स्वर से स्वर मिले – सरला मेहता

” अरे, ये कौन है ? ये तो स्वरा लग रही है। सफेद साड़ी व लम्बी दो चोटियों में कॉलेज आती थी। यथा नाम तथा मधुर आवाज़। सबने उसका नाम लता ही रख दिया था। और आज ये लकदक बनारसी साड़ी व गहनों में पूरी सेठानी लग रही है। ” कोई पहचान वाला देखता तो यही कहता।

सच,नवब्याहता स्वरा को ससुराल में ऐसे ही रहना है। मिया जी की इच्छा है कि बीबी फिल्मी हीरोइन लगे।

सासूजी संगीता चाह कर भी बेटे आयुष को राय नहीं दे सकती कि बहू को उसकी मन मर्जी से रहने दे। किसी को क्या कहे, वो खुद भी तो पतिदेव के आदेशों का पालन करती आ रही है। उसकी रुचियाँ व पसन्द तो मायके की देहरी के अंदर ही छूट गई। बहू की हालत पर तरस खाने के सिवा कोई चारा नहीं। बस अपना भरपूर प्यार ही लुटा सकती है।

” क्या हुआ स्वरा ? क्यों उदास बैठी हो ? उठो, ज़रा अपने घर की भी सैर कर लो। अपने हिसाब से घर का सेटिंग बदलना हो तो आयुष को ज़रूर बताना। “

” क्यों माँ ? घर तो आपने ही सजाया होगा ना। सब अच्छा ही होगा। “

” अरे बिटिया ! तुम्हारे ससुर जी के निर्णय के खिलाफ़ मैं कुछ नहीं कह सकती। ग़लती मेरी ही थी ना। मैं ही उनकी हाँ में हाँ मिलाती रही। मैं नहीं चाहती कि तुम भी कठपुतली बन नाचती रहो। जैसा पति कहे, करती रहो। ” सासू जी इधर उधर देखते हुए धीमे स्वर में कहती है।


स्वरा सोचती है कि चलो घर देख लेने में थोड़ा समय तो बीतेगा। वरना पतिदेव तो आते ही धूम धड़ाके वाली पार्टी या मूव्ही के लिए ले जाएँगे। बैठक पता नहीं कितनी तस्वीरों व उपलब्धियों के प्रतीकों से भरी पड़ी है। अतिथि कक्ष की अहमियत सासू जी पहले ही बता चुकी है। अति निकट के रिश्तेदारों को भी मेहमानों के समान यहीं ठहराया जाता है।  

वह एकांत की तलाश में स्टोर रूम में पहुँच जाती है, ” ओह ! यह क्या, सीतार, हारमोनियम आदि संगीत वाद्य एक कोने में धूल खा रहे हैं। “

      वह कपड़ा लेकर साफ करते करते ही गुनगुनाने लगती है। सासूमाँ को देख कर चौंक जाती है, ” मैं तो…बस यूँ ही। “

        सजल आँखों से वे निहारती हैं, ” अरे ! तुम यहाँ क्या कर रही हो। आयुष को भी बचपन में संगीत बहुत पसंद था। किंतु वह भी धीरे धीरे पापा जैसा हो गया। बिटिया ! तुमने कभी नहीं बताया कि तुम्हें भी यह पसन्द है। “

” माँ ! मुझसे किसी ने पूछा ही नहीं। ” स्वरा, संगीता के छलकते आँसुओं को पोछते हुए बोली।

संगीता गदगद होकर स्वरा को आगोश में भर लेती है। प्यार से सहलाते हुए कहती है, ” मुझे ये विश्वास था कि मेरी धरोहर को मेरी बहू जरूर सहेजेगी। मेरी सासू जी ने तो इसे अटाला ही समझा। आज मेरी खोज पूरी हुई। “

सरला मेहता

इंदौर

स्वरचित

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