आज निशा का आखिरी दिन था उसके ससुराल में। वैसे तो कई सारी यादें हैं जो उसके जीने के लिए काफ़ी थे मगर ये यादें सिर्फ उसके लिए थे क्यूंकी, सागर को तो फर्क ही नहीं पड़ता था कि वो घर में है भी या नहीं। उसको सिर्फ मतलब था तो सिर्फ इतना को उसका नाश्ता रेडी है या नहीं, उसका सामान सही जगह पर है या नहीं, उसका कोई काम जो निशा से करने में चूक तो नहीं हो गई।
निशा कि आदतें ऐसी थी कि वो सबकी नाक में दम करके रखती थी, कोई भी उसके कहे को पार ना जा सकता था, सबकी लाडली जो थी। पुरे खानदान में अकेली बिटिया। मगर वो तो ससुराल आते ही सब भूल बैठी थी, उसको सुध ना होती कि वो कैसी दिखती हैं कैसी रह रही है, उसे तो बस धुन सवार था कि वो बाकि बहुओं जैसी नहीं रहेगी, वो साबित करके रहेगी कि बहुएँ भी बेटिंयों से कम नहीं, बेटियां अगर घर रौनक हैं तो बहुएं घर का सम्मान।
जब वो पहली बार घर पर ब्याह कर आई थी तो घुंघट से ही एक एक परिवार के लोगों को देख मन मन मुस्कुराई थी कि ये अब मेरा परिवार है पर आज उसी परिवार को छोड़ते वो रो भी रही हैं मगर खुश भी है कि अब कम से कम उसे किसी को परीक्षा तो नहीं देनी पड़ेगी वो भी बस ये साबित करने के लिए कि वो सही है।
एक बार निशा कमरे में थी और उसकी सास मंदिर जा रही थी और ससुर जी ने कहा मैं भी साथ चलता हूं यह कहते हुए वो तेजी से आने लगे मगर सामने रखे टेबल से फस कर गिर पड़े और उनका कमर टूट गया, निशा दौड़ती हुई आई और ससुर जी को बैठाने कि कोशिश करने लगी तब पता चला उनका कमर टुटा हैं शायद।
आनन फानन में हॉस्पिटल सब ले दौड़े वहां पता चला कि उनको अब 1 महीने बिस्तर पर ही बिताना हैं क्यूंकि वो खुद तो कुछ कर ही नहीं पाएंगे। उसके पति नें बिजी होने का बहाना कर दिया बेटी नें कहा मैं भी पढ़ाई और कॉलेज में व्यस्त हूं सास नें ये कह कर पल्ला झाड़ दिया कि अब मुझसे कोई काम नहीं हो पाता दर्द रहता हैं पुरे शरीर में।
अब सब कुछ आ गया निशा के ऊपर तब उसे सागर नें कहा था अरे तुम बही थोड़ी हो बेटी हो सबकुछ तुम्हे ही तो करना है, वो झेप गई थी कि कैसे वो ससुर के कपडे बदले कैसे पैखाना पेशाब वगेरह करवाएगी। आखिर वो दूसरा ही तो हैं और अभी वो उनको और इस परिवार को जानती ही कितना हैं। पहले उसके जिद करने पर एक मेल नर्स को रखा गया था मगर 2 दिन में ही वो सास के ताने सुन कर भाग गया।
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अब सब निशा को ही करना था सो उसने पिता मान सब किया। 2 महीने बाद उसके ससुर चलने लायक हुए वो अब भी थोड़ा व्हील चेयर उसे करते थे पार अब पहले से बेहतर थे
तब सबने कहा था अरे निशा बेटी हैं बही नहीं उसे तो ये सब करना ही था बेटी को क्या शर्म,।
