सूरज से प्रकाशित रजनी – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

      राजो बेहद खुश थी।खुश भी क्यो न हो भला,आखिर उसे उसका प्यार मिल गया था।सूरज को चाहती थी और सूरज से ही उसका ब्याह जो हो गया था।ये बात दीगर है उसकी माँ ही अपनी पड़ौसन से कह रही थी,इस करमजली ने अपने भाग खुद फोड़ लिये हैं।

      सम्पन्न वर्ग की रजनी जिसे सब राजो ही पुकारते थे,पढ़ लिखकर एक कंपनी में नौकरी भी करने लगी थी,वही उसकी मुलाकात उसी के सहकर्मी सूरज से हो गयी थी।सूरज जरूर पढ़ लिख कर जॉब पा गया था,पर वह गरीब परिवार से था।घर मे माँ के अतिरिक्त  अविवाहित बहन की जिम्मेदारी उसी पर ही थी।सूरज, सरल स्वभाव का और अपने काम से काम रखने वाला युवक था।उसे अहसास था

कि अपने परिवार को उसे स्वयं ही संभालना है।इस जॉब के अतिरिक्त वह प्रशासनिक अधिकारी बनने के लिये कॉम्पिटिशन की ही तैयारी कर रहा था।रजनी उर्फ राजो उसके सरल व निश्छल स्वभाव से ही प्रभावित थी।अन्यसहकर्मियो की लोलुप आंखे ही उनके स्वभाव को उजागर कर देती थी।इन सबके बीच सूरज अपना अलग ही प्रकाश बिखेरता था।

किसी न किसी बहाने राजो सूरज से बात करने की लगभग रोज ही कोई न कोई जुगत निकाल ही लेती।सूरज का स्वभाव जरूर सरल था पर वह इतना भोला थोड़े ही था जो राजो के मनोभावो को न समझता,पर वह अपनी सीमा और हैसियत भी जानता था,यही कारण था कि उसने कभी राजो को पसंद करते हुए भी उसकी ओर कदम नही बढ़ाये।राजो समझ ही नही पा रही थी कि सूरज से वह कैसे अपने मन की बात कहे?

     एक दिन राजो ने सूरज को कही भी कॉफी पीने को आमंत्रित किया।सूरज बोला रजनी जी एक बात कहूँ,ऐसा नही है कि आपके मनोभावो से अनजान हूँ, पर मैं अपनी परिस्थतियाँ और हैसियत से वाकिफ हूँ, सच बात तो ये है रजनी जी मैं आपके काबिल नहीं। अवाक राजो सूरज को देखती रह गयी,कितनी बेबाकी से बिना लाग लपेट के अपनी हैसियत से लेकर मर्यादा तक सूरज एक ही वाक्य में समझा गया था।

अब कोई परदा नही रह गया था, सो राजो बोली एक बात तो बताओ अभी तुमने मेरे मनोभावो को जानने को स्वीकार किया,तो तुम मेरे मनोभावो को तो जान गये पर सूरज मेरे इरादे और मेरी इच्छा शक्ति को नही समझ पाये या समझकर नादान बन रहे हो? र–ज–नी बोलकर सूरज चुप रह गया।तभी राजो ने सूरज का हाथ पकड़ कर कहा-सूरज हम जल्द ही शादी करने वाले हैं।सुन लिया है न तुमने?दिन तारीख तुम तय करोगे,मैं तो आज ही अपने घर शादी की बात बता दूंगी।

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      इस अप्रत्याशित प्रस्ताव या चुनौती देकर राजो चली गयी।ऐसा नही था कि उसे रजनी पसंद नही थी,पर वह संकोच में था कि वह सम्पन्न जीवन जीने वाली रजनी उसके छोटे से घर और उसके परिवेश में कैसे रह पायेगी? राजो ने अपने घर मे सूरज से शादी की घोषणा कर दी।राजो की माँ ने उसे खूब समझाया कि सूरज के घर मे वह सुख प्राप्त नही कर पायेगी, सूरज पर पूरे घर की जिम्मेदारी है,

