स्नेह की सुनामी – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

सरिता जी आज मोहल्ले के दुर्गा मंदिर में सदा की तरह ढोलक बजा रहीं थीं।प्रत्येक सप्ताह ही महिलाओं के द्वारा मंदिर में भजन हो रहा था आज।विशेषता आज की यह थी कि आज “रामनवमी”थी।जवारे अपराह्न विसर्जित किए जा चुके थे।सुबह मंदिर में सार्वजनिक हवन भी हो चुका था। भजन के दौरान आज शाम सरिता जी का भावहीन चेहरा दमक सा रहा था। उंगलियां ही सिर्फ ढोलक पर थाप नहीं दे रहीं थीं,मानो उनका मन भी हर थाप पर थिरक रहा था।भजन के पश्चात आगामी मंगलवार को होने वाले

भंडारा कार्यक्रम की घोषणा पंडित जी के द्वारा की गई।”आप सभी, सनातनियों को सूचित किया जाता है कि ,मां जगदम्बे जी के मंदिर में आगामी मंगलवार को सार्वजनिक भंडारे का आयोजन किया जाएगा।आप सभी भक्त गणों से आग्रह है कि समय पर आकर माता का प्रसाद ग्रहण करें।इस बार भंडारे का समस्त व्यय सरिता जी के द्वारा उठाया जा रहा है।

आप अपनी श्रद्धा से माता रानी को जो भी भेंट चढ़ाना चाहें,अवश्य चढ़ाएं।जय माता दी।”पंडित जी के उद्घोषणा के बाद,सभी महिलाएं चकित होकर सरिता जी को देखने लगीं।मन की उत्सुकता को दबा ना पाने की विवशता से,पूजा ने पूछा ही लिया”अरे!सरिता भाभीजी,कैसे अचानक यह निर्णय लिया आपने?हमें तो अब तक कुछ भी नहीं बताया आपने।किस खुशी में भंडारा करवा रहीं हैं आप?बताइये ना!”

सरिता जी ने चहकते हुए बताया”आज सुबह ही प्रीति के पापा ने हमसे कहा कि प्रीति की वापसी की खुशी में करवा लो भंडारा।प्रशांत(प्रीति का भाई) ने भी यही इच्छा जताई,तो मैंने पंडित जी को कह दिया।माता रानी ने मुझ दुखियारी के आंचल में इतने सालों के बाद बेटी लौटाई है।उनके चरणों में समर्पित करूंगी मैं भंडारा।”

पूजा के साथ-साथ बाकी महिलाओं के भी माथे पर बल पड़ गए।प्रीति ,सरिता जी की बड़ी बेटी थी।छह साल पहले शादी हुई थी उसकी।हुई क्या ,उसने स्वयं ही अपनी पसंद के लड़के से भागकर शादी की थी।उसकी शादी कलंक का दाग़ बन गई थी सरिता जी के परिवार में।

बड़ी मन्नतों से जन्मी बिटिया को “प्रीति “नाम उसके पिता ने ही दिया था।छोटी सी जनरल स्टोर चलाते थे वे।बिटिया के नाम पर ही दुकान खोली थी बाजार में।प्रीति को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी थी।पढ़ाई में बहुत ज्यादा होशियार  नहीं थी वह।सरिता जी जब -जब डांटती पढ़ाई को लेकर,तब उन्हें ही चुप करवा देते”अरे!रहने दो सरिता।काहे बिटिया के सर पर तनी रहती हो जब देखो तब।पास में जो मैडम रहतीं हैं,उनके पास ट्यूशन लगवा दूंगा।पास होने लायक तो पढ़ ही लेगी।”

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मैडम जी के पास जाकर भी यही बात दोहराई थी उन्होंने “बस आप,पास होने लायक पढ़ा दीजिएगा। बारहवीं कर लें,फिर धूम धाम से शादी कर दूंगा।”ट्यूशन में भी मन नहीं लगता था प्रीति का।सरिता जी से जब भी मिलती सुधा मैम,कहतीं”थोड़ा ध्यान दीजिएगा,प्रीति पढ़ाई में मन नहीं लगाती।

परीक्षा में पास नहीं हो पाएगी।”सरिता जी जवाब में पति पर सारा दोष मढ़ते हुए कहतीं”मैडम जी,आप ही समझाया करिए,प्रीति के पापा को।हमारी तो सुनते ही नहीं।सारा समय बस उसके सामने शादी की ही बात करते रहतें हैं।कहते हैं,परिवार में पहली लड़की होगी जो बारहवीं पास कर लेगी।और क्या चाहिए?”

