पीयूष और मेघा दोनों पति-पत्नी हैं। दोनों की शादी को 10 वर्ष बीत चुके हैं। पीयूष नौकरी के चलते अपने माता-पिता से दूर पत्नी मेघा और दो बच्चों सोहम एवं समायरा के साथ अलग शहर में रहता है। बेटा सोहम आठ साल का और बेटी समायरा एक साल की है।
कई दिनों से पीयूष और मेघा के बीच कुछ बातों को लेकर थोड़ी कहासुनी शुरू हो गई थी। मेघा को लगता कि इन दिनों वह पूरा घर अकेले संभाल रही है। बच्चों की देखभाल करना, स्कूल के काम, बच्चों को स्कूल छोड़ना, वापस लेकर आना, पीयूष की हर जरूरत का ध्यान रखना, घर के राशन से लेकर हर छोटी-छोटी चीज़ की जिम्मेदारी इन दिनों पूर्णतया मेघा के कंधों पर ही थी। जिनको पूरा करते-करते मेघा का पूरा दिन निकल जाता।
पीयूष के पास तो जैसे उनके लिए समय का अभाव हो गया था। जिस कारण से मेघा अंदर ही अंदर अब उदास रहने लगी थी। पति पीयूष ऑफिस के कामकाज में जरूरत से ज्यादा व्यस्त रहने लगे थे। इन दिनों हाफ ईयरली क्लोजिंग के कारण काम का प्रेशर जरूरत से ज्यादा पीयूष के कंधों पर आन पड़ा था। सुबह जल्दी निकलना और रात को देर से वापस आना बस पीयूष की यही दिनचर्या बन गई थी। पिछले दो तीन महीनों से तो रविवार भी मानो ऑफिस ही बना हुआ था या उस दिन भी किसी ना किसी कॉल पर काम के सिलसिले में घर से बाहर निकल जाते। क्योंकि कुछ क्लाइंट ऐसे भी थे जो सिर्फ संडे को ही मिलना पसंद करते थे।
एक दिन रविवार का दिन था।
पीयूष ने उठते ही मेघा से कहा “एक कप चाय पिला दो और कमरे का दरवाजा जरा बंद कर दो। बॉस का फोन आ रहा है। मुझे आज पूरा दिन लैपटॉप और फोन पर लगाना होगा।”
यह सुनकर आज तो जैसे मेघा का पारा मानो सातवें आसमान पर पहुंच गया था।
“बॉस बॉस बॉस जब देखो काम काम काम यह घर भी अब दफ्तर बन गया है। रविवार को भी चैन नहीं! ऐसा कहकर गुस्से में बुदबुदाते हुए मेघा कमरा बंद करके रसोई में चाय बनाने चली गई। बॉस से पांच से सात मिनट बात करने के बाद पीयूष मेघा के पास आकर उसे कहता है। “क्या हुआ मेघा? मुझे पता है तुम्हारा मूड क्यों खराब है।”
“जब पता है तुम्हें तो पूछ क्यों रहे हो” गुस्से में मेघा ने पति पीयूष को कहा।
इन दिनों मुझे अपने टारगेट पूरा करना बहुत जरूरी है। तुम्हें क्या पता ऑफिस में मैं एक टांग पर खड़ा होता हूं। इन दिनों पूरी मेहनत कर रहा हूं। पीयूष ने मेघा से कहा।
“परंतु इसका मतलब यह तो नहीं कि इंसान 2 मिनट की भी फुर्सत भी ना निकाल पाए अपनों के लिए?” अब मेघा ने थोड़ा नाराज़गी एवं थोडी उदासी होकर कहा।
तभी पीयूष ने कहा “पिछले 3 महीने से मेरी जो टारगेट है बिजनेस में बहुत गिरावट आ गई है। नंबर वन पोजीशन पर आने के लिए मुझे बहुत मेहनत की जरूरत है। मेरी सारी टीम दम लगाकर कोशिश एवं जी जान लड़ा रही है। और नए लड़के भर्ती करने में काफी समय लग रहा है। तुम्हें इस बात को समझना होगा। तब तक मुझे ही जगह-जगह जाकर हर चीज़ संभालनी पड़ रही है। जगह-जगह कॉल पर जाना पड़ रहा है। भले संडे को भी क्यों ना जाना पड़े या घर बैठ कर ही क्यों ना काम करना पड़े। तुम्हें इस बात को समझना होगा मेघा। पीयूष ने मेघा से कहा।
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समझती ही तो आ रही हूं 3 महीने से।
तुम रोज सुबह जल्दी निकल जाते हो, रात को काफी लेट आते हो।
मैंने कभी तुमसे कोई इन दिनों शिकायत नहीं की। पर अब तो मुझे भी लगने लगा है कि तुम्हें घर को थोड़ा समय देना चाहिए। पिछले कितने समय से हमने एक साथ वक्त नहीं बिताया। महत्व रखता है तो तुम्हारा हमारे साथ समय बिताना। समायरा के इन दिनों दांत निकल रहे हैं। दांत निकलने की वजह से उसे काफी तकलीफ हो रही है। इन दिनों वह बहुत चिड़चिड़ी हो गई है।
तुम्हारे पास तो जैसे बच्चों पर भी ध्यान देने के लिए अब समय का अभाव हो गया है।
