” रीना..सुन रही हो..दो दिन बाद पापाजी आ रहें हैं..उनके लिये कमरा तैयार करवा देना।” किचन में काम कर रही अपनी पत्नी से मनीष ने कहा तो वो भड़क उठी। आँखें दिखाते हुए बोली,” क्यों आ रहें हैं तुम्हारे पापाजी..तुम नहीं जानते कि बच्चे अपने घर में किसी तीसरे आदमी को पसंद नहीं करते।”
” जानता हूँ यार..पर क्या करुँ…भाभी भईया के साथ जा रहीं हैं तो..कुछ दिनों की ही तो बात है..एडजेस्ट कर लो और बच्चों को भी…।” रीना के कंधों पर अपने हाथ रखते हुए मनीष ने उसे समझाया और ऑफ़िस चला गया।
मनीष के पिता विश्वनाथ बाबू एक सरकारी मुलाज़िम थे।अपनी सीमित आय में उन्होंने अपने दोनों बेटों राकेश और मनीष को भी अच्छी शिक्षा-दीक्षा दी थी।उनकी पत्नी सुशीला हमेशा उनकी सहयोगी रहीं थीं।
MBBS करके राकेश ने कुछ महीनों तक एक सरकारी अस्पताल में नौकरी की, फिर MS( Master of Surgery)की डिग्री लेकर वो मुंबई के एक प्राइवेट हाॅस्पीटल में अपनी सेवायें देने लगा।दो साल बाद उसने अपने ही जूनियर मित्र रीतु के साथ शादी कर ली।सुशीला जी ने थोड़ी आपत्ति जताई लेकिन विश्वनाथ बाबू ने उन्हें समझाया कि हमारा काम बच्चों की परवरिश करना और उन्हें अच्छी शिक्षा-संस्कार देना है जो तुमने दिया..अब उन्हें अपनी ज़िंदगी जीने दो।समय के साथ राकेश दो बेटों के पिता बन गये।
मनीष इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर गुड़गाँव की एक कंपनी में ज़ाॅब करने लगा।माता-पिता की सहमति से उसने भी अपनी पसंद की लड़की रीना से विवाह कर लिया।रीना भी एक बेटा मनु और बेटी राशि की माँ बन गई।
रिटायर होने के बाद विश्वनाथ बाबू सरकारी क्वाटर छोड़कर दो कमरों के किराये के फ़्लैट में पत्नी के साथ आराम की ज़िंदगी बिताने लगे।व्यस्तता के कारण बेटे-बहू नहीं आ पाते तब वो ही पत्नी के साथ उनसे मिलने चले जाते थे।कुछ समय के बाद उन्हें महसूस होने लगा कि उनके पोते-पोतियों को उनका आना अच्छा नहीं लगता है।बहुओं के व्यवहार से सुशीला जी को भी ऐसा ही आभास हुआ लेकिन फिर उन्होंने इस दुर्विचार को झटक दिया।
विश्वनाथ बाबू अपने स्वास्थ्य के प्रति काफ़ी सजग थें लेकिन सुशीला जी नहीं…।मधुमेह पहले ही उनके शरीर में प्रवेश कर चुका था..ब्लडप्रेशर भी ऊपर-नीचे होता ही रहता था।उन्हें कमज़ोरी होने लगी…फिर उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। एक दिन पति का हाथ थामे-थामे ही हमेशा के लिये अपनी आँखें बंद ली।विश्वनाथ बाबू अकेले हो गये..घंटों शून्य में निहारा करते।तब राकेश और मनीष ने तय किया कि पापाजी कुछ-कुछ महीने दोनों के पास रहेंगे तो उनका मन लगा रहेगा।रीतू ने कोई विरोध नहीं किया लेकिन रीना ने साफ़ इंकार कर दिया तब रीतू बोली,” कोई बात नहीं..पापाजी हमेशा हमारे साथ ही रहेंगे।”
राकेश के बच्चे काॅलेज़ जाने वाले थे..उनकी अपनी लाइफ़ थी, उसमें अचानक एक बुजुर्ग का आगमन उन्हें बहुत खला..उन्होंने तरह-तरह से अपने दादाजी को परेशान किया लेकिन फिर समझौता कर लिया।
राकेश को एक कांफ्रेंस में जाना था, रीतू भी उसके साथ जा रही थी इसीलिये उसने मनीष को कहा कि पापाजी कुछ दिनों तक तुम्हारे पास रहेंगे।रीना के बच्चे भी अब टीनएज़र थें और वे स्वयं भी फ्री लाइफ़ जीने की आदी हो चुकी थी, ऐसे में ससुर का आना उसे बंधन तो लगता ही।
बेमन से रीना ने कमरा साफ़ करवाया।अनमने ढ़ंग से उसने ससुर का स्वागत किया।उसे अपनी किटी पार्टी और मार्केटिंग के साथ समझौता करना अखर रहा था।मनु और राशि तो विश्वनाथ बाबू को ‘ ओल्ड मैन’ ही कहते थे।जिस घर में दोनों अकेले हा-हू करते थें, विश्वनाथ बाबू के रहने से उन्हें अब बंधन-सा लगने लगा था।दोनों जान-बूझ कर ऐसी हरकतें करने लगते ताकि उनके दादाजी गुस्सा होकर यहाँ से चले जाये लेकिन विश्वनाथ बाबू शांत रहते।तब मनीष ही अपनी सफ़ाई देता,” पापा..माइंड मत कीजियेगा..जब बच्चों को अकेले रहने की आदत पड़ जाती है तो बड़े-बुजुर्गों से उन्हें बंधन दिखाई देने लगता है।लेकिन आप चिंता न करें..धीरे-धीरे..।”