मैडम जी भी निरुत्तर हो जाती थीं।

सरिता जी से हर सप्ताह मंदिर के पास ही मुलाकात हो जाया करती थी।भजन मंडली में ढोलक बजाती थीं वो बहुत लगन से।छह साल पहले हंसती मुस्कुराती सरिता जी का काला पड़ा चेहरा आज भी नहीं भूलता।साथी महिलाओं से पता चला था कि प्रीति के पापा बारहवीं में थर्ड डिवीजन पास हुई बेटी

के लिए लड़का ढूंढ़ रहे थे,और प्रीति ने अपने ही मोहल्ले में रहने वाले एक विजातीय से भागकर मंदिर में शादी कर ली।उस दिन के बाद से सरिता जी के पति ने मन पर पत्थर रखकर सरिता जी को चेतावनी दे दी थी”सुनो सरिता,आज से हमारी एक ही औलाद है,प्रशांत।ना तुम कभी प्रीति से मिलोगी,और ना ही वह कभी हमारे घर आएगी।मैंने उसका बहिष्कार कर दिया।प्रशांत भी भूले से उसके घर के पास ना फटके।तुम्हें मेरी कसम है।”

पति की कसम के सामने मां विवश थीं।तब से उनके चेहरे में विषाद की रेखाएं दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि कर रहीं थीं।हर सप्ताह आतीं तो थीं वे,पर शिथिलता उनके चेहरे से झलकती थी।सुधा जब भी मिलती उनसे,भूलवश‌ प्रीति की कुशलक्षेम पूछ ही लेती।सरिता जी की आंखों के नीचे के स्याह गड्ढों में आंसू आ जाते,रुंधे गले से कहती वो”मैडम जी,आपके मुंह से उसका नाम तो सुना लेतीं हूं कम से कम।आप मत दुखी होइये।अपनी बेटी की तरह पढ़ाया था आपने।मुझसे कुछ छिपा है क्या?करमजली की मती ही मारी गई होगी,जो ऐसे घर गई। बाप यहां बेटी के लिए पाई-पाई जोड़कर गहने और जमीन खरीदता रहा,वहां बेटी ने खुद ही भाग्य को ठुकरा दिया।”

कैसी है?क्या बताऊं?बहुत तकलीफ़ में है।पति कुछ काम धंधा तो करता नहीं है,ननद और सास ने ताने दे-देकर अलग जीना हराम कर रखा है। बिल्कुल सूख गई है,डंडे की तरह।पेट से है अभी।”

सुधा ने हिचकिचाते हुए कहा “अरे,मां बनने वाली है आपकी बेटी।अब तो गले लगा लीजिए उसे। आर्थिक मदद भी तो कर सकते हैं उसकी आपके पति।”सरिता जी ने मंडली की महिलाओं से दूर आकर कहा”क्या बताऊं आपको?पहले तो घर में एक पुरुष था,और उसका गुरूर।अब तो बेटा भी बड़ा हो गया है।

गली -मोहल्ले से ताना सुनकर आता है और आगबबूला होकर पापा का ग़ुस्सा और भड़का देता है।समाज में अपना नाम खराब नहीं करना चाहते दोनों।मैं मां हूं पर उन दोनों की बात तो नहीं काट सकती।कमा तो दोनों रहें हैं।प्रशांत ने दुकान और बड़ी कर ली है,दिन रात मेहनत कर।बाहर का सारा काम वही देखता है।ये बस दुकान में बैठते हैं।एक बाप  को तो बेटी की दुहाई दे भी दूं,उससे मिलने को मनवा भी लूं,पर एक कमाऊ बेटे की जिद कैसे तोड़ूं मैं?”सरिता जी की बातें हरदम एक अनिश्चित सवाल छोड़ जाती थी,जिनके जवाब नहीं‌ होते थे।

