स्वाभिमान – सुनीता मुखर्जी “श्रुति”: Moral Stories in Hindi

प्रिया ने नौवीं कक्षा में लेट एडमिशन लिया। पाठ्यक्रम काफी निकल चुका था। क्लास टीचर ने आकाश से प्रिया का कोर्स कंप्लीट करवाने लिए के लिए कहा। आकाश अपने सेक्शन का मॉनिटर था। उसने अपनी नोट्स बुक्स देकर पिछड़ा हुआ काम पूरा करवाने में उसकी पूरी मदद की।

प्रिया को अपने पढ़ाई में कोई भी समस्या होती तो आकाश को ही बोलती, आकाश तुरंत उसकी समस्या हल करने का प्रयत्न करता। आकाश, प्रिया का बहुत अच्छा दोस्त बन गया था। वह अपनी सभी बातें उसके साथ ही साझा करती।

नौवीं कक्षा का रिजल्ट निकल गया। प्रिया के बहुत अच्छे नंबर नहीं आ पाए लेकिन आकाश कक्षा में प्रथम आया। दसवीं कक्षा में बोर्ड एग्जाम होने कारण दोनों खूब मेहनत करने लगे। रिजल्ट आने पर दोनों ने अच्छा प्रतिशत लेकर पास किया।

दोनों ने विज्ञान वर्ग लेकर आगे की पढ़ाई करने का निर्णय लिया। दोनों पढ़ने में अच्छे थे, इंटरमीडिएट भी दोनों ने अच्छा प्रतिशत से पास किया। इसके बाद दोनों ने एंट्रेंस परीक्षा में बाजी मार ली और उन दोनों को टॉप का इंजीनियरिंग कॉलेज मिल गया।

नई जगह, नया माहौल और नया पाठ्यक्रम देखकर दोनों बहुत खूबसूरत थे। पढ़ाई में किसी प्रकार की असुविधा होने पर दोनों आपस में चर्चा करते और समस्या का हल निकालते। देखते- देखते चार साल पूर्ण हो गए।

दोनों का कैंपस प्लेसमेंट हो गया। यहां भी किस्मत ने दोनों का साथ दिया। दोनों एक ही मल्टीनेशनल कंपनी मुंबई में साथ-साथ काम करने लगे।

दो-तीन साल के बाद दोनों के परिवार भी अच्छी तरह से परिचित हो गए थे, इसलिए दोनों के परिवार वालों ने उन्हें वैवाहिक बंधन में बांधने के लिए विचार- विमर्श किया।

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प्रिया, आकाश की काफी पुरानी दोस्ती होने के कारण एक दूसरे की पसंद, नापसंद बहुत अच्छे से समझते थे। जब माता-पिता ने उन्हें वैवाहिक बंधन में बंधने की  पेशकश की तो, उन दोनों ने भी हां कर दी।

काफी धूमधाम से दोनों का विवाह हुआ। दोनों अच्छे दोस्त से पति-पत्नी का सफर तय करते हुए गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया। दोनों बहुत खुश थे। 

हनीमून के लिए कभी नार्वे, कभी लंदन, कभी टोक्यो घूमने के लिए गए। उन्हें देखकर ऐसा लगता था जैसे दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं। दोनों का एक दूसरे के प्रति बहुत प्यार, अपनापन और सम्मान था। 

दोनों में दोस्ती तो पहले से ही थी लेकिन प्यार बाद में हुआ धीरे-धीरे यह रिश्ता और भी मजबूत होता चला गया।

अचानक एक दिन प्रिया का सिर चकराने लगा और मन भी मिचला रहा था। डॉक्टर के पास जाने से बाद पता लगा कि उनके जीवन में बहुत बड़ी खुशखबरी आने वाली है। दोनों दो से तीन बनने वाले हैं, यानी की मम्मी, पापा बनने वाले हैं। उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। 

दोनों ने यह खुशखबरी अपने घरों में बताई, घरवाले सब खुशी से नाचने लगे। और हो भी क्यों ना…! क्योंकि एक नन्हा मेहमान जो आने वाला है।

आकाश प्रिया का बहुत ख्याल रखता था। अक्सर प्रिया की तबीयत खराब होने के कारण ज्यादातर छुट्टी में रहती थी। जब ठीक लगता तब कुछ दिन ऑफिस जाती, लेकिन आकाश उससे ज्यादा से ज्यादा आराम ही करने के लिए कहता।

धीरे-धीरे समय निकलता गया।  प्रिया का नौवा महीना शुरू हो गया था। प्रिया के माता-पिता ने प्रिया को अपने पास बुला लिया। कुछ दिनों के बाद प्रिया ने एक चांद सी बेटी को जन्म दिया। आकाश को इस समय प्रिया के पास होना चाहिए था लेकिन आकाश ने अपने ऑफिस की व्यस्तता बताते हुए आने के लिए मना कर दिया। बोला- समय मिलते ही आ जाऊंगा…!!

प्रिया चार दिनों के बाद डिस्चार्ज होकर घर आई। घर आते ही उसकी दोस्त महिमा का फोन आया। उसने ऐसा क्या कह दिया कि प्रिया ने एक दो ड्रेस पैक करके बैग में डाली और अपनी मांँ से बोली मैं मुंबई जा रही हूंँ। 

मां बोली … कैसी बात करती हो तुम..??