” मैं सब समझता हूँ मनीष…।” बेटे के कंधे पर हाथ रखकर विश्वनाथ बाबू मुस्कुरा देते।
एक शाम पार्क में टहलते-टहलते विश्वनाथ बाबू का सिर घूमने लगा।वो थोड़ी देर बेंच पर बैठ गये और फिर घर लौट गये।घर में घुसते ही उन्होंने मनु के कमरे से धुआँ उठता हुआ देखा तो चौंक पड़े।उन्होंने मनु का दरवाज़ा खटखटाया…विश्वनाथ बाबू को अचानक देखकर मनु सकपका गया,” आsss प..इस समय..।”उसका दोस्त तो तुरंत भाग गया और वो विश्वनाथ बाबू के पैरों पर गिर पड़ा,” दादू…प्लीज़, पापा से मत कहियेगा कि मैंने सिगरेट…।”
” कब से ये सब मनु…।” विश्वनाथ बाबू ने मनु को अपने पास बिठाकर प्यार-से पूछा।तब मनु बोला,” दादू..मम्मी-पापा तो अपने काम में बिज़ी रहते हैं..मैं बोर हो जाता हूँ तो…।” तब उन्होंने समझाया,” देखो बेटे..ये तुम्हारे पढ़ने के दिन हैं..मन न लगे तो बाहर खेलने जाओ..सिगरेट पीकर अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ करोगे तो अपने बड़े पापा की तरह डाॅक्टर कैसे बनोगे…राशि तुमसे छोटी है..उसपर क्या असर होगा…।”
” साॅरी दादू..अब कभी नहीं..आप पापा को…।”
” चलो…कमरे को साफ़ कर लेते हैं..तुम्हारी मम्मी आती होंगी।” कहते हुए वो कमरे की खिड़कियाँ खोलने लगे।उस रात डाइनिंग टेबल पर दोनों बच्चों को शांत देखकर मनीष को बहुत आश्चर्य हुआ।
डिनर के बाद विश्वनाथ बाबू ने बेटे- बहू को अपने कमरे में बुलाया और बोले,” मनीष..अभी तुम्हारे बच्चे किशोरावस्था में हैं..उनके मन में ऐसे कई सवाल उठते होंगे जिनका जवाब उन्हें सिर्फ़ अपने माता-पिता से ही मिल सकता है।इसलिये अपनी व्यस्तता से थोड़ा समय निकालकर अपने बच्चों के साथ उठो-बैठो..अपनी कहो..उनकी सुनो..।और बहू…राशि घंटों मोबाइल फ़ोन पर लगी रहती है।माँ के साथ के आगे मोबाइल फ़ोन की कोई अहमियत नहीं है।यही समय है उन्हें अपना वक्त देने का..।मेरी इतनी-सी बात मान लो तो..।” मनीष और रीना चुपचाप आँखें नीची करके सुनते रहें।
अगले दिन से रीना सहेलियों को फ़ोन न करके राशि के पास बैठने लगी।राशि को थोड़ा अजीब तो लगा लेकिन अच्छा लगा।मनीष भी मनु से स्कूल के बारे में पूछते और अपने समय की बातें बताते।मनु-राशि अब अपने दादू के पास बैठते…उनके साथ कभी शतरंज खेलते तो कभी लूडो और समय पंख लगाकर उड़ जाता।
विश्वनाथ बाबू के पास राकेश का फ़ोन आया कि पापा..हम लोग आ गये हैं..आप आ जाइये..तो उन्होंने तैयारी कर ली और मनीष को कह दिया कि सुबह मैं जा रहा हूँ।
अगली सुबह वो जाने लगे तो रीना ने उनके पैर छूकर अपने व्यवहार के लिये माफ़ी माँगी और बोली,” पापाजी..कुछ दिन और रुक जाते तो…।”
” नहीं बहू…जब बच्चों को अकेले रहने की आदत पड़ जाती है तो बड़े-बुजुर्गों से उन्हें बंधन दिखाई देने लगता है..उनकी आजादी में मेरा बाधक बनना तो ठीक नहीं है ना..।”
” लेकिन दादू…हमें तो आपसे बातें करने की आदत पड़ गई है..।” कहते हुए राशि उनसे लिपट गई।
” मुझे भी आपसे सोशल स्टडीज पढ़ने की आदत पड़ गई है।” मनु ने आकर उनके हाथ से बैग ले लिया।
” बहू..तुम ही इन्हें समझाओ…।”
” पापाजी…बच्चों का आपके साथ स्नेह का बंधन है..मैं भला..।” रीना बोली तो विश्वनाथ बाबू बोले,” लेकिन टिकट..।”
” भईया से मैंने कल रात ही कैंसिल करवा दिया था।”मनीष हँसने लगा।
” तो तुम पहले ही..।” अब तो विश्वनाथ बाबू को भी हँसी आ गई।
” आ-हा..दादू नहीं जायेंगे।” मनु-राशि एक साथ बोल पड़े और अपने दादाजी का बैग अंदर ले जाने के लिये झगड़ने लगे जो उनका अपने दादाजी के प्रति अपनेपन की भावना को दर्शा रहा था।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# जब बच्चों को अकेले रहने की आदत पड़ जाती है तो बड़े-बुजुर्गों से उन्हें बंधन दिखाई देने लगता है।
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