सुख – बरखा दुबे शुक्ला

नेहा के पास रहने आयी उसकी माँ दोपहर में बोली

“बिटिया कल तुम्हारे भईया का फोन आया था, तो पूछ रहे थे माँ कब लेने आये । “

“अरे माँ अभी जाने की बात न करो ।” नेहा बोली ।

“अरे बिटिया एक महीना हो गया है , अब घर वापस जाएंगे ।”

“माँ पहली बार इतने दिन रही हो , पिताजी के रहते तो कभी चार दिन से ज्यादा नही रुकती थी ।”

“हाँ बिटिया उनका मन तो जहाँ शुरू से रहे, वही लगता था , अब तुम्हारी जिद्द के कारण मैं भी इतने दिन रुक गयी ,नही तो बेटी के घर रहते हुए माँ अच्छी लगती है कही ।”

“अरे माँ कौनसे जमाने की बात कर रही हो ,तुम ।पता है तुम्हारे आने से तुम्हारे दामाद तो एकदम खुश है ।”

“हाँ बिटिया , भाग्य से मिलते है ऐसे दामाद , बिटिया तो अपनी होती है , माँ के आने से खुश होगी ही , पर जब दामाद अपनापन देते है , तभी तो बेटी के घर माँ का मन लग पाता है , नही तो मैं रह पाती इतने दिन ।”

“सच माँ आपको अच्छा लगा , पर पिताजी की कमी तो खलती है।”

हाँ बिटिया , वो कमी तो कभी पूरी नही हो सकती ,पर तूने तो इन दिनों मुझे वो खुशी दी,कि मैं बता नही सकती , तू तो जानती है , तेरे नाना नानी मेरे बचपन में ही चल बसे थे , मुझे मेरे चाचा चाची ने पाला ।”

“हाँ माँ पता है न ।”

“चाचा तो स्नेह करते थे , पर चाची ने हमेशा ही बोझ समझा । जैसे तैसे बी.ए .करवा कर जो पहला रिश्ता आया , वही शादी कर दी ।वो तो किस्मत अच्छी थी , जो ससुराल अच्छा मिला , ससुर थे नही , सास ने मां सा स्नेह दिया , तुम्हारे पिताजी को तुमने देखा ही था , कितने सज्जन थे , बुआ चाचा ने भी बहुत मान दिया ।”

“माँ तुम भी तो सबको कितना चाहती रही , मैंने देखा है ,पिताजी के साथ मिल सारी जिम्मेदारियां निभाई ।”


“हाँ रे प्यार बाँटो तो प्यार ही मिलता है ,पर चाची में शादी के बाद भी बदलाव नही आया , जब भी मायके जाती , सुनाने से बाज नही आती ,पर मैं मायके आई उनकी बेटी को बड़ी हसरत से देखती , चाची उसे लाड़ लड़ाती , उसकी पसंद का खाना खिलाती । चाची मुझे सुनाकर कहती , शादी के बाद भी हमें चैन नही है । फिर तुम बच्चों के होने के बाद मैंने ही जाना छोड़ दिया ।”

माँ मन में इतना दुःख छुपा कर बैठी थी ,नेहा को पता न था ।

“माँ आपको कितना बुरा लगता होगा न ।” नेहा बोली ।

“हाँ बिटिया मायके को लेकर एक कसक तो थी , पर जब से तेरे घर आई हूं , पहले तो मैंने जी भर के नींद निकाली , फिर तूने मेरी मनपसंद किताबें लाकर दी, जिन्हें मैं आराम से बैठ कर पढ़ती रहती । रसोई घर में तो तूने मुझे पैर ही नही देने दिया ,पर अपनी महराजिन से बोल मेरी पसंद का सब खाना खिलाया , सच लाडो तूने तो इस एक महीने मैं मुझे मायके का सुख दे दिया , जिसके लिए मैं सदा तरसती रही ।” बोलते हुए माँ रो दी ।

“माँ तुमने तो बहुत बड़ी बात कह दी ,फिर क्यों जा रही हो ,अपनी बेटी को छोड़ कर ।”नेहा भी रो पड़ी ।

“अरे फिर आऊँगी न तुझ से ये सुख लेने ,फिर तुझे भी तो तेरे मायके बुलाऊंगी ,वैसे तेरे भईया भाभी भी मेरा बहुत ध्यान रखते है ।”

“हाँ माँ उस तरफ से मैं बेफिक्र हूँ ,भईया भाभी मुझे भी बहुत स्नेह देते है ।”

“हाँ बिटिया मेरे न रहने पर भी तेरा मायका सदा बना रहेगा ।”

“माँ अभी तुम्हें नाती पोतो सबकी शादी करनी है , समझी ।”

“हाँ मेरी माँ , अब चल चाय पिला ,वो तेरे दोनों नटखट भी आते होंगे स्कूल से ।”और माँ बेटी खिलखिला कर हँस दी ।

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