” नीतू..तू अपना मनहूस चेहरा लेकर फिर मेरे सामने आ गई…चल भाग यहाँ से…।” कल्पना ज़ोर-से अपने जेठ की बेटी पर चिल्लाई।चाची की कड़वी बात सुनकर नीतू का मन आहत हो गया।वो कमरे में जाकर रोने लगी तभी उसकी दादी आ गई और उसके सिर पर प्यार-से हाथ फेरते हुए बोली,” मेरी लाडो..तू मनहूस नहीं है..देख लेना, एक दिन तेरे से ही इस परिवार का नाम रोशन होगा।”
नीतू जब दस साल की थी तभी असहनीय प्रसव-पीड़ा के कारण उसकी माँ की मृत्यु हो गई थी।उसके कुछ महीनों बाद उसके पिता भी एक सड़क दुर्घटना में चल बसे।अनाथ भतीजी को अपने बड़े भाई की अमानत समझकर उसके चाचा राधेमोहन अपने घर ले आये जो उसकी चाची को अच्छा नहीं लगा।नीतू अपनी चाची को फूटी आँख नहीं भाती थी।उसके साँवले रंग को लेकर कल्पना अक्सर ही उसका मज़ाक उड़ाती और उसे माता-पिता की मृत्यु का कारण मानकर उसे मनहूस-अपशकुनी कहती रहती।तब उसकी दादी ही उसके दुखों पर अपने स्नेह का मरहम लगाती।कल्पना के एक बेटा सिद्धार्थ और बेटी श्रुति थी।उसे अपने बच्चों पर बहुत अभिमान था क्योंकि दोनों ही गोरे रंग के और देखने में सुंदर थे।
समय के साथ नीतू सयानी होती गई।वह घर का पूरा काम करती..स्कूल में भी अच्छे अंक लाती, फिर भी अपनी चाची के शब्दों के तीखे बाण सुनती तो वो अपने आँसू रोक नहीं पाती।कल्पना सिद्धार्थ के लिये पूजा करवा रही थी..नीतू ने पूजन-सामग्री लाकर अपनी चाची की मदद करना चाहा तो कल्पना ने उसे डपट दिया।
अपनी दादी के आशीर्वाद से नीतू ने अच्छे अंकों से बारहवीं कक्षा की परीक्षा पास की।उसके बाद वो बैंकिंग की परीक्षा की तैयारी करने लगी।कल्पना के लाड़-प्यार से सिद्धार्थ- श्रुति बिगड़ने लगे।अपनी माँ से पैसे लेकर सिद्धार्थ जुआ खेलने लगा..धीरे-धीरे वो ड्रग्स भी लेने लगा।श्रुति भी स्कूल न जाकर सहेलियों के साथ टाइम पास करती रहती थी।राधेमोहन ने कई बार कल्पना को कहा कि बच्चों को समझाओ।सिद्धार्थ और श्रुति को भी पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा लेकिन सबने उनकी बात को अनसुना कर दिया।
नीतू अपनी दादी को परीक्षा पास करने और बैंक में नौकरी मिलने की खुशखबरी सुना रही थी कि तभी पुलिस आ गई और ड्रग्स लेने के ज़ुर्म में सिद्धार्थ को पकड़कर ले गई।राधेमोहन ने वकील के माध्यम से सिद्धार्थ की जमानत कराई।अब कल्पना लोगों से नजरें चुराने लगी।मोहल्ले वाले नीतू की प्रशंसा करने लगे और सिद्धार्थ के कारनामों की वजह से वो उस से नफ़रत करने लगे।तब नीतू की दादी कल्पना से बोली,” बहू..सूरत नहीं, सीरत भली होनी चाहिये।जिसे तुम मनहूस कहकर दिन-रात कोसा करती थी, उसी ने अपने गुणों से आज परिवार का नाक ऊँचा किया है..जिस पर अभिमान करती थी, वो तो लोगों को फूटी आँखों भी नहीं भा रहा।”
कल्पना अपने व्यवहार पर बहुत शर्मिंदा हुई।उसने अपने बच्चों पर ध्यान देना शुरु कर दिया और नीतू को भी अपनी बेटी मानकर उसके साथ अच्छा व्यवहार करने लगी।
विभा गुप्ता
# फूटी आँखों न भाना स्वरचित, बैंगलुरु