रामप्रसाद जी पुलिस में सिपाही की नौकरी करते थे इस वजह से उनका अपने परिवार के साथ रहना मुमकिन नहीं था क्योंकि उनकी पोस्टिंग दूरदराज के थानों में होती रहती थी। लखनऊ में एक घर किराए पर लेकर अपने पत्नी और बच्चों के साथ रहते थे ।
एक महीने बाद रामप्रसाद जी रिटायर होने वाले थे और उनका सपना था रिटायरमेंट के बाद वो अपने बच्चों और पत्नी के साथ रहेंगे, नौकरी के दौरान उन्होंने अपने परिवार के लिए जो समय नहीं दिया अब वो पूरा समय अपने परिवार के साथ बिताएंगे। लेकिन इंसान को नहीं पता कि अगले पल क्या होने वाला है और वही हुआ रामप्रसाद जी के साथ भी। रिटायरमेंट के 2 महीने बाद ही हार्ट अटैक आया और उन्हें बचाया न जा सका।
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रामप्रसाद जी के दो बेटे थे छोटा बेटा तो अपने पापा के साथ ही रहता था लेकिन बड़ा बेटा जो सरकारी नौकरी करता था इसीलिए वह अपने परिवार के साथ लखनऊ में ही दूसरे मोहल्ले में रहता था.
तेरहवीं के बाद दोनों बेटे ने मिलकर डिसाइड किया कि मां अब 6 महीने एक बेटे के घर और 6 महीने एक बेटे के घर रहेगी।
विनीत रामप्रसाद जी का बड़ा बेटा था इसीलिए मां को सबसे पहले उसने ही अपने पास रखने के लिए ले गया।
जाने के दो-तीन दिन तक रामप्रसाद जी की पत्नी ममता जी अपने बेटे और बेटे को परिवार के साथ ही रही । लेकिन उसके बाद छत के ऊपर एक बरसाती घर था जिसमें घर का कबाड़ा रखा जाता था उसको नौकरानी से साफ करवा दिया गया और मां को वहीं पर शिफ्ट करा दिया गया।
मां से यह कहा गया कि बच्चों का अगले महीने एग्जाम है इस वजह से पढ़ाई में उनको डिस्टर्ब ना हो आप कुछ दिनों के लिए ऊपर रहे जैसे ही एग्जाम खत्म होगा फिर से आप बच्चों के साथ रहने लगेंगी।
बेचारी ममता जी भी क्या करती पति के असामयिक मृत्यु के बाद वह बेसहारा हो गई थी कहने को तो दो बेटे थे लेकिन अपने आप को असहाय महसूस कर रही थी। आखिर बुढ़ापे में कहां जाती इसीलिए अपने मन को दबाकर बेटा जैसे रखें उनको रहना पड़ रहा था।
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1 सप्ताह तो ममता जी ने छत के ऊपर के कमरे मे बिता दिया लेकिन अब उनका मन बिल्कुल ही नहीं लग रहा था क्योंकि उनका खाना-पीना भी बहू नौकरानी से ऊपर ही भिजवा देती थी। उनको ऐसा लगने लगा कि वह कहने को तो अपने बेटे के साथ रह रही हैं लेकिन ऐसा लग रहा है कि किसी कैदी को जेल की सजा दे दी गई हो। आप सब ने बचपन में अरस्तू द्वारा कही गई बात पढ़ा होगा कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। ममता जी भी अपने पोते पोतियो के साथ खेलना चाहती थी अपने बेटे बहु के साथ रहना चाहती थी।
एक दिन जब नौकरानी नाश्ता लेकर ऊपर आई उन्होंने नाश्ता करने से मना कर दिया यह बोलकर की भूख नहीं है फिर दोपहर में लंच लेकर भी जब बहू आई तो भी उन्होंने लंच करने से मना कर दिया।
शाम को जब विनीत ऑफिस से घर आया तो उसकी पत्नी अनीता ने विनीत से कहा, “मां जी ने आज पूरे दिन कुछ नहीं खाया पिया सुबह नौकरानी से नाश्ता भी भिजवाया था तो मना कर दिया था मैं भी दोपहर में लंच लेकर गई थी वह भी खाने से मना कर दिया था।”
