कमली अपनी बेटी जमुनी को जीवन जीने का तरीका बता रही थी —-” तुम सुबह सुबह सो कर जाग जाओ। परमात्मा का स्मरण करो।
फिर दिनचर्या से निवृत्त होकर अपने काम में लग जाओ। पढ़ने जाना है तो स्कूल या फिर कालेज जाओ। नौकरी है तो फिर नौकरी के लिए जाओ। लेकिन घर से बाहर निकलने के पहले जलपान जरुरी है। बिना कुछ खाये पीये कहीं भी नहीं जाना चाहिए।जमुनी मां की बातें चुपचाप बैठकर सुन रही थी और हं हं करती थी। संयोगवश वह दिन रविवार था।
किसी को भी कहीं आने-जाने की जरुरत नहीं थी। सभी घर में आराम फरमा रहे होते और इधर कमली अपनी एकलौती बेटी जमुनी को तहज़ीब और संस्कृति की मिली जुली घुट्टी पिला रही थी और वह भी इत्मीनान से मां की गोद में बैठकर ध्यान से सुन रही थी। जब बात पूरी हो गई तो मां ने कहा बेटी जाओ और घर के कामकाज को निपटाओ।”
जमुनी के बाबूजी धनाजी एक कारखाने में काम करते थे। वह कागज़ फैक्ट्री थी। एक दिन अचानक उनका बायां हाथ फंस गया और कलाई तक कट गया। बहुत दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे। गनीमत रही कि सिर्फ कलाई तक ही काटने की नौबत आई। नहीं तो चर्चा तो चल रही थी कि बायां हाथ ही काटना होगा लेकिन ईश्वर की कृपा से ऐसा नहीं हुआ। तीन महीने तक लगातार अस्पताल में इलाजरत रहे। सारा खर्च फैक्ट्री ने वहन
किया। अब वे नियमानुकूल काम करने के योग्य नहीं रह गये थे इसलिए फैक्ट्री ने उनको नौकरी के लिए अयोग्य घोषित करके घर भेज दिया। उनके जितने भी रुपये थे एक एक पैसे का भुगतान कर दिया था। और उनके एवज में किसी एक व्यक्ति को नौकरी की बात थी तो उस समय जमुनी बहुत ही छोटी थी। अतः कमली को नौकरी मिली। कमली फैक्ट्री में काम करने लगी। काम करते हुए उसे पांच साल हो गये हैं। उसी से घर का सारा
खर्चा चल रहा है। कोई दिक्कत नहीं है। धनाजी को वस्तुत: अब तो एक ही हाथ रह गया है। एक हाथ से जितना कुछ करना चाहिए या हो सकता है उतना तो कर ही लेते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि उस दिन जो घटना घटी थी उसी दिन उनकी जीवन- लीला समाप्त हो जाती। किंतु भगवान बड़ा ही दयालु और कृपालु है जिसने कमली और जमुनी के भाग्य से उनकी रक्षा की।या फिर हो सकता है कि वे ही भाग्यशाली हों। यह कहा जाता है
इस कहानी को भी पढ़ें:
कि जिसकी जितनी आयु होती है वह उतना भोग हर हाल में करता ही है। खैर कुछ भी हो परिवार में अमन-चैन कायम है। तीन लोगों का एक छोटा-सा आदर्श परिवार। शांति बरकरार है। धनाजी एक सामाजिक प्राणी हैं। आध्यात्मिक रुचि संपन्न हैं। कमली और जमुनी का सहयोग भी इनको प्राप्त होता है। इस परिवार के तीनों लोगों स्वभाव बहुत ही अच्छा और मिलनसार है।सब के सब किसी की आवश्यकता के समय मददगार साबित होने से परहेज़ नहीं करते।
कुल मिलाजुलाकर यह एक ऐसा परिवार है जिसमें आज की तारीख में गुण ही अधिक हैं। अभी तक तो कोई ऐसा अवगुण नजर नहीं आया है जिसके संबंध में पाठकों को जानकारी दी जा सके।
कमली का रंग गोरा, रूप बहुत ही सुन्दर, और छरहरी किशोरी थी। वह आठवीं कक्षा की छात्रा थी।
गांव के विद्यालय में ही पढ़ रही थी। पढ़ने में बहुत तेज नहीं तो बहुत कमजोर भी नहीं थी अर्थात वह औसत दर्जे की विद्यार्थी रही थी। किंतु सुशील और समझदार तो थी ही। मां की दुलारी जरुर थी लेकिन अपने मन की नहीं थी। मां के जाने के बाद अपने बाबूजी को भोजन कराने के बाद ही स्कूल जाती। स्कूल से वापस आती तो बाबूजी की खोज खबर अवश्य लेती। इसके बाद
ही कुछ खाती-पीती और साथ ही अपने बाबूजी के लिए भी पूछ लिया करती। समय की यात्रा कभी भी किसी कारण से रुकती नहीं वह अनवरत जारी रहती है। यात्राएं तो यात्रियों की रुकती हैं और फिर शुरु हो जाती हैं। व्यवधान तो व्यक्तियों के जीवन में उत्पन्न होता है समय के साथ कभी ऐसा नहीं होता।
