सुरक्षा कवच एक मां का – शिव कुमारी शुक्ला  : Moral stories in hindi

संगीता बड़ी ही होशियार एवं सुन्दर मासूम सी बच्ची थी। अभी उसने केवल सत्रह वसंत ही देखे थे कि उसकी दादी ने घर में 

उसकी शादी को लेकर हंगामा मचा रखा था। सुबह शाम, उठते बैठते वे एक ही रट लगाएं थीं कि संगीता की शादी जल्दी करो। उनके हिसाब से जवान होती बेटी की जितनी जल्दी शादी कर दी जाए उतना ही अच्छा।

वे अपने बेटे से बोलीं बेटा प्रशान्त तू कब तक इस बोझ को अपने कन्धों पर रखेगा 

जल्दी से शादी कर और बोझ से मुक्त हो जा।

मां आप ये कैसी बातें कर रहीं हैं, वह बेटी है मेरी कोई बोझ नहीं। और फिर अभी तो उसकी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई है अभी तो 

स्कूल में ही है।

कितनी पढ़ाई करायेगा बेटा लडकी है कौनसी उसे नौकरी करनी है  सम्हालना तो चूल्हा चौका ही है।जमाना खराब है जितनी जल्दी अपने घर जाए वही ठीक है। 

मां आप  किस जमाने की बातें कर रही हैं आज तो बेटियां अच्छी नौकरियां भी  करतीं हैं ।अपनी संगीता तो पढ़ाई में तेज है सो मैं उसे जरुर पढ़ाऊंगा।

दादी ने देखा उनके समझाने का बेटे पर कोई असर नहीं हो रहा तो उन्होंने दूसरा भावानात्मक दांव खेला – देख बेटा मेरी जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं, कब जाने की बारी आ जाए सो मैं यह चाहती हूँ कि अपनी पोती की शादी देख लूं, ताकि मेरी आत्मा तृप्त हो  जाए और मैं शान्ति से मर सकूं ।

प्रशान्त जी बोले अम्मा मरे तुम्हारे दुश्मन अभी तो केवल साठ की ही हुई  हो अच्छी खासी चुस्त-दुरुस्त  हो। पहले संगीता को पढने दो फिर समय आने पर उसकी धूम-धाम से शादी भी कर देगें, और अम्मा तुम भी देखोगी।

अम्मा ने घर में अबोला शुरू कर दिया। अब वे किसी से बात नहीं करतीं। चार दिन निकल गए, जब उन्होंने देखा कि किसी पर उनके अबोलेपन का असर नहीं हो रहा तो उन्होंने अब अनशन शुरू कर दिया सबने उन्हें बहुत समझाया पर वे, अपनी बात पर अडिग थीं।जब तक शादी करने को तैयार नहीं होगा वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगी। प्रशांत जी बड़ी दुविधा में थे क्या करें एक तरफ अम्मा का जीवन है और दूसरी तरफ बेटी का भविष्य दाँव पर लग रहा है।

अन्य परिवार जनों के समझाने पर मातृ प्रेम बेटी के भविष्य पर भारी पड़ गया बेमन से प्रशांत जी ने संगीता के लिए वर खोजना शुरू कर दिया रिश्तेदारी में ही उन्हें एक उपयुक्त वर मिल गया जो अभी-अभी इन्जीजीयरिंग कर एक मल्टीनेशनल कम्पनी में जाँब पर लगा था। परिवार भी छोटा ही था- मातापिता और एक छोटा भाई जो अभी पढ़ ही रहा था। उनकी तरह ही यह परिवार भी मध्यमवर्गीय था सो ज्यादा तामझाम की शादी में जरूरत नहीं पड़ी।

खुशनुमा माहौल में शानदार शादी छः माह के अन्दर ही कर दी ,जैसे ही  संगीता की बारहवीं की परीक्षा हुई। अबोध बालिका ससुराल तो आ  गई किन्तु भयभीत हिरणी सी रहती। हर समय डरी- डरी, सहमी सी। उसे लगता यहाँ उसके मम्मी-पापा  तो है नहीं कौन उसकी सुनेगा। वह इस  घर को अपना मान ही नहीं पा रही थी हर समय घर की याद कर दुःखी रहती। यहाँ वैसे अभी उसे कोई परेशानी नहीं थी किन्तु ससुराल ससुराल ही होता है। मायके जैसी स्वच्छंदता यहाँ कहाँ।

सास अर्चनाजी थोडी दबंग महिला थीं। उनके अनुसार बहु को ज्यादा छूट नहीं देनी चाहिए ।कठोर अनुशासन में रखने पर ही वह ठीक  रहती है ।और यहि सलाह, बह बक्त-वेवक्त अपने बेटे निशांत को भी देतीं रहतीं। पत्नी को  दबा कर रखना नहीं तो बह तेरे सिर पर नाचेगी।

