पंखुरी खिड़की में खड़ी थी । आज घनघोर बारिश हो रही
थी । उसके साथ ही उसके मन में भी अंधेरी घटायें घिरी थी । सोच रही ऐसी ही तो बारिश की शाम थी । वह बस का इन्तजार कर रही थी । आज प्रेक्टीकल क्लास देर से छूटी । वह अकेली रह गयी उसकी सहेलियां पहले ही जा चुकी थी । रात होने लगी थी । बारिश के कारण सड़क पर चहल पहल भी कम होने
लगी । उसको अब थोड़ी घबराहट होने लगी । कोई बस व अन्य सवारी भी सड़क पर दिखाई नहीं दे रही थी । उसी समय एक बाइक आकर उसके पास रूकी । उसने देखा कि यह लड़का तो उसी की कालोनी में रहता है पर पता ना क्यों इसके बारे में कोलोनी के लोगों की सोच अधिक सही नहीं जबकि यह अधिक किसी से मिलता जुलता नहीं था ।
उसका नाम शायद पुलकित था । उसने कहा मौसम बहुत खराब हो रहा है। तुम चाहो तो मेरे साथ चल सकती हो मै तुम्हें घर छोड़ दूंगा । उसने कुछ सोचा और वह उसकी बाइक पर बैठ गयी ।
घर पर जब वह पहुँची सब बहुत परेशान थे बारिश ने और अधिक रौद्र रूप अपना लिया था । जब भाई को पता लगा कि पुलकित के साथ आई है तुरन्त वह बोला आज के बाद तुम उससे मिलोगी नहीं पर एक कहावत है कि चिंगारी कभी भी शोला बन जाती है। जितना सबने पुलकित से मिलने को मना किया उतना ही पंखुरी का दिल उसकी तरफ खिंचता गया ।
पता ना पुलकित बातों में कौनसा सम्मोहन था कि वह उसमें फंस गयी और एक दिन रात के अन्धेरे में पुलकित के साथ निकल गयी कटींली राहो पर । पुलकित उसे दिलासा देता रहा कुछ नहीं होगा मेरी मां तुम्हें बहुत अच्छी तरह अपनायेगी मेरी उनसे सारी बात हो गयी हैं । उसे तो पुलकित में ही अपना सारा संसार नजर आरहा था । पुलकित उसे दूसरे शहर में ले गया ।
वहाँ उसका घर था जहां उसकी कोई मौसी रहती थी । जब वह उस घर में पहुँची वहाँ पुलकित ने मौसी से मिलाया । मौसी का नाम था कमला बाई । उसकी तरह वहाँ और भी लड़कियां थी उसे कुछ अजीब सा माहौल लगा पर पुलकित ने उसे समझाया की मौसी अकेली रहती थी तब इन्होंने एक संस्था खोल ली है
जिसमें ये सब अनाथ और बेसहारा लड़कियां रहती हैं तथा काम करती हैं। उसने पुलकित की बात पर विश्वास कर लिया । पुलकित मौसी के पास छोड़ 4 दिन बाद आने की बोल कर चला गया । मौसी ने उसे एक कमरे में भेज दिया वहाँ पहले से ही तीन लड़कियां और थी । वह लड़कियां उसे देख कर हंसने लगी और बोली कमला बाई की नयी चिड़िया ।
वह कुछ समझ नहीं पाई । रात को जब उसको तैयार होने को कहा मौसी बोली आज तेरी शादी है नीचे आजा । जब वह नीचे पहुँची तो पुलकित तो नहीं था पर किसी और के हाथ उसे सौंप दिया वह बहुत रोई गिड़गिड़ाई पर जब कमलाबाई ने कहा पुलकित से 50 हजार में खरीदा है तुझे । बस वह एक जिन्दा लाश बन गयी ।
आज भी बारिश उसी दिन की तरह थी पर उस दिन वह सड़क पर बस का इन्तजार कर रही थी और आज खिड़की पर पता नहीं किसका । उसी समय कमलाबाई की आवाज आई अरे कहां मर गयी पंखुरी ग्राहक आगये हैं कुछ खातिर दारी करो सेठ की । पंखुरी अपने दिल के ज्वालामुखी में स्वयं को ही तलाश रही ही थी ।
स्वयं रचित
#बरसात
डा. मधु आंधीवाल
अलीगढ़