सुलझते रिश्ते – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : दोपहर के बारह बज रहे हैं, पर अभी तक पता नहीं है—जेठानी जी का ।इनहें तो बस,बाहर जाने का बहाना मिलना चाहिए ।लगता है आज रसोई मुझे ही संभालनी पड़ेगी ।मेरे लिए तो मुसीबत खड़ी हो गई है ।थोड़ी देर और इन्तजार कर लेती हूँ ‘ बड़बड़ाती हुई नीतिका लेट कर टीवी देखने लगी ।

जेठ की चिलचिलाती धूप से थकी हारी पूजा जब मंदिर से लौटी तो दोपहर के एक बजने को थे।रसोई ठंडी पड़ी थी ।छोटी देवरानी नीतिका लेट कर टीवी देख रही थी ।आज फिर रसोई में देर हो गई थी जल्दी से कपड़े बदल कर वह रसोई में जुट गयी ।ससुर जी के खाने का समय हो रहा था ।समय पर खाना न मिलने पर उनका क्रोध पूजा को ही झेलना पड़ता ।

पापा की दूसरी बरसी थी आज ।उसका मन ठीक नहीं था।तभी माँ ने फोन किया था ” पूजा, काली मंदिर चलना है, चल सकोगी ?” दो साल से पापा की बरसी पर माँ काली मंदिर के भिखारियों को भोजन कराती है, इस बार भी वही सब करने में देर हो गई थी ।जल्दी से गैस पर दाल चावल एक साथ चढ़ा कर पूजा सब्जी काटने बैठ गयी ।

पति को आफिस के लिए देर हो रही थी ।वे पूजा पर बरस पड़े ” आज भी देर हो गई ।जब तुम छुट्टी पर रहती हो तब भी समय पर खाना कयों नहीं बनता?” पूजा का मन हुआ कह दे ,” नीतिका तो घर में थी ,क्या एक दिन वह रसोई नहीं संभाल सकती? पर वह तो सब्जी तक नहीं काटेगी ।उसके सुन्दर हाथ खराब जो हो जायेंगे ।

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माना कि मैं जरा बाहर चली गई थी, पर ऐसा भी क्या कि कोई जरूरत के वक्त काम ही ना आए,फिर परिवार का मतलब ही क्या हुआ?’पर इस समय वह काफी थक चुकी थी।अतः बात बढ़ा कर तकरार करना नहीं चाहती थी ।पूजा स्कूल में पढ़ाती है ।रोज सुबह पांच बजे से उसकी दिनचर्या शुरू हो जाती है ।सभी लोग सोये रहते हैं तभी वह झाड़ू पोछा कर लेती है ।

फिर नाश्ते की तैयारी ।पति और बेटे को तैयार होने में मदद करके नाशता देने के बाद स्नान करने चली जाती है ।फिर अपनी भी तो तैयारी करनी होती है ।सास ससुर की जिम्मेदारी भी उसी को संभालनी होती है ।क्या क्या करे पूजा? ससुर जी को भी नाशता गरम ही चाहिए ।उनकी दिन चर्या भी सुबह सात बजे से शुरू हो जाती है ।

सुबह गुड़ चने के बाद तुरंत नाशता, उसके बाद दवा चाहिए ।दौड़ते दौड़ते समय कब बीत जाता है, इसका अंदाजा नहीं लगता ।नौ बजे से स्कूल की ड्यूटी और छुट्टी होती डेढ़ बजे ।भाग कर घर आती है ।भूख तो उसे भी कस कर लगी होती है, पर कैसे खा ले वह।लगता तो है उसे, कोई गरमागरम खाना उसके लिए परोस दे।

लेकिन नहीं, उसके यहाँ का रिवाज है जब तक बड़े बुजुर्ग नहीं खा लेते ।तबतक घर की बहू बेटियां कैसे खा सकती है ।कमरे में बैठी सासूमा सब देखतीं हैं ।आज उनके मन में बड़ी बहू के प्रति सहानुभूति कयों उमड़ रही है? उनहोंने ही तो इतनी सारी जिम्मेदारी दुबली सी काया पर लाद दी थी ।