कुछ ही दिनों में अर्चना जी ने धीरे-धीरे पूरी गृहस्थी का बोझ संगीता के नाजुक कन्धों पर डाल स्वयं विल्कुल  घर के कामों से स्वतल हो गईं। घूमना फिरना, मंदिर जाना,किटी पार्टी   मस्त रहती ।  टीवी देखतीं रहतीं पर मजाल है संगीता के कामों में हाथ  बंटा  दे।  वह सारे दिन बदहवास सी कामों में लगी  रहती और ऊपर से सास के ताने उलहाने, सुनती रहती। 

निशांत भी उसकी  तरफ ज्यादा ध्यान न देता। उसे वह अपने स्तर की नहीं लगती। बह सोचता अनपढ़ गंवार है इससे क्या बात  करो।अपने साथ लेजाने में उसे शर्म महसूस होती उसके दोस्तों की पत्नीयाँ अधिकांश नौकरी पेशा थीं कुछ तो उनके साथ उसी कम्पनी में इंजिनियर थी। माँ की पसन्द के  आगे उसे शादी करनी पड़ी अन्यथा वह तो अपनी कलीग के साथ शादी करना चाहता था।

एक दिन हिम्मत जुटा कर संगीता ने निशांत से कहा मैं पढ़ना चाहती हूं  मेरी पढ़ाई पूरी  हो सके ऐसी व्यवस्था कर दो पहले तो वह जोर से हंसा और फिर बोला इतना ही पढाई  का शौक था तो अपने घर से ही पढ़ कर आती। तब तो झट शादी  के लिए तैयार हो गई  अब पढ़ना है। आज तो कह दिया अब आगे से कभी पढाई का नाम भी मत लेना चुपचाप घर-बच्चे सम्हालना ही तुम्हारी नियति है।

वह सोच रही थी कि ऐसा मैने क्या  ग़लत कह  दिया। क्या शादी के बाद पढ़ नहीं सकते ‌। पहले तो दादी ने और अब ससुराल वालों ने मेरा  जीवन बरबाद कर दिया । मैं इन लोगों को कभी माफ नहीं करूंगी। फिर उसने हिम्मत कर के अपने सास-ससुर के सामने इच्छा रखी तो वे बोले पढ़ कर क्या करोगी नौकरी तो तुम्हें करनी  नहीं।निशांत अच्छा खासा कमाता है। दूसरे तुम पढ़ोगी तो घर का  काम कौन  देखेगा, इसलिए अब पढाई को तो भूल ही जाओ  यहि तुम्हारे लिए अच्छा है।

मायके जाने पर जब उसने अपने पिता को यह बात बताई तो वे बहुत दुखी हुए बोले बेटा तेरा कसूरवार मैं  हूं, मैंने ही तेरी जिन्दगी बर्बाद कर दी।न में माँ की बात मानता और  न  तेरा ये हाल होता ।

दो साल में ही वह एक प्यारी सी बेटी की   मां भी बन गई। अब उसका सारा ध्यान बेटी में लगा रहता। सास अक्सर ताना मारती क्या बेटी को सम्हालने में लगी रहती है बेटीयाँ तो  ऐसे ही  बड़ी हो जाती है बेटा पैदा  किया होता तो कोई बात थी। ये तो पराई  अमानत है अपने घर चली जाएगी, बेटा तो  घर का नाम रोशन करता।

यह सब सुन वह  बहुत दुखी होती, क्या बेटीयां इतनी बुरी  होती हैं  जो उन्हें कोई पसंद नहीं करता। फिर मन  को समझा लेती और काम में लग जाती। निशांत कभी भी किसी के भी सामने उस का मजाक उडाता, उसे अपने से हीन समझता । वह  किसी भी बात पर कोई अपनी राय नहीं दे सकती थी ।उसकी स्थिती केवल एक नौकरानी की भाँति थी जो केवल पूरे परिवार का ध्यान रखे सेवा टहल करे। आंसू बहाते हुए अपमानित जिन्दगी जी रही थी। 

समय तेजी से पंख लगा कर उड गया और देखते -देखते बेटी सान्या सत्रह वर्ष की हो गई  । इतिहास अपने आपको दोहरा रहा था। अब उसकी दादी भी वही बोलने लगी जो कभी उसकी दादी ने बोला था।सान्या की शादी करो मैं  उसकी शादी देखना चाहती हूँ। बेटी का बोझ  पिता के सिर से जितना जल्दी  उतरे उतना ही   अच्छा है। निशांत तो मां का श्रवण कुमार था सो उसे कोई परेशानी नहीं थी।