उसके ससुराल में एक ननद एक देवर उसका पति सागर और सास ससुर थे। देवर बाहर ही रहता था उसको घर से खासा मतलब नहीं था। उसकी ननद गोद ली हुई थी, जब उसने ये बात सुनी थी कि एक बच्ची को गोद लेकर पाला हैं पढ़ाया हैं तो उसके मन में उनलोगों के प्रति श्रद्धा बढ़ गई थी।
उसे क्या पता था कि यहाँ बेटी का मूल्य हमेशा बहु से ऊपर ही होगा और समय के हिसाब से बहु को बेटी बनाया जाएगा
निशा के आते ही 2 4 दिन तो नेग और रीती-नीति में ही निकल गये। पहली रसोई में गुलाब जामुन खीर पूरी और आलू कि सुखी सब्जी बना कर सबका मन मोह लिया था उसने। ससुर जी नें अपने जेब से पुरे 11000 रुपये उसे हाथ में देकर कहा था कि अब तुझसे ही घर हैं बेटा, क्यूंकि तू बहु नहीं हमारी बेटी है।
इस बात पर उसकी ननद रूचि नें तपाक से कहा कि बेटी तो मैं भी हूं मुझे तो कुछ नहीं दिया आपलोगों नें तो निशा नें अपने सारे नेग उसके हाथों रखते हुए कहा हमदोनो ही बेटियां हैं रूचि, आज से जो मेरा है वो तुम्हारा है।
वो भी चहकती हुई पैसे लेकर निकल गई।
निशा भी बहुत खुश थी कि इतना प्यारा परिवार मिला है, वो जी भर कर प्यार लुटाती, सबका आदर करती, सागर भी बहुत प्यार करता था उसे।
एक दिन कि बात है वो अपने कुछ कपडे और गिफ्ट्स जो उसे उसके मायके से मिले थे वो लेकर बैठी थी, उन सबमे एक सुन्दर कंजीवरम साड़ी थी जो उसे उसकी मौसी नें दिया था जो साउथ में रहती थी, कम से कम 20000 कि तो होंगी ऐसा कहते उसकी सास साड़ी को देखने लगी, तो निशा नें कहा हाँ माँ ये 22000 कि साड़ी हैं मेरी मौसी नें दिया हैं। सास नें कहा एक काम कर तुझे तो इतनी सारी साड़िया मिली ही ये तू रूचि के लिए रख दे, आखिर तुम दोनों तो बेटी ही हो तो भेद कैसा, कह कर सास उस साड़ी को लेकर चली गई। निशा बस कहना चाहती थी कि एक बार मुझे पहनने दें मौसी नें बड़े प्यार से दिया है मगर वो कह ना सकी।
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शाम को सागर आया तो निशा का मुँह उतरा हुआ था तो उसने पूछा क्या हुआ है, उसने कहा कि मुझे साड़ी देने में कोई परेशानी नहीं हैं बस एक बार पहन लेती तो मन रह जाता, तो सागर नें कहा अरे क्या मोह माया लगाना सामान ही तो है तुम्हारी मौसी को बोलके एक और मंगवा लेना।
वो अवाक रह गई अपने पति के मुँह से ऐसी बात सुन कर। वो सोचने लगी कि ऐसा क्या है जो मेरे बारे में सोचा ही नहीं जा रहा है, उस रात्रि उसे नींद ही नहीं आई।
अगली सुबह वो नाश्ता के लिए किचेन में जा ही रही थी कि सडनली डोरबेल कि आवाज़ से वो मुड़ी और दरवाजा खोलने जा रही थी तो सास नें टोका नई हो अभी द्वार पार नहीं जाना है। वह वही ठठक कर रुक गई, वो चुप करके किचन में चली गई और सोचने लगी अगर मैं नई हूं तो पहले घर को परिवार कप समझने का मौका मिलना चाहिए तब काम में लगाना चाहिए था पार उसके लिए तो मैं नई नहीं बहु हूं। उसके कॉलेज से लेटर था कि
