सुमन का संघर्ष और विजय – सीमा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

वाह! सुमन ने क्या किस्मत पाई है! पिछले जन्म में बहुत अच्छे करम करे होंगे छोकरी ने! तभी ऐसा वर मिला है! सुना तुमने! सुमन का दुल्हा शहर में बड़ी वाली डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा है! 

किस्मत तो दोनों जुड़वां बहनों की अच्छी है! बाला और सुमन दोनों इतने बड़े जमींदार परिवार में ब्याह कर जा रही हैं! पर सुमन के भाग्य तो न्यारे ही चमक रहे हैं! दसवीं तक पढ़ी छोकरी डॉक्टरनी कहलावेगी!

आज सुमन और कुसुम के गांव में सब लोगों की जुबान पर यही बातें हैं। आज दोनों बहनें दुल्हन बनकर ससुराल के लिए विदा हो रही हैं। बचपन में ही जुड़वां बहनों का रिश्ता उनके दादा किरोड़ीमल जी ने पास ही के गांव के अपने जिगरी दोस्त रामफल के पोतों के साथ तय कर दिया था। बड़े पोते मनोज के साथ बाला का और छोटे पोते सुनील के साथ सुमन का। उनकी अनूठी दोस्ती की समाज में मिसाल दी जाती थी।

बहुत बड़े जमींदार, किसान और अपने गांव के मुखिया हैं, रामफल जी। गांव में सबसे ज्यादा जमीन इनकी ही है। कई पीढ़ियां खाली बैठे खा-पी सकती हैं। रामफल जी का एकमात्र बेटा ओम प्रकाश और बड़ा पोता मनोज दोनों ही अपने पुश्तैनी काम को अपना लेते हैं।

मनोज ने तो मैट्रिक करके पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन सुनील बचपन से ही पढ़ाई में मेधावी था और डॉक्टर बनना चाहता था। इसलिए उसने पीएमटी क्वालीफाई कर शहर के प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में MBBS में प्रवेश ले लिया। ( उन दिनों PMT ही हुआ करता था।)

दादा रामफल जी के मन में आया, “ये तो खुशी की बात है कि मेरा पोता  सुनील डॉक्टर बन जाएगा। पर सुनील तो कई सालों के लिए शहर चला जाएगा। कॉलेज में कहीं किसी अंग्रेजी लड़की के चक्कर में न फंस जाए! हमारे घर की बहुएं तो सुशील और संस्कारी बाला और सुमन ही बनेंगी। और फिर मैंने अपने दोस्त किरोड़ीमल को सालों से वचन दे रखा है। वो तो हर हाल में निभाना है। कायदे से तो पहले बड़े पोते मनोज का ब्याह करना बनता है और सुनील छोटा है, पर दोनों पोतों का ब्याह एक साथ तो कर ही सकते हैं।”

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रामफल जी का रुआब ऐसा था कि उनकी बात कोई टालता ही नहीं था। तो उन्होंने शहनाइयां बजवा दी और पूरे गांव को न्योता देकर धूमधाम से अपने दोनों पोतों का ब्याह एक ही मंडप में करवा दिया और बाला और सुमन को बहुएं बनाकर अपने घर ले आए। घर में कई दिन तक उत्सव मनता रहा। सबके चेहरों की रौनक और खुशी देखते ही बनती थी। दोनों विवाहित जोड़े भी बहुत प्रसन्न थे। 

कक्षाएं आरंभ होने पर सुनील शहर चला गया। पर वह छुट्टियों में आता रहता था। हंसी-खुशी से वर्ष बीतने लगे। दोनों बहनें, बाला और सुमन मिलजुल कर घर संभाल रही थीं और सुघड़ गृहिणियां बन गई थीं। सुनील के कालेज के वर्ष भी एक-एक कर बीत रहे थे और सबको उसकी डिग्री पूरी होने की प्रतीक्षा थी। पत्नी होने के नाते सुमन सबसे ज्यादा व्यग्र थी। इस बीच वह दो बच्चों, साहिल और प्रिया की मां बन गई थी।

दादा रामफल की इच्छा थी कि गांव में ही सुनील का बड़ा सा अस्पताल खुलवा देंगे। ग्रामीणों को इलाज के लिए शहर के धक्के नहीं खाने पड़ेंगे और सारा परिवार भी मिलकर एक साथ ही रहेंगे। सुमन भी मन ही मन खुश थीं कि उसे हमेशा के लिए पति का साहचर्य मिलेगा।

लेकिन वृद्धावस्था में लगातार गिरते स्वास्थ्य के चलते एक दिन रामफल जी सारी  जिम्मेदारियां अपने बेटे ओम प्रकाश को सौंपकर हमेशा के लिए इस दुनिया से चले गए।

उनके जाते ही जैसे खुशहाल घर को किसी की नज़र लग गई।सुनील ने धीरे-धीरे घर आना कम कर दिया। कभी आता भी तो सुमन के प्रति बेरुखी ही दर्शाने लगा। बेचारी सुमन मन मसोसकर रह जाती। धीरे-धीरे वह अपने बच्चों में भी कम रुचि लेने लगा। 