अब जमुनी दसवीं कक्षा की छात्रा है। अगले साल बोर्ड परीक्षा में शामिल होगी। कमली और धनाजी ने उसके लिए एक ट्यूटर रखा है,जो रोज शाम में उसे पढ़ाने के लिए आते हैं। सुदर्शन जी एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक हैं। वे अनुभवी हैं। अभी शादी शुदा नहीं हैं। उनकी उम्र लगभग पच्चीस की रही होगी। बढ़िया ढंग से समझा कर पढ़ाते हैं। उनके पढ़ाने से जमुनी संतुष्ट है।जमुनी की संतुष्टि का मतलब हुआ कि उसके माता-पिता भी संतुष्ट हैं। जिसका नतीजा यह हुआ कि बोर्ड की परीक्षा में वह प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई। घर में खुशियां मनाई गई। सबको मिठाइयां बांटी गई।
सुदर्शन जी के लिए पूरे परिवार में सम्मान का भाव था। वे भी बहुत शालीन और संस्कारवान थे। कमली और धनाजी के लिए आदर का भाव रखते थे और वैसा ही आचरण भी किया करते थे। धीरे-धीरे वे इस परिवार से घुल-मिल गये थे। एक दिन धनाजी से कह रहे थे —” जब वे अभी पांच साल के रहे होंगे तब ही उनकी मां की मौत हो गई थी। मां सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षिका थी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
रास्ते में ठोरा नदी थी जिसे नाव से पारकर जाना और फिर आना पड़ता था। आने के समय नाव में हलचल सी होने लगी। बरसात का मौसम था। नदी में अधिक पानी के साथ तेज धार भी थी। नाव एक करवट होती हुई नदी में डूब गई। उस पर चालीस लोग सवार थे। उनमें से तीस लोगों को बचा लिया गया और दस जो अभागे थे वे डूब गये। उन्हीं में से एक अभागिन मेरी मां भी थी जो बहुत प्रयास के बाद भी नहीं बचायी जा सकी।”
धनाजी और कमली तो दुखी हुए ही साथ ही जमुनी को तकलीफ़ हुई चूंकि वह दो साल से उनसे जो पढ़ती रही थी।
आज कमली ने धनाजी से कहा —-” जमुनी की आगे की पढ़ाई की व्यवस्था तो करनी ही होगी। उसका नामांकन तो महिला कालेज में करवा दिया जाना चाहिए। जहां एम् ए तक की पढ़ाई होती है।”
धनाजी ने कहा —” हं हं, इसके लिए जानकारी ले लेता हूं कि कब से नामांकन कार्य होगा। अभी तो मैं कालेज में जा रहा हूं और पता कर लूंगा कि नामांकन फार्म मिल रहा है या नहीं। यदि मिलता होगा तो खरीद कर लेते आऊंगा और उसे भरकर जमा कर दूंगा।”
जमुनी का नामांकन हो गया। अगले महीने से पढ़ाई होने वाली है।वह कालेज जाने आने लगी है। पढ़ने में मन लग रहा है। विज्ञान की छात्रा है। शहर के एक कोचिंग सेंटर में क्लास करने भी जाती है। ऐसे ही समय के साथ वह एम एससी जीव विज्ञान में पढ़ने लगी और दो वर्षों बाद पास भी हो गई। अब उसके मन में यह बात आई कि वह एक शिक्षिका बनेगी। उसने मां से कहा —” मेरा नामांकन बीएड में करवा दीजिए। “
मां ने कहा –” ठीक है।”
जमुनी ने बीएड की परीक्षा पास कर ली और शिक्षक बनने की प्रक्रिया से जुड़ गई। शिक्षक भर्ती परीक्षा में भी सफल हो गयी। अगले महीने से होने वाली काउंसलिंग में शामिल हुई। संयोगवश उसे गृह जनपद ही मिल गया। पन्द्रह दिनों के बाद सरोजिनी नायडू विद्यालय में उसने अपना योगदान दिया। सब कुछ सही रहा। समय से जाती और समय से आती किंतु धनाजी का ख्याल हमेशा करती। उनके लिए पूरी व्यवस्था बनाकर ही जाती।
उसके व्यवहार से कमली भी बहुत खुश थी। कभी मुंह पर तो कभी पीठ पीछे उसकी प्रशंसा करते नहीं थकती।
एक दिन कमली ने धनाजी से कहा —-” अब मैं धीरे-धीरे फैक्ट्री के काम से ऊबने लगी हूं। हां, एक बात मेरे मन में चल रही है कि जमुनी की शादी किसी योग्य लड़के से क्यों नहीं कर दी जाये?”