तुम दोनो उसी में पिस जाओगे,आदि आदि।पर प्यार इन सब बातों को कहाँ मानता है,सो राजो को नही मानना था तो नही मानी।घर वालो ने भी समझ लिया कि वह खुद कमाती है,अब उसने सूरज से शादी की ठान ली है तो करेगी ही और वे कुछ नही कर पायेंगे।जग हँसाई न हो इसलिये अनिच्छा से ये कहते हुए जैसी तेरी मर्जी,

राजो की शादी सूरज से करने की हामी भर दी।उधर राजो की दृढ़ता देख और अंदर से खुद भी राजो को पसंद होने के कारण सूरज ने भी हां कर दी।दोनो की शादी हो गयी।मंजिल पाने की खुशी दोनो के चेहरे पर थी,पर राजो की माँ अपनी पड़ौसन से कह रही थी,करमजली ने अपने भाग खुद फोड़ लिये।

         राजो और सूरज दोनो ही एक कंपनी में जॉब करते थे,सो दोनो हनीमून के बाद एक साथ ऑफिस चले जाते और साथ ही वापस आ जाते।सूरज की माँ तो राजो पर बलिहारी बलिहारी जाती।उन्होंने सपने में भी राजो जैसी बहू पाने की कल्पना भी नही की थी।

       एक दिन सूरज की माँ की तबियत खराब हो गयी तो राजो ने ऑफिस से छुट्टी ले ली।राजो ने माँ को डॉक्टर को दिखाया,फिर उन्हें घर मे लिटाकर खुद दवाई लेने मेडिकल स्टोर चली गयी।दवाई लेकर वापसी में सड़क पार करने के लिये वह किनारे पर खड़ी थी कि एक ट्रक की साइड लगने से वह गिर गयी और उसका एक पैर ट्रक के पिछले पहिये के नीचे आ गया।एक भयानक दुर्घटना चंद सेकंडों में ही घट चुकी थी।

खून से लथपथ राजो सड़क पर पड़ी थी,किसी ने पहचान कर सूरज को फोन कर दिया,इस बीच सरकारी एम्बुलेंस ने राजो की हॉस्पिटल पहुंचा दिया।बदहवास सा सूरज दौड़ा दौड़ा हॉस्पिटल आ पहुंचा, राजो के घरवाले भी आ गये।राजो ऑपरेशन थिएटर में थी।एक पैर पूरी तरह कुचल गया था,उसे घुटनो तक काटना पड़ा।राजो अपाहिज हो गयी थी।होश में आने पर राजो को जब अपने पावँ के कटने का पता चला तो उसका रो रो

कर बुरा हाल हो गया।बार बार एक ही वाक्य उसके मुंह से निकल रहा था सूरज अब मैं कैसे जी पाऊंगी,मैं तुम्हारे लायक नही रही।सूरज उसे अपने से चिपटा कर बार बार आश्वस्त कर रहा था,अरे राजो मैं हूँ ना,अरे हम हैं एक दूसरे के लिये,तू काहे चिंता करती है?

        छः माह लगे राजो के जख्म भरने में,एक बैसाखी के सहारे राजो अपने नित्य कर्म निपटाती,बस उसे संतोष था तो ये सूरज ने उससे मुँह नही मोड़ा।राजो की माँ ने उसे अपने साथ ले जाने को बोला तो सूरज ने ये ही जवाब दिया माँ जी ऐसी हालत में मैं राजो को अपने से अलग नही कर सकता।उसे मेरी जरूरत है, माँ जी मेरे बिना वह जीते जी मर जायेगी, अभी मैं उसे नही छोड़ सकता।राजो की माँ कुछ भी न बोल सकी,बस भीगी आंखों से सूरज के सिर पर हाथ रख वापस आ गयी।

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         कुछ समय बाद सूरज ने राजो के जयपुरिया फुट लगवा दिया,जिससे बैसाखी से उसका पीछा छूट गया।राजो का खोया आत्मविश्वास लौटने लगा था।अब वह फिर से ऑफिस जाने लगी थी।

       आज पड़ौसन राजो की माँ के पास फिर आयी थी,राजो की माँ कह रही थी,मेरी राजो बड़ी नसीब वाली है री,जो उसे सूरज जैसा पति मिला।बात सच भी थी  आखिर सूरज ने रजनी को अपने प्रकाश से सराबोर जो कर दिया था।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित।

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