सिन्दूर – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

सुबह सुबह नाश्ता करने के बाद भैया आफिस के लिए निकले ही थे कि दस कदम की दूरी पर सामने से आती हुई ट्रक ने उनको अपने चपेट में ले लिया ।मै अभी सोकर ही उठा था।चाय पी रहा था।तभी किसी ने बताया कि घर के पास ही एक एक्सीडेंट हो गया है ।सोचा ,हुआ होगा, मुझे क्या ।पर फिर मन नहीं माना ।

सभी लोग उधर ही दौड़ रहे थे ।गया तो काफी भीड़ थी ।किसी तरह पास गया ।खून से लथपथ मेरा भाई जमीन पर पड़ा हुआ था ।ट्रक वाला भाग चुका था ।जल्दी से सबने मिलकर उनकों अस्पताल पहुंचाया ।लेकिन सब बेकार ।डाक्टर ने जवाब दे दिया ।भैया हमसब को छोड़ कर चले गये थे ।रोती पीटती अम्मा,

और बाबू जी, साथ में भाभी को लेकर पहुँचे थे ।फिर जरूरी कारवाई करके उनको घर लाया गया ।अम्मा तो पछाड़ खा कर रो पीट रही थी।बाबूजी धोती के किनारे से अपने आँसू पोंछ रहे थे, जिसका जवान बेटा चला गया हो ,उस माता पिता के दुख का कोई अन्त नहीं था और भाभी—वह तो एक दम गुमसुम सी हो गई थी।

पत्थर की मूर्ति बन गई थी वह।मै भी कुछ  समझ नहीं पा रहा था ।अब क्या होगा?कैसे होगा?माँ बाप के लिए तो मै एक बेटा था ही पर भाभी का क्या होगा? घर की हँसी खुशी खत्म हो गई थी ।अम्मा के रोने से ही दिन की शुरुआत होती ।मै अपनी भाभी के लिए बहुत दुखी था ।इतनी कम उम्र ।कैसे काटेगी जिंदगी ।

कौन सहारा देगा उन्हे? मेरी भी शादी हो जायेगी ।अम्मा बाबूजी भी नहीं रहेंगे, तब?मै अपने मन में कुछ निश्चय करता।फिर मेरी सोच धारा शायी हो जाती ।भाभी मानेगी मेरी बात ? छः महीने पहले ही तो भैया की शादी हुई थी ।खूब धूम धाम से बारात सजी थी।मै भी तो कितना उत्साह से गया था ।भाभी को विदा कराकर ले आया था ।

उनके गोरे,उजले मुखड़े पर, माँग में भरी सिन्दूर की लाली गजब ढा रही थी ।बहुत सुन्दर लगी थी भाभी ।थी भी बहुत सुन्दर ।अम्मा तो बलैयां लेती न थकती थी इतनी सुन्दर बहू पाकर ।लेकिन होनी को कौन टाल सकता है ।देखते देखते हमारा परिवार उजाड़ हो गया ।अम्मा तो होश में ही नहीं रहती ।जब तब भाभी को देखती तो उनका गुस्सा आसमान छूने लगता

इस कहानी को भी पढ़ें: 

*उदासीन ब्रह्मचारी का फैसला* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

और भाभी को गालियां बकने लगती ।”इसी के भाग्य से मेरा बेटा चला गया “।जैसे तैसे हमारा दिन बीत रहा था।अम्मा जितना उनकों कोसती, मुझे उनसे सहानुभूति होती ।बेचारी का क्या कसूर था।धीरे-धीरे घर की दिनचर्या सामान्य होने लगी ।भाभी सुबह उठती ।चाय नाश्ता सबके लिए बनाती ।बाबूजी के लिए पूजा की तैयारी करती ।फिर मेरे लिए गर्म गर्म चाय लेकर आती ।टेबल पर रखती और बिना कुछ बोले चली जाती ।

