Moral stories in hindi: कारवां पर गाना बज रहा था… दिन महीने साल गुजरते जाएँगे हम ….सुन कर कामिनी जी उसके साथ साथ गुनगुनाने लगी ..अधरों पर एक मुस्कान आ गई…
जैसे ही ये पैराग्राफ़ आया … दुख सुख का साथी हा जी तुम्हें बनाया है … सुनते ही बरबस उनकी आँखों से आँसू की एक बूँद लुढ़क कर गाल पर आ गए जिसे पोंछते हुए वो अतीत में खो गई…
“ कामिनी यार चाय तो बना कर पिला दो…तब से बारिश में झूले पर बैठ कर मौसम का मजा ले रही हो…और मैं चाय को तरस रहा।” रमेश जी बरामदे में खड़े हो कर बोल रहे थे
“ आप भी आइए ना … कभी तो मेरी ख़ातिर मौसम का मजा ले लिया कीजिए ।” कामिनी जी झूले से उतर कर पति को खींच लाई
दोनों झूले पर बैठे कर झूल रहे थे रमेश जी आदतन गाना शुरू कर दिए और कामिनी जी भी साथ देने लगी और यही वो गाना था जो दोनों गुनगुना रहे थे…
“ आप तो सुर में है मैं बेसुरी ।” कामिनी शर्माती हुई बोली
“ मुझे तो अच्छा लग रहा है…अच्छा ये बताओ तुम मेरा साथ हमेशा दोगी ना चाहे सुख हो या दुख…?” रमेश जी गाने के भाव में डूब कर बोले
“ ये भी कोई कहने की बात है ..आप भी वादा कीजिए आप भी हमेशा मेरे सुख दुख के साथी रहेंगे…कभी अकेले छोड़कर नहीं जाएँगे?” कामिनी ने पूछा
हाथों में हाथ रख क़समें वादे निभा दोनों उस मौसम का भरपूर आनंद ले रहे थे ।
अब तो जब भी बारिश का मौसम होता दोनों निकल कर सैर पर चल देते … बच्चों को भी बारिश पसंद आने लगा था… समय गुजरता गया…
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बच्चों के ब्याह के कुछ समय बाद ही अचानक एक दिन रमेश जी दिल का दौरा पड़ने से चल बसे… कामिनी जी को गहरा सदमा लगा था…वो कभी ठीक ठीक रहती कभी सब भूल जाती एक दिन ऐसे ही सोसायटी के पार्क से निकल कर बाहर सड़क पर चली गई जाने किस धुन में जा रही थी कि सामने से आती गाड़ियों पर नज़र ना गई और एक्सीडेंट हो गया… जान तो बच गई पर पैर पर पहिया गुजर गया और वो चलने फिरने में लाचार हो व्हीलचेयर पर आ गई… बेटा अपने पास ले आया था और उसके साथ ही आ गई थी काम करने वाली मुनिया ।
“ मम्मी जी” बहू की आवाज़ सुन कामिनी जी पुरानी यादों से बाहर निकल आई
“हाँ बहू बोलो?”
“ मम्मी जी देखिए ना मौसम इतना अच्छा हो रहा है…किशोर और बच्चे बाहर जाने की ज़िद्द कर रहे हैं …. हम जल्दी जाकर आ जाएँगे… मुनिया को कह दिया है वो आपके पास से हटेंगी नहीं ।” बहू जूही ने कहा
“ हाँ बहू जाओ … सँभल कर जाना।” कह कामिनी जी खिड़की की तरफ़ देख बाहर का नजारा देखने की कोशिश करने लगी जहाँ परदे लगे थे
जूही के जाते मुनिया कमरे में आ गई…
“ मुनिया बाहर बारिश हो रही है क्या …जरा परदा हटा तो।” कामिनी जी ने कहा
“ हाँ मेमसाहेब बहुत अच्छा मौसम हो रखा… तभी तो सब बाहर घुमने वास्ते गए।” कहते हुए मुनिया ने परदे हटा दिए
कामिनी जी जैसे ही बाहर का मौसम देखी बुदबुदा उठी ,” बोलते थे सुख दुख में हमेशा साथ दोगे.. छोड़ कर तो चले गए… वो दुख कम था क्या अब चलने फिरने में भी लाचार हो कर रह गई… तुम होते तो हम भी इस मौसम का आनंद लेते ना..।”
मुनिया कामिनी के चेहरे के भाव देख समझ रही थी मेमसाहेब को साहब की याद आ रही… वो उनके घर कई सालों से काम करती आ रही थी… ऐसे मौसम को देखते ही दोनों सैर सपाटे पर निकल जाते थे… एकदम नए युगल जोड़ों की तरह …
मुनिया पास में रखा व्हीलचेयर लाकर कामिनी जी को बोली,” आओ मेमसाहेब इधर बैठो खिड़की के पास ले चलती हूँ….ये मौसम आपको बहुत भाता हैं ना।”