शायद कुछ अन्याय सा हुआ है उस पर ।पूजा जब अपनी माँ के घर थी ,तो माँ, भैया सब इकठ्ठे बैठते।अक्सर स्त्रियों के नौकरी करने पर जब भी बहस छिड़ती दोनों भाई बहन एक मत हो जाते ” पढ़ लिख कर औरतों का सर्विस करना कोई मायने नहीं रखता, अगर पति की आय अच्छी है ।क्या आवश्यकता है घर बार, बच्चों को आया के भरोसे छोड़ कर सर्विस करने की ।

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” फिर जितनी आमदनी होगी, नौकर और आया पर खर्च हो जायेंगे ।बच्चे भी माँ के लिए तरसेंगे ।थकी हारी औरत पति और परिवार की देखभाल तो क्या ठीक ढंग से खाना भी बना कर नहीं खिला सकती ।आजादी के नाम पर सिर्फ रूपया कमाना ही तो सब कुछ नहीं होता ” भाई कहता” मै तो अपनी पत्नी को कभी नौकरी नहीं करने दूँगा ” अरे भाई, पति तुम्हारे लिए ही तो कमा रहा है, घर पर रानी की तरह रहो,और ऐश करो ।”

पूजा भी कब चाहती थी कि दिन रात खटती रहे ।मायके में पिता की लाडली ।उसके एक इशारे पर दुनिया जहान की खुशियाँ कदमों में बिछ जाती।ब्याह करके ससुराल आयी ,तो लगा कि उसे वह सारी खुशियाँ मिल गई, जिनके सपने कभी देखा करती थी ।थोड़े दिन सब ठीक ठाक चला ।फिर कानों में आवाज़ पड़ने लगी कि पढ़ी लिखी बहू लाने का क्या फायदा?

जब घर में ही बैठना था ,तो इतनी पढ़ाई करने की क्या जरूरत थी ? हम तो शिक्षित बहू लाए ही यह सोच कर कि चार पैसे कमा कर घर में मदद करेगी ।फिर शुरू हुआ पूजा की पढ़ाई और डिग्री ढोने का क्रम ।हर दफ्तरों, स्कूल, संसथान का चक्कर लगाती पूजा थक कर चूर हो लौटती लेकिन किसी से यह ना होता कि उसे सहानुभूति के प्यार भरे बोल ही बोल दे।घर में सास की प्रताड़ना जारी रहती ।एक तो माँ बाप ने कुछ दिया नहीं, उपर से बेकारी का बोझा और डाल दिया हमपर ।

ब्याह कर आयी सुन्दर सलोनी, पढ़ी लिखी पूजा को माता पिता ने भरपूर संस्कार दिए थे ।फिर कहाँ चूक हो गई ।मायके में हर बात में निपुण पूजा ससुराल आते ही गलतियों की भंडार होने लगी थी ।जरा सी गलती पर सास अपना रौद्र रूप प्रकट कर देती ” माँ ने दहेज में पिचके बर्तन देकर टोटका किया है, इसलिए ब्याह होते ही मेरे बेटे का बिजनेस चौपट हो गया ।” शादी के समय पति का आटो पार्टस का बिजनेस एक दोस्त की साझेदारी में चलता था ।

दोस्त ने बेईमानी की ।लेकिन सारा दोष माँ के बर्तन पर गया था ।तब नहीं जानती थी कि टोटका किसे कहते हैं ।माँ ने तो सारे बर्तन देख कर और चुन चुन कर दिया था, फिर यह ? पूजा के कलेजे पर सौ सौ छुरियां चलती जब माता पिता को बिना कारण दोषी ठहराया जाता ।फिर भी वह शांत बनी रहती ।यही तो उसके अपने संस्कार थे।चेहरे पर मुस्कान बिखेरते पूजा अपने काम में लगी रहती ।क्या क्या याद करे वह? जब नयी बहू बन कर आयी थी—-

