियां छाई थी।
दोनो पति पत्नी अपने काम मे व्यस्त थे, पर दिमाग मे शादी की रूपरेखा बन रही थी। अचानक मधुलिका ने वर्मा जी से पूछा, “आपकी तो सब तैयारी है ही, बैंक से एफडी कैश करा लीजिये, अब जरूरत पड़ेगी।”
वर्मा जी आश्चर्य से मधुलिका को देखने लगे, कुछ बोल नही पाये, सिर हिलाकर निकल लिये।
अपने कमरे में बैठकर यादों में खो गये, 1987 में वो बैंक में ही थे, और एक पड़ोसी दोस्त रामेश्वर अक्सर आकर उनके साथ गप्पे मारते थे, एक बार बहुत दुखी होकर बोले, कितनी कोशिश कर रहा हूँ, नौकरी ही नही मिलती। उम्र का ग्राफ रुकता नही।
उन्होंने ही उससे कहा था, व्यापार कर लो, कुछ पैसे हैं या कोई डिपाजिट है, उससे लोन ले लो।
और उसने रुआंसे शब्दो मे कहा, नही यार, मॉ, पापा ने शादी भी करा दी, अब तो कुछ नही बचा। तुम्हारे पास है तो दे दो, व्यापार जैसे ही चल पड़ा, मैं थोड़ा थोड़ा करके वापस दे दूंगा।
और वर्मा जी पिघल गये, अपनी बेटी के लिए एफडी एक लाख रखे थे, उसपर उन्हें लोन दिलवा दिया। समय आगे बढ़ता रहा, वर्मा जी का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया। कभी कभी हाल मिलता था, कि कपड़ो की दुकान रामेश्वर की चल पड़ी।
दस वर्ष हो गये, आज वर्मा जी रामेश्वर से मिलने उसके शहर चल पड़े।
पहले तो उनके घर की घंटी बजाने पर उनकी पत्नी ही पहचान नही पायी आप कौन। सेठ जी रात को आएंगे, अभी दुकान में हैं।
वर्मा जी ने कहा, दुकान का पता दीजिए।
दुकान में कई ग्राहक थे, देखकर बोले, अरे फ़ोन करके क्यों नही आये।
रामेश्वर तुमने कब नंबर दिया।
वर्मा जी आप भी भूल गये, इतने दिनों में कभी दोस्त की याद नही आयी।
अब वर्मा जी सोचने लगे, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, कितना स्वार्थी हो गया है, भूल ही गया कि मैंने इसकी कुछ सहायता करी थी, दान नही दिया था।
अब धीरे से बताया, बेटी की शादी तय हो गयी, मुझे मेरे एफडी वापस कर दो।
अरे हां, जरूर, पर समय लगेगा, वो मैंने दूसरे लोन में लगा दिया है। फ़ोन नंबर दो, खबर करूंगा।
ठीक है।
और वर्मा जी अपने घर लौटने लगे उनको वो गाना याद आ रहा था, देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इंसान… स्वार्थी दोस्त
#स्वार्थ
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बैंगलोर