सान्या जी-जान से पढाई में जुटी थी हमेशा प्रथम आती और पढ़ना चाहती थी ।माँ के बहकावे में  आकर निशांत उसकी पढ़ाई छुडाने को तैयार हो गया। आज संगीता ने रणचंडी का रूप धारण कर लिया और सुषुप्त  ज्वाला मुखी की तरह फट पडी ,ऊंची  आवाज में बोली  यदि किसी ने भी मेरी बेटी की  पढ़ाई छुड़ाने की सोची तो मैं अपनी जान दे दूंगी और पुलिस को  भी बुला सबको जेल भिजवा दूंगी।

 वह जब तक चाहेगी पढ़ेगी। कोई शादी वादी नही होगी उसकी। मैं उसे दूसरी संगीता नहीं बनने दूंगी। जीवन में मैंने जो भोगा है जो अपमान के घूंट पीये हैं वह सब मेरी बेटी के साथ नहीं ही दोहराया जाएगा। देखती हूं कि किसकी हिम्मत  है मेरी बेटी के साथ नाइन्साफी करने की ।मैं हमेशा उसकी ढाल बन कर सुरक्षा  करूंगी और पढ़ाऊंगी भी। जरूरत पड़ी तो कानूनी सहायता लेने से ही नहीं चूकूंगी। आज संगीता  का ये रूप देखकर सब चुप थे कोई बोल नही पा रहा था।

मैं अपने लिए आवाज नहीं उठा पाई किन्तु बेटी के लिए चुप नहीं रहूंगी ।मेरी दादी ने  भी मरने की धमकी देकर मेरे पापा को मजबूर किया था किन्तु मेरी  शादी के बाद पन्द्रह साल और जीवित रहीं मरेंगे तो तभी न जब मौत आएगी शादी से क्या सम्बन्ध । किसी मरने वाले के लिए बेटी का भविष्य क्यों दांव पर लगाया जाए । यह कैसा भावनात्मक दबाव बनाया जाता है, मरने वाला तो मर जाता किन्तु सजा तो जीवित रहने वाले को तिल-तिल  मर कर भुगतनी पड़ती है।

मैं भुक्त भोगी हूं, बेटी को नहीं भुगतने दूंगी। मेरे साथ तो मेरे पापा थे जिन्होंने हमेशा मेरा दुःख समझा यहाँ तो मेरी बेटी के पापा भी  उसके साथ  नहीं हैं जो  उसके दुख को समझ सके, जिसने कभी पत्नी का दुःख नही समझा वह अब बेटी का दुःख क्या समझेगा ।ऐसा कायर इन्सान जीवन में क्या करेगा जो सही के साथ ही जीवन भर खडा न हो पाया इतना ही मां काअन्धभक्त था तो शादी करके दूसरे की बेटी की जिन्दगी बर्बाद करने का उसे क्या हक था ।

जो दूसरों  की वीवीयों की पढ़ाई , नौकरी पर फख्र करता है किन्तु अपनी बीवी को पढ़ा नहीं सका कैसा दोहरा चेहरा है। समाज मेंआधुनिक बनने का दिखावा करते हैं और बेटी को बोझ समझते हैं। मैंने कह दिया कि मेरी बेटी मेरे लिए बोझ नहीं है वह जितना चाहे पढ़ेगी अपने पैरों पर खड़ी होगी तभी  उसकीशादी के  बारे में सोचूंगी ताकि उसे सम्मान से सिर उठाकर जीने का अवसर मिले और अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं के लिए दूसरों के सामने चाहे वह पति ही क्यों न हो हाथ न फैलाना पड़े और न होने पर मन  न  मारना पड़े। पत्नी भी जीवित इंसान होती है उसकी भी अपनी कुछ  इच्छाएं, जरूरतें  होती हैं जिन्हें समझने वाला ही न हो तो वो कैसा पति। 

निशांत सोच रहा था कि मां के बहकावे में आकर उम्र भर मैने संगीता के साथ अन्याय किया। अपने गिरेबान  में झांकने पर पूरा दोष अपना और अपने मातापिता का ही नजर आया आज संगीता ने उसे सच का आइना जो दिखा दिया था।

वह बमुश्किल से इतना ही बोला संगीता आज तुमने मेरे जमीर को  झककोर दिया। में अपनी ग़लती की माफी चाहता हूँ जो माफी लायक नहीं है और इस गल्ती के प्रतिकार  स्वरुप अब तुम्हारी  इच्छानुसार अपनी बेटी को एक और संगीता नहीं बनने दूंगा। वह जितना  चाहे पढ़ेगी, नौकरी भी करेगी ताकि कोई और निशांत पग-पग पर उसे अपमानित न कर पाए।

यह सुन संगीता ने संतोष की सांस ली। 

आज उसे  ऐसा लगा कि बेटी का भविष्य सुरक्षित कर उसका जीवन सार्थक हो गया 

उसके  पिता द्वारा की  गई भूल को आज सुधार कर वह परम संतोष का अनुभव करते हुए अपने जीवन को धन्य समझ रही थी। माता-पिता के मुंह पर ताले लगे थे।

शिव कुमारी शुक्ला 

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!