स्वाभिमान – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

फोन की घंटी बज रही थी राखी बाथरूम में थी बाहर आकर देखा तो भाई का फोन था। उसने काल बैंक किया हलो भइया हां राखी कैसे हो भइया ठीक हूं राखी ‌‌‌‌‌‌लेकिन ये बताना था कि मां ठीक नहीं है उनको हार्टअटैक आया था अच्छा अब कहां है मां अपने घर में या अपने पास ले आए हो ।ले आया हूं अपने पास वहां कौन देखभाल करता।

डाक्टर को दिखाया भइया हां दिखा दिया लेकिन उनको देखरेख की बहुत जरूरत है। हां भइया मां तो अपने घर में अकेले ही रहते हैं वहां ठीक से कोई देखभाल करने वाला नहीं है वो जो शकुन्तला रहती है उनके पास उसकी भी अब उम्र हो गई है अब उससे काम होता नहीं है और उसको ठीक से दिखाई भी नहीं देता है ।

हां वो तो है अभी तो मां को यहां ले आया हूं फिर बाद में देखेंगे भाई बोले । देखेंगे क्या अब यही रखो अपने पास इस उम्र में मां वहां अकेली रहती है अपने पास रखिए। हां राखी तुम ठीक कह रही हो 

               उमा और सोमनाथ जी का भरा पूरा परिवार था ।दो बेटे और चार बेटियां थीं।घर में बिजनेस चलता था ।जिसको सोमनाथ और बड़े बेटे ज्ञानेंद्र दोनों देखते थे ।छोटा बेटा प्रकाश को पढ़ने का शौक था उसने पढ़ाई करके इंजीनियरिंग कर ली थी ।उसको बिजनेस में कोई इंट्रेस्ट नहीं था । पढ़-लिख कर वो नौकरी कर रहा था

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अहमदाबाद में।वो अपनी पत्नी और बच्चे के साथ वही रहता था ।बीच बीच में जब कभी कोई जरूरत होती थी तो बहनों की शादी वगैरह होती तो आना जाना होता था।सब बहनें भाई से छोटी थी एक एक करके सब बहनोंकी शादी हो चुकी थी और छोटा भाई अपनी नौकरी  में व्यस्त था।

               इधर बड़े बेटे ज्ञानेंद्र का परिवार भी बढ़ गया था । तीन बेटे थे उनके।अब बड़े बेटे की शादी करनी थी तो जगह की जरूरत पड़ रही थी । ज्ञानेंद्र ने अलग से एक जमीन खरीद ली थी ।उसपर अब मकान बनवा लिया था और अब वही रहना चाहते थे । अभी तक तो सारी जिम्मेदारी बड़े भाई और भाभी ही उठाते आ रहे थे ।

मां पिताजी भी साथ में थे उनकी देखभाल भी लेकिन ‌ वो अपना सभी काम खुद ही करते थे । लेकिन उम्र के साथ अब मां थोड़ी अस्वस्थ रहने लगी थी ।अब उनको थोड़ी देखभाल की जरूरत थी।घर में एक पुरानी नौकरानी थी बहुत सालों से काम कर रही थी । उसके पति ने छोड़ दिया था मां बाप थे नहीं भाई भाभी रखते नही थे

कोई था नहीं बेचारी का तो यही घर पर काम भी करती थी खाती पीती थी और घर में ही एक कोने में पड़ी रहती थी।मां पिताजी की देखभाल भी करती थी। लेकिन अब उसकी भी उम्र हो रही थी ज्यादा काम नहीं कर पाती थी और आंखों से भी कम दिखाई देता था ,मां ने सोचा था कि उसकी आंख का आपरेशन करा दे लेकिन कोई ध्यान ही न‌ देता था।उसका तो कोई सहारा था नहीं।

               धीरे धीरे चारों बेटियों की शादी हो गई और घर में मां पिताजी और बड़े भाई भाभी और उनके बच्चे रह गए। वैसे तो बड़े भइया भाभी सब अच्छे थे । अचानक से मां को कुछ प्राब्लम होने लगा ।

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मेनोपॉज के बाद मां को ब्लीडिंग की समस्या बनी रहती थी जिससे मां को बहुत कमजोरी होती जा रही थी । डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने आपरेशन कराने की सलाह दी । फिर मां का आपरेशन कराया गया बड़ी भाभी ने ख्याल रखा छोटी तो यहां रहती न थी।

                एक दिन सोमनाथ जी ने कहा मैं अपने जीते जी घर पैसा सबका बंटवारा करना चाहता हूं जिससे बाद में तुम दोनों भाइयों में मन-मुटाव न हो । अचानक से बड़ी भाभी को लगा कि देवर जी तो यहां रहते नहीं है और ंनहीं मां पिताजी  की कोई देखरेख करते हैं तो पिता जी बराबर का बंटवारा क्यों कर रहे हैं थोड़ा बहुत दे दे ।

बाकी पर तो हमारा और हमारे बच्चों का हक है इतने सालों से तो सबकुछ हमीं ने किया है देवर जी तो बस मेहमानों की तरह आते जाते हैं । लेकिन ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌पिताजी ने कहा नहीं बंटवारा तो बराबर का होगा तो भाभी नाराज़ हो गई और बोली मैं तो अपने बनाए घर में रही जा रही हूं और अब हम अकेले रहेंगे मां पिताजी को भी अपने साथ ंनहींले जाएंगे बहुत कर लिया