छुट्टियां ख़त्म हो गई हैं निशा मैडम आप कब से ज्वाइन कर रही हैं, सास नें लेटर सागर को दिखाते हुए कहा हमने कहा था ना वो बहु हैं बेटी नहीं वो जॉब नहीं करेगी। फिर तुमने बहु से बात क्यों नहीं कि अब तक? सुन ले सागर इस घर में बहुएँ काम नहीं करती बेटी थोड़ी ना हैं जो सर पार चढ़ा लें, मैंने भी तो पूरा घर संभाला हैं आज तक और उसे काम करने कि जरुरत भी क्या है, सब कुछ तो मिल ही रहा हैं उसे।
उसने किचन से ये सारी बातें सुनी, मन दुख गया पार उसने सोचा कि माहौल क्यों ख़राब करना रात में सागर से बात करेगी।
आज उसका किचन में या किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था, क्यूंकि उसने शादी से पहले ही सागर को बता रखा था कि आगे वह नौकरी जारी रखना चाहती है। तब तो उसे कोई परेशानी नहीं थी तो अब क्यों? आखिर क्यों सागर नें अपनी माँ से कुछ नहीं कहा? उसे याद आने लगा कि जब ससुर जी कि हड्डी टूटी थी तब वो बेटी थी
क्यूंकि उसकी सेवा चाहिए थी पर आज वो बहु हो गई क्यूंकि उसे अपनी मर्जी का कुछ करना था, जिसके बारे में सागर से पहले ही बात हो चुकी थी ये कोई छुपी छुपाई बात नहीं थी।
क्या बहु और बेटी सच में एक होती हैं? क्या दोनों के लिए प्यार, अपनापन, केयर एक जैसी हो सकती है? यही सब बातें उसे परेशान कर रही थी। आज उसने चाय तक नहीं पिया था जबकि चाय बिना उसके दिन कि शुरुआत ही नहीं होती थी, क्यूंकि, एक वही चीज हैं उसके जीवन में जो वो आज तक छोड़ नहीं पाई थी।
पार आज उसकी भी याद उसे नहीं आई, दिन भर कुछ ना खाने से उसका शरीर कमजोर और मन भारी हो चला था।
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इन सबमे उसने एक बात पार गौर किया कि किसी को दिन भर पाता ही नहीं चला कि आज उसने कुछ नहीं खाया पिया हैं जबकि वह हमेशा सबके साथ बैठ हँस्ती बोलती थी. पार अजीब बात हैं आज तो किसी को सुधार ही नहीं। शाम को उसने सागर से बात करना चाहा मगर वो थका हैं बोल कर सो गया। ऐसे तीन दिन बीत गये, उसे 24th से कॉलेज ज्वाइन करना था आज 21st था, आखिर वो कितने दिन रुक भी सकती थी बात तो करनी ही थी।
और रुके भी क्यों आखिर उसने अपने कॉलेज में टॉप किया था गोल्ड मैडल मिला था केमेस्टरी में, उसके पापा बहुत खुश थे पुरे मोहल्ले में मिठाई बाँट आये थे। फिर उसने एमएससी किया नेट कि परीक्षा भी पास कि और पीएचडी के लिए तैयारी में जुट गई तभी उसे एक कॉलेज से ऑफर आया था। और उसने ज्वाइन भी किया
और पहले ही एटेम्पट में उसका रिटेन और इंटरव्यू क्लियर भी हो गया। पढ़ाई में तेज तो थी ही सो हो गया और उसका सपना था भी प्रोफेशर बनने का। पार जल्द ही सागर के माँ पापा रिश्ता लाये थे सो सब तय करके विवाह भी हो गया पार निशा नें साफ कह था वो जॉब भी करना चाहती हैं और पढ़ना भी चाहती है तब सागर भी खिश था और तैयार था.
