राज्य स्तरीय बैडमिंटन खिलाड़ी रह चुकी तृषा ….शादी के 30 वर्षों के बाद घर के सामने बच्चों को बैडमिंटन खेलते देख रही थी …! बैडमिंटन और खेल देखते ही मन में उत्साह और खेलने की ललक जाग उठी…।
साड़ी का पल्लू बगल में दबाए पहुंच गई बच्चों के बीच….. एक बार मुझे भी बैडमिंटन खेलने मिलेगा क्या….? तृषा ने बच्चों से आग्रह किया ….
हां हां आंटी …..आइए ना…. देखो भाई…. वर्षों से मैंने खेला नहीं है …..मेरा खेल देखकर तुम लोग हंसना नहीं…. फिर क्या था ,
रैकेट पकड़ते ही पूरे भरोसे के साथ ….वही पुराना अंदाज…. शेटलकॉक और रैकेट के साथ सर्विस की ….उधर से शेटलकाॅक वापस आने पर तृषा ने दे मारा शॉट …
..वर्षों के बाद तृषा के चेहरे पर बैडमिंटन खेलने की खुशी और अपने खेल के प्रदर्शन का आत्मविश्वास झलक रहा था ….।
अरे आंटी जी , आप तो बहुत अच्छा खेलती हैं ….खेल की कुछ बारीकियां हमें भी सिखाएगीं क्या….? इस बार बच्चे तृषा से आग्रह कर रहे थे….।
हां – हां क्यों नहीं …बस फिर क्या था…. उस दिन के बाद एक घरेलू महिला तृषा बन गई प्रशिक्षक….. तो एक अच्छी शुरुआत कहीं से , कभी भी हो सकती है…!
( स्वरचित )
संध्या त्रिपाठी