समाज और रिश्तेदार की परवाह करू या बच्चों की करियर देखूँ – अर्चना खंडेलवाल 

विजेंदर  चाचा की लड़की की शादी है, हम सबको बुलाया है, जाना बहुत जरूरी है, हमारी बहन की शादी में भी वो लोग सपरिवार आये थे।  नहीं जायेंगे तो वे लोग नाराज हो जायेंगे। नमित  ने शिप्रा  को कार्ड दिखाते हुए कहा।

अच्छा, ये तो बताओ शादी कब है?

शादी बीस तारीख अगले  महीने है। नमित  ने पढ़कर कहा।

आप जाकर आ जाना, मैं तो नहीं जा सकूंगी। पन्द्रह से दोनों बच्चों की परीक्षाएं है, वो देना जरूरी है।

घर पर और कोई भी नहीं है, बच्चे भी नहीं जा पायेंगे और मुझे भी बच्चों की देखभाल के लिए यही रहना होगा, शिप्रा  ने सोचकर कहा।

अरे!!!! अम्मा नाराज हो जायेगी,समाज वाले, रिश्तेदार नाराज हो जायेंगे, तीन दिन की बात है, नैना खाना बना लेगी। तुमको चलना बहुत जरुरी है। वरना सब कहेंगे बहुरिया ने ना आने का बहाना बना लिया।नमित  ने थोड़े गुस्से में कहा।

नमित ,” मैं कोई बहाना नहीं बना रही हूं,तुमको भी पता है, नैना  इतनी फुर्ती और अच्छे से ख़ाना नहीं बना पाती है, वो तीन दिन रसोई में घंटों लगा देगी तो पढ़ेगी कब?

जैसे राहुल के लिए हर घंटा कीमती है, वैसे ही नैना के लिए भी हर घंटे का महत्व है। सिर्फ समाज और रिश्तेदार क्या कहेंगे? बातें बनायेंगे। इन सब की परवाह करूं या अपने बच्चों का करियर देखूं।

शादी में जाना मुझे भी पसंद है पर कभी-कभी मजबूरी वश नहीं जाना हो पाता है। ये ध्यान में रखना बुढ़ापे में हमारे अपने ही बच्चे काम आयेंगे ये समाज और रिश्तेदार नहीं। मेरे ना जाने से शादी नहीं रूक जायेगी, होने के सभी काम होंगे पर मेरे जाने से यहां मेरे बच्चों को परेशानी होगी।

दोनों बच्चे नैना और राहुल अपने माता-पिता की बातचीत सुन रहे थे। सही भी था,इस साल की परीक्षाओं के अंकों पर ही उन्हें अपने मनपसंद कॉलेज में एडमिशन मिलेगा, और ये ही कॉलेज और उसकी पढ़ाई उनका भविष्य तय करेगी।

नमित  अकेले ही शादी में चले गए,इधर शिप्रा  ने दोनों बच्चों पर ध्यान दिया, वक्त पर खाने-पीने और सोने का ध्यान रखती। नैना और राहुल भी मन से पढ़ाई करते और परीक्षा देकर आते।




परीक्षा परिणाम में अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए और मनचाहे कॉलेज में एडमिशन मिल गया। कॉलेज में पढ़ते-पढ़ते ही  नैना और राहुल का अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट हो गया। दोनों की अच्छी सैलरी मिलने लगी।

दोनों की पढ़ाई और करियर के लिए नमित  और शिप्रा  ने काफी समझौते किये।

राहुल और नैना शहर से दूर नौकरी के लिए चले गए।  कुछ समय बाद नैना के लिए अच्छा लड़का देखकर उसकी शादी कर दी गई। नैना आते-जाते नमित  और शिप्रा  को संभालती रहती थी पर नौकरी और परिवार की वजह से ज्यादा नहीं आ पाती थी।

एक दिन अचानक से नमित  को हार्ट अटैक आ गया। – 

शिप्रा  ने घबराकर उसी शहर में रह रहें, रिश्तेदार को फोन किया पर इतनी रात को उन्होंने फोन नहीं उठाया, पड़ोसन के घर की भी घंटी बजाई उसने भी नहीं सुना। तब शिप्रा  ने नैना और राहुल को फोन किया।

राहुल ने तुरंत अच्छे अस्पताल में फोन करके एंबुलेंस भिजवा दी। नमित  को लेकर शिप्रा  पहुंचीं थी कि उसके चंद घंटों बाद नैना और राहुल फ्लाइट से आ गये।

आकर शिप्रा  और नमित  को संभाला। नमित  को सही समय पर इलाज मिलने से वो बच गए।

रात के किये फोन का रिश्तेदार से सुबह तक प्रतिउत्तर नहीं मिला।

थोड़े दिनों में अस्पताल से छुट्टी मिल गई हेमन्त घर आ गए। देखा, नमित  कोई रिश्तेदार  समाज काम नहीं आया अपने ही बच्चे सहारा देते हैं।

मम्मी-पापा हम आप दोनों को अब यहां अकेले नहीं छोड़ सकते हैं। हम दोनों के सिवा आपका कौन है?