“ पहले भाता था मुनिया जब तक साहब थे अब तो इसे देख दुख होता… सब याद आने लगता है ।” कामिनी जी उदास हो बोली
“ आप आए तो सही।” मदद कर मुनिया कामिनी जी को व्हीलचेयर पर बिठा कर खिड़की तक ले गई
बाहर का नजारा देख दोनों के चेहरे के भाव बदल रहे थे…एक के चेहरे पर सुख के साथ दुख के भी तो वही दूसरे के चेहरे पर बस दुख।
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“ देखो ना मेमसाहेब सब कितने खुश नजर आ रहे हैं.. मस्ती कर रहे हैं कितना सुख मिल रहा ना सबको…पर ये मौसम जब भी आता मेरा दुख ताजा कर जाता… वो दिन कभी सपने में भी ना भूल सकती जब मेरा पति शाम की चौकीदार की ड्यूटी ख़त्म कर घर आ रहा था… मैं बारिश का मौसम देख चिंता में मरी जा रही थी… और वो मुझे फोन कर बताया एक साहब ने सस्ते में मोटरसाइकिल दी है आज उसी से आऊँगा… तुम तैयार रहना साथ में कहीं घुमने चलेंगे …. मैं भी ख़ुशी के मारे तैयार हो कर निकल गई… वो बावरा गाना गुनगुना रहा था… बहुत खुश था और फिर ना जाने कैसे मोड़ पर अचानक से ट्रक से टक्कर लगी मैं तो दूर जा गिरी पर वो बच ना सका… और तब से बारिश देख सिहर जाती हूँ…एक पल में सुख दूजे पल दुख की बेला आ गई।”मुनिया भरे गले से बोली
“ तेरा मेरा दुख साझा ही है मुनिया….दोनों ने पति को खो दिया और हम उन्हें ही याद कर रोती है…किसको पता किसकी क़िस्मत में कितना सुख लिखा कितना दुख…अब तो मैं बच्चों को देख खुश हो लेती उनमें ही अपना सुख देखती हूँ … ये बता तेरी पूर्वी कैसी है…बेटी दामाद सब ठीक है ना?” कामिनी जी ने पूछा
“ हाँ मेमसाहेब.. कह रही थी माँ कामिनी आँटी का अच्छे से ख़्याल रखना …अब उनके सिवा हमारा है ही कौन…अब तो उनके सुख दुख में तुम ही उनका सहारा बन कर रहना ।” मुनिया ने कहा और कामिनी के पैरों के पास ज़मीन पर बैठ कर पैरों की मालिश करने लगी
“मुनिया भरे संसार में बहुत कम लोग मिलते हैं जो अपने सुख को छोड़कर किसी के दुख में साथ देते हैं… तू चाहती तो वही रह कर कही काम करती अपना सुख देखती पर तुमने मेरे साथ आने की रट लगा दी और देख मेरे साथ सुखी तो ना रहेगी …दुखी ही रहेगी मेरी सेवा कर।” कामिनी एक ठंडी आह लेती बोली
“ मेमसाहेब जब आपके सुख के दिन थे तो मैंने भी सुख ही काटे अब दुख की बारी आई है तो इसे भी साथ साथ काट लेंगे…आप मेरी परवाह तो करो ही ना ….बाकी भगवान की दया से हमारे बच्चे लायक़ है जो हमें सुख देना जानते है।” मुनिया ने कहा
तभी दरवाज़े की घंटी बजी मुनिया लपक कर दरवाज़ा खोलने गई सामने जूही पति और बच्चों के साथ ख़ूब ख़ुश नजर आ रही थी।
“ बच्चे आ गए मेमसाहेब सब बहुत खुश है ।” मुनिया कामिनी जी को जाकर बोली
“ चल अच्छा हैं उन्हें भी ख़ुश रहने का अधिकार है ना ….कब तक मेरी हालत देख दुखी होते रहेंगे ।” कामिनी जी खिड़की के बाहर झांकते हुए बोली
“ सही कह रही है मेमसाहेब…हमारे दुख ख़त्म तो नहीं हो सकते पर बच्चों को देख कम तो हो सकते ना…।मुनिया ने कहा
कामिनी जी मुनिया को देख सोच रही थी… है तो ये मेरी सहायता करने को पर आज सही मायने में मुझे अपने सुख दुख की साथी नज़र आ रही है जो मेरे दुख को समझ उसे कम कर सुख देने का प्रयास कर रही है ।
दोस्तों ज़िंदगी में सुख के साथ दुख का भी एक पन्ना लिखा होता है… कभी कभी तो हम सोचते हैं हमारे दुख कितने है वो कितना सुखी है पर सच यही है हर सुख के पीछे परदे में दुख छिपा रहता है।
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
स्वरचित
#सुख-दुख