विभा अपने कमरे मे बेचैन हो कर इधर उधर घूम रही थी। जैसे जैसे समय व्यतीत हो रहा था उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। कभी सोचती आज शाम ही नहीं होता, कभी सोचती रमेश ऑफिस से ही कही टुर पर चले जाते तो अच्छा रहता। उसकी सोच पर कोई लगाम ही नहीं था। कुछ का कुछ सोच रही थी उसे समझ मे ही नहीं आ रहा था कि वह इस परिस्थिति को कैसे संभाले। उसे पता था कि शाम को रमेश के आने के बाद घर मे हंगामा होना तय है और वह इस हंगामे से बचना चाहती थी।,
इसलिए वह बेचैनी मे उटपटांग बातो को सोच रही थी,पर सोचने से क्या होता है समय तो अपनी गति से ही चलता है। शाम भी हुई, रमेश घर भी आया, परन्तु उसने जैसा सोचा था वैसा कुछ नहीं हुआ, और जो हुआ उसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। शाम को जैसे ही रमेश आया, उसकी माँ और बहन ने जमकर उससे विभा की शिकायत लगाई। रमेश ने अपनी माँ से बस इतना कहा- ठीक है मै देखता हूँ, उससे पूछता हूँ, आखिर उसने आपके साथ इसतरह का व्यवहार क्यों किया? उसे सोचना चाहिए कि
आप उसकी सास है उसे आपके साथ बदतमीजी नहीं करनी चाहिए। यह कहकर वह अपने कमरा मे चला गया।उसकी बात सुनकर उसकी माँ मन ही मन खुश हो रही थी कि आज खूब मज़ा आएगा। चली थी मुझसे जबान लड़ाने। अब देखो कैसे मेरा बेटा तुम्हारी खबर लेता है? और बहू को कैसी डांट पर रही है यह सुनने के लिए वह बेटे बहू के कमरा के दरवाज़े के पास जाकर ख़डी हो गईं। उधर विभा अपने कमरा मे बैठी डर से थड़थड़ कांप रही थी। पता नहीं अब रमेश उसके साथ क्या करेगा?
उसके मायके मे एक पड़ोसन की सास को जब भी उसपर गुस्सा आता वह अपने बेटे से उसकी लगाई बुझाई कर के उसे पिटवा देती थी। विभा ने बचपन से ही बात बे बात आंटी को पीटते देखा था। आज सुबह जबसे उसकी सास ने कहा था कि आने दें शाम को रमेश को तब बताती हूँ। तब से उसके जेहन मे उस आंटी की सास की बात ही आ रही थी कि कैसे वे अपने बेटे से अपनी बहू को पिटवाती थी। बात भी कुछ खाश नहीं हुई थी, परन्तु उसकी सास ने उसे अहं का मुद्दा बना दिया था।
सुबह रमेश के ऑफिस जाने के बाद विभा सभी के कपड़े धो कर बालकनी मे फैला रही थी तभी उसकी सास ने नाश्ता माँगा। विभा ने कहा माँ जी मै कपड़े फैला रही हूँ, पांच मिनट मे आकर नाश्ता देती हूँ। यह सुनते ही उसकी सास गुस्सा हो गईं और बोलने लगी मुझे जबाब देती है तेरी इतनी हिम्मत। आने दें रमेश को फिर बताती हूँ। सास के मुँह से यह सुनते ही उसे पड़ोस की आंटी की याद आ गईं और उसे लगा कि उसका पति भी आते ही माँ की बात सुनकर उसे मारने लगेगा। इस डर से ही वह सुबह से बेचैन थी।
रमेश के आने के बाद से तो वह डर से काँपने लगी थी। रमेश जैसे ही कमरा मे घुसा वह बोलने लगी, मुझे मत मारिये , मैंने कुछ भी नहीं किया है। रमेश विभा की हालत देखकर घबरा गया और बोला शांत हो जाओ, शांत हो जाओ। मै भला तुम्हे क्यों मारूंगा ? चुप हो जाओ। इसतरह जब उसने विभा को बहुत समझाया तब जाकर विभा की जान मे जान आई और वह थोड़ा शांत होकर बोली सही कह रहे है,आप मुझे नहीं मारेंगे? रमेश ने कहा नहीं मारूंगा। पर तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो? आपकी माँ ने बाहर आपसे मेरी इतनी शिकायत की है
फिर भी आपको मुझपर गुस्सा नहीं आया? विभा ने पूछा , क्योंकि उसे लग रहा था कि शायद मुझे डरे हुए देखकर वे ऐसा कह रहे है। पुनः रमेश ने कहा नहीं गुस्सा नहीं आया। विभा ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा – पर क्यों? रमेश ने हँसते हुए कहा – तुम्हे इस घर मे आये हुए बस तीन महीना हुआ है और मै अपनी माँ को तीस वर्ष से जानता हूँ। उन्हें किसी भी बात को नमक मिर्च लगा कर कहने कि आदत है। वे अपने मन का नहीं होने पर कुछ भी कर सकती है। विभा ने टोकते हुए कहा – आप उनके लिए ऐसा क्यों कह रहे है?
वे आपकी माँ है। हाँ, मेरी माँ है तभी तो मै उन्हें अच्छे से जानता हूँ । रमेश ने यह कहते हुए अपनी बात जारी रखी। मै जब छोटा था तब हमलोग दादा- दादी और बुआ के साथ रहते थे। परन्तु माँ को साथ मे रहना पसंद नहीं था। जब भी पापा ऑफिस से घर आते माँ उनसे दादी और बुआ की दिनभर की बातो को नमक मिर्च लगाकर बताती। यह तब तक जारी रहा जब तक पापा हमें लेकर अलग नहीं हो गए। राखी ने भी यही सब सीख लिया है। वह भी जब तब पापा से मेरी शिकायत लगाती रहती थी। अब वे लोग तुम्हारे साथ भी ऐसा ही करना चाहते है,
परन्तु मै पापा के जैसा नहीं हूँ। मै कभी भी एक तरफ की बात सुनकर कोई फैसला नहीं लूंगा। मै तुमसे भी पूछूंगा की क्या हुआ था और जो सही होगा मै उसकी ही तरफदारी करूंगा। पहले तो यह सुनकर कि मेरी माँ को नमक मिर्च लगा कर बात करने की आदत है रमेश की माँ का दिल ही बैठ गया पर जब सुना की मै दोनो तरफ की बात सुनकर फैसला लूंगा तब उन्हें अपने बेटे पर गर्व होने लगा और उन्होंने सोचा, अपनी बात को किसी से भी बढ़ा चढ़ा कर करने की आदत मे सुधार लाऊंगी
मुहावरा – नमक मिर्च लगाना
लतिका पल्लवी