श्यामली ने काँपते हाथों से अँगूठी को उठा लिया उस पर जड़ा छोटा सा हीरा, अपनी चमक से अंधेरे कोने को दमका रहा था। श्यामली बार बार अँगूठी को देखे जा रही थी। पता नहीं कब बीते हुए दिनों की याद चल चित्र के समान आँखों के आगे उतरने लगी।
“मैडम मैडम क्या आज मुख्य अतिथि को फूल देने के लिये मैं चुनी जाऊँगी?” श्यामली ने अपनी कक्षाध्यापिका से पूछा था
“अरे नहीं, मैंने दीपिका को चुना है।“ कक्षाध्यापिका ने प्यार से श्यामली को गाल पर थपकी देते हुए कहा।
“पर दीपिका तो पहले भी फूल दे चुकी है।“
“तुम अभी नहीं समझोगी, गोरे गोलमटोल बच्चे अधिक प्यारे लगते है न।“
शायद कक्षाध्यापिका की कही बात ही सबसे पुरानी होगी। जब उसे अहसास हुआ कि वह गोरी नहीं है। चिड़चिड़ाती हुई वह घर पहुँचकर अपनी माँ के आगे रोने लगी। माँ ने उसको चुप तो करा दिया पर उसके जन्म के समय से उठी इस समस्या की चिंता में खुद डूबने उतरने लगी। समय बीतने के साथ श्यामली का आत्मविश्वास घर मोहल्ले एवं विद्यालय में रंगरूप से संबंधित कड़वी बातें कहे जाने के कारण टूटता गया।
कभी कभी तो उसकी माँ भी गुस्सा आने पर यह बात याद दिलाने से नहीं चूकती थी। केवल पिताजी हर समय उसके समर्थन के लिये तैयार रहते थे। वे हमेशा कहते थे कि रंगरूप अपनी जगह है जिसे बदला नहीं जा सकता। परंतु पढ़ना लिखना और लायक बनना अपने हाथ में है। उनकी ये बातें श्यामली का मनोबल बढ़ाती थीं। देखते ही देखते श्यामली ने जीव विज्ञान में बैचलर की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर ली।
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अभी से लड़का देखना शुरू कर देना चाहिये। रंग के कारण समय काफी लग जाएगा। फिर हमारे पास इतना धन भी तो नहीं कि दहेज से यह अवगुण ढँक दिया जाय। दूसरी की भी तो शादी करनी है। माँ की यह बात कंठस्थ हो गई थी। पिताजी उसकी पढ़ाई पूरी हो जाने की बात कह कर शादी की बात टाल जाते। परंतु प्रतिदिन के क्लेश से तंग आकर उन्होंने श्यामली का बायोडेटा बना डाला।
यह क्या लिख दिया काम्प्लेक्शन डार्क अरे इसे पढ़कर तो कोई आगे बात ही नहीं करेगा लिखिये फेयर
माँ के दबाव में पिताजी ने बायोडेटा बदल दिया। रिश्ते भी आने लगे। फिर लड़के वालों मे श्यामली को देखने की बात की। श्यामली एक ओर तो आशावान थी तो दूसरी ओर आशंकित भी। हर लड़की को इस घड़ी से गुजरना होता है। सलवार कुर्ते से लेकर साड़ियाँ तक चुनी जाने लगीं कि किस कपड़े में श्यामली का रंग खिला सा दिखेगा। अंत में हल्के नीले रंग की एक साड़ी चुनी गई।
उस दिन कामवाली बाई को छुट्टी दे दी गई। क्योंकि यही लोग सबसे अधिक बातें फैलाती हैं। छोटी बहन को उसकी सहेली के घर भेज दिया गया था। कि कहीं श्यामली की जगह उसे न पसंद कर लिया जाय।
हाथों में चाय की ट्रे लेकर श्यामली ने कमरे में कदम रखा। आँखें न उठाते हुए भी उसने यह महसूस किया कि सारी नज़रें उस पर टिक गई हैं। ट्रे रखकर वह एक कोने में बैठ गई।
जाओ तुम अंदर ही बैठ जाओ। चंद मिनटों में ही लड़के की माँ ने कड़े शब्दों में उससे कहा। श्यामली उठकर भीतर चली गई।
अरे वाह खूब झूठ बोला आपने। लड़की तो एकदम काली है। बायोडेटा में फेयर लिखा था। यहाँ तो मैं रिश्ता बिलकुल नहीं कर सकती। लड़के की माँ ने उठते हुए कहा।
