“सुंदर बहू” – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

बहू.. हम सभी दिव्या की शादी की खरीदारी करने के लिए बाजार जा रहे हैं तो पीछे से घर का ध्यान रखना और खाने पीने की तैयारी रखना हमें आने में देर हो जाएगी और हां पीछे से टीवी मोबाइल में व्यस्त मत हो जाना

या फिर अपने घर वालों से ही फोन पर चिपकी मत रहना, ध्यान रखना खाना गरम-गरम ही बना कर देना यह नहीं की रोटियां बना कर रख दे! जी मम्मी जी.. मैं ध्यान रखूंगी! मां..

हम कितने दिनों से दिव्या की शादी के लिए बाजार से खरीदारी करने जा रहे हैं, मां …रति का भी कितना मन करता होगा कि वह भी हम सभी के साथ बाजार जाए,

अपनी ननद की शादी की खरीदारी में  साथ दे कितने अरमान है उसके भी अपनी ननद की शादी को लेकर किंतु आप उसे कभी साथ में लेकर नहीं जाती, मां 6 साल हो गए मेरी और रति की शादी हुए

किंतु आप आज उसे नहीं अपना पाई, आज तक  तक उसे किसी भी शादी फंक्शन या किसी भी पार्टी में लेकर नहीं जाती उसे कितना दुख होता है किंतु वह कभी आपसे कुछ नहीं कहती, ना ही मुझे कुछ कहती है,

किंतु में उसके दर्द को समझता हूं, घर में रहकर भी उसके साथ परायो जैसा व्यवहार होता है! रति के पति और सुहासिनी जी के बेटे रजत ने कहा! रति की नंद दिव्या की 15 दिन बाद शादी है पूरा परिवार खुश है

आए दिन सभी लोग किसी न किसी चीज की खरीदारी के लिए बाजार जाते रहते हैं किंतु एक बार भी सुहासिनी जी, दिव्या या रति के ससुर उसे अपने साथ चलने के लिए नहीं कहते बस उसे सारा घर का काम सौंप कर चले जाते हैं,

रजत की बात सुनकर सुहासिनी जी गुस्से में बोली…. हां तो और कर तू लव मैरिज.. ऐसी काली सी बदसूरत सी लड़की को हमारे माथे मढ दिया जिसे कहीं पर ले जाते हुए हमें शर्म आती है, पूरी बिरादरी में हमारी बेज्जती हो जाती है

सभी लोग तरह-तरह की बातें बनाते होंगे कि देखो सेठ दामोदर जी का इकलौता बेटा जो इतनी बड़ी कंपनी में मैनेजर है और अपने साथ पढ़ने वाली ऐसी बदसूरत सी लड़की को अपनी जीवनसाथी बना कर ले आया,

जरूर खूब दहेज मिला होगा, वह तो हमने तेरी जिद के आगे घुटने टेक दिए, मेरी कितनी इच्छा थी चांद सी बहू घर में लाने की, तुझे पता नहीं इस काली कलूटी में क्या गुण नजर आए जो तू इसे घर ले आया

किंतु अब तू हमसे इस चीज की जोर जबरदस्ती मत कर कि हम इसे अपने साथ में उठाएंगे बैठाएंगे, हमारी तो वैसे ही  नाक कट गई! मां आपको शर्म नहीं आती रति के लिए इतना गंदा बोलते हुए

, अगर रति की जगह आपकी बेटी भी ऐसी ही होती.. मतलब आपकी नजरों में इंटेलिजेंसी का कोई महत्व नहीं है केवल लड़की सुंदर होनी चाहिए? आपको पता है रति कितनी इंटेलिजेंट है

वह ऑफिस के काम के साथ-साथ घर का भी हर काम ईमानदारी से निभाती है आपको किसी भी बात पर उसने पलट कर जवाब नहीं दिया, उसकी मां बचपन में ही गुजर गई थी

वह हमेशा आप मे अपनी मां ढूंढती थी किंतुआपने तो सौतेली मां जैसा फर्ज भी नहीं निभाया, मां क्या रति ने कभी आपका अनादर किया है? आपने कितनी ही बार उससे बदसलूकी की है

किंतु क्या उसने पलट कर आपको जवाब दिया? आपकी हर इच्छा का वह सम्मान करती है, पूरे परिवार के लिए दिन रात सोचती है पूरे घर को व्यवस्थित  रखती है सभी आए

गए का आदर सम्मान करती है और इतना अच्छा स्वादिष्ट खाना बनाकर देती है, किंतु फिर भी किसी के मुंह से तारीफ के दो शब्द नहीं निकलते, हमें कोई शिकायत का मौका नहीं देती