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तुम अभी कहीं जाने के लायक नहीं हो, तुम्हारा शरीर बहुत कमजोर है…!! अभी तुम्हें आराम करने की जरूरत है…!!

बस मांँ मैं दो दिन में वापस आ जाऊंगी तुम बेटी का ख्याल रखना…!

चार दिन की बच्ची का मैं कैसे ख्याल रख पाऊंगी..?? 

कुछ दिन के बाद चली जाना मैं रोकूंगी नहीं..!! लेकिन प्रिया ने जिद पकड़ ली कि मुझे आज ही जाना है…!

प्रिया रास्ते में चलते-चलते यादों के गहरे समंदर में गोते लगाती, तो कभी उनसे उबरती हुई मंजिल के नजदीक बढ़ रही थी।

आकाश उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकता था, और वह भी आकाश के बिना नहीं जी सकती थी।

दोनों ने मिलकर दुनिया के कितने सप्तरंगी सपने देखे थे और उन्हें पूरा करने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे थे। दोनों सफलता की गगनचुंबी छूना चाहते थे सचमुच एक दूसरे के बिना यह संभव नहीं था। एक दूसरे का साथ होने के कारण दोनों में बहुत कॉन्फिडेंस था।

प्रिया ने मुंबई जाकर अपने घर की कॉलिंग बेल बजाई अंदर से एक लड़की ने आकर दरवाजा खोला। प्रिया ने उसे घूरते हुए पूछा  कौन हो तुम…. ??  आकाश ने बेडरूम से लेटे-लेटे ही आवाज लगाई कौन आया है… डार्लिंग! कितना देर लगा रही हो, जल्दी आओ ना डियर…!! 

बडबडाते हुए बाहर आया। बाहर आते ही उसके होश उड़ गए प्रिया तुम…!!

तुम यहांँ कैसे….? तुम तो हॉस्पिटल में थी, अचानक तुम यहां कैसे आ गई..??

वाह! आकाश वाह…! अगर मैं आज नहीं आती तो तुम्हारा यह घिनौना असली रूप कैसे देख पाती…?

वाह…! क्या खूब निभाया तुमने अपना पति धर्म…?

उधर पत्नी का अस्पताल में दूसरा जन्म हुआ है उसकी कोई परवाह नहीं…! 

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तुम यहां पर रंगरलियांँ मना रहे हो..?

आकाश तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। आकाश अपनी सफाई में बोलने लगा, प्रिया तुम्हें कुछ गलतफहमी हुई है। 

हांँ… गलतफहमी जरूर हुई है, तुम्हें समझने में..!

आकाश, प्रिया के पास आकर उससे समझाने की कोशिश करने लगा। 

प्रिया ने उससे आगाह करते हुए कहा- खबरदार….!! अगर मुझे छूने की भी कोशिश की। 

मैं तुम्हारे जैसे व्यक्ति के साथ तो क्या, तुम्हारी परछाई से भी कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती।

आकाश ने प्रिया को समझाने की बहुत कोशिश की। लेकिन वह कुछ सुनना नहीं चाहती।

बात बिगड़ते हुए देख आकाश जोर- जोर से रोने लगा और बोला प्रिया मुझे माफ कर दो मुझसे गलती हो गई…!

तुम इसे गलती नहीं कह सकते, यह सब कुछ तुमने जान-बूझकर किया है। पिछले कई दिनों से यह लड़की तुम्हारे साथ रह रही है यह गलती नहीं हो सकती…?? मैं किसी की बातों पर कभी भी विश्वास नहीं करती, क्योंकि तुम पर मैं अपने आप से भी ज्यादा भरोसा करती थी। अच्छा हुआ तुम्हारी सच्चाई मैंने अपनी आंखों से देख ली।

“तुमने मेरी दोस्ती, मेरे विश्वास, मेरे पवित्र रिश्ते का खून किया है मैं तुम्हें इस जन्म में कभी माफ नहीं कर सकती….!” 

अब तुम्हारे साथ मेरा सिर्फ एक ही रिश्ता है… नफरत का!!  और यह नफरत की दीवार मैं कभी भी गिरने नहीं दूंगी, और न ही अपनी बेटी का मुख तुम्हें कभी देखने दूंगी।

अगर यही गलती मुझसे हुई होती तो क्या तुम मुझे माफ कर देते, प्रिया दहाड़ते हुए बोली। 

आकाश मैंने तुम्हें मुक्त किया। तुम अपना जीवन इसी लड़की के साथ गुजारो या किसी और के साथ…! अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। अपना कुछ जरूरी सामान पैक करके हमेशा- हमेशा के लिए चली गई। 

आकाश घुटनों के बल बैठ गया और हाथ जोड़कर माफी मांगते रहा, लेकिन प्रिया ने एक न सुनी। 

कुछ दिनों के बाद बिना किसी शर्त के दोनों में तलाक हो गया।

– सुनीता मुखर्जी “श्रुति”

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित 

हल्दिया, पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल

#नफरत की दीवार

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