श्यामली ने अंदर बैठे बैठे सारा वार्तालाप सुन लिया। उसका दिल चाहा कि बाहर जाकर चिल्ला चिल्ला कर सबको भलाबुरा कहे पर अपमान का घूँट पीकर रह गई।
श्यामली को घर में घुटन सी होने लगी थी। अधिक समय कालेज में बिताती थी। घर लौटते ही अपने कमरे में बंद हो जाती थी। कभी कभार शीशे के आगे भी खड़ी हो जाती थी। शायद ही ऐसी कोई क्रीम या लेप बचा था जो नहीं आजमाया गया हो।
इस बीच कमोबेश सभी जगह बातें रंग पर आकर टूट जाती थीं। आरंभ में तो माँ ने शादी का बक्सा भी तैयार करना शुरू कर दिया था। कुछ साड़ियाँ खरीदने के बाद वह भी रोक दिया गया। श्यामली ने किसी दूसरे शहर में नौकरी करने की सोची। परंतु माता पिता के दबाव के कारण उसी कालेज में प्राध्यापिका बन गई।
समय के साथ माता पिता की चिंता भी बढ़ती गई। एक लड़की तो विवाह की उम्र पार कर ही गई थी, कही दूसरी के विवाह में भी देर न हो जाए। यह सोचकर छोटी की शादी धूमधाम से कर दी गई। श्यामली ने बहन की शादी की तैयारी व मेहमान नवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी। पर सबकी आँखों में अपने प्रति अजीब सी बेचारगी देखकर उसे चिढ़ सी होने लगी।
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एक दिन श्यामली की माँ कहीं से लौटकर आई और फूट फूटकर रोने लगी। रोते रोते उन्होंने बताया कि पड़ोसन ने कहा कि बेटा नहीं होने के कारण बुढ़ापे में सेवा के ख्याल से श्यामली की शादी नहीं की जा रही है। कौन सी कसर बाकी रह गई, जात पात तक तो छोड़ दिया पर कहीं तय नहीं हुई तो क्या करें। अब तो तलाकशुदा या विधुर ही रह गए हैं। अब आप इस तरह के लड़के भी देखना शुरू कर दीजिये। माँ ने पिताजी से कहा।
अब श्यामली के लिये क्या ऐसा बोझा हो गई जरा धीरे बोलो, उस बेचारी पर क्या बीत रही होगी। उसके बारे में भी तो सोचो पिताजी ने धीमी आवाज में कहा।
श्यामली ने अपने कमरे से सारी बातें सुन ली थीं। उसका मन हो रहा था कि जहर खा कर आत्महत्या कर ले। रात दिन इस स्थिति का सामना करने की अब उसमें हिम्मत नहीं थी। इच्छा हो रही थी कि कहीं ऐसी जगह चली जाए जहाँ सब अजनबी हों। कोई कुछ न पूछे, कोई कुछ न कहे।
इधर श्यामली की तीसवीं वर्षगाँठ आते ही माँ पिताजी तलाकशुदा एवं विधुर लड़के भी देखने लगे। जहाँ लड़केवाले तैयार होते वहाँ उम्र का अधिक अंतर या बड़े बड़े बच्चों की बात सोचकर माता पिता पैर खींच लेते। अब श्यामली भी पहलेवाली श्यामली नहीं रही थी। उसका मुँह भी खुल गया था। कई रिश्ते वह स्वयं भी ठुकरा देती थी।
एक दिन श्यामली जल्दी घर लौट आई। उसकी खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी। माता पिता को सामने बैठाकर उसने एक साँस में सब कुछ कह डाला।
मुझे अमरीका के न्यूयार्क विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान में पीएचडी के लिये दाखिला मिल गया है। दो महीने में जाना होगा। अमरीका के नामी विश्वविद्यालयों में से एक है मैं तो जरूर जाऊँगी।
माँ पिताजी यह सुनकर सन्न रह गए। वर्तमान में आने में उन्हें कुछ समय लगा।
इस शहर से बाहर तुम अकेली कहीँ नहीं गईं तो उतनी दूर कैसे जाओगी। कोई जान न पहचान न अपना देश। मेरा तो जी काँप उठता है देखकर, माँ ने कहा।
कैरियर में आगे बढ़ने के लिये पीएचडी करना जरूरी है। इतना अच्छा अवसर फिर नहीं मिलेगा। पिताजी आप ही कुछ कहिये न। हमेशा की तरह श्यामली ने पिता से समर्थन माँगा।