असल में अब सुनील अपनी एक सहपाठी आद्या की ओर आकर्षित हो गया था और उसे अपने सामने सुमन कम पढ़ी लिखी और निम्न स्तर की लगने लगी थी। सुमन के बार-बार बेरुखी का कारण पूछने पर सुनील ने बड़ी बेशर्मी से उससे कहा था, “इस विवाह में मेरी इच्छा शामिल नहीं थी। दादा जी के आदेश की वजह से मुझे तुम्हें अपनाना पड़ा।” 

जिस भावी डर की आशंका से उसके दादा जी ने उसका विवाह सुमन से करवाया था, वही डर इस भयानक रुप में सामने आ गया था। सुमन की तो दुनिया ही उजड़ गई।‌ सुमन ने सुनील को समझाने की कोशिश की, पर सब व्यर्थ हो गया।

सुमन से तलाक लेना सुनील के लिए संभव नहीं था। वह जानता था कि उसके माता-पिता और उनका पारिवारिक और सामाजिक परिवेश इसकी अनुमति नहीं देंगे। इसलिए अपनी ट्रेनिंग पूरी होते ही धर्म परिवर्तन कर उसने आद्या से विवाह रचा लिया और शहर में ही रहने लगा। सुमन और बच्चों की जिंदगी को उसने सदा के लिए आंसुओं में परिवर्तित कर दिया। धीरे-धीरे बच्चों की खातिर सुमन ने स्वयं को संभाला। वैसे भी ऐसे चरित्र के कच्चे व्यक्ति के लिए रोने का क्या फायदा! 

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ओमप्रकाश जी और उनकी पत्नी को अपने बेटे की इस हरकत से गहरा मानसिक आघात लगा। उनकी सुमन से आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं होती थी। आखि़र सुमन ने उन्हें अपने माता-पिता से भी बढ़कर माना था और उनकी निस्वार्थ सेवा में लीन रही थी। वे सुमन के दर्द को महसूस तो करते थे लेकिन उसे उसके पति का प्यार कैसे लौटाते!

पर ओमप्रकाश जी ने अपनी पत्नी और बड़े बेटे मनोज से सलाह-मशवरा कर सुनील को अपनी संपूर्ण चल-अचल संपत्ति से बेदखल कर दिया। उन्होंने अपनी आधी जमीन और दूसरी धन-संपत्ति का आधा भाग सुमन के नाम कर दिया। दूसरे आधे भाग का वारिस उन्होंने मनोज को बना दिया।

सुमन को उन्होंने आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। सुमन ने भी अपना ध्यान सुनील की ओर से हटाकर बच्चों की परवरिश और अपनी पढ़ाई में लगाने का फैसला लिया। हालांकि न चाहते हुए भी बीच-बीच में आंसू उसका दामन थामे रहते थे।

ओमप्रकाश जी और उनकी पत्नी ने सुमन को भरपूर प्यार दिया। वह भी उन्हें अपने माता-पिता ही मानती थी और कोशिश करती थी कि उन्हें अपने बेटे सुनील की कमी न खले। 

सुमन की बहन बाला और मनोज भी सुमन का हर तरह से ख्याल रखते थे। बाला का एक ही बेटा था, अंशु। तीनों बच्चे साहिल, प्रिया और अंशु अपने दादा-दादी और माता-पिता की छत्र-छाया में साथ-साथ खेल कर बड़े होने लगे। तीनों ही अपने बड़ों के मार्गदर्शन में पढ़ाई भी खूब मन लगाकर करते थे।

ओमप्रकाश जी और उनकी पत्नी ने कई बार सुमन से पुनर्विवाह के लिए बात की। लेकिन सुमन ने दृढ़ता से यह कहकर इंकार कर दिया कि वह इस घर में दुल्हन बनकर आई थी और आजीवन यहीं रहेगी। 

उसने अपने सास-ससुर की प्रेरणा से बारहवीं कक्षा पास कर ली और फिर BA की डिग्री भी हासिल कर ली। धीरे-धीरे बच्चे बड़े हो गए थे। साहिल ने घर के बड़ों के अधूरे सपने को पूरा करने का प्रण लिया और NEET की परीक्षा बहुत अच्छी रैंक से उत्तीर्ण कर अच्छे मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पा लिया। प्रिया मनोविज्ञान में उच्च शिक्षा के लिए हॉस्टल चली गई। 

अब  सुमन ने सास-ससुर की सेवा और समाजसेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। वह गांव में गरीब बच्चों और महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य करने लगी। समयानुसार बच्चे अपनी पढ़ाई, ट्रेनिंग आदि पूरी कर अपने पैरों पर खड़े हो गए। सुमन को जैसे सारा जहां फिर से मिल गया। उसकी साधना पूरी हुई।

आज ओमप्रकाश जी और घर के सभी सदस्यों के अथक प्रयासों से गांव में बड़ा अस्पताल बनकर तैयार है। गरीबों के लिए निशुल्क इलाज का प्रावधान है। सभी ग्रामीण बहुत खुश हैं। डॉक्टर साहिल ने अपनी ड्यूटी के लिए कमर कस ली है। वह अपने दादा-दादी, मनोज ताऊ जी, बाला मौसी और अपनी मां से आशीर्वाद ले रहा है। आज फिर सुमन की आंखों से आंसू बरबस ही बह रहे हैं। पर आज ये आंसू खुशी के हैं जो मोती बनकर चमक रहे हैं।

 

-सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)

 

साप्ताहिक विषय: #आंसू बन गए मोती

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