आप हमारे साथ ही चलिए, हम सब मिलकर रहेंगे।

लेकिन…. बेटा यहां हमारा अपना घर है, घर को कैसे छोड़ दें? नमित  ने फिर प्रश्न उठाया। घर तो हम वहां भी ले लेंगे, यहां आपका ध्यान कौन रखेगा? बार-बार कंपनी छुट्टी भी नहीं देगी। मैं आपके साथ रहूंगा तो मम्मी को भी हिम्मत मिलेगी। मेरा वापस इस शहर में लौटना मुश्किल है। आप अभी चलकर मेरे साथ सैटल हो जाइये। वहां सोसायटी में आपका मन भी लग जायेगा। हम ये घर बेचकर वहां ले लेंगे कम से कम साथ तो रहेंगे। अभी घर महत्वपूर्ण नहीं है, हमारा साथ रहना महत्वपूर्ण है। आप लोग साथ रहोगे तो घर तो अपने आप बन जायेगा। नैना ने भी सहमति जताई।




हम आपको यहां चंद पड़ोसी और रिश्तेदारों के भरोसे नहीं छोड़ सकते हैं।

राहुल के शहर में मेरा शहर सिर्फ दो घंटे की दूरी पर ही है कभी आप आ जाइये कभी मैं आ जाया करूंगी।

कार से भी आसानी से आ सकते हैं। यहां का सफर तो चौबीस घंटों का है। आना-जाना इतना आसान नहीं है।

नैना ने समझाते हुए कहा।

नमित  और शिप्रा  को बात समझ में आ गई। कुछ ही महीनों में उन्होंने अपना घर बेच दिया और राहुल के शहर में फ्लैट ले लिया। फ्लैट नमित  ने शिप्रा  के नाम से ही लिया  ताकि वो ही उस फ्लैट की मालकिन रहें।

राहुल ऑफिस चला जाता था, दोनों का मन वहां लगने लगा था, शिप्रा  और नमित  सोसायटी में शाम को घूम आते,क्लब हाउस में चले जाते थे,काफी लोगों से मित्रता हो गई थी। नैना भी हर महीने आकर संभाल लेती थी। कुछ महीनों बाद राहुल की भी शादी हो गई।

अब नमित  और शिप्रा  सुखपूर्वक बेटा-बहू के साथ रहने लगे।

मैं ना कहती थी राहुल के पापा, बुढ़ापे में अपने बच्चे ही सहारा होते हैं। हम सही समय पर यहां आ गये। अब आते तो हमें रहने में दिक्कत आती। हमारे बच्चों ने हमारा सुखद भविष्य पहले ही तय कर लिया था।

हमने बच्चों के लिए हर कदम पर सोचा तभी तो आज हमारे बच्चे हमारे लिए इतना करते हैं सोचते हैं।

एक दिन पता चला राहुल की पत्नी मां बनने वाली हैं।

शिप्रा  की आंखें खुशी से छलक गई, हम वहां रहते तो अकेले रह जाते। यहां रहकर हम अपने पोते-पोतियों को खिलायेंगे, उनमें अपना बचपन देखेंगे।

हां, शिप्रा  तुम सही थी, नमित  ने हामी भरी। बुढ़ापे में अपने बच्चे ही सहारा होते हैं।

पाठकों, आपको मेरी कहानी कैसी लगी?

ये सच ही है, दुःख, तकलीफ में अपने ही बच्चे दौड़कर आते हैं, चाहें वो कितनी ही दूर क्यों ना रहें। अगर बच्चे माता-पिता को साथ रहने को कहते हैं तो माता-पिता को उनके साथ ही रहना चाहिए। समाज और रिश्तेदार सिर्फ खुशी में घर आते हैं, दुःख में कोई रोज-रोज संभालने भी नहीं आता है। परिवार के साथ रहने का अलग ही सुख होता है।

आप मुझे  भी अपने विचार बतायें।

‌‌धन्यवाद

अर्चना खंडेलवाल 

 

 

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