न चाहते हुए भी पिताजी ने हामी भर दी। कुछ समय बाद माँ भी राजी हो गई। आखिर जाने का दिन भी आ गया। हवाई अड्डे पर माँ श्यामली गले लगकर फूट फूटकर रो पड़ी।
तुम्हें अपनी कोख से जनम दिया है और हमेशा तुम्हारे भविष्य की चिंता में कभी तुम्हें कभी तुम्हे आँख भर देख भी नहीं पाई, न प्यार कर पाई। सोचा था तुम्हें डोली पर बैठाकर चैन की साँस लूँगी पर यह तो न हो सका। ईश्वर तुम्हें सदा सुखी रखे। बेटी मुझे गलत न समझना। माँ हूँ कभी तुम्हारा अहित नहीं सोचूँगी।
श्यामली भी रोने लगी। बरसों की कड़वाहट एक पल में बह गई।
एक नई उमंग व उत्साह के साथ वह अमरीका पहुँची। थोड़ी बहुत घबराहट व चिंता थी जो तब समाप्त हुई जब उसने अपने नाम की तख्ती एक सज्जन के गले में लटकी देखी। श्यामली उसके पास पहुँची व अपना परिचय दिया। उत्तर में उसे पता चला कि वो श्री ऐडम स्मिथ हैं जो उसके पीएच डी के गाइड होंगे। हँसते हुए उन्होंने कहा, कि भारतीय विद्यार्थियों की आधी चिंता समाप्त हो जाती है जब उन्हें लेने कोई हवाई अड्डे पहुँच जाता है। श्यामली ने पूछा, “और दूसरी आधी कब समाप्त होती है?”
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“कैंपस पहुँचकर बताऊँगा।”
पूरे रास्ते ऐडम अमेरिका के बारे में और विश्वविद्यालय के बारे में बताकर उसे आश्वस्त करते रहे।
“यह है तुम्हारा छात्रावास एवं तुम्हारा कमरा।” ऐडम ने श्यामली को कमरा दिखाया।
श्यामली को यह केवल एक कमरा नहीं बल्कि एक कमरे का घर लगा। सारी आवश्यकताओं से युक्त।
“अकेले कमरे में डरने की कोई बात नहीं है।” ऐडम ने हँसते हुए कहा।
“नहीं… नहीं…” श्यामली थोड़ा झेंप गई।
“तुमने पूछा था न कि बाकी आधी चिंता कब समाप्त होती है?” वह है दरवाजा खोलने से लेकर उपकरणों के प्रयोग की ट्रेनिंग।”
श्यामली ने सोचा कि लगता है कि इन्हें भारत से आए विद्यार्थियों के बारे में काफ़ी पता है।
श्यामली को नई जीवन शैली में व्यवस्थित होने में लगभग एक महीना लग गया। श्री स्मिथ ने पूरा सहयोग दिया। ग्रोसरी की खरीदारी से लेकर कार चलाना सिखाने में बहुत मदद मिली उनसे।
श्यामली शोधकार्य में जुट गई। ऐडम के निर्देशन में उसे काफी शोधपत्र भी जीव विज्ञान के जर्नल्स में छपने लगे। अपने कार्य की प्रगति से श्यामली भी बहुत संतुष्ट व खुश थी।
कुछ समय पश्चात जीव विज्ञान के कुछ विद्यार्थियों ने नियाग्रा जलप्रपात घूमने जाने का प्रोग्राम बनाया। श्री ऐडम भी साथ गए। श्यामली की खुशी का ठिकाना न था। नियाग्रा के बारे में बहुत कुछ पढ़ा व सुना था। अब देखने का अवसर मिल रहा था। विशालकाय जलप्रपात को आँखों के आगे देखकर श्यामली रोमांचित हो उठी थी। ऐडम उसे जल प्रपात से संबंधित तथ्य बता रहे थे। नियाग्रा प्रवास के दौरान ऐडम से उसकी काफ़ी बातचीत हुई। जिससे पता चला कि ऐडम दक्षिण भारत की यात्रा कर चुके हैं। भारतीय संस्कृति की अच्छी जानकारी रखते हैं। अपने माता पिता तथा निजी जीवन के बारे में उन्होंने श्यामली को बताया।
दो वर्ष समाप्त होने को आ रहे थे। माता पिता के आग्रह एवं अपनी भी उत्कट इच्छा होने के कारण श्यामली ने भारत जाने की सोची एवं छुट्टी की अर्जी दे दी।
“तुम भारत जाना चाहती हो?” ऐडम ने पूछा।
“जी हाँ, दो वर्ष को गए हैं माँ पिताजी से मिलना चाहती हूँ।”