सोहम के अर्धवार्षिक शुरू होने वाले हैं। उसे मैथ में कोई भी प्रॉब्लम पूछनी होती है तो वह मेरे पास आता है। अब मुझे इतना अच्छा मैथ कहां आता है जो तुम करवा देते हो। वह कई बार तुम्हारे पास संडे को आता है कुछ पूछने के लिए तो तुम्हारे पास उसके लिए भी समय नहीं होता।
पीयूष मैं ये नहीं कह रही कि तुम हमें खूब समय दो। वह तो मैं भी जानती हूं कि यह संभव नहीं है। मुझे मालूम है कि तुम्हारे ऑफिस में आजकल क्या हो रहा है और मैं हमेशा आपके साथ हूं और आपकी कठिनाई को मैं नहीं समझूंगी तो और कौन समझेगा। काम बहुत जरूरी है मैं पूर्णतः सहमत हूं काम नहीं करेंगे अपने टारगेट पूरे नहीं करेंगे तो कैसे चलेगा। एक आप ही तो है जो इस घर की रोज़ी रोटी कमा कर ला रहे हैं, अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। पर थोड़ा समय परिवार के नाम भी होना चाहिए।
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और अब तो 3 महीने हो गए पीयूष। कभी तो मेरा मन भी उदास होगा ही ना।
कुछ दिनों की बात हो तो समझ में भी आता है। अब तो यह चलते काफी समय बीत गया है। क्या तुम कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि टाइम मैनेज कर पाओ।
रोज़ ना सही पर इतवार की छुट्टी का दिन तो परिवार के नाम होना चाहिए ना। कम से कम छुट्टी को तो काम नही। वह तो तुम कर ही सकते हो? मेघा ने थोड़ा प्यार थोड़ा नाराजगी जताते हुए पति को कहा।
इतवार का दिन सभी साथ बैठकर खाना खाएं, मस्ती करें। टीवी पर सभी एक साथ कोई अच्छी सी फिल्म देखें। कितना अच्छा लगता है। बेटे को भी आपकी कंपनी बहुत पसंद है। कितना समय हो ही गया आपने उसके साथ क्रिकेट नहीं खेला। इस चीज़ को वह भी बहुत मिस कर रहा है।
वो अपने उन क्लाइंट को जो संडे को मिलना पसंद करते हैं आप उन्हें कह दीजिए कि हमें 1 दिन मिलता है ।
वैसे भी जनाब संडे को काम करने की सैलरी नहीं मिलती है। क्यों है ना जनाब?
मेघा ने थोड़ा हंसते हुए पीयूष से कहा।
तब पीयूष ने पत्नी से कहा “मेघा तुम अपनी जगह बिल्कुल सही हो। मेरी भी बहुत गलती है कि मैंने तुम्हारा साथ समय रहते नहीं समझा। परंतु यह भी सच्चाई है कि जो दिन रात देश की सेवा करते हैं, जैसे हमारे फौजी लोग। जो दिन-रात लोगों की सेवा में हाजिर है उनके बारे में सोचो। उनके लिए तो संडे भी नहीं होता। बहुत लोग ऐसे भी होंगे जिनके लिए तो इतवार की छुट्टी भी नहीं है। मुझे कम से कम इतवार को छुट्टी तो मिलती है। तुम्हारे सामने घर में तो होता हूं! हृदय से सलाम है उन लोगों को।
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यह बात सुनकर कहीं ना कहीं पत्नी को भी एहसास हुआ कि वह थोड़ा गलत कह रही है।
दोनों को आपसी समझ से मिल बैठकर बात करनी चाहिए।
शायद आप सही कह रहे हैं पीयूष। वे लोग भी धन्य हैं जो अपने कितने दिनों तक परिवार से दूर रहते हैं। उनके परिवार, उनकी पत्नियां कितने कितने दिनों तक उनसे मिल नहीं पाते होंगे और मैं थोड़े समय में ही उदास हो गई। इस बात को मुझे समझना चाहिए था।
मुझे माफ कर दीजिए प्लीज़। मैं आज आप पर थोड़ा गुस्सा कर गई।
मेघा ने थोड़ा शर्मिंदा होते हुए कहा।
मेघा की सारी बातें सुनने के बाद पीयूष को कुछ एहसास हुआ कि वह भी पिछले काफी समय से थोड़ा गलत कर रहा था।
माना कि इन दिनों कामकाज काफी ज्यादा था परंतु उसे परिवार को नजरअंदाज़ नहीं करना चाहिए था यह उसकी गलती थी।
“नहीं नहीं! बहुत जरूरी हो तो आप काम अवश्य कीजिए चाहे इतवार ही क्यों ना हो।” मेघा हंसते हुए पति से कहती है।
धन्यवाद मेरी प्यारी बीवी मुझे समझने के लिए। और तुम्हारा धन्यवाद मुझे समझने के लिए प्यारे पदिदेव।
और दोनों हंसते हुए गले लग जाते हैं।
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**दोस्तों यह कहानी आपको कैसी लगी? पढ़कर अवश्य बताइए।
इंतजार में,
ज्योति आहूजा
#घर परिवार से बनता है दीवारों से नहीं ।