कुछ साल पहले प्रशांत की शादी का कार्ड मिला।पिता ख़ुद देने आए थे।”आपको जरूर आना है मैडम।प्रीति की शादी का सपना तो पूरा नहीं हो पाया,पर प्रशांत की शादी धूमधाम से कर रहा हूं।”उस निमंत्रण में एक पिता का नब्बे प्रतिशत दुख और दस प्रतिशत सुख था।

एक दिन शाम को मंदिर में ही सरिता जी ने खुशखबरी सुनाई “प्रशांत की दुल्हन को जुड़वा बच्चे हुएं हैं। बेटा-बेटी।प्रशांत के पापा पार्टी देंगे।सबको बुलाएंगे।जरूर आइयेगा आप सब।”

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सुधा ने अब नहीं पूछा प्रीति के बारे में,पर सरिता जी की अनुभवी आंखों ने मन का मौन पढ़ लिया था।उदास होकर बोलीं”बेटे ने शादी में भी बुलवाने से मना कर दिया था।पापा भी बेटे के हां में हां मिलाते हैं। मैंने भी अपने सीने में पत्थर रख लिया।माता रानी की जैसी इच्छा।”

सुधा ने माता रानी की तरफ गौर से देखा,इनकी तो ऐसी इच्छा कभी हो ही नहीं सकती।जगत की माता हैं ये।

प्रशांत के बच्चे तीन साल के हो चुके थे।इस बार नवरात्रि का व्रत सरिता जी ,पत्नी  के साथ-साथ प्रशांत ने भी रखा था।पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना की इस बार उसने।सरिता जी बेटे को मां की आराधना में लीन देखकर सोचतीं,मां इसकी आंखों से नफ़रत की दीवार गिरा दे किसी तरह। भाई-बहन मिल तो लें हमारे जीते जी।ऐसे अलग-अलग ना वो खुश हैं ना ये।

रामनवमी में प्रशांत ने सारी तैयारियां कर ली थीं।कन्या भोजन के लिए चुनरियां, चूड़ियां और भी छोटे-छोटे उपहार लेकर आया था।इस बार उसकी बिटिया भी कन्या भोजन करेगी।कन्याओं के बैठने के लिए दो चौकी ज्यादा ही ले आया था वह।सरिता जी की बहू ने हंसते हुए कहा”क्या लल्ला को भी चौकी पर बिठाकर कन्या खिलाना है?प्रशांत झेंपकर बोला”अरे!अब लें आया तो क्या करूं।देखना माता रानी स्वयं ही दो और अन्यायों को भेज देंगीं घर।तुम तैयारी करो खाने की।खाना बन चुका था।कन्याएं भी एक-एक करके आ रही थीं

और चौकी पर बिठाई जा रहीं थीं।प्रशांत की बेटी सबसे छुटकी कन्या थी।लाल रंग की घांघरा चोली में ,लाल रंग की चूनर जैसे ही ओढ़ाई सरिता जी ने,मन निचुड़ गया।आंसू ढुलकने लगे तो आंचल से जल्दी पोंछ लिए।प्रीति को दो बिटिया हुईं।आज तक परिवार से किसी ने उनका चेहरा नहीं देखा था। सिर्फ सरिता जी ही डिलीवरी के समय अस्पताल जाकर दूर से देख आईं थीं अपनी नवासियों को।अब तो बड़ी हो गई होंगीं।कहीं कन्या खाने भी गई होंगी।उनके मोहल्ले में भी तो लोग नवरात्र करते हैं।

तभी पास की चार साल की एक बच्ची (निमंत्रित)के साथ दो बच्चियां और आईं ।आते ही‌ चौकी पर धम्म से बैठ भी गईं।पांव‌ सूने थे,सर पर चूनर भी‌ नहीं थी।सरिता जी ने पहचान वाली बच्ची से जब उन दोनों के बारे में पूछा तो , उन्होंने बताया,कि खेलते -खेलते ये भी हमारे साथ आ गईं।