“क्या मैं तुम्हारे साथ भारत चल सकता हूँ, “मैंने उत्तर भारत नहीं देखा है। मैं घूम भी लूँगा और तुम्हारे माता पिता से मिल भी लूँगा।”
“चलिये मुझे बहुत अच्छा लगेगा।”
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श्यामली ने भारत यात्रा की तैयारी शुरू कर दी। माँ पिताजी को अपने और ऐडम के आने की सूचना दे दी। अंततः वह दिन भी आगया जब वे लोग भारत पहुँचे।
माता पिता से गले लगकर श्यामली अपने आप को रोक नहीं पाई। दो सालों में उनकी याद भी बहुत आई थी। कितनी बार अपने कमरे में माँ पिताजी को याद कर के आँसू बहाए थे।
श्यामली ने ऐडम का परिचय करवाया। ऐडम ने भारतीय शैली में अभिवादन किया।
माँ पिताजी के साथ ऐडम की खूब बातें होतीं। हँसी मज़ाक चलता रहता। कुछ दिन बीत गए। पास पड़ोस वाले पूछने लगे कि यह विदेशी कब तक रहेगा। माता पिता ने श्यामली से पूछा, पर श्यामली को इस बारे में कुछ पता नहीं था। ऐडम से पूछें भी तो कैसे। उसने ऐसे ही कह दिया कि बस एक दो दिनों में घूमने निकल जाएगा।
कुछ दिनों बाद एक शाम श्यामली कहीं बाहर से लौटी। तो घर के अंदर से हँसी ठहाकों की आवाज़ें आ रही थीं। माँ को इतना खुश तो बरसों से नहीं देखा था। श्यामली के पूछने पर किसी ने ठीक ठीक कुछ नहीं बताया। श्यामली अपने कमरे में चली गई।
ऐडम उसके पीछे पीछे कमरे में आए और बोले, “श्यामली मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।”
“कहिये।”
“मुझे घुमाफिराकर कहना नहीं आता। भारतीय संस्कृति के अनुसार मैंने तुम्हारे माता पिता से बात कर ली है। अब निर्णय तुम्हारे हाथ में है।”
“मैं कुछ समझी नहीं मेरे किसी भी निर्णय का आपसे क्या संबंध।”
“यह निर्णय है शादी का। अब हम दोनो एक दूसरे को अच्छे से जानने लगे हैं एवं मुझे विश्वास है कि हम दोनो एक अच्छे पति पत्नी बन सकते है। यह रही सगाई की अँगूठी यदि तुम इस बात से सहमत न हो तो इसे लौटा देना।” इतना कहकर ऐडम कमरे के बाहर चले गए।
श्यामली ने इस स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी। एक तो उसने ऐडम को इस दृष्टि के कभी देखा नहीं था पर अब उसे लगने लगा था कि वह और ऐडम एक दूसरे के लिये सर्वाधिक उपयुक्त हैं। सगाई की अँगूठी इस तरह उसके हाथों में आएगी यह बात कभी सोची भी नहीं थी। इस उम्मीद में माँ ने आधा जीवन काट डाला एवं पिताजी ने कितने लड़केवालों की चौखट पर नाक रगड़ डाली।
अँगूठी पर आँसू की बूँद गिरते ही श्यामली वर्तमान में लौट आई। उठकर आइने के सामने बैठ गई। आज तक जो आइना उसे बदसूरत कहकर मुँह चिढ़ाता रहा, आज अच्छा लग रहा था। यंत्रवत उसने वह बक्सा खोला जो कभी उसकी शादी के लिये तैयार किया जा रहा था। उसमें से एक साड़ी निकालकर उसने पहन ली एवं दरवाजे की ओर बढ़ी।
बाहर के कमरे से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। कमरे में पहुँची तो देखा कि सब लोग उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे।
श्यामली को इस रूप में देखकर माँ पिताजी चौंक गए। जिस लड़की ने कभी बनाव शृंगार नहीं किया उसे सजा सँवरा देखकर उन्होंने मन ही मन आशीर्वाद दिया। श्यामली ने माता पिता की ओर देखा उनकी आँखों में मौन स्वीकृति देखकर वह ऐडम की ओर बढ़ी और बोली, आप अपने हाथों से यह अँगूठी मुझे पहना दीजिये।
लेखक : उत्कर्ष राय