हमने अपनी सारी जिम्मेदारी निभाई अच्छे से लेकिन अब मैं नहीं करुंगी किसी का भी कुछ अब हम अकेले रहेंगे ।ये कहकर वो अपने नए घर में चली गई और मां पिताजी को यही छोड़ गई ।

मां को भाभी की बात बहुत बुरी लगी कि क्या मां बाप बोझ है क्या तुम पर जो नहीं रखोगी साथ में ।अब मैं भी नहीं रहूंगी साथ सारी जिंदगी मैंने खुद अपना सबकुछ किया है स्वाभिमान से जिआ है तो मुझे भी नहीं जाना उनके संग ।

          अभी तक तो मां पिताजी को सहारे की जरूरत नहीं पड़ती थी सबकुछ वो अपना कर लेते थे लेकिन उम्र के साथ अब सहारे की जरूरत पड़ने लगी थी । लेकिन फिर भी मां पिताजी को अकेला छोड़कर भाई भाभी ने मकान में चले गए। मां को भाभी की भी चुभ गई कि अब हम अकेले रहेंगे मां पिताजी के साथ नहीं रहेंगे।

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छोटा बेटा भी कभी कहता नहीं था कि कुछ दिन को ही हमारे साथ चलो। भाभी भाई के घर से जाने के बाद अपना और पिताजी का खाना पीना सब मां ही करती थी। थोड़ा बहुत शकुन्तला हाथ बंटा देती थी । शुरू से ही मां ने घर की काफी जिम्मेदारी स्वयं ही उठाई है तो स्वाभिमान आगे आ गई था कि अब बड़ी बहू साथ नहीं रखना चाहती तो मैं भी साथ नहीं रहूंगी।

                 दो सालों के बाद सोमनाथ जी भी इस दुनिया में नहीं रहे अब उमा जी बिल्कुल अकेले हो गई तब भी कोई बेटा नहीं कहता था कि मेरे साथ रहो। छोटी ने तो बाहर रहकर वैसे भी पल्ला झाड़ लिया था।वो सोचती थी कि बड़े भईया भाभी तो वहां पर है वहीं रखेंगे मां की जिम्मेदारी। लेकिन शायद बच्चे ये भूल जाते हैं

कि मां बाप की तो हर बच्चे की जिम्मेदारी होती है।अब मां बिल्कुल अकेली थी बस वही शकुन्तला रहती थी साथ में। लेकिन उम्र के साथ अब उससे भी काम न होता था।एक समय कुछ खाना बन जाता था बस वही दोनों समय चल जाता था । बड़े भाई के तीन तीन बेटे थे पर वहां से कोई झांकने न आता था ।ये भी न होता था भाभी से कि खाना ही बनाकर भिजवा दें ज्यादा दूरी न थी

एक दूसरे के घर में।बस इसी तरह मां जीवन के सांध्य बेला में अकेले अकेले जिंदगी बिताती रही । बेटियां कहती थी मां अब अबतक अकेले रहोगी भाई के यहां चली जाओ तो मां कहती ं मैं नहीं जाऊंगी तुम्हारी भाभी कह गई थी कि अब हम किसी को साथ नहीं रखेंगे बहुत उठा ली सबकी जिम्मेदारी अब मैं अकेले रहूंगी।अब तो मैं नहीं जाऊंगी उनके यहां ।

         आज मां की शुगर लो हो गई थी जिससे उनको अटैक आ गया था और वो बेहोश हो गई थी । शकुन्तला ने भाई के घर फोन करवा कर किसी से बताया।भाई आए डाक्टर को बुला कर दिखाया उसके बाद भाई मां को अपने घर लाए ।आज राखी को जब पता चला मां की तबीयत खराब है तो वो मां को देखने आई ।

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बाकी बहनें भी आने का प्रोग्राम बना रही थी।राखी ने मां से कहा मां अब आप भाई के यहां ही रहिए वहां अकेले रहती है कोई देखभाल करने वाला नहीं है अब आपको देखभाल की जरूरत है ।

मां बोली नहीं बेटा थोड़ा ठीक हो जाए तो अपने घर चली जाऊंगी यहां नहीं रहना मुझे। अच्छा अच्छा ठीक है मां जब अच्छी तरह से ठीक हो जाना तो चली जाना मां ने भी जिद पकड़ ली थी अपने ही घर में रहगें।मां आप हम लोगों के साथ भी नहीं चलती जब चलने को कहो तो कहती क्या अब बेटियों के घर पर रहूंगी क्या।

               मां करीब एक हफ्ता ही रही होगी कि उनकी मौत हो गई ।बड़ा दुख हुआ जानकर कि मां आखिरी तक यही जिद पकड़े रही कि मुझे अपने घर जाना है।

     दोस्तों बड़े बूढ़ों को कभी कभी अपने बच्चों की ही बात से गहरी चोट पहुंच जाती है । फिर तो उनकी जिद रहती है उसे पूरा करने की । स्वाभिमान को गहरी चोट लग जाती है ‌‌‌‌।उमा जी के साथ भी यही हुआ कि भाभी की बात बिल्कुल दिल से ही लगा बेटी थी कि अब से अकेले ही रह लूंगी लेकिन बहू बेटों के पास नहीं जाऊंगी।

पता नहीं क्यों बच्चे मां बाप को क्यों नहीं समझते।ये नहीं समझते कि बुढ़ापे में उनको बच्चों की जरूरत होती है भाई को भाभी को समझाना था सो तो किया नहीं और अकेले छोड़कर चले गए।जिन बच्चों को मां बाप इतने प्यार से पालते हैं उनको सांध्य बेला में यूं अकेला न छोड़ें ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

21 फरवरी

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