सिर्फ.. काम.. काम.. काम.. – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

बहू.. तुम्हारी जचकी हुए पूरे 10 दिन हो गए अब  आराम वाराम छोड़ो और कुछ काम धाम करो, ऐसे दिनभरी बैठी या सोती रहोगी  तो शरीर खराब हो जाएगा, इस समय घर के काम करने से शरीर सही रहता है नहीं तो बाद में तुम्हें ही भुगतना पड़ेगा! और वैसे भी तुम्हारा कोई ऑपरेशन से बच्चा तो हुआ नहीं है साधारण डिलीवरी हुई है इसलिए चिंता वाली भी कोई बात नहीं है! पत्नी सुमित्रा की बातें सुनकर पति सोमेंद्र ने कहा… अरि भागवान.. तुम क्यों बहू के पीछे दिन भर पड़ी रहती हो वह बेचारी आराम कर ही कहां पाती है,

दिन भर तो बच्चे में लगी रहती है और चाहे साधारण तरीके से डिलीवरी हुई हो पर  इन  40 दिन तक तो शरीर कच्चा रहता है अगर अभी से ही तुम घर के काम में  उसे लगा दोगी तो यह कमजोरी जिंदगी भर को सताएगी उसे, तुम एक औरत होकर दूसरी औरत का दर्द क्यों नहीं समझती हो? जब बच्चा नहीं हुआ था उससे पहले तुम बहू के पीछे पड़ी रहती थी …जितना काम करेगी प्रसूति में उतना ही आराम मिलेगा, बेचारी बहू को तुमने कभी आराम नहीं करने दिया और अब तुमको उसका 9-10 दिन भी आराम करना भारी पड़ गया,

पूरी रात-रात भर जाग कर बच्चे  के गीले कपड़े बदलती रहती है और दिनभर भी उसी के कामों में लगी रहती है, तुम तो बस जाकर रात को उसके पास सोई रहती हो, क्या तुम कभी बच्चे  का कोई भी काम करती हो.. बस जब बच्चा सोता है तब थोड़ी देर को उसको खिलाने के लिए ले आती हो, जब देखो बस काम काम काम, इसके अलावा तुम्हें कुछ और समझना भी है, तुम्हें पता है हम निम्न मध्यम वर्ग के लोग हैं बेटा निखिल भी मेरे साथ ही दुकान पर बैठता है हमारी कोई अतिरिक्त आय भी नहीं है

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तो ऐसे में तुम अपनी बेटी शिवानी से भी घर के कामों में कुछ मदद ले सकती हो पर नहीं… वह तो तुम्हारी लाडली बेटी है अगर वह काम करेगी तो तुम्हारी मां की ममता कैसे दिखेगी और  बहू बंदना जो दूसरे घर से हमारे घर में इसलिए आई थी ताकि हम भी उसे माता-पिता का प्यार देंगे पर नहीं.. तुम तो पुराने जमाने की सास होकर रह गई हो, अरे उसे बहू नहीं तो कम से कम इंसान ही समझ लो! सोमेंद्र के इतना कहते ही सुमित्रा भड़क गई और कहने लगी.. देखो जी यह औरतों का मामला है

आप इसमें ना पड़े तो बेहतर है मैं जानती हूं मुझे कब क्या करना है और मेरी बेटी की तुलना उससे मत ही करो, मैं तो मेरी बेटी को ऐसे घर में दूंगी जहां उसे कुछ ना करना पड़े!  वाह सुमित्रा… तो क्या वंदना के घर वालों ने नहीं सोचा होगा यह सब और भगवान ना करें तुम्हारी बेटी को भी अगर तुम्हारी जैसी सास मिल गई तब क्या करोगी? खैर.. तुमसे बहस करने से कोई फायदा भी नहीं है और ऐसा कह कर सोमेंद्र जी घर के बाहर चले गए! सुमित्रा जी अपनी बहू को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी

उसके मायके से आए हुए लड्डू भी वंदना के ऊपर कोई असर नहीं कर पा रहे थे क्योंकि वह मानसिक रूप से बहुत परेशान रहती थी, 15 दिन बाद तो सुमित्रा जी ने वंदना को घर के कामों के साथ-साथ रसोई के कामों में भी लगा दिया, बेचारी वंदना दिन भर घर का काम करती और रात भर बच्चे के साथ  जागती, ऐसी हालत में वह इतनी चिड़चिड़ी हो गई कि उसका स्वास्थ्य भी दिन पर दिन और गिरता जा रहा था, निखिल भी अपनी मां के डर  की वजह से कुछ नहीं बोल पाता, लेकिन उसे अपनी पत्नी का दर्द भी नहीं देखा जा रहा था

निखिल भी रात दिन घुटा जा रहा था, मां वंदना के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने में कभी भी कोई कसर नहीं छोड़ती, कभी उसके मायके वालों की बुराइयां करके या कभी निकम्मी और कामचोर कहकर! जब बंदना का बेटा 25 दिन का था एक दिन बहुत जोरों से रोने लगा रोते रोते तीन-चार घंटे निकल गए पर चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था, पूरा परिवार घबरा गया और उसे लेकर अस्पताल पहुंचा! तब डॉक्टर ने उसके पेट पर चिकोटी काटी और सुमित्रा जी से कहा…. बच्चा किस लिए रो रहा है, क्या तुम्हें कुछ पता है?