धनाजी ने कहा —” हां हां, मैं तुम्हारी बातों से सहमत हूं। वैसे मैं भी एक दिन जब एकांत में था तो इस संबंध में विचार कर रहा था। एक बात और मैं तुमको बतला देना चाहूंगा कि सुदर्शन जी भी अब एक सरकारी स्कूल में शिक्षक बन गये हैं। तो क्या उनके लिए हमलोगों को प्रयास नहीं करना चाहिए? यदि कहोगी तो मैं उनके पिता जी के साथ बातचीत करुंगा।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
कमली ने कहा —” आपका सुझाव बढ़िया है। मैं उसका स्वागत करती हूं।आप इसके लिए कोई शुभ मुहूर्त देखकर अपना कदम बढ़ा सकते हैं।”
कमली के पेट में कुछ दिनों से दर्द रहने लगा है। पेट दर्द की दवा खाने से आराम मिलता है किन्तु उसका असर समाप्त होते ही फिर दर्द होने लगता है। धनाजी ने कहा —-” आज चलो डॉ साहब से दिखा लो। वे जांच पड़ताल करने के बाद जो कुछ पायेंगे उसी के अनुसार दवा देंगे तो उसका असर कुछ और ही होगा।”
जांच के बाद पता चला कि पेट में गालब्लैडर में पथरी हो गई है। जिसका आकार बड़ा हो गया है। डॉ साहब के मुताबिक इसका एकमात्र इलाज आपरेशन ही है। इसके लिए दवा कारगर साबित नहीं होगी।
यह सबके लिए चिंता की बात है लेकिन जब रोग शरीर में प्रवेश कर गया है तो उसका निवारण भी अति आवश्यक है। भले ही वह आपरेशन ही क्यों न हो?
धनाजी सुदर्शन जी के पिता जी से मुलाकात की। दोनों के बीच बातें हुईं। प्रेम जी ने कहा —–” मैं आपके प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार करता हूं। लड़की देखने का कोई सवाल ही नहीं है। हमलोग किसी पंडित जी से मिलें और शुभ मुहूर्त पंचांग के अनुसार तय कर लें।”
धनाजी ने कमली को जब यह बात बताई तो वह खुशी से झूम उठी।
जिस दिन जमुनी की बारात आने वाली थी उसी दिन अचानक कमली के पेट में इतना जोरों का दर्द हुआ कि उसे तत्क्षण अस्पताल ले जाया गया। डॉ साहब ने कहा कि –” समस्या बहुत ही संगीन है। अविलंब आपरेशन करना होगा।”
बारात दरवाजे पहुंच गई है।
गाजे-बाजे से वातावरण में संगीत भर गया है। सबके लिए आज का दिन तो खुश होने और खुशियां मनाने के लिए है लेकिन दूसरी ओर दैव योग से कमली अस्पताल में इलाजरत है और जीवन तथा मौत से जूझ रही है। जमुनी बहुत ही चिंतित है। धनाजी बारातियों से मिल जुल रहे हैं किन्तु उनका मन तो अस्पताल में ही है।
इस बात की जानकारी सुदर्शन जी और उनके पिता जी को नहीं थी। किसी द्वारा जब उन्हें यह बात मालूम हुई तो उन्होंने धनाजी से कहा —-” आप जब इतनी मुसीबत में पड़ गये हैं तो बताया क्यों नहीं?
आपकी समस्या हमारी है और हमारी समस्या आपकी है। आप यहां की सारी रस्में बंद कर दें और यथाशीघ्र अस्पताल में हमारे साथ चलें। सभी वहां पहुंच गये। जमुनी मां के पास खड़ी हो कर रो रही थी। धनाजी और सुदर्शन जी उसे ढाढस बंधा रहे थे।
कमली ने सुदर्शन जी के हाथ में जमुनी के हाथ पकड़ा कर मानो चिरशांति को प्राप्त हो गयी।
अयोध्याप्रसाद उपाध्याय, आरा
मौलिक एवं अप्रकाशित।