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चाय बना कर टेबल पर रखी थी, ” माँ, आपकी चाय,— ” वाक्य पूरा होने के पहले ही चाय का गिलास पटक दिया था सास ने, ” माँ ने इतनी भी तमीज नहीं सिखाई कि बड़ो को चाय हाथ में पकड़ाते हैं “। लेकिन माँ के घर में तो ऐसा नहीं होता, जब भाभी चाय बना कर टेबल पर रखती है तो माँ खुशी खुशी पी लेती है ।बेटा बाहर से लौटा तो पूजा के दोष बढ़ा चढ़ा कर गिना दिये गये ।पूजा ने कुछ कहना चाहा तो पति ने लताड़ दिया ” जुबान चलाती हो?

इस घर में रहना है तो घर के रीति रिवाज समझो”। सास ने गर्व भरी दृष्टि पूजा पर डाली और अपनी विजय पर फूल उठी।बहुत दौड़ धूप के बाद एक स्कूल में टीचर की नौकरी लग गई ।फिर शुरू हुआ व्यस्तता का दौर ।सुबह से रात तक दौड़ती दौड़ती हाँफ जाती।फिर बिट्टू का जन्म हुआ ।पर सास ने कभी उसे ममता लुटाने नहीं दिया ।बच्चे को जी भर के कभी गोद नहीं लिया ।चक्करघिन्नी सी वह दौड़ती रही ।न जाने किस मिट्टी की बनी थी वह, कभी किसी बात का बुरा नहीं मानती।

पापा बेटी से मिलने की इच्छा लेकर जब तब ससुराल आ जाते और बस दो मिनट के बाद ही ससुर जी को कहीं बाहर का काम याद आ जाता ।वे तुरंत निकल पड़ते।तब समझ नहीं पाई थी पूजा, लेकिन अब समझने लगी है ।पापा एक साधारण पोस्ट पर थे।इसलिए ससुर उन्हे अपने स्तर का नहीं समझते थे और हमेशा उपेक्षा करते रहते ।फिर देवर का ब्याह हुआ ।

देवरानी नीतिका सुन्दर, गोरी ।ननदो ने सलाह दी ” पूजा भाभी, आपवाला कमरा फिलहाल हम नयी दुलहन के लिए सजा देते हैं, फिर बाद में सब ठीक कर दिया जायेगा “। पूजा चुप ।चुप रहना उसने बचपन से सीख लिया था ।फिर कुछ दिनों की तो बात थी।वह और उसका बिस्तर बीच वाले कमरे में आ गया ।फिर भी वह खुश थी।सभी तो अपने ही हैं, कमरा बदल जाने से क्या फर्क पड़ता है ।लेकिन नीतिका अपने रंग में आ गई ।उसने बाद में कमरा बदलने से इनकार कर दिया ।

पूजा स्कूल में पढ़ाती थी।इसलिए दिन का भोजन नीतिका के जिम्मे पड़ा ।लेकिन सब्जी काटना, मसाला पीसना सरीखे सारे काम पूजा को ही करने पड़ते।पूजा दोपहर को स्कूल से लौटती तो सास ससुर खाने का इन्तजार करते मिलते ।फिर जल्दी से उनके पसंद की सब्जी छौंकती ।एक बार ससुर बीमार पड़े तो उनका बिस्तर बीच वाले कमरे में लग गया ।ससुर ने कहा ” मैंने यह घर अपनी कमाई से और अपने आराम और सुख के लिए बनाया है ” माँ भी एक बार मिलने आई ,तो देखा बेटी का बिस्तर बाहर वाले कमरे में लगा हुआ था ।

