सुखा चावल   : Moral stories in hindi

अब देख ना बेटा… कल की पार्टी में ही बहु स्वीटी की कितनी तारीफ हो रही थी…. वो तो हमारा स्टैंडर्ड इतना हाई है कि… लोगों को खूबसूरत बना ही देता है… वो महंगी साड़ी , कीमती ज्वेलरी , टॉप मोस्ट ब्यूटी पार्लर की सजावट …..!

     वरना जब शादी करके आई थी ना स्वीटी …तो ढंग से बात करना भी नहीं आता था …वो तो मैं कुछ बोलती नहीं हूं …आखिर दुनिया की नजर में बड़प्पन दिखाना भी तो है ना …. वरना हमारी ही तो इंसल्ट हो जाएगी ना…. फोन पर बहू के बारे में बिटिया से बात करते हुए निरुपमा जी ने कहा…. हंसकर बिटिया ने भी माँ की बातों का समर्थन किया…!

……. बात आई गई हो गई…….

 अगले दिन सभी लोग दोपहर के भोजन के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठे…..

” अरे स्वीटी सुखा चावल क्यों खा रही हो …दाल सब्जी नहीं है क्या …? कम पड़ गये क्या “..? निरुपमा जी ने स्वीटी को सुख चावल खाते देख आश्चर्य से पूछा…

नहीं मम्मी जी…दाल , सब्जी , चटनी सब कुछ है… आज मैं  ” चावल के स्वयं का स्वाद ” ….का अनुभव करना चाहती हूं उसकी अपनी खुशबू अपना स्वाद , उसका मुलायमपन……

  अहा…. वाकई चावल भी स्वयं में कितना स्वादिष्ट होता है …दाल सब्जी में लपेटकर प्रायः  हम उसकी  (दाल सब्जी ) की तो तारीफ करते हैं पर चावल की जाने अनजाने में उपेक्षा या नजरअंदाज कर जाते हैं…!

तो बस …आज इस लजीज थाली के उस मुख्य किरदार की खूबियों को , अनुभव …एहसास… करना चाहती हूं कि नहीं बाहरी आवरण दाल सब्जी के बिना भी उसकी अपनी एक खास अहमियत है ….स्वाद है… अस्तित्व है… विशेषता है…!!

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  सासूमाँ को समझते देर ना लगी… कल वाली बात शायद बहू ने सुन ली है ….और कितने अच्छे ढंग से उदाहरण देकर समझाने की कोशिश की है…

 मौके की नजाकत को देखते हुए सासूमाँ ने भी मौके पर चौका मारा और कहा ….तुमने बिलकुल ठीक कहा बहू ….शायद हम बाहरी आवरण को ही देखते रह जाते हैं और उसकी ही खूबसूरती का बखान करते हैं और वास्तव में आंतरिक खूबसूरती को नजर अंदाज कर देते हैं …आज तुमने इतने अच्छे ढंग से सुखे चावल का स्वाद लेते हुए उदाहरण समेत समझाया…

” तुम्हारा इस तरह समझाना ही तुम्हें विशेष बनाता है “…!

क्या अभी भी मुझे माफी मांगने की जरूरत है स्वीटी ….?  निरुपमा जी ने बिना संकोच के पूछ लिया…।

डाइनिंग टेबल पर बैठे सभी लोग निरुपमा जी की और और स्वीटी की ओर आश्चर्य से देख रहे थे कि आखिर बात क्या हो रही है..!

पर सास बहू एक दूसरे की बातें अनकहे ही सुन भी चुके और समझ भी चुके थे और माहौल खुशनुमा हो चला था…!

( स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

   संध्या त्रिपाठी

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