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सुमित्रा के मना करने पर डॉक्टर ने कहा.. बच्चा भूख की वजह से रो रहा है, शायद इसे जितना दूध मिलना चाहिए उतना नहीं मिल पा रहा, तब उन्होंने बहू की ओर देखा और कहा… क्या यह इस बच्चे की मां है? देखकर तो लगता है जैसे खुद यह कुपोषण की मरिज हो, जब  मां ही स्वस्थ नहीं रहेगी तो बच्चे को कैसे स्वस्थ रख पाएगी? क्या आप अपनी बहू का ध्यान नहीं रखती और निखिल ..तुम तो  पढ़े लिखे हो फिर भी अपनी पत्नी का ध्यान नहीं रखते, मां और बच्चे दोनों को इस समय मानसिक और शारीरिक आराम की जरूरत होती है !

और फिर सभी लोग घर वापस आ गए, घर जाकर सुमित्रा फिर वंदना के ऊपर चिल्लाने लगी… क्यों रि… तुझे खाने पीने में कोई कमी रखते हैं क्या जो बच्चे को  ढंग से दूध भी नहीं पिला सकती, अस्पताल में जाकर डॉक्टर के सामने हमारी बेइज्जती करवा दी, हम क्या तुझे भूखा मारते हैं थोड़ा बहुत घर का काम क्या कर लिया ऐसा लगता है जैसे हम इसके ऊपर कोई जुल्म कर रहे हैं, सुमित्रा की बातें सुनकर आज निखिल को गुस्सा आ गया और उसने कहा… ठीक है मां तुम्हें  यही लगता है ना की बंदना ना तो घर का ही काम करती है ना

अपने बच्चों को संभाल पाती है ना घर की जिम्मेदारी उठाती है, तो क्या फायदा इसका यहां रहने से, मैं सोच रहा हूं मुझे अब अलग घर ले ही लेना चाहिए, मां आज तक में सिर्फ आपकी वजह से चुप था कि कहीं आप  यह ना कह दे की आते ही बीवी की चापलूसी करने लग गया मां की तो कोई इज्जत ही नहीं रही, लेकिन मां वंदना को भी में शादी करके इस घर में लाया हूं और यह मेरी जिम्मेदारी है और अब मुझे उसका अपमान और सहन नहीं होता, पता नहीं यह किस मिट्टी की बनी हुई है, 3 सालों में आपने उसके आत्म सम्मान को ठेस पहुंचाने

में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी फिर भी उसने मुझसे कभी आपकी शिकायत नहीं की, मैंने कितनी ही बार इसे छुप छुप कर रोते हुए देखा है आपने इसे अपनी बहू कम नौकरानी ज्यादा समझा है, इसके बावजूद भी है हमेशा हस्ती मुस्कुराती रहती है अब मुझे इसका दर्द बर्दाश्त नहीं होता! उसकी बातें सुनकर सोमेंद्र जी ने कहा… निखिल बेटा तुम बिल्कुल सही कह रहे हो यह घर रहने लायक नहीं है,  तुम्हारी मां को किसी के आत्म सम्मान की कोई कदर नहीं है उसे सिर्फ अपना  अहम प्यारा है, तुम अगर अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देना चाहते हो

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तो तुम्हारा यहां से जाना ही ठीक है और शाम को निखिल ने अपनी पैकिंग शुरू कर दी, जबकि बंदना उसे समझा रही थी…कोई बात नहीं निखिल, वह मां  है अगर कुछ कह भी दिया तो क्या हो गया, माना की हर किसी को आत्मसम्मान प्यारा है, मुझे भी है, पर कोई बात नहीं.. मुझे अपने आत्मसम्मान से ज्यादा अपनी मां की इज्जत प्यारी है और सोचो ना कल को शिवानी भी इस घर से चली जाएगी और तुम भी अलग हो जाओगे तो मां और बाबूजी हमारे बिना कैसे रहेंगे? अपने पोते के बिना कैसे रहेंगे? बाहर खड़ी सुमित्रा देवी को बहू की बातें सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ,

सोचने लगी.. मैंने अपनी बहू को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी यहां तक की डिलीवरी के दिनों में भी इसे बिल्कुल आराम नहीं दिया, न हीं इसके स्वास्थ्य का ध्यान रखा, यह चाहती तो निखिल के साथ अलग होकर अपनी अच्छी जिंदगी जी सकती थी पर फिर भी उसनेमेरे बारे में ही  सोचा और मैं अपने स्वार्थ में इतनी अंधी हो गई कि मुझे अपनी इतनी अच्छी सुयोग्य बहू के गुण दिखाई नहीं दिए और ऐसा सोचती हुई वह निखिल के कमरे में चली गई और निखिल का हाथ पकड़ कर बोली….

निखिल तुम इस घर को छोड़कर कहीं नहीं जाओगे यह मेरा हुकम है और वंदना बेटा.. क्या तुम अपनी मां को माफ नहीं करोगी  मैं तो लोगों के बहकावे में आ गई थी जो कहते थे कि अगर बहू को दबाकर नहीं रखा तो तुम्हारे सिर पर नाचेगी,  उनकी बातों में आकर मैं अपने हीरे जैसी बहू को खो देती, अब मुझ में अकल आ गई है अब तुम देखना मैं तुम्हारी कैसे मां बन के दिखाती हूं तुम्हें किसी भी चीज की कोई कमी नहीं होने दूंगी यह मेरा वादा है और ऐसा कहकर उन्होंने बहु को गले से लगा लिया, और सोमेंद्र जी अपनी पत्नी को बदलते देखकर मुस्कुरा रहे थे! 

    हेमलता गुप्ता स्वराजित 

    कहानी प्रतियोगिता आत्म सम्मान

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