रात में विनीत खुद खाना लेकर अपनी मां के पास गया और बोला, “आपने पूरे दिन खाना क्यों नहीं खाया किसी चीज की तकलीफ है तो आप बेझिझक कहो माँ। मां ने अपने बेटे से कहा, “बेटा मुझे खाने से ज्यादा जरूरी है अपनों का साथ। मुझे यहां पर ऐसा लग रहा है कि मैं किसी कैद खाने में बंद हूं मुझे मेरे छोटे बेटे के पास पहुंचा दो।” विनीत बोला, “मां आप कैसी बात कर रही हैं छोटा भाई क्या सोचेगा कि भैया मां को एक महीना भी अपने पास नहीं रख सके मां तुम्हें क्या तकलीफ है मुझे बताओ।”
मां ने कहा, बेटा मुझे इस ऊपर वाले कमरे में नहीं रहना है यहां पर एक चिड़िया भी नजर नहीं आती है। मैं तुम लोगों के साथ नीचे रहना चाहती हूं।”
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कुछ देर में विनीत की पत्नी ममता और उसके बच्चे भी आ गए थे। बच्चों ने अपनी मां से कहा, “मां दादी को हमारे साथ रहने दो ना हमें कोई दिक्कत नहीं होगी दादी को साथ रखने में।”
फिर क्या था उसी दिन से ममता जी को बच्चों के कमरे में शिफ्ट कर दिया गया।
पति की मृत्यु के बाद ममता जी बहुत कमजोर हो गई थी और उस पर बेटे बहू का इस तरह का व्यवहार से और भी अंदर ही अंदर टूट गई थी।
लेकिन अब अपने बहू-बेटे और पोते-पोतियो का प्यार पाकर फिर से उनके अंदर एक नई उमंग और ऊर्जा आने लगी पहले से अब स्वस्थ हो गई थी।
अब तो शाम को अपनी पोती के साथ पार्क में भी घूमने चली जाती थी। पार्क में जाने से वहां उनकी उम्र की कई औरतें भजन कीर्तन करती थी। ममता जी भी जाकर उसमें शामिल हो जाती थी।
बेटा विनीत भी ऑफिस जाते वक्त अपनी मां से दो घड़ी बात कर लेता था। कई बार ममता जी अपने बेटे से अपनी मनपसंद खाने की भी फरमाइस कर देती थी। विनीत अपनी मां के लिए पसंदीदा खाना लेकर आता और बच्चे के साथ ममता जी मिल बांट कर खाती।
विनीत का छोटा बेटा अपनी दादी से घुल मिल गया था अब वह अपनी मम्मी से ज्यादा अपनी दादी के पास रहने लगा। रोजाना रात में अपनी दादी से परियों की कहानी सुनता।
पहले बहू को लगा था कि सास के आने से उनकी आजादी छीन जाएगी लेकिन सास के आने से बहू को भी अब आराम हो गया।
बहू को भी अब कहीं जाना होता था तो यह चिंता नहीं होती था कि घर में बच्चे अकेले हैं धीरे-धीरे बहू को भी अपनी सासू मां मे अपनी मां नजर आने लगी।
एक दिन दोपहर में जब सभी एक साथ लंच कर रहे थे तो बहू अपनी सास ममता जी से बोली, मां जी अब तो आप पहले से बहुत ही तंदुरुस्त और स्वस्थ नजर आने लगी हैं।
ममता जी ने अपनी बहू से कहा, “बहू तुमने ऊपर वाले कमरे में मेरे लिए हर सुख-सुविधा के साधन पहुंचा दिया था यहां तक कि टाइम से खाना भी पहुंचा देती थी लेकिन वहां पर मौजूद अकेलापन मुझे खाए जा रहा था। मैं अपनों के साथ के लिए तरस गई थी।”
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जब से नीचे आई हूं और तुम लोग के साथ रहने लगी हूं पोते पोतियो के साथ कब समय बीत जाता है पता भी नहीं चलता है। शाम को पार्क में सत्संग सुनने चली जाती हूं वहां पर भी मेरी कई सहेलियां बन गई हैं। उनसे बातें हो जाती है।
बेटा विनीत बोला यह तो अच्छी बात है माँ, माँ हम समझ नहीं पाए थे बुजुर्गों को को सुख सुविधाएं और अच्छे खाने की जरूरत के अलावा प्यार और दुलार की जरूरत होती है जो उसे उसके परिवार में मिलता है।
बुजुर्ग जब साथ रहते हैं तो वह अपना आशीर्वाद अपने बच्चों पर बनाए रखते हैं।