प्रशांत चुनरी,चूड़ी और पानी का पात्र लाता हुआ बोला”देखा मम्मी,मैं कहां था ना।माता रानी ने भेजा दी कन्याएं।पूजन‌ शुरू हो हुआ।परात में पैर‌ धुलवाकर प्रशांत कन्याओं के पैरों में महावर भी लगाया।सरिता जी‌ चुनरी‌ चढ़ा रहीं थीं।प्रशांत ने जब कुमकुम‌ माथे पर लगाना‌ शुरु किया तो देखा अलग से दो चौकी पर  बैठी कन्याओं के‌ मुंह।ये तो हूबहू प्रीति का चेहरा था।मानो छोटी प्रीति बैठी हो।उन‌ दोनों‌ ने‌ भी‌ सबके साथ‌ खाना आरंभ कर‌दिया।प्रशांत तन्मय लीन होकर प्रीति की दो फोटो‌ कॉपी देख रहा था।रहा ना गया तो पास जाकर पूछा”मुझे जानती‌ हो‌ तुम लोग?तुम किसकी बेटियां‌ हो?बड़ी‌तो‌शांत रही पर‌ छुटकी‌ ने पोल‌‌ खोल‌ ही दी,मां का नाम बताकर।

प्रशांत को‌ दोनों कन्याओं में मानो‌ साक्षात दुर्गा का रूप दिखाई देने लगा।तभी बेटी ने प्रशांत से कहा”पापा भइया भी मझे‌ प्रणाम करेगा ना।मैं लड़की हूं।बात बाल‌ सुलभ‌ ही‌ थी,पर प्रशांत के मन में हाहाकार मच गया। उन दोनों बिनबुलाई‌ आई कन्याओं को यथासंभव भोजन करा ,कर श्रृंगार कर दोनों को घर छोड़ने गया।अंदर‌ जाकर‌

चिल्लाने‌ लगा,”प्रीति,प्रीति।’

प्रीति आई तो भाई को देखकर सीने से लग गई।इतने वर्षों से जो अपमान,गरीबी और मायका छूटने का विष पीती चली‌ जा रही थी,आज‌ वह बांध‌ टूट गया।नफरत की दीवार‌ जो इतने वर्षों से दो परिवारो में‌ आग‌ की तरह फैल‌ रही थी, प्रीति और‌ प्रशांत के आंसुओ से बुझने‌ लगी।

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सम्मान देकर प्रीति के परिवार वालों कोघर‌लेकर आया प्रशांत।सभी ने हाथ जोड़कर एक-दूसरे से क्षमा मांगी प्रशांत माता रानी की फोटो के सामने खड़ा‌ होकर माफी मांग रहा था।समाज और रिश्तेदारों की सोचकर,एक बहन जो इतने पास थी,कभी मिलने नहीं जा पाया।झूठे अहंकार के कारण।पैसे आ जाने से,वैसे‌ भी गरीबों से रिश्तेदारी निभती कहां है।जितना प्रशांत रो‌ रहा था,उतनी ही प्रीति।पूजा‌ वाले कमरे में‌अवाक से खड़े पापा‌ को देख सीने से जा लगी प्रीति।रोते हुए पूछा”आप अपनी‌ रानी बिटिया को माफ तो कर देंगे ना पापा? मैंने बहुत दिल दुखाया है आप सब का।मेरे बच्चों को मेरे किए की सजा मत देना पापा।बस मेरा मायका मुझे वापस दिला दो।”,

उस दिन एक‌ दुखियारे पिता का सारा‌अभिमान चूर, -चूर हो गया।भाई के मन में‌ जो‌ नफरत की दीवार पक्की‌ बनती जा रही थी, भांजियों को देख गायब सी हो गई।

 माता रानी के दर्शन हुए उसे,उन्हीं‌ भांजियों‌ में।माता की भक्ति और भांजियों के स्नेह की ऐसी‌ सूनामी उठी कि परिवारों‌ , रिश्तों के बीच‌ नफरत की पुरानी‌ दीवार आज‌ ढह गई।रामनवमी के दिन‌ घटी इस अद्भुत घटना ने ही भंडारे के‌ विचार को जन्म दिया।

शाम को सरिता जी अब अपनी बेटी के लिए परिवार‌ में‌ मिलने की बात माता रानी का चमत्कार बता रही थीं।

सच है,माता को जगत के रिश्तों की चिंता है।

बोलो सांचे दरबार की जय।

शुभ्रा बैनर्जी

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