किंतु आप फिर भी उसमें कमियां ढूंढ ही लेती हैं,, मां आपकी पारखी नजरों की तो मैं दाद देता हूं,  चार-पांच दिन पहले जब बुआ जी आई थी तब वह कह रही थी माना की रति देखने में इतनी सुंदर ना

है किंतु उसका व्यवहार और संस्कार इतने अच्छे हैं  कि इसके आगे शारीरिक सुंदरता का कोई महत्व नहीं है, बच्ची सभी का दिल जीत लेती है! मां अपने सारे  रिश्तेदार रति के बारे में ऐसी ही राय रखते हैं,

मान लो आपकी नजरों में “सुंदर बहू” परिवार वालों का आदर सम्मान नहीं करती तो क्या आपको अच्छा लगता? मां मैंने रति के साथ जीने मरने की कसमें खाई है और मैं  अपनी पत्नी का किसी भी कीमत पर अपमान सहन नहीं कर पाऊंगा,

अगर आपको रति का रहना घर में नहीं सुहाता तो मैं रति को लेकर कहीं बाहर रहने चला जाऊंगा इसलिए आप लोग ही शादी की सारी खरीदारी कीजिए, रजत के इतना कहने पर सुहासिनी जी भी सोचने लगी…

सही तो कह रहा है रजत, मैंने उसको कितने ताने दिए हैं किंतु उस बेचारी ने तो कभी मुंह  नहीं खोला, हर काम कहने  से पहले ही तैयार रखती है उसने तो हमें अपनाने की कितनी कोशिश की,

किंतु हम ऐसे कैसे हैं कि सिर्फ उसके रंग रूप को देखकर उसे एक बुरी बहू समझ बैठे, उसका व्यवहार हमे क्यों नजर नहीं आया? अपनी बीमारी में भी काम करती है ताकि मैं उससे नाराज ना हो जाऊं

और मुझे तो बल्कि गर्व होना चाहिए की रजत ने अपनी पसंद से ही अपने जीवनसाथी का चयन किया है, सुंदरता तो आज है कल नहीं है किंतु गुण तो हमेशा ही रहेंगे, कुछ दिन पहले रजत की मामी ने मुझे फोन पर कहा था

कि दीदी रति जैसी बहू हमें भी ढूंढ कर लाइएगा तब मुझे कितना बुरा लगा था कि जैसे वह  हम पर ताने कस रही हो, सभी को उसके गुण नजर आए किंतु मुझे क्यों नजर नहीं आए?

मैं कितनी बड़ी भूल करने जा रही थी, मैंने पग पग पर रति का अपमान किया है फिर भी बेचारी ने मुझे कुछ नहीं कहा, अरे मैं उसे बहू नहीं कम से कम इंसान ही समझ लेती? मैं क्यों भूल जाती हूं

कि वह इस घर की बहू है ना कि नौकरानी! उस बिन मां की बच्ची को मैं क्यों नहीं अपना पाई? मेरी आंखों पर यह कैसा पर्दा छाया हुआ था? रजत  ने मेरी सही समय पर आंखें खोल दी!

अब दिव्या की शादी के सारी रस्मे उसकी भाभी करेगी और इतना सोच कर सुहासिनी जी के अंदर एक उल्लास आ गया और वह रजत से बोली… बेटा हो सके तो हमें माफ कर देना मैं तो शारीरिक सुंदरता को ही सब कुछ  मान बैठी थी

किंतु तुमने मेरी आंखें खोल दी आज से रति मेरी बहू नहीं बेटी है मैं उसकी अच्छाइयों को नहीं देख पाई, आज से रति ही इस घर की बहू के सारे फर्ज निभाएगी,  मुझे तो रति पर गर्व पर होना चाहिए

की इतनी समझदार बहू मेरे घर में है, और मैं पागल हीरे को कोयला समझ बैठी थी और सुहासिनी ने अपने बाहर गए हुए कदमों को अंदर लाते हुए रति को आवाज दी…. रति बेटा..

तू घर के काम धाम छोड़ और अपनी ननद दिव्या की अच्छे से शॉपिंग करवा कर लाना, तेरी पसंद बहुत अच्छी है क्योंकि जिसने भी मेरे बेटे को चुना है उसकी पसंद तो खराब हो ही नहीं सकती,

तो आज से मैं शादी की सारी जिम्मेदारियां तेरे ऊपर डालती हूं और बेटा हो सके तो आज से मुझ में अपनी मां देखना! इतना सुनते ही रति की आंखों में आंसू आ गए और वह मां कहकर सुहासिनी से लिपट गई! आज सुहासिनी जी को और पूरे परिवार को रति एक अद्भुत सुंदरी लग रही थी, उनकी नजरों में अब रति से सुंदर बहू दूसरी कोई हो ही नहीं सकती!

    हेमलता गुप्ता स्वरचित 

   कहानी प्रतियोगिता “अपमान”

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