मुझे लगता वे किसी से कुछ बोलती कयों नहीं? मेरी नयी नयी नौकरी लग गई तो मै भी ठीक नौ बजे निकल जाता आफिस के लिए ।लेकिन उसके पहले, जैसे ही नहा धोकर तैयार होता, भाभी मेरा नाशता और टिफ़िन लाकर धर देती ।शाम को लौटता तो मेरा कमरा सजा हुआ मिलता ।फूल दान में फूल सजा कर रखना नहीं भूलती वह।

उनको पता था कि मुझे अच्छी तरह से रख रखाव बहुत पसंद है, तभी ।आते के साथ चाय ,नाश्ता मिल जाता ।रात को जब चूल्हे पर रोटी सेकती तो चूल्हे की आग से उनका चेहरा लाल हो जाता ।माथे पर पसीने की बूँदें मोती का अहसास कराती ।आजकल इधर मुझे न जाने क्या होता जा रहा था ।वह मुझे बहुत अच्छी लगती

।मै रोटी पकाते, परोसते उनको एकटक देखता रहता ।कभी उनकी नजरें टकरा जाने पर खुद ही झेंप जाता।फिर एक दिन उनके मायके से उनके माता पिता आये ।उनको देखते ही अम्मा चिल्लाने लगी”अब क्या लेने आये हैं, आपकी बेटी ने मेरे बेटे को खत्म कर दिया, उसका भाग्य बहुत खराब था।”फिर दोनों तरफ से बहुत कहा सुनी हुई

और उसी दिन वे लोग वापस चले गये ।समय भागता रहा ।मै उनके प्रति बहुत आकर्षित हो रहा था।लेकिन कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती ।न जाने वह क्या समझेगी ।और फिर अम्मा का डर भी था।उनके माता पिता ने प्रस्ताव रखा था कि छोटे बेटे से शादी कर देनी चाहिए ।लेकिन यह सुनते ही अम्मा आगबबूला हो गई ” इसके भाग्य से मेरा एक बेटा चला गया

अब दूसरे बेटे को मै खोना नहीं चाहती “।अम्मा को लगता कि मेरे साथ शादी होने पर कहीं मुझे भी कुछ हो गया तो?माँ बहुत डर गई थी ।लेकिन इसबार मैंने मन में पक्का सोच लिया था और एक बार कहने की कोशिश भी की तो भाभी काम का बहाना बनाकर चली गई ।बाबूजी भी चाह रहे थे कि घर बस जाय ।लेकिन अम्मा तैयार ही नहीं होती ।लेकिन मै देख रहा था भाभी मेरा विशेष  खयाल रखने लगी आजकल ।समय पर मेरा नाशता, खाना, तैयार करती ।मेरे कपड़े प्रेस कर देती।बिस्तर की चादर बदल देती ।एक दिन आफिस से आते हुए गाय को बचाने में मै बाइक से गिर गया ।

अधिक चोट तो नहीं लगी, लेकिन पैर में फ्रैक्चर हो गया ।डाक्टर ने पट्टी लगा दी और बेड रेस्ट के लिए  लिख दिया ।कम से कम पन्द्रह दिन के लिए ।अब मैं बेड पर पड़ा हुआ उन्हे दौड़ भाग करते हुए देखता रहता ।वह भी बहुत सेवा में लगी रहती ।मुझे अच्छा लगता उनका सामीप्य ।पन्द्रह दिन के बाद मेरी पट्टी खुल गई ।भाभी ने सहारा देकर चलने में मदद किया ।मुझे तो अच्छा लगता ही था।मै मन ही मन उनसे प्रेम करने लगा था ।अम्मा के डर से वह मुझसे बचने की कोशिश करती ।मैंने कभी अनुचित व्यवहार नहीं किया ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