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वे कहना चाहती थी कि बेटी बहू का कमरा तो अंदर होना चाहिए ।पर कुछ कह न सकी ।तभी माँ की मंशा जान पूजा बोली थी ” सारा घर तो मेरा ही है ना, इसलिए मै पूरे घर में रहती हूँ ” एक कमरे में मै,एक में मेरी अलमारी एक मे मेरे कपड़े “। माँ ,बेटी की सोच पर हतप्रभ थी।नीतिका को दिन का खाना बनाना भी भारी लगता ।” इतने कम पैसों की नौकरी, तो घर से, काम से बचने का बहाना है “। सास ने सुना तो काम का बंटवारा कर दिया ” दिन का नीतिका और रात को पूजा बनायेगी ” सास ससुर के कपड़े धोना ,प्रेस करना, नाश्ता और भोजन कराना,इन कामों की कोई गिनती नहीं थी”

नीतिका के तेवर सास कुछ कुछ समझने लगी थी ।उसकी पूजा के प्रति जलन की भावना भी वे समझ रही थी ।उन्हे लगने लगा था की पूजा पर बहुत जुल्म किए हैं सबने ।इधर बड़ी बहू के प्रति उपजी सहानुभूति से वे बेचैन रहने लगी थी ।सबकुछ तो सास के मर्जी से ही करती पूजा ।मायके भी जाना होता तो दो चार घंटे के लिए ही ।

ससुर का आर्डर होता ” शाम की चाय तुम्हारे हाथ की ही चाहिए ” फिर चाहे वर्षा भी होती तो माँ छतरी लेकर बेटी को आटो में बैठा आती ।मायके जाने के लिए भी क्या आसानी से आज्ञा मिलती ।आठ दिन पहले से ही हिम्मत जुटाती हुई ससुर से पूछती, तो जवाब मिलता ” सास से पूछो” सास से पूछने जाती,” अम्मा जी, आप कहें तो माँ से मिल आऊं?” सास कहती ” मुझसे क्या पूछना, तुम जानो, तुम्हारा पति जाने ।

“पति कहते ” घर की स्थिति ठीक समझो तो जाओ,लेकिन जल्दी लौटना ” यह सब केवल पूजा ही कयों सहे? नीतिका ने तो कभी पूछना जरुरी नहीं समझा ।मन में सोचती ” शायद मेरे माता-पिता की मृत्यु पर ही ये लोग मुझे वहां रहने देंगे ” ईश्वर शायद सुन रहे थे।भैया का फोन आया ” पापा नहीं रहे पूजा “।

यह क्या सोच रही थी वह।अब अपनी सोच से घबराने लगी थी वह ।जीवन के तीसरे पड़ाव पर बैठी सास का सारा जीवन किताब के पन्नो के तरह फड़फड़ाने लगा है ।बड़ी बहू को कितना दबाया है उनहोंने ।वे भी तो एक दिन ब्याह कर आयी थी इस घर में ।यहां सास नहीं थी।मायके में माँ नहीं थी।दोनों घरों में प्यार और ममता के लिए तरस गयी थी, फिर भी जिम्मेदारी निभाती रही ।दो देवर ,दो ननद।दोनों की शिक्षा और ब्याह भी निभाया ।

लेकिन प्यार को तरसता मन,जुबान में कड़वाहट घोल गया था।यही कड़वाहट पूजा के आने तक बाहर निकलती रहती ।मन में एक डर बैठ गया ।बेटा तो अब बहू का हो गया ।लेकिन पूजा ने सास की मर्यादा का खयाल रखा।वह सबकुछ उनके मन के हिसाब से करती ।क्या कुछ नहीं किया, बड़ी बहू ने उनके लिए?

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उनकी हर इच्छा, पसंद, नापसंद को सिर आखों पर रखा।अपना अस्तित्व भुला दिया ।सबके सुख के लिए दिन रात खटती रही ।उनहोंने भी तो कभी प्यार भरे बोल कभी नहीं कहे पूजा को? औरत ही औरत की दुश्मन बन बैठे तो न्याय किससे माँगें? मंदिर से लौटी तो माँ भी ससुराल में साथ गई ।माँ को खिला कर विदा किया ।सास का आत्म चिंतन उन्हे लताड़ता रहा ।अब और नहीं ।अभी भी वक्त है ।दोपहर शाम में ढली।सास ने दोनों को बुलाया ।

