एक परिवार का रसगुल्ला बेचने से लेकर बीकानेरवाला जैसे ब्रांड बनने तक का सफर

दोस्तों आपने बिकानों की आलू भुजिया और रसगुल्ला जरूर खाए होंगे और इसके स्वाद के दीवाने आप हो गए होंगे.   आज के इस पोस्ट में हम आपको यही बताने वाले हैं कि मेहनत करके कैसे एक रसगुल्ला बेचने वाला इंसान बीकानेरवाला जैसे बड़े ब्रांड का मालिक बन सकता है. 

 आज के 65 साल पहले यानी 1955 ईस्वी में दो भाई केदारनाथ अग्रवाल और सत्यनारायण अग्रवाल राजस्थान के बीकानेर से दिल्ली काम करने के लिए आए. 



दिल्ली आने के बाद पुरानी दिल्ली में संतलाल खेमका धर्मशाला में 3 दिन के लिए रुके कारण यह था कि उस धर्मशाला में कोई भी व्यक्ति एक बार में 3 दिनों से ज्यादा के लिए नहीं रुक सकता था लेकिन उन्होंने एक जानकार के द्वारा उस धर्मशाला  में 1 महीने रुकने की व्यवस्था कर ली थी। 

 पहले तो उन्होंने इधर-उधर नौकरी की तलाश की। उसके बाद उन्होंने बाल्टी में भरकर बीकानेरी रसगुल्ले और कागज की पुड़िया में बांध बांध कर बीकानेरी भुजिया और नमकीन बेची। 

धीरे-धीरे लोगों को इनकी रसगुल्ला और बीकानेरी भुजिया पसंद आने लगा।  इन्होंने कुछ पैसा इकट्ठा करके पुरानी दिल्ली में ही एक दुकान किराए पर ले ली।  जब दुकान किराए पर ले ली तो दुकान के लिए कारीगरों की भी आवश्यकता थी उन्होंने बीकानेर से ही कारीगर बुलाए ताकि उनके रसगुल्ला और बीकानेरी भुजिया का टेस्ट में कोई फर्क ना आए। 



 अब अपनी दुकान पर रसगुल्ला और बीकानेरी भुजिया के साथ-साथ मूंग के हलवे भी बनाने लगे और उस दौरान उनकी दुकान इतनी प्रसिद्ध हो गई कि उनकी दुकान पर रसगुल्ला खाने के लिए लंबी लाइन लगने लगी इसके बाद उन्होंने यह नियम बनाया कि एक आदमी को एक बार में 10 से ज्यादा रसगुल्ले नहीं दिए जाएंगे।  शुरुआत में तो उन्होंने अपने दुकान का नाम  “बीकानेरी भुजिया भंडार” रखा था। 

 बाद में उन्होंने अपने बड़े भाई जुगल किशोर के साथ मिलकर “बीकानेरवाला” के नाम से ब्रांड लॉन्च किया।  यह नाम रखने के पीछे तर्क यह था कि वह लोग बीकानेर के रहने वाले हैं इसीलिए उन्होंने अपने ब्रांड  का नाम बीकानेरवाला  रखा और धीरे-धीरे यह ब्रांड  लोगों के जुबां पर चढ़ता चला गया। 

1972-73 में पहली बार “बीकानेरवाला” नाम से दिल्ली के करोल बाग में एक दुकान खरीदी गई और यही सबसे  पहली दुकान है जो बीकानेरवाला के नाम से खोली गई। 

अब पूरा परिवार इस बिज़नेस में शामिल हो गया और धीरे-धीरे बीकानेरवाला एक ब्रांड के रूप में उभरा और इस की ब्रांड वैल्यू 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा की हो गई। 

1980 के दशक में, जब पश्चिमी फ़ास्ट-फ़ूड पिज़्ज़ा की भारतीय बाजार में एंट्री हुई, तो अग्रवाल परिवार ने बाजार की डिमांड महसूस की और अपने आउटलेट्स का विस्तार किया.

1988 में ब्रांड को विश्व स्तर पर ले जाने के लिए, उन्होंने एयर-टाइट पैकेजिंग में मिठाई और नमकीन बेचने के लिए “बिकानो” लॉन्च किया. इसी क्रम में साल 1995 में, बीकानेरवाला ने हरियाणा के फ़रीदाबाद में एक नया प्लांट खोलते हुए, पेप्सीको के ब्रांड ‘लहर’ के लिए नमकीन का उत्पादन करने का एक विशेष समझौता किया. 

आज देश और दुनिया में ‘बीकानेरवाला’ और ‘बीकानो’ के नाम से 200 से ज्यादा आउटलेट हैं। अमेरिका, दुबई, न्यू जीलैंड, सिंगापुर, नेपाल आदि देशों में भी ‘बीकानेरवाला’ पहुंच गया है।  

दोस्तो आपके मन में इरादे अटल हो और आप कुछ नया करने का जज्बा हो तो  तो यह बहुत मुश्किल नहीं है बस आपको धैर्य के साथ मेहनत करना होगा।

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