 अजूबा – मुकुन्द लाल

समय के इन्तजार में था।और आखिर वह समय आ गया ।होली का त्योहार आया ।अम्मा तो मुँह लटकाए बैठी रही, तब बाबूजी ने ही कहा “कितना रोती रहोगी?वह चला गया, अब नहीं आने वाला है “जो है उसके लिए तो अच्छा मनाओ ।”मन में तकलीफ तो सबको है ।जाओ बहू के साथ तैयारी करो।अम्मा नहा धोकर  पूजा की थाली लेकर मंदिर गई ।अच्छा मौका था ।मैने भर मुट्ठी अबीर-गुलाल लिया और भाभी के माथे पर भर दिया ।वह तो रोने लगी ।”आपने क्या कर दिया, अम्मा क्या कहेंगी?”अम्मा जो कहेगी वह देख लेंगे ।

मै आपसे शादी करना चाहता हूँ ।भाभी क्या कहती ।मुँह छिपा लिया ।लेकिन सच में वह बहुत सुन्दर लग रहीं थीं ।लेकिन अचानक वह बाथरूम जाकर सारे अबीर-गुलाल धो आई।अम्मा मंदिर से लौटी तो पूछा “तुम दुबारा नहा रही थी क्यों? वह सिर झुकाए चुप रही।बाबूजी ने मुझे पुकारा और कहा ” जा बहू को भी मंदिर ले जा।इतने दिनों से कहीं निकली नहीं है ।माँ के दर्शन से मन अच्छा लगेगा ।बाबूजी सबकुछ समझ रहे थे मुझे मौका देना चाहते थे।उनका इशारा मेरी मंशा पूरी करने वाली थी।मै  भाभी के लिए और

अम्मा बाबूजी के लिए होली पर कपड़े लाया था।बाबूजी ने ही भाभी से आग्रह किया कि वह नया कपड़ा पहन कर मंदिर जाये।उनकी बात कैसे टालती वह।गुलाबी रंग की साड़ी में बहुत खिल रही थी वह।आज मै अपनी योजना को अंजाम देने वाला था।रास्ते में सिन्दूर की पूड़िया और दो फूलों का हार खरीद लिया ।साथ में प्रसाद के लिए मिठाई का पैकेट ।मंदिर पहुंच गया ।भगवान के सामने जाकर भाभी के माथे पर सिन्दूर डाल कर उनके मांग भर दिया ।माला की अदला-बदली खुद ही कर ली।तभी पंडित जी भी आ गए ।

हमें आशीर्वाद दिया उनहोंने और कहा कि बहुत अच्छा किया है आपने ।मै उनके हाथ थामे घर आया ।अम्मा तो देखकर ही चिल्लाने लगी और भाभी को कोसने लगी ।तब बाबूजी आगे बढ़े ” ममता, आशीर्वाद दो बच्चों को, इन प्यारे जोड़े को”देखो कितने सुन्दर लग रहें हैं “अब यह हमारी बहू नहीं बेटी है ।फिर अम्मा ने कहा “ठहरो,आरती की थाली ले आने दो ,बेटे बहू की आरती उतारनी है ” और भीतर जाकर अम्मा आरती ले आई।हमारे आरती हुई  और अम्मा ने मेरी पत्नी के माँग में खूब सारा सिन्दूर भर दिया ।

आशीर्वाद दिया और कहा अब तुम भाभी नहीं पत्नी हो इसकी ।इसकी जिम्मेदारी तुम्हारे उपर है ।हमें तो अब तीर्थ यात्रा पर जाने का मन हो आया है ।हम दोनों ने अम्मा के पैर छूकर आशीर्वाद माँगा ।फिर अम्मा ने हमें कलेजे से लगा लिया ।बाबूजी दूर खड़ा मुस्कुरा रहे थे ।अम्मा  का हृदय परिवर्तन करने में बाबूजी का ही हाथ था।यह सिर्फ मै ही जानता था।एक  नयी दुनिया, नयी दुलहन हमारे साथ, हमारे पास आ गयी थी ।—

उमा वर्मा, राँची, झारखंड ।

स्वरचित ।मौलिक ।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!