दोनों आमने-सामने बैठी।सास ने कहना शुरू किया ” तुम दोनों अच्छी तरह मेरी बात सुनो” दिन का खाना नीतिका बनायेगी, तो रात की जिम्मेदारी पूजा पर होगी ” चाहे,कोई कहीँ आये जाये,किसी की छुट्टी रहे,अपना काम पूरा करना ही है ।यह क्या बात हुई कि स्कूल की छुट्टी रहने पर दिन का खाना भी बड़ी ही बनाये? “”” पर दीदी ने नहीं कहा था मुझे बनाने को,नीतिका बोली ।” दीदी क्यों कहे? क्या हर बात कहने की होती है?””

जब तुम देख रही थी, वह बाहर गयी है तो तुम्हे बना लेना चाहिए कि नहीं? अब पूजा को भी बोलने का मौका मिल गया ।” बड़ो की जिम्मेदारी क्या एक की ही है? —” मै इतना तो करती हूँ, फिर भी मुझे ही बदनाम किया जाता है ” आपलोग दीदी को ही अधिक मानते हैं ,यह क्या मै देखती नहीं? एक भी गुण बड़ी का तुम में है तो गिना दो कितनी बातें सही इसने ।

कभी जवाब नहीं दिया ।सास ने कहा ।वातावरण भारी होने लगा था ।सभी अपने कमरे में लौट गई ।नीतिका ने रात में खाना नहीं खाया ।रो धो कर कमरे में पडी रही ।सुबह हुई ।वातावरण भारी ही था।ूँ ।नीतिका तेज आवाज में बोली थी।” जलन की भावना मत रखो छोटी, बड़ी का एक भी गुण ,तुममें हो तो गिना दो।” कितनी बातें सही इसने, पर कभी जवाब तक नहीं दिया ” सास ने कहा ।वातावरण भारी होने लगा था ।

सभी अपने कमरे में लौट गई ।नीतिका ने रात में खाना नहीं खाया ।रो रो कर कमरे में पड़ी रही ।सुबह हुई ।वातावरण भारी ही था।रात देर से सोयी पूजा तो, सुबह उठने का मन ही नहीं कर रहा था ।दरवाजा खोला ,तो सास ने मुसकुराते हुए प्रवेश किया ।बोली , माना कि मुझे मायके और ससुराल में स्नेह नहीं मिला, इसका अर्थ तो यह नहीं है मै तुम लोगों पर कड़वाहट बरसाती रहूँ ।मेरी जुबान थोड़ी तेज जरूर है पर तुम दोनों मेरी प्रिय बहू हो।मै तुम दोनों को बहुत प्यार करती हूँ ।

हम सब एक छत के नीचे रह कर एक दूसरे के लिए कुछ करें, तो कितना अच्छा लगेगा ।तुम दोनों मिलजुल कर रहो।किसी के कहीँ आने जाने पर एक दूसरे का कार्य संभालो ।मायके से छोटी का परिवार आये तो बड़ी संभाले।बड़ी का आए तो छोटी संभाले।बाहर का काम सबके लिए घर के मर्द करेंगे ।

इस तरह सब एक-दूसरे के लिए सोचेगें ।मेरा शरीर भी जबतक चलेगा तुम लोगों की मदद किया करूंगी ।परिवार ऐसे ही चलता है ।इसे जोड़ना कठिन है, तोड़ना आसान ।अपनी बात समाप्त कर सास दोनों बहुओं से बोली ” चलो बच्चों, आज से सुबह की चाय और नाश्ता की जिम्मेदारी मेरी रहेगी ” पूजा और नीतिका एक दूसरे को देख मुस्कुराइ ।,अम्मा जी का हृदय परिवर्तन कैसे हो गया?— और वे भी उनके पीछे पीछे चल दी।

—- उमा वर्मा ।राँची, झारखंड ।स्वरचित, मौलिक । 

#जलन

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