तीसरे दिन शाम को उसने सागर के घर आते ही बोला कि मैं जॉब कंटिन्यू करना चाहती हूं तो सागर नें कहा क्या जरुरत हैं मैं क्या कोई कमी रखता हूं
निशा नें कहा ये बात नहीं हैं
मैंने शादी से पहले तुम्हे कहा था कि मैं अपने सपने को टूटने नहीं दूंगी और पीएचडी करुँगी पार तब तो तुम्हे कोई परेशानी नहीं थी अब क्या हुआ
सागर नें कहा – तब कि बात छोड़ो तब तुम बेटी थी अब बहु हो, बहु का कर्त्तव्य पूरा करो सेवा करो सबकी बात मानो मुझे खुश रखो
इसी बात को सुनकर उसे गुस्सा आ गया कि अगर परेशानी थी तो तब क्यों नहीं कहा मैं नहीं करती शादी।
सागर नें भी चिल्ला कर कहा तो क्या एक नौकरी के लिए तुम हमारे रिश्ते को तोड़ दोगी
तब निशा ने रोते हुए कहा सागर वो बस एक नौकरी नहीं मेरा सपना है मेरे जीवन का वजूद हैं अगर वही छीन गया तो मैं जिऊंगी कैसे
इतने शोर शराबा में घर के बाकि लोग भी कमरे में आ गये और सब निशा को ही समझने लगे, तुम बहु हो तुम्हे समझना होगा, मैनेज करना होगा
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तब निशा नें एक बात पूछी अगर मेरी जगह रूचि होती तो आपलोग क्या करते? तो सबसे पहले सास नें कहा – अरे इतनी बढ़िया नौकरी कोई छोड़ता हैं भला मैं तो मिठाइयाँ बाँटती फिरती।
तो निशा नें आंखे निचे करके कहा माँ मैं भी तो वही कर रही हूं मैंने भी बड़ी मेहनत से ये मक़ाम हासिल किया है और मैं उसे ऐसे जाने नहीं दे सकती।
तो रूचि नें पूछा तो भाभी एक नौकरी के कारण तुम भैया को छोड़ दोगी?
निशा नें कुछ नहीं कहा और मुँह दूसरी तरफ कर रोने लगी
सब मुँह फुलाकर बाहर निकल गये और निशा के मायके फ़ोन करके सारी खबर दे दि कि आपकी बेटी एक नौकरी के लिए परिवार और पति को छोड़ना चाहती है।
निशा नें बिना कुछ काहे अपना सामान समेटना शुरू कर दिया और एक एक सामान वो दीवारें वो सजावट जो अपने हाथों से उसने इस घर को सजाया था वो देख कर रोटी रही पर किसी को उसके आंसुओं के पीछे क दर्द ना दिखा।
अगली सुबह उसके पिताजी ससुराल आये सबने मिलकर उन्हें सुनाया कि बेटी को कैसे संस्कार दिए हैं।
उसके पिता ने अपनी निशा कि आँखों में झाँक कर देखा वो रात भर रोइ भिगोई बिना नींद के कुछ लालिमा लिए सूजी हुई थीं।
निशा नें बिना किसी से कुछ कहे अपना सामान अपने पापा को दे दिया, वो चाहती थी कि सागर उसे रोके उसे डांटे उसे समझाए कि वो उससे प्यार करता है वो नहीं जा सकती उसे छोड़ कर
पार सागर दूसरी तरफ मुँह घुमाये खड़ा रहा।
निशा रोते बिलखते चली गई।
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1 सप्ताह बाद उसे तलाक का नोटिस मिला, वह दंग रह गई पर उसने होशियारी दिखाते हुए वो कागज़ात वापिस करते हुए यह पत्र लिखा कि वो सागर को टॉक नहीं देना चाहती क्यूंकि वो उसकी पत्नी हैं और रहना चाहती है।
जब सागर कि माँ को ये पत्र मिला वो आग बबूला हो गई और कहने लगी जाने कौन से कर्म का फल हैं ये लड़की।
निशा पत्र भेजने के बाद मन ही मन सोचने लगी कि ना मैं वापिस जाउंगी और ना ही तलाक दूंगी, अब देखती हूं कैसे लाते हैं फिर